जागरण गीत कविता का अर्थ व्याख्या सारांश प्रश्न उत्तर सोहनलाल द्विवेदी Jagran geet West Bengal Board class 7 Jagran geet Kavita Likhit Vyakhya Bihar
जागरण गीत कविता सोहनलाल द्विवेदी
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जागरण गीत कविता का अर्थ व्याख्या
अब न गहरी नींद में तुम सो सकोगे,
गीत गाकर मैं जगाने आ रहा हूँ !
अतल अस्ताचल तुम्हें जाने न दूँगा,
अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ।
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि का कहना है कि अब तुम गहरी नींद में नहीं सो सकोगे। मैं गीत गाकर तुम्हे जगाने के लिए आ रहा हूँ। मैं तुम्हे अस्ताचल अर्थात पतन की ओर नहीं जाने दूंगा। मैं उदयाचल सजाने के लिए आ रहा हूँ। मैं तुम्हे प्रगति के पथ पर जाने के लिए आ रहा हूँ। कवि मानव को जागृत करना चाहता है। वह चाहता है कि मानव प्रगति के पथ पर आगे बढ़ें।
साधना से सिहरकर मुड़ते रहे तुम.
अब तुम्हें आकाश में उड़ने न दूँगा,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ।
व्याख्या - कवि का कहना है कि तुम आज तक कल्पना के लोक में जीते रहे हो। तुमने जीवन की वास्तविकता को नहीं समझा। तुम जीवन की सच्चाई से ,परिश्रम और साधना से डर कर भागते रहे हो। पर मैं अब तुम्हे कल्पना के संसार में नहीं उड़ने दूंगा। मैं तुम्हे अब हवाई किले नहीं बनाने दूँगा। मैं आज तुम्हे इस धरती पर ले आऊँगा। जीवन की वास्तविकताओं से ,सच्चाईयों से तुम्हारा परिचय कराऊँगा।
सुख नहीं यह, नींद में सपने सँजोना,
दुख नहीं यह, शीश पर गुरु भार ढोना.
शूल तुम जिसको समझते थे अभी तक,
फूल मैं उसको बनाने आ रहा हूँ।
व्याख्या - कवि का कहना है कि असावधान रहते हुए भी अथवा सोते हुए नींद में सपने सजाना ठीक नहीं। सपनों के संसार में जीने से कोई लाभ नहीं है। कल्पना लोक में जीने में सुख नहीं है। जीवन में परिश्रम करते रहने में दुःख नहीं है। तुम अब तक जीवन में श्रम को दुःख समझते आये हो ,पर मैं तुम्हारे दुःख को अब सुख में बदलने के लिए आ रहा हूँ। मैं तुम्हारे जीवन में ऐसा परिवर्तन ला देना चाहता हूँ कि तुम अब तक जिसे दुःख समझते आये हो ,उसे सुख में बदल दूँगा।
देख कर मँझधार को घबरा न जाना,
हाथ ले पतवार को घबरा न जाना .
मैं किनारे पर तुम्हें थकने न दूँगा,
पार मैं तुमको लगाने आ रहा हूँ।
व्याख्या - कवि का कहना है कि प्रायः लोग किसी कठिनाई या बाधा को देखकर घबरा जाते हैं। कवि का कहना है कि तुम समस्याओं और बाधाओं को देखकर घबराना मत। जीवन में समस्याएँ तो आती ही रहती है। समस्याओं से जूझते हुए घबराना मत। निरंतर समस्याओं और बाधाओं का सामना करते रहने में ही हित है। कवि पाठक को प्रेरित करते हुए कहता है कि मैं तुम्हारे साथ हूँ। मैं तुम्हारी सहायता करता रहूँगा। मैं तुम्हे थकने नहीं दूंगा। मैं तुम्हे तुम्हारी समस्याओं से पार लगाने के लिए आ रहा हूँ।
तोड़ दो मन में कसी सब श्रृंखलाएँ
तोड़ दो मन में बसी संकीर्णताएँ.
बिंदु बनकर मैं तुम्हें ढलने न दूँगा,
सिंधु बन तुमको उठाने आ रहा हूँ।
व्याख्या - कवि कहता है कि हे मानव ! तुम मन के सारे बंधनों को तोड़ दो। मन में बैठे भय को भगा दो। संकीर्णता छोड़ो। मन की क्षुद्रता का त्याग करो। मन को उदार और विशाल बनाओ। मैं तुम्हे बिंदु के समान नीचे नहीं ढलने दूँगा। मैं तुम्हे पतन की ओर जाने नहीं दूँगा। मैं तो तुम्हे सिन्धु के समान महान ,विशाल बनाना चाहता हूँ। तुम सागर के समान गंभीर ,विशाल और महान बनो।
तुम उठो, धरती उठे, नभ शिर उठाए,
तुम चलो गति में नई गति झनझनाए.
विपथ होकर मैं तुम्हें मुड़ने न दूँगा,
प्रगति के पथ पर बढ़ाने आ रहा हूँ।
व्याख्या - कवि का कहना है कि तुम उठोगे ,जागोगे ,उन्नति करोगे तो विश्व उठेगा ,विश्व उन्नति करेगा। तुम्हारी उन्नति के साथ धरती की ,विश्व की उन्नति का सम्बन्ध है। तुम्हारी उन्नति से ही समस्त सृष्टि की उन्नति होगी। इसीलिए तुम्हारी गतिशीलता से जीवन में गतिशीलता आएगी। मानव की गतिशीलता से ही प्रगति का पथ प्रशस्त होगा। इसीलिए कवि तुम्हे भ्रष्ट नहीं होना है। वह तुम्हे आगे बढ़ने के लिए सदा प्रेरित करना चाहता है। कवि का कहना है कि मैं तुम्हे प्रगति का मार्ग पर अग्रसर करने के लिए आ रहा हूँ। इसीलिए हे मानव ! तुम निरंतर गतिशील रहो और अपने पथ पर बढ़ते चले जाओ।
जागरण गीत कविता के प्रश्न उत्तर
प्र. जागरण गीत कविता के माध्यम से कवि क्या सन्देश देना चाहता है ?
उ. जागरण गीत में कवि ने असावधान और बेखबर लोगों को जगाने और प्रगतिपथ पर आगे बढ़ने का सन्देश दिया है। कवि कहता है कि मानव को कल्पना लोक में विचरण करने के बजाये जीवन के कठोर यथार्थ को जानना चाहिए। उन्हें श्रम में सुख की अनुभूति करनी चाहिए। वह मानव को मन की संकीर्णता और बंधन तोड़ने तथा सागर के समान विशाल बनने की प्रेरणा देता है। वह चाहता है कि सभी प्रगति करें और कोई भी प्रगति पथ से विचलित न हो।
प्र. 'पार मैं तुमको लगाने आ रहा हूँ। " इन शब्दों द्वारा कवि किस परिस्थिति में सहायक बनने का आश्वासन दे रहा है ?
उ. 'पार मैं तुमको लगाने आ रहा हूँ ' के माध्यम से कवि मझदार एवं संकट में पड़े व्यक्ति को सहायता देने का आश्वासन दे रहा है। कवि चाहता है कि मानव विपत्ति से जूझे ,संकट में घबराए नहीं और निरंतर विचलित हुए बिना आगे बढ़ता रहे। कवि संकट की स्थिति में उसे सहायता का आश्वासन देता है।
प्र. प्रगति के पथ पर बढ़ने की बात कवि किन लोगों के सम्बन्ध में कह रहा है ?
उ. कवि चाहता है कि सभी मानव प्रगति के पथ में बढ़े। कोई भी व्यक्ति उचित मार्ग से विचलित न हो। अतः कवि सभी लोगों को प्रगति के पथ पर बढ़ने की बात कह रहा है।
प्र. कवि कविता के माधाम से किन्हें जगाना चाहता है ?
उ. कवि मानव को जागृत करने का आकांक्षा रखता है। वह उसे उन्नति के रास्ते पर बढ़ते देखना चाहता है। इसीलिए वह मानव को आश्वासन देता है और कहता है कि मैं तुम्हे किसी भी हालत में बिंदु के समान नीचे नहीं ढलने दूँगा। मैं तुम्हे सिन्धु के समान गंभीर और विशाल होता देखना चाहता हूँ। इसीलिए मैं तुम्हे निरंतर उन्नति कराने के लिए ,तुम्हे ऊँचा उठाने के लिए आ रहा हूँ। कवि यह बताना चाहता है कि तुम अकेले नहीं हो। कवि तुम्हारे साथ है। इसीलिए घबराओ नहीं और आगे बढ़ते चलो।
जागरण गीत कविता का सारांश
जागरण गीत कविता में सोहनलाल द्विवेदी जी ने असावधान पड़े लोगों को सोने के बदले जागने और पतन के मार्ग पर चलने की बजाये प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ने का सन्देश दिया है। कवि का विचार है कि कल्पना के संसार में विचरण करने वालों की धरती की वास्तविकताओं को जानना चाहिए। उन्हें परिश्रम में सुख का अनुभव करना चाहिए। वह जीवन पथ में रुके हुए और घबराए हुए लोगों को साहस बंधाना चाहता है। वह मन की संकीर्णता और बंधन को तोड़कर बूँद से सागर बन जाने के लिए प्रेरित करता है। कवि सब का उत्थान और गतिशीलता चाहता है। वह चाहता है कि सभी प्रगति पथ पर बढ़े ,पर कोई भी उचित मार्ग से विचलित न हो।
जागरण गीत कविता के शब्दार्थ
अतल - बहुत गहरा
अस्ताचाल - पश्चिम दिशा
अरुण - लाल
साधना - तपस्या
संजोना - सजाना
शूल - काँटा
मंझदार - उलझन
कसी - जकड़ी
नभ - आकाश
मुड़ना - लौटना
संकीर्णताएँ - ओछापन
ढलना - बहना
गहरी नींद में बेखबर सोए व्यक्तियों को कभी किसी प्रकार जागना चाहता है
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