तानसेन का जीवन परिचय इन हिंदी Tansen Biography in Hindi Tansen essay in Hindi biography of Tansen तानसेन कैसे जलाते थे दीपक अकबर के नवरत्न तानसेन
तानसेन का जीवन परिचय
तानसेन का जीवन परिचय इन हिंदी Tansen Biography in Hindi Tansen essay in Hindi biography of Tansen in Hindi tansen ki jivani tansen ki sangeet shiksha तानसेन कैसे जलाते थे दीपक how lamp was flow lightning when tansen sing his sangeet - ऐसा कौन सा व्यक्ति होगा जिसने संगीत सम्राट तानसेन का नाम न सुना हो। कम से कम भारत में तो ऐसा कोई न होगा। संगीत के इतिहास में तानसेन का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। संगीत एक ऐसी कला है जो मनुष्य ही नहीं वरन पशु पक्षियों को भी अपने वश में कर लेती है। आदिकाल से ही संगीत के प्रति लोगों की रूचि रही है। तानसेन एक महान संगीतज्ञ थे।
महान भक्त कवि महात्मा सूरदास जी ने तानसेन के विषय में अपनी लेखनी से लिखा है -
विधना यह जिय जानि कै सेस न दीन्हे कान ।
धरा मेरु सव डोलते, तानसेन की तान।।
अर्थात ब्रह्मा ने सोच समझकर शेष को जो अपने फन के ऊपर पृथ्वी रोके हैं ,कान नहीं दिए नहीं तो ,तानसेन की तान सुनकर शेष डोलता है पृथ्वी और पर्वत हिल जाते।
तानसेन का आरंभिक जीवन
तानसेन का मूल नाम तन्ना पाण्डेय या रामतनु पाण्डेय था। आपका जन्म ग्वालियर से सात मील दूर बेहट नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम मकरंद पाण्डेय था। तानसेन की जन्मतिथि के बारे में मतभेद है। अधिकतर विद्वानों का मत है कि इनका जन्म सन १५३२ ई में हुआ था। इनके पिता सब प्रकार से सुखी थे ,किन्तु पुत्र न होने के कारण उदास रहा करते थे। कहा जाता है कि ग्वालियर के पास मुहम्मद गौस नामक एक संत फ़क़ीर थे। उनके आशीर्वाद से ही उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। माता -पिता की एकमात्र संतान होने के कारण तन्ना बचपन में नटखट स्वभाव के थे। वे पशु पक्षियों की हू- बहू नक़ल कर लेते थे।
तानसेन की संगीत शिक्षा
तानसेन का स्वर बहुत अच्छा था। इनके गुण को पहचानकार स्वामी हरिदास तन्ना को संगीत शिक्षा हेतु अपने साथ वृंदावन ले गए। लगभग १० वर्ष तक इनकी संगीत शिक्षा चली। संगीत शिक्षा ग्वालियर के राजा मानसिंह के विद्यालय से प्राप्त की। व्यावहारिक तथा अन्य शिक्षा उन्हें मोहम्मद गौस से मिली थी।
इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर ग्वालियर के राजा विक्रमाजीत ने इन्हें तानसेन की उपाधि से विभूषित किया। संगीत शिक्षा के बाद तानसेन ग्वालियर वापस आकर मुहम्मद गौस की सेवा में लग गए। यहाँ पर राजा मानसिंह की रानी मृगनयनी एक कुशल गायिका तथा संगीत की ज्ञाता थी। तानसेन भी गायक में प्रसिद्ध हो चुके थे। मृगनयनी ने इनका विवाह अपनी शिष्या हुसैनी से करा दिया। इनके सूरतसेन ,सरतसेन ,तरंगसेन और विलास खां नामक चार पुत्र और सरस्वती नामक एक पुत्री थी।
अकबर के नवरत्न तानसेन
तानसेन की ख्याति सुनकर रीवां नरेश महाराज रामचंद्र ने इन्हें अपने दरबार में बुला लिया। तानसेन की कला का विकास यही हुआ। जब अकबर ने तानसेन की ख्याति सुनी तो ऐसे गुणी कलाकार को अपने दरबार में लाने को आतुर हो उठे। रीवां नरेश अकबर का आग्रह टाल न सके और तानसेन को अपने दरबार में भेज दिया। अकबर अत्यंत प्रसन्न हुआ तथा तानसेन को अपने दरबार के नवरत्नों में स्थान देकर सम्मानित किया। तानसेन की कला की चारों ओर प्रशंसा होने लगी। यद्यपि अकबर के दरबार में कई संगीतज्ञ थे ,किन्तु तानसेन के समान कोई न था।
एक बार कुछ दरबारियो के बहकावे में आकर अकबर ने तानसेन को दीपक राग गाने के लिए विवश किया तो तानसेन ने भरे दरबार में दीपक राग गाया। तानसेन के सच्चे और सधे हुए स्वरों ने तथा राग के कुशलतापूर्वक गायन ने चमत्कार दिखाना प्रारंभ किया और ताप बढ़ने लगा। दरबार में रखे दीपक जल उठे। चारों ओर मानों अग्नि ज्वालायें उठने लगी। दरबारी गण भागने लगे। स्वयं तानसेन शरीर दाह की पीड़ा से पागलों की तरह भागने लगे। कहते हैं कि उस समय उनकी पुत्री सरस्वती ने मेघ राग गाकर वर्षा करायी और तानसेन के प्राण बचा लिए। इस घटना के बाद तानसेन का स्वास्थ्य गिर गया और सन १५८९ में वह इस संसार को छोड़ गए।
तानसेन ने दध्रुपद गायन का प्रचार किया। उनके द्वारा रचे गए मियाँ की मल्हार और तोड़ी ,सारंग तथा दरबारी कांडा राग आकर्षक व लोकप्रिय हैं। तानसेन के तीन ग्रन्थों का प्रणयन किया है - संगीतसार ,रागमाला,श्रीगणेश स्तोत्र। आईने अकबरी में लिखा है कि ऐसा गायक पिछले एक हज़ार वर्षों में नहीं हुआ। उनके गायन में विलक्षण जादू था।
संगीत के क्षेत्र में तानसेन का नाम अमर रहेगा। संगीताकाश में वे सूर्य के समान सदैव प्रकाशमान रहेंगे।
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