मिशन बुनियाद के माध्यम से शैक्षिक अंतर को भरने का प्रयास ऑफ़लाइन कक्षाएं शुरू होने के बाद स्कूल लौट आए और उसी मिशन बुनियाद ने उनकी मदद की
मिशन बुनियाद के माध्यम से शैक्षिक अंतर को भरने का प्रयास
दिल्ली के साकेत इलाके के एक सरकारी स्कूल की छात्रा पूजा पिछले दो साल से स्कूल के दोबारा खुलने का इंतजार कर रही थी. महामारी के दौरान ऑनलाइन कक्षाएं शुरू की गईं लेकिन वह लगभग सभी कक्षाओं से चूक गई क्योंकि उसके पास मोबाइल फोन नहीं था. पूजा कहती हैं, ''मैं अपने दोस्त के घर सिर्फ इसलिए जाती थी कि मैं ऑनलाइन क्लास अटेंड कर सकूं, लेकिन ज्यादातर समय मुझे अपने घर पर ही रह कर घर के कामकाज में हाथ बटाना पड़ता था. क्योंकि मेरी मां काम के सिलसिले में बाहर जाती थी. "पूजा ने हाल ही में स्कूल जाना शुरू किया है. वह कहती है कि "मेरे शिक्षक मेरी बहुत मदद करते हैं, मैं ऑनलाइन क्लास अटैंड नहीं कर पाई थी. इस दौरान मेरे दोस्तों ने बहुत सी नई चीजें सीखीं, जो मैं उस दौरान सीखने से चूक गई थी. लेकिन मेरे शिक्षक अब अतिरिक्त कक्षाओं के माध्यम से मेरी मदद कर रहे हैं, जो नियमित रूप से शुरू हो गई है." पूजा को इस साल सातवीं कक्षा में पदोन्नत किया गया है, कहती है, "मैं बहुत खुश हूं कि मैं आखिरकार अब स्कूल जाने में सक्षम हूं. मैं अपनी नई कक्षा में पाठ्यक्रम पूरा करने की कोशिश करूंगी. वह बड़ी होकर कंप्यूटर के क्षेत्र में अपना नाम बनाना चाहती है.
उनके स्कूल ने 'मिशन बुनियाद' के अंतर्गत कक्षाएं शुरू की, जो एक कार्यक्रम है जो प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के बीच महामारी और इसके परिणामस्वरूप स्कूलों के बंद होने के कारण शैक्षिक अंतर को भरने का प्रयास कर रहा है. यह कार्यक्रम पहली बार दिल्ली सरकार द्वारा फरवरी 2018 में राज्य और नगर निगम द्वारा संचालित स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के शैक्षणिक कौशल में सुधार के लिए शुरू किया गया था. इसके तहत छात्रों को गर्मी की छुट्टियों में अतिरिक्त कक्षाएं भी मुहैया कराई गई थीं.
मीतू कुमारी उत्तर पश्चिमी दिल्ली के रोहिणी इलाके के एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैं. वह कहती हैं, ''मिशन बुनियाद तीसरी से आठवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए शुरू किया गया है. दरअसल कोरोना महामारी के दौरान मोबाइल नहीं होने के कारण कई छात्र पढ़ाई में पीछे रह गए थे. स्कूल बंद होने के कारण कुछ बच्चे अपने परिवार के साथ गांव चले गए थे और तथ्य यह है कि कई छात्र ऑनलाइन कक्षाओं से भी चूक गए क्योंकि उनके माता-पिता शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दे रहे थे. कई माता-पिता खुद कभी स्कूल नहीं गए, इसलिए वे यह भी नहीं जानते थे कि उनके बच्चों के लिए शिक्षा कितनी ज़रूरी है? हालांकि कक्षा 10 से लेकर 12वीं तक के अधिकांश छात्रों ने किसी न किसी तरह से ऑनलाइन क्लास में भाग लिया था. लेकिन प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों ने इस अवधि में शिक्षा को अधिक प्राथमिकता नहीं दी थी.
मीतू के अनुसार "प्राइमरी सेक्शन के छात्रों के लिए कोरोना महामारी के कारण शिक्षा में लगभग दो वर्ष का अंतराल हो गया था, जिसके कारण कई बच्चे हिंदी में भी उचित वाक्य तक नहीं बना सकते थे या जोड़ और घटाव जैसे बुनियादी गणित तक हल नहीं कर पा रहे थे. जो उस क्लास के लिए बहुत महत्वपूर्ण और आवश्यक था, जिसमें उन्हें बिना किसी परीक्षा लिए प्रमोट किया गया था. मिशन बुनियाद के तहत पहले बच्चों को उनके बौद्धिक स्तर के अनुसार समूहों में बांटा गया. उदाहरण के लिए जो छात्र संख्याओं को नहीं पहचान सकते हैं या हिंदी के शब्द नहीं पढ़ सकते हैं, उन्हें लेवल 1, जबकि वह छात्र जो संख्याओं को पहचान सकते थे लेकिन गुणा करना नहीं जानते थे, उन्हें लेवल 2 में रखा गया.
जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय स्थित इलाके जामिया नगर के एक स्कूल की शिक्षिका मैथली ने मिशन बुनियाद की बारीकियां बताते हुए कहा कि 'प्राथमिक स्कूल में हमने हर कक्षा को नए और पुराने छात्रों में बांटा. जहां दोनों एक साथ बैठते हैं. जिनके साथ शिक्षक संबंधित कक्षा के पाठ्यक्रम को पूरा करते हैं. यह एक ही समय में दोनों छात्रों की मदद करता है.उदाहरण के लिए, जो छात्र छठी कक्षा में थे और अब आगे की कक्षा के लिए प्रमोट हो चुके हैं, लेकिन अभी भी उन्हें पाठ्यक्रम सीखने की जरूरत है और जो छात्र अभी कक्षा छह में पहुंचे हैं, वे सीखने के अंतर को पूरा करने के लिए एक साथ एक क्लास में बैठते हैं. एक अन्य शिक्षक का कहना था कि “जब ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित की जा रही थी, तो परीक्षा की जगह सभी छात्रों को आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर पदोन्नत किया गया था क्योंकि यही एकमात्र तरीका संभव था. यही कारण है कि बच्चों में सीखने और ग्रहण करने की क्षमता में कमी आ गई थी. यह भी शिक्षा की कमी का एक कारण हो सकता है।"
मिशन बुनियाद के तहत गर्मी की छुट्टी में कमी करके नियमित कक्षाओं अधिक महत्व दिया गया. यह उन छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए किया गया जो ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हो सके थे. इस वर्ष जुलाई से नया सत्र नियमित क्लास के साथ शुरू हो गया है, जिससे बैकलॉग छात्रों सहित सभी छात्र अपनी मूल कक्षाएं जारी रखेंगे. मीतू कुमारी कहती हैं "अभी इसका आकलन करना मुश्किल है क्योंकि कार्यक्रम अपने शुरुआती चरण में है, लेकिन छात्र लगातार प्रगति कर रहे हैं। "कोरोना महामारी के दौरान सभी छात्रों को अनिवार्य रूप से स्कूल बंद का सामना करना पड़ा था. इस दौरान बहुत सारे बच्चे केवल आर्थिक कठिनाइयों के कारण ऑनलाइन क्लास में शामिल नहीं हो सके थे. पूजा के पिता नहीं है, उसकी मां शांति देवी अपनी तीन बेटियों के साथ दक्षिण दिल्ली स्थित नेब सराय बस्ती में रहती है. उनकी दो बेटियां सातवीं और एक कक्षा छह में पढ़ती हैं. मोबाइल फोन नहीं होने के कारण उन्हें ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल होने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. अपने घर के पास के इलाके में कूड़ा बीनने का काम करने वाली शांति कहती हैं ''मैं पढ़ी-लिखी नहीं हूं, लेकिन मैं चाहती थी कि मेरी बेटियों को शिक्षा मिले, ताकि वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकें.''
वास्तव में बच्चों में शैक्षिक अंतर स्पष्ट रूप से महामारी के दौरान कई बच्चों का स्मार्टफोन नहीं होने के कारण क्लास से दूरी होने के कारण था. दिल्ली के साकेत स्थित सैयदुलजाब इलाके में अपनी दो बेटियों और एक बेटे के साथ रहने वाली गृहिणी नेत्रा के अनुसार "मेरे पति एक कंपनी में काम करते हैं जो निर्माण से संबंधित है, उन्हें अपने साथ फोन रखना पड़ता है, इसलिए बच्चों को ऑनलाइन क्लास से जोड़ने के लिए हमारे पास घर पर फोन नहीं था.'' दिल्ली एनसीआर के पालम विहार इलाके में कपड़े इस्त्री करने वाले राजेश के बच्चों को भी इसी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ा था.
हालांकि एक तथ्य यह भी है कि कुछ छात्र ऐसे भी थे जो स्मार्ट फोन होने के बावजूद केवल इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर सके, क्योंकि उनके माता-पिता को लगता था कि उन पर अपने बच्चे को शिक्षित करने का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. कई माता-पिता ने इन दो वर्षों में बच्चों को स्कूल से जोड़ा ही नहीं, और तभी अपने बच्चे को स्कूल भेजना पसंद किया जब उनकी ऑफ़लाइन कक्षाएं शुरू हुईं. हरिजन बस्ती, द्वारका की रहने वाली सरिता कहती हैं ''जब ऑनलाइन क्लास शुरू हुई तो मुझे अपने आठ साल के बेटे के साथ बैठना पड़ा ताकि वह पढ़ सके. जबकि मैंने खुद अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की है, तो मैं उसकी मदद कैसे कर सकती थी?”
एक हकीकत यह भी थी कि कोरोना के दौरान माता-पिता पर ऐसे कई अतिरिक्त बोझ पड़ गए थे, जिनका आर्थिक रूप से वह सामना करने में अक्षम थे. कई परिवारों के लिए मोबाइल नेटवर्क भी एक समस्या बन गई थी. लोगों ने कहा कि ज्यादातर समय या तो उन्हें मोबाइल नेटवर्क नहीं मिलता है या बिजली नहीं होती है या उनके पास इंटरनेट रिचार्ज के लिए पैसे नहीं होते हैं. हालाँकि अच्छी खबर यह है कि अधिकांश छात्र जो ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हो सके, ऑफ़लाइन कक्षाएं शुरू होने के बाद स्कूल लौट आए और उसी मिशन बुनियाद ने उनकी मदद की. ऐसे में बच्चों को पढ़ता देख अभिभावकों ने भी राहत की सांस ली है. लेखिका वर्क नो चाइल्ड बिज़नेस की फेलो हैं (चरखा फीचर)
- अयमन सिद्दीकी
दिल्ली
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