कुछ तुम को सच से नफरत थी, कुछ हम से न बोले झूठ गए, कुछ लोगों ने उकसाया तुमको, एक नया जीवन मिल गया कुछ अपने ही मुक़द्दर फूट गया, कुछ अपने ही बेहद चालाक
जीवन का मूल मंत्र है
अंत
जहां अंत खड़ा है,
वहीं एक शुरूआत है,
तुम सपने देखना मत छोड़ों,
जहां एक सूखी है कली,
वहीं एक खिला गुलाब है।
जीवन क्या है?
हर पल एक नया संघर्ष।
जीवन का उद्देश्य क्या है?
शायद निरंतरता...!!!!!
ये संघर्ष क्या है?
जीवन की उद्दंडता।
जीवन है तो,
मोह माया का प्रपंच भी होगा,
लाभ - हानि का प्रयोजन भी होगा,
परमार्थ का नाम भी बदनाम होगा,
स्वार्थ का एहसास भी खास होगा।
होगा लेकिन जीवन तुम्हारा ही,
बस चुनाव तुम्हारा संघर्ष होगा।
जहां अंत होगा, वहीं खंड होगा,
बस अखंडता तुम्हारा चुनाव होगा,
अगर जी सको इस दुविधा में तुम,
तो प्रारंभ तुम्हारा आसान होगा,
समूह में चलकर समर्थ होना,
ज़रूरी नहीं एकलव्य होना,
ज़रूरी नहीं अर्जुन होना,
तुम दुर्योधन भी मत होना,
तुम बस मानव बने रहना,
धर्म,अधर्म ये चुनाव तुम्हारा होगा।
बस यहीं तुम्हारा चुनाव होगा।
जीत सको तो इस दुनिया में,
विविधता में भी अखंडता होगा।
इसलिये जहां अंत खड़ा है,
वहीं खूबसूरत प्रारंभ है।
सपने देखना तुम्हारा हक है,
ये हार जीत का प्रश्न नहीं।
ये हमारा अंत का मनन है,
सजीवता की झलक है,
जीवन का मूल मंत्र है,
अगर प्रारंभ में ही जीवन का अस्तित्व है,
तो अंत में भी जीवन की समग्रता का संदेश है।
जिंदगी का सफ़र
सफ़र है कि प्रचंड वेग का आगाज़ है,
वक्त है ही नहीं ये हर लम्हा याद है,
जाने की उम्र कोई नहीं होती है साहब,
जब याद आएं तो रूह आस पास है
अगर भूल जाएं तो जिंदा होकर भी,
जिदंगी कन्धों पर अर्थी समान है,
श्मशान विचित्र है, परन्तु सत्य है,
कभी अपनों को जलते वहां देखें तब,
चाहत पूरी न होने का गम नहीं होता,
कोई शिकायत बाकी नहीं रहती है,
कोई दुश्मन ख्याल में नहीं आता,
कोई सफ़र शायद,
अधूरा रह गया था,
ये याद भी नहीं रहता,
कुछ न पाने की कसक मन में नहीं रहती
कोई भी याद बाक़ी नहीं रह जाती,
बस निशब्दता, शून्यता चारों तरफ़ होती है।
दिल में रह जाता है काश ये भी कर लेते,
थोड़ा समय और मिलता तो वो भी कर लेते,
जिंदगी ये उस परीक्षा की तरह है,
जिसका सिलेबस पता होकर भी,
हम पूरा सिलेबस खतम नहीं कर पाते,
सही समय पर जिंदगी की किताब पढ़ नहीं पाते,
फ़िर एकदिन पता चलता है परीक्षा होनी है,
सरप्राइस टेस्ट होना है,
लेकिन आखिर में,
कुछ याद नहीं रह जाता है,
सिवाय पछतावा के,
जिदंगी तुम्हें सुन्दर सुंदरतम दिखती है,
लेकिन मृत्यु तुम्हें किस क्षण गोद में लेगी,
ये तुम्हें भी नहीं पता, हमें भी नहीं पता,
हमारा तुम्हारा सफ़र आखिर श्मशान जाकर,
फ़िर खत्म हो जायेगा,
फ़िर खत्म हो जायेगा।
छोड़ो सारी कड़वाहट निकलो अपने खोल से,
जिंदगी को मौक़ा देने के लिए शुक्रिया अदा करो,
चलो हम सब मिलकर नए सफ़र पर निकल जाएं,
जिंदगी के सिलेबस को फ़िर नए से समझना होगा,
अपना पराया का राग छोड़कर सबको साथ लेना होगा,
जिंदगी की गाड़ी में सबको साथ बिठाकर चलो,
किसी को पीछे छोड़ आगे मत बढ़ो,
किसी को गाड़ी से धक्का भी तुम मत दो,
बस इस सफ़र का आनंद,
बिना मोह माया के लो,
ये जीवन है,
एक सफर है,
एक यात्रा है,
एक बसेरा है,
लेकिन ये तुम्हारा अन्त नहीं है।
मृत्यु ही शाश्वत सत्य है लेकिन,
जीवन के परे भी एक जीवन है,
एक अनंत आकाश है,
एक यात्रा है।
उस यात्रा के लिए अभी से प्रयास शुरू कर दो,
क्योंकि उस यात्रा में कोई तुम्हारा साथी नहीं होगा,
ये तुम्हें स्वयं आत्ममंथन करना होगा,
स्वयं तय करना होगा।
स्वयं इस अग्नि में जलना होगा,
तुम्हें अकेले ही चलना होगा।
शिकायत
कुछ तुम को सच से नफरत थी,
कुछ हम से न बोले झूठ गए,
कुछ लोगों ने उकसाया तुमको,
कुछ अपने ही बेहद चालाक निकले,
कुछ दोस्त भी हम को लूट गए,
कुछ उम्मीद भी हद से ज्यादा थी ,
जिससे ख्वाब ही सारे टूट गए,
बची न ताकत इन दीवारों में,
जो खड़े हैं लेकिन निशब्द है,
जो ख़्वाब थे टूटे हुए,
उनमें ही उलझन ज्यादा है,
नफ़रत है जिस सच से तुमको,
वो सच ही मेरा जीवन है,
जो झूठ है तुमको सुनना,
वो कहना मैंने सीखा ही नहीं,
चलो तुम ही बरसात बन जाओ,
क्योंकि रोना अब हमको नहीं,
होगी मुश्किल तुमको बहुत,
मुझे समझने और समझाने में,
क्योंकि चालक तो हम हैं नहीं,
जिन्होंने हमें समझ लिया था,
वो अब इस जीवन में नहीं,
चलो छोड़ो बहुत की शिकायत दर्ज हमने,
अब चलती हूं फ़िर से अपनी नई उड़ान भरने।।
मेरी तूलिका
आज सारे रंगो को समेटकर मैंने एक तूलिका बनाई,
लाल, हरा, पीला, नीला सभी से अपनी दुनिया सजाई,
जिंदगी से जुड़ी हर खबर सपनों की तरह उसमें भरा,
कहीं फ़िक्र तो कहीं बेबसी लेकर,
तूलिका में ख्वाहिश भरा,
कहीं फूलों की खुशबू सी महकती रंगो को भरा,
तो कहीं गुलाब के कांटों से बचते फूलों को चुना,
मेरी तूलिका बेहद खास बनती जा रही थी,
ये मेरी ख्वाहिशों की बेहिसाब आवाज़ बन रही थी,
इसमें मैंने जिंदगी के हर रंग को चुना,
भीड़ से अलग हो स्वयं को चुना,
दुःख, दर्द, हंसी, स्वप्न, प्रेम, स्वार्थ,
इनको लेकर मैंने एक तस्वीर बनाया।
बहुत सुकून मिला अपनी इस तस्वीर को देखकर,
अब मेरी तूलिका बेहद खास बन गई थी,
जीवन के स्वप्नों में सामंजस्य बिठाने से,
मेरी तूलिका की हर तस्वीर ख़ास बन गई थी,
मेरी तूलिका ने मुझे स्वयं से स्वयं को मिला दिया,
मेरी आंखों में बसे हुए हर रंगों को,
एक नया जीवन मिल गया।
- प्रेरणा ज्योति पाण्डेय,
शोधार्थिनी, महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय,बरेली ( हिन्दी विभाग)
Very inspiring, good luck 🤞
जवाब देंहटाएंThank You 🙏😊
हटाएंशानदार प्रेरणा जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर है अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएं