एलेटसन ने उसके बाद कभी शतक नहीं बनाया और तीन साल बाद उसका क्रिकेट करियर भी समाप्त हो गया लेकिन उसे क्रिकेट के इतिहास में अमर बना देने के लिए उसकी वह ए
चालीस मिनट की ज़िन्दगी
कहते हैं ज़िन्दगी बरसों की नहीं, पलों की होती है। जीना तो बस उन पलों का ही होता है जो जी भरकर जी लिए जाएं और उन्हीं की यादों में बाक़ी की ज़िन्दगी गुज़ार दी जाए। वरना तो सुबह होती है, शाम होती है; उम्र यूँ ही तमाम होती है। बरसोंबरस गीली लकड़ी की तरह धुआँ छोड़ते रहने से कहीं बेहतर है एक बार भभक कर तेज़ी से जल उठना और फिर हमेशा के लिए बुझ जाना। मैदान चाहे जंग का हो या फिर खेल का या फिर कोई और, हर जगह यही मिसाल मौजूं होती है। बरसोंबरस भेड़ की तरह जीने की जगह एक दिन शेर की तरह जियो तो जानो कि ज़िन्दगी क्या होती है।
क्रिकेट का खेल आज बहुत लोकप्रिय हो चुका है और इसके कई छोटे प्रारूप सामने आ चुके हैं जो लंबे और धीमे समझे जाने वाले प्रारूप को लोकप्रियता के संदर्भ में पश्चगामी बनाते जा रहे हैं। लेकिन खेल का दो पारियों वाला लम्बा क्लासिक प्रारूप भी सदा धीमी गति का ही नहीं रहा। विस्फोटक बल्लेबाज़ जो चौके-छक्के मारकर तीव्र गति से रन बनाया करते थे, भी इस खेल के जन्म के उपरांत प्रत्येक युग में अवतरित हुए हैं जिन्होंने दर्शकों के लिए अविस्मरणीय बन जाने वाली पारियां खेलीं। एक शताब्दी से भी अधिक समय पूर्व घटित हुए एक ऐसे ही प्रसंग को आज मैं स्मरण कर रहा हूँ जिसे इस आलेख के प्रथम अनुच्छेद में वर्णित जीवन-दर्शन से संयुक्त करके देखा जा सकता है।
यदि किसी व्यक्ति की बाहें उसकी शेष देह के अनुपात में अधिक लम्बी हों तो उसे संस्कृत में आजानुबाहु कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि ऐसे व्यक्ति को तो किसी देश का राजा होना चाहिए। ६ मार्च, १८८४ को इंग्लैंड के वेल्बेक नामक ग्राम में जन्मे एडविन बोअलर एलेटसन की बाहें तो ऐसी ही थीं लेकिन राजाओं वाली उसमें कोई बात नहीं थी। उसने क्रिकेट खेलना शुरु किया तथा युवा होते-होते नॉटिंघमशायर क्रिकेट क्लब से जुड़ गया। काउंटी क्रिकेट प्रतियोगिता प्रथम श्रेणी क्रिकेट की सर्वाधिक लोकप्रिय प्रतियोगिता आज भी है, उस युग में तो थी ही। १९११ में इसी प्रतियोगिता के एक मैच में एक दिन ऐसा आया जिसने एलेटसन को क्रिकेट के इतिहास में अमर बना दिया।
१८ मई १९११ के दिन इंग्लैंड के होव नगर में नॉटिंघमशायर का क्रिकेट दल ससेक्स के दल के विरूद्ध काउंटी प्रतियोगिता के अंतर्गत तीन दिवसीय मैच खेलने के लिए उतरा। एलेटसन वैसे तो बल्लेबाज़ी तथा गेंदबाज़ी दोनों ही किया करता था किन्तु स्थापित सत्य यही था कि उसने तब तक इन दोनों ही कार्यों में कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त नहीं की थी। उसे एकादश में प्रायः एक उपयोगी खिलाड़ी के रूप में सम्मिलित किया जाता था जो अपनी बलिष्ठ देह एवं चुस्ती-फुरती के कारण एक अच्छा क्षेत्ररक्षक था। उसका कुछ रन बना लेना या इक्का-दुक्का विकेट ले लेना ही उसके दल के लिए पर्याप्त होता था।
नॉटिंघमशायर ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए अपनी पहली पारी में २३८ रन बनाए जिसमें एलेटसन का योगदान केवल सात रनों का था। प्रत्युत्तर में ससेक्स ने शानदार प्रदर्शन करते हुए ४१४ रन बनाए तथा इस भांति पहली पारी में १७६ रनों की बड़ी बढ़त ले ली। एलेटसन ने गेंदबाज़ के रूप में केवल एक ओवर फेंका जिसमें उसे कोई विकेट नहीं मिला।
पहली पारी में १७६ रनों से पिछड़ी नॉटिंघमशायर के दूसरी पारी में सात विकेट केवल १८५ रनों पर तब गिर चुके थे जब तीसरे और अंतिम दिन अर्थात् २० मई १९११ को भोजनावकाश (लंच) से पूर्व एलेटसन नौवें नम्बर पर बल्लेबाज़ी करने के लिए मैदान में उतरा। एक नकारात्मक तथ्य यह भी था कि उस समय एलेटसन की कलाई में चोट लगी हुई थी। दूसरे छोर पर ली नामक बल्लेबाज़ था। सत्र में लगभग पचास मिनट का खेल बाक़ी था जिसमें एलेटसन ने अपेक्षा से बेहतर बल्लेबाज़ी करते हुए सैंतालीस रन बनाए लेकिन उसके दल के दो विकेट और गिर गए तथा स्कोर नौ विकेट पर २६० रन तक पहुँचा। हार का ख़तरा अभी भी नॉटिंघमशायर के ऊपर मंडरा रहा था।
भोजनावकाश के उपरांत दूसरे सत्र में ४७ रनों पर खेल रहा एलेटसन अंतिम बल्लेबाज़ राइली के साथ अपने दल की दूसरी पारी को आगे बढ़ाने के लिए मैदान में वापस आया। दर्शकों, प्रतिपक्षी दल के खिलाड़ियों तथा खेल के विशेषज्ञों में से सम्भवतः किसी को भी इस पारी के कुछ और मिनटों एवं कुछ और रनों से अधिक चल पाने की आशा नहीं थी। लेकिन जो हुआ, वह किसी की भी कल्पनाओं से परे था।
अगले चालीस मिनटों में होव के उस सेंट्रल काउंटी मैदान में जैसे कोई भयानक तूफ़ान आया जो ससेक्स के गेंदबाज़ों तथा क्षेत्ररक्षकों पर क़हर बनकर टूटा। आज के टी-20 क्रिकेट के दौर में भी ऐसी असाधारण बल्लेबाज़ी की कल्पना नहीं की जा सकती जैसी उन चालीस मिनटों में एलेटसन ने की। उसने अंतिम बल्लेबाज़ राइली के साथ अंतिम विकेट पर १५२ रन जोड़े जिनमें से १४२ रन उसने अकेले ही बना डाले। उसने ऐसेऐसे शॉट लगाए कि पाँच बार तो गेंदें ही स्टेडियम से बाहर जाकर खो गईं। आख़िर मैच के अम्पायरों ने गेंदों का नया डिब्बा ही खोल दिया। उसके दो शॉटों ने स्टेडियम के दो स्थानों पर शीशे तोड़ दिए। पहली पारी में पाँच विकेट लेने वाले ससेक्स के गेंदबाज़ किलिक के एक ही ओवर में एलेटसन ने चौंतीस रन बना डाले जो कि प्रथम श्रेणी क्रिकेट में एक ओवर में किसी बल्लेबाज़ द्वारा सर्वाधिक रन बनाए जाने का विश्व कीर्तिमान बन गया एवं कई दशक तक बना रहा। दर्शक ही नहीं, प्रतिपक्षी दल के खिलाड़ी भी बदहवास से उस मंत्रमुग्ध कर देने वाले बल्लेबाज़ी प्रदर्शन को देख रहे थे जो अविश्वसनीय था पर उनकी आँखों के सामने हो रहा था। ऐसी बल्लेबाज़ी हो रही थी जो उच्च श्रेणी के क्रिकेट में न पहले कभी देखी गई थी, न सुनी गई थी। मुश्किल से नब्बे मिनटों में खेली गई १८९ की अपनी उस पारी में एलेटसन ने तेईस चौके और आठ छक्के लगाए। उसकी यह कभी न भुलाई जा सकने वाली पारी तब समाप्त हुई जब कॉक्स नामक गेंदबाज़ द्वारा डाली गई गेंद पर सीमा रेखा पर खड़े स्मिथ नामक क्षेत्ररक्षक ने उसका कैच पकड़ लिया। ख़ास बात यह थी कि एलेटसन फिर भी आउट नहीं था क्योंकि कैच लेते समय स्मिथ का एक पैर सीमा रेखा (बाउंड्री वॉल) के बाहर था, अतः खेल के नियमों के अनुसार वह एक और छक्का था। एलेटसन चाहता तो अभी और खेलता रह सकता था और शायद वह प्रथम श्रेणी क्रिकेट के सबसे तेज़ दोहरे शतक का ऐसा कीर्तिमान भी बना सकता था जो एक सदी में भी न टूट पाता। लेकिन उसका मन भर गया था। शायद चालीस मिनट में वह एक पूरी ज़िन्दगी जी चुका था। वह बिना कुछ कहे या अम्पायर की ओर देखे पैविलियन लौट गया।
एलेटसन की इस ऐतिहासिक पारी की बदौलत नॉटिंघमशायर ने अपनी दूसरी पारी में ४१२ रन बनाए और हारने की हालत से जीतने की हालत में जा पहुँची लेकिन समय समाप्त हो जाने के कारण वह मैच ड्रॉ (अनिर्णीत) रहा।
एलेटसन ने उसके बाद कभी शतक नहीं बनाया और तीन साल बाद उसका क्रिकेट करियर भी समाप्त हो गया लेकिन उसे क्रिकेट के इतिहास में अमर बना देने के लिए उसकी वह एक पारी और उस पारी के भी अंतिम चालीस मिनट ही काफ़ी रहे।
- जितेन्द्र माथुर
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