उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद

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उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद


पन्यास सम्राट प्रेमचंद है प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट किसने कहा Hindi novel Premchand प्रेमचंद हिंदी उपन्यास उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद कर्मभूमि रंगभूमि प्रेमचन्द के उपन्यास सेवासदन Godan - प्रेमचंद हिंदी में उपन्यास सम्राट के रूप में प्रसिद्ध है। प्रेमचंद को बंगला भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद के उपन्यासों ने हिंदी उपन्यास साहित्य के क्षेत्र में क्रांति उत्पन्न कर दी है। हिंदी गद्य की उपन्यास परम्परा में प्रेमचंद वह बिंदु है जिसके दोनों ओर उत्पन्न साहित्य की भिन्न भिन्न विशेषताएँ परिलक्षित होती है। मुंशी प्रेमचंद से पूर्व हिंदी उपन्यास साहित्य को विषय की दृष्टि से तीन भागों में बांटा जा सकता है - 

  • सामाजिक उपन्यास 
  • ऐतिहासिक उपन्यास
  • घटना प्रधान उपन्यास 
  • जासूसी उपन्यास 
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद

सामाजिक उपन्यास
- सभी सामाजिक उपन्यासों में धर्म की जय ,आदर्श आचरण का महत्व ,अंधविश्वासों का त्याग ,सतीत्व की महिमा ,ईश्वरीय न्याय में विश्वास तथा राष्ट्रीय प्रेम का चित्रण था। 

ऐतिहासिक उपन्यास - प्रेमचंद युग से पूर्व के अतिहसिक उपन्यास सच्चे अर्थों में ऐतिहासिक उपन्यास नहीं थे। इन उपन्यासों के लेखक इतिहास से हटकर प्रणय कथाओं ,रहस्यपूर्ण प्रसंगों और कुतूहलवर्धक घटनाओं को लिखने में लग गए थे। इन उपन्यासकारों के उपन्यासों का उद्देश्य केवल पाठक का मनोरंजन मात्र था। इतिहास तो केवल दिखावा था। 

घटना प्रधान उपन्यास - घटना प्रधान उपन्यास में तिलस्मी ऐयारी ,जासूसी और अद्भूत घटना प्रधान उपन्यास आते हैं। तिलिस्म शब्द अरबी भाषा का है जिसका अर्थ इंद्रजाल है। इन तिलस्मी उपन्यासों के प्रवर्तक बाबू देवकीनंदन खत्री थे। इन्होने १८८८ ई. में चंद्रकांता उपन्यास लिखा। इसके २४ भाग हैं। यह उपन्यास इतना अधिक लोकप्रिय हुआ कि सैकड़ों युवकों ने इसे पढ़ने के लिए हिंदी सीखी। जासूसी उपन्यासों में गोपालराम गहमरी ने हीरे की चोरी उपन्यास की रचना की जो बंगला उपन्यास का अनुवाद था। इस घटना प्रधान उपन्यासों में रोमांचकारी रहस्यों को अपने में समेटने वाले उपन्यास थे। इनमें निहालचंद वर्मा का प्रेत का फल प्रसिद्ध है। 

संक्षेप में कह सकते हैं कि प्रेमचंद के पूर्व लिखे गए उपन्यास मौलिक उपन्यास नहीं थे। उनके पात्र लेखकों के हाथ में खिलौने थे। इन उपन्यासों में पात्रों के अंतर्द्वंद का पूर्ण अभाव था। केवल ये पात्र काल्पनिक और विचार शून्य थे जो केवल शारीरिक गतिविधि करते थे। उनके मन में भावों का चित्रण नहीं किया गया है। इस काल के उपन्यासों में मनोवैज्ञानिकता और समसामयिकता का पूर्ण अभाव था। 

प्रेमचंद के उपन्यास की विशेषता

प्रेमचंद जी ने अपने पूर्व के उपन्यासों की इन खामियों को पूर्णरूप से समझा था। प्रेमचंद के उपन्यास जन जीवन से जुड़े हुए थे। प्रेमचंद ने सामाजिक जीवन तथा उससे जुड़ी समस्याओं का चित्रण अपने उपन्यासों में किया है। प्रेमचंद के युग के लेखकों को भी इन उपन्यासों से प्रेरणा प्राप्त की है। इस प्रकार प्रेमचंद युग का उपन्यास साहित्य प्रणय गाथाओं ,रहस्यपूर्ण प्रसंगों तथा तिलिस्म और ऐयारी की अंधी गुफाओं से निकलकर जन सामान्य के जीवन से जुड़ गया। प्रेमचंद के तथा उस युग के अन्य उपन्यासों में उस समय की राजनीतिक ,धार्मिक ,सामाजिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों का चित्रण दिखाई देता है। प्रेमचंद ने घोषणा की है कि - मैं समाज का झंडा लेकर चलने वाला व्यक्ति हूँ। समाज का अर्थ उसमें रहने वाले प्रत्येक वर्ग तथा जाति से था। प्रेमचंद ने अपने से पूर्व युग के उपन्यास लेखकों की भाँती केवल राजा महाराजाओं ,जमींदारों तथा उच्च वर्ग कथाओं को ही अपने उपन्यास का आधार नहीं बनाया। उन्होंने समाज के मध्यम तथा निम्न वर्ग के लोगों के जीवन तथा उससे जुड़ी समस्याओं को अपने उपन्यासों में प्रस्तुत किया। प्रेमचंद के उपन्यास सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित है।

प्रेमचंद साहित्य को समाज का दर्पण मानते हुए उसे दीपक बनाने के समर्थक थे। इसीलिए उन्होंने समाज की ज्वलंत समस्याओं की विषयवस्तु बनाया। उस समय राष्ट्रीय भावना एवं स्वतंत्रता आन्दोलन जोरों पर था। महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन का जादुई असर छात्रों ,वकीलों ,सरकारी कर्मचारियों तथा आम जनता पर था। इसी भावना को लेकर प्रेमचंद जी ने कर्मभूमि उपन्यास की रचना की है। 

प्रेमचंद के उपन्यास किन विषयों पर आधारित है 

प्रेमचंद जी ने अपने उपन्यासों में समाज के सभी पक्षों का चित्रण किया। उन्होंने वैश्या समाज ,दहेज़ प्रथा ,रिश्वतखोरी ,अनमेल विवाह ,पारिवारिक कलह आदि समस्याओं को अपने सेवा सदन उपन्यास में उकेरा। समाज वेश्याओं को कभी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता है। समाज वेश्याओं को समाज का कलंक कहकर घृणा तो प्रदर्शित करता है पर कभी इस बात पर विचार नहीं करता है कि कोई वैश्या क्यों बनता है ? वेश्याओं में अपने जीवन के प्रति वितृष्णा और सामान्य जीवन जीने की कितनी बलवती इच्छा है ? प्रेमचंद ही ऐसे प्रथम साहित्यकार थे ,जिन्होंने कर्मभूमि की रचना करके मानवीय दृष्टिकोण से वेश्याओं की समस्याओं को उभारा और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए नायक सूरदास जैसे चरित्र की रचना की है। जिसने रंगभूमि नामक आश्रम बनाकर उनके पुनर्वास की व्यवस्था की है। 

प्रेमचंद के समय के भारतीय समाज में बेमेल विवाह आम बात थी। क्योंकि समाज में दहेज़ प्रथा का बोलबाला था। जो माता-पिता अपनी पुत्री के विवाह में पर्याप्त दहेज़ नहीं जुटा पाते थे। वे अपनी पुत्री का विवाह अधेड़ अथवा चरित्रहीन धनी लोगों से कर देते थे। इस प्रकार नवयुवतियों का जीवन लगातार नरक बनता जा रहा था। प्रेमचंद ने निर्मला उपन्यास के माध्यम से समाज की इस समस्या को प्रदर्शित किया था। 

स्त्री की सबसे बड़ी कमजोरी है - आभूषण। स्त्रियाँ प्रायः आभूषणों के लोभ में अपने कर्तव्य को भूलकर ऐसी महान त्रुटी कर बैठती है जो उनके तथा उनके परिवार का सर्वनाश का कारण बन जाता है। नवविवाहित युवक अपनी पत्नी के अंधे मोहपाश में फँसकर गहनों की पूर्ति के लिए अविवेकी बनकर ऐसा कार्य कर बैठते हैं जिसके लिए उन्हें आजीवन पछतावा रहता है। प्रेमचंद ने अपने उपन्यास गबन में ऐसी ही नायिका जालपा का चरित्र प्रस्तुत किया है जिसका पति उसकी इच्छापूर्ति के लिए नगरपालिका के धन का गबन करता है और पकड़े जाने के भय से कलकत्ता भाग जाता है। 

प्रेमाश्रम तथा कायाकल्प आदि उपन्यासों में प्रेमचंद ने हिन्दू मुस्लिम एकता तथा धार्मिक विद्वेष की समस्या को अंकित किया है। सम्पूर्ण जीवन संघर्ष और आदर्श की रक्षा करते हुए उन्होंने जीवन से जुड़े पात्रों और उपन्यासों की रचना की है। ग्रामीण समस्याओं को उन्होंने अपने यथार्थवादी गोदान नामक उपन्यास में चित्रित किया है। गोदान ग्रामीण जीवन की त्रासदी का जीता -जागता ,सजीव मार्मिक चित्रण है। गोदान के नायक होरी की इतनी बेबसी है कि वह एक गाय तक दान नहीं कर पाता है। 

उपयुक्त विवेचन से हमें ज्ञात होता है कि हिंदी के इस उपन्यास सम्राट ने सर्वप्रथम उस समाज में व्याप्त समस्याओं को देखा ,जिसमें वह स्वयं रह रहा था और उन्हें अपने उपन्यासों की विषय वस्तु बनाया। अपने पात्रों का चयन भी उन्होंने उसी जीते-जागते समाज से किया और इसीलिए उनके पात्र हमें हमारे प्रतिरूप ही दिखाई देते हैं। 

प्रेमचंद का उपन्यास साहित्य 

प्रेमचंद ने अपने पात्रों में अंतर्द्वंद एवं मनोवैज्ञानिकता का समावेश करके उन्हें कल्पना लोक से उतारकर यथार्थ के धरातल पर स्थापित किया है। प्रेमचंद के उपन्यास पात्र हमें हमारे समान ही सोचते -विचारते प्रतीत होते हैं। उनमें मानव सुलभ गुण दोष विद्यमान है। इस प्रकार उनके पात्र सजीव और जीवंत प्रतीत होते हैं। इन्ही सब विशेषताओं के कारण निसंदेह हम उन्हें हिंदी का प्रथम मौलिक उपन्यासकार कह सकते हैं। इस प्रकार प्रेमचंद ने साहित्यकार ने दायित्व को समझते हुए साहित्य को समाज का दर्पण बना दिया है। अतः प्रेमचंद को हिंदी उपन्यास सम्राट कहना सर्वथा उचित है। 

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