मित्रता पाठ का सारांश व्याख्या प्रश्न उत्तर mitrata aacharya ramchandra shukl class 10 यूपी बोर्ड कक्षा 10 हिन्दी पाठ 1 class 10 pseb up board exam
मित्रता - आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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मित्रता निबंध का सारांश
मित्रता आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध निबंध है। प्रस्तुत निबंध में आपने मित्रता को मानव की सहज प्रवृत्ति है। सच्चा मित्र पथ प्रदर्शक ,भाई के समान प्रीतिकर ,सहानुभूति रखने वाला तथा अच्छे और महान कायों के लिए प्रेरित करने वाला होता है। अतः मित्र के चुनाव में सतर्कता जरुरी है क्योंकि कुसंगति मनुष्य को अवनति के गर्त में गिरा देती है।
मित्रों के चुनाव में उपयुक्तता पर ही जीवन की सफलता निर्भर होती है। इसीलिए मित्र बनाने से पूर्व उसके पूर्व आचरण और स्वभाव आदि का बारीकी से पता लगा लेना चाहिए। केवल हँसमुख चेहरा ,बातचीत का ढंग ,थोड़ी चतुराई आदि को देखकर ही मोहित नहीं होना चाहिए। एक अच्छे मित्र से आशा की जाती है कि वह हमारे संकल्पों को दृढ करे ,दोषों से बचाए ,सत्य ,पवित्रता ,मर्यादा को पुष्ट करे ,कुमार्ग से बचाए और सदा उत्साहित करे।
छात्रावस्था में मित्र बनाने की धुन रहती है। परन्तु युवावस्था की मित्रता अधि दृढ ,शांत और गंभीर होती है। सच्चा मित्र एक पथ प्रदर्शक के समान होता है। उस पर पूरा भरोसा किया जा सकता है। वह भाई के समान सच्ची सहानुभूति रखता है। सच्चे मित्र के लिए व्यवसाय ,आयु ,स्वभाव ,रूचि की समानता होना आवश्यक नहीं है। दो भिन्न भिन्न प्रकृति और अवस्थाओं के लोगों में गहरा स्नेह हो सकता है।
सच्चा मित्र और महान कार्यों में सहायता देता है। मन को बढ़ाता है और साहस देता है। इससे कई बार हम अपने सामर्थ्य से भी अधिक कार्य करने में सफल हो जाते है। ऐसे मित्रों का पल्ला हमें उसी प्रकार पकड़े रखना चाहिए ,जैसे सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़े रखा।
यही बातें हमें किसी से जान पहचान बढ़ाते समय याद रखनी चाहिए। यदि हमारे मित्र गन्दी आदतों में फँसे होंगे। हाँ -में -हाँ मिलाने वाले चापलूस होंगे। केवल हमारे पैसे और शौक के साथी होंगे ,तो वे हमारे लिए हानिकारक भी हो सकते हैं।
कुसंग से नीति ,सद्वृत्तियों और बुद्धि का नाश होता है। इंग्लैंड के एक विद्वान को युवावस्था में राजदरबारियों में जगह नहीं मिली। इस पर वह जिंदगीभर अपने भाग्य को सराहता रहा। वह समझ गया कि वहाँ वह बुरे लोगों की संगत में पड़ता ,जो उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक होते। अश्लील ,अपवित्र और फूहड़ बातें करने वालों से हमें कभी मित्रता नहीं करनी चाहिए। एक बार जब पैर कीचड़ में पड़ जाता है तो फिर उसमें से पैर निकालना आसान नहीं होता है। फिर भले-बुरे की पहचान भी नहीं रहती है। अतः ह्रदय और बुद्धि को निर्मल और निष्कलंक रखने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि बुरी संगत से बिलकुल बचा जाए। एक पुरानी कहावत है -
काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो।
जाय एक लीक काजल की लागे है तो लागे है।
मित्रता पाठ के प्रश्न उत्तर
प्र. आजकल कैसे लोगों के साथ सरलता से जान पहचान हो जाती है ?
उ. आजकल ऐसे लोगों के साथ सरलता से जान-पहचान हो जाती है जो आपके साथ सिनेमा देखने जायेंगे ,नाचरंग में जाएँगे। सैर सपाटे में जायेंगे और भोजन का निमंत्रण स्वीकार करेंगे।
प्र. सच्ची मित्रता में उत्तम वैद्य की सी निपुणता और परख होती है ,अच्छी से अच्छी माता का सा धैर्य और कोमलता होती है। स्पष्ट कीजिये।
उ. सच्ची मित्रता निपुण वैद्य के समान होती है। निपुण वैद्य रोगी को देखते ही उसके रोग को पहचान लेता है और उसका उचित निदान कर उसे रोग मुक्त करने का प्रयत्न करता है। निपुण वैद्य में परख जाँच की योग्यता होती है। सच्ची मित्रता में भी वे सारे गुण होते हैं जो एक निपुण वैद्य में होते हैं। सच्ची मित्रता मित्र को परखने तथा उसे सत्पथ पर आरूढ़ करने में सहायक होती है।
सच्ची मित्रता में माता के समान धैर्य और कोमलता होती है। जिस प्रकार माता अपने बच्चे का धैर्यपूर्वक लालन -पालन करती है उसी प्रकार मित्रता भी अपने अपने मित्र का धैर्यपूर्वक ध्यान रखती है। साथ ही उसमें माता जैसी कोमलता भी होती है।
उ. अच्छा मित्र औषध के समान होता है। विश्वास पात्र मित्र से आत्म शिक्षा का कार्य भी सुगम हो जाता है। इसीलिए मित्र का चुनाव करते समय हमें यह देखना चाहिए कि क्या वह उच्च और महान कार्यों में हमारी सहायता करने ,हमें प्रोत्साहित करने तथा अपनी सामर्थ्य से भी अधिक काम करने की क्षमता प्रदान करने में समर्थ है। क्या वह दृढ चित्त है ? क्या उसमें सत्य संकल्प का बल है ? एक अच्छा मित्र जीवन में सच्चे पथ प्रदर्शक का कार्य करता है। एक सच्चा मित्र भाई के समान हितचिन्तक होता है। मित्र शुद्ध ह्रदय ,मृदुल स्वभाव और पुरुषार्थी होना चाहिए। अतएव मित्र का चुनाव करते समय हमें उपरोक्त बातों का ध्यान देना चाहिए।
प्र. मित्रता से आत्मशिक्षा का कार्य कैसे सुगम हो जाता है ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिये।
उ. आत्म शिक्षा में मित्रता बहुत सहायक होती है। विश्वास पात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा होती है। विश्वासपात्र मित्र जीवन में औषधि के समान है। अच्छी मित्रता हमारे दोषों को दूर करने में सहायक होती है। वह हमें त्रुटियों से बचाती है और उत्तम संकल्पों को दृढ करती है। वह कुमार्ग पर चलने से बचाती है। वह एक अच्छे वैद्य की भाँती होती है। जिस प्रकार एक अच्छा वैद्य रोगी के रोग का निदान कर उसे उपयुक्त औषधि देता है ,उसी प्रकार अच्छी मित्रता भी आत्म शिक्षा के कार्य में बहुत उपयोगी होती है।
प्र. भिन्न प्रकृति और स्वभाव के लोगों में मित्रता बनी रहती है। कैसे ?
उ. भिन्न प्रकृति और स्वभाव मित्रता में कभी भी बाधक नहीं बनता है। यदि मित्र सच्चा है ,शुद्ध ह्रदय है ,मृदुल और पुरुषार्थ है ,शिष्ट और सत्यनिष्ठ है तो भिन्न प्रकृति और स्वाभाव वाला होते हुए भी वह मित्रता में बाधक नहीं बनता है। भिन्न भिन्न स्वभाव और प्रकृति वाले लोगों की मित्रता अच्छी प्रकार निभती है यदि उनमें उपयुक्त विशेषताएँ हो तों।
राम लक्षमण ,परस्पर विरोधी स्वभाव के थे पर उनकी मित्रता जगत प्रसिद्ध है। इसी प्रकार सुदामा और कृष्ण की मित्रता भी अनूठी ही थी।
मित्रता पाठ रामचंद्र शुक्ल के कठिन शब्द अर्थ
परिणत होना - बदल जाना
अपरिमार्जित - कच्ची
दृढ संकल्प - पक्का इरादा
विवेक - समझदारी
अनुसंधान - खोज बीन
मर्यादा - सीमा
नियंत्रण - रोक
हतोत्साहित - जिसकी हिम्मत टूट गयी हो
खिन्न्नता - मन का दुखी होना
जीवन संग्राम - जीवन रूपी युद्ध
उदगार - भाव
कल्पित - सोची हुई
पथ प्रदर्शक - रास्ता दिखाने वाला
प्रीति पात्र - प्यार करने योग्य
प्रतिष्ठित - इज्जत वाला
सद्वृत्ति - सच्ची आदत
निष्कलंक - जिस पर कोई धब्बा न हो
लीक - रेखा ,निशान
Wayakhya mitrta paad ki
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