अब हीनता से उबर चुकी है हिंदी हिंदी का सामाजिक परिवेश हिंदी की वैश्विक स्थिति हिंदी के लिए संयुक्त राष्ट्र की वित्तीय सहायता हिंदी हीनता के हर दुराग्र
अब हीनता से उबर चुकी है हिंदी
एक समय था, जब लोग यहां तक कि हिंदीभाषी लोग भी हिंदी को हीनता के भाव के साथ बोलते थे। या कि उन्हें हिंदी में किसी से बात करने में हीनता का अनुभव होता था। हिंदी पूर्वाग्रहियों के ऐसे ही मनोभावों के चलते बरसों तक हिंदी ने हीनता को खूब झेला, खूब सहा। लेकिन कहते हैं न कि सब दिन एकसमान नहीं रहते, कभी निष्पक्षताओं के दौर भी आते हैं और सत्य की विजय होती है। यही बात आज हिंदी पर अक्षरशः सत्य साबित हो रही है। पिछले कुछ सालों में हिंदी हीनता के दौर से उबर आई है। यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि आज हिंदी विजयपथ की ओर अग्रसर हो गई है।
यहां एक बात स्पष्ट है कि भाषाएं कोई भी हों, उनमें हिंदी ही क्यों न हो, कभी अपने वास्तविक स्वरुप में कमतर या श्रेष्ठतर नहीं होतीं हैं, बल्कि उनका उपयोग करने वाले मनुष्य अपने मनोवैज्ञानिक पूर्वाग्रहों के कारण भाषाओं को उच्चतर या निम्नतर होने का दर्जा प्रदान कर देते हैं।
हिंदी का सामाजिक परिवेश
भाषाओं को दोयम बनाने में सामाजिक और वैश्विक परिवेश भी बड़ी भूमिका निभाते हैं। भारत में हिंदी ने वो सामाजिक परिवेश भी देखे, जब स्वतंत्रता संघर्ष के दौर में राष्ट्र को एकसूत्र में बांधने हेतु अन्य भारतीय भाषाओं में से सबसे सक्षम हिंदी को समझा गया था। फिर हिंदी ने स्वतंत्रता बाद के उस अंग्रेजीमय भारतीय सामाजिक परिवेश के सीमाहीन दंश भी सहे, जब हिंदी हीनता का पर्याय जैसी दर्शाई जाने लगी थी। यह वही कालखंड था, जब हिंदी के साथ अंग्रेजी को ध्यान में रखते हुए अपने ही लोग सौतेला सा व्यवहार करते नहीं चूकते थे। हांलाकि प्रतिभाएं कभी प्रमाणों की मोहताज नहीं होतीं और हिंदी ने अपनी स्वयंभू प्रतिभा की उड़ान दुनिया की लोकप्रिय भाषा बनकर दिखा दी।
प्रसिद्ध भाषाविद् डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल के अद्यतन शोधों पर यदि नजर डालें, तो आश्चर्य में डालने वाले आंकड़े सामने आते हैं। डॉ. नौटियाल के शोध के अनुसार हिन्दी वर्तमान में तथ्यतः विश्व में प्रथम स्थान पर है वहीं भविष्य में एथ्नोलोग के आधार पर विधितः भी शीर्षतम बन जाएगी। डॉ. नौटियाल के अनुसार विश्व में हिंदी बोलनेवालों की संख्या 1 अरब 35 करोड़ है। ये आंकड़े हिन्दी को विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा के रुप में प्रस्तुत करते हैं। हिंदी की वैश्विक स्थिति दर्शाने वाले ये सभी अद्यतन आंकड़े वैश्विक हिन्दी शोध संस्थान द्वारा जारी भाषा शोध रिपोर्ट 2021 के हैं।
हिंदी की वैश्विक स्थिति
इसी वैश्विक स्थिति के कारण उन भारतीयों के हिंदी के प्रति व्यवहार में बदलाव दिखाई देने लगा है, जो कभी हिंदी को निम्न स्तर का साबित करने के लिए कितनी-कितनी मर्यादित सीमाएं लांघ जाया करते थे। हांलाकि श्वान-पुच्छ की भांति हिंदी के प्रति उनके दुराग्रह भाव बहुत ज्यादा बदले नहीं हैं। बल्कि अब ऐसे लोग हिंदी के बदलते और बढ़ते प्रभाव से कहीं खौफ सा खाने लगे हैं। इस बात को सबसे सरल ढंग से ऐसे समझा जा सकता है, कि बरसों पहले हिंदी और हिंदीप्रेमियों को हीनता का अहसास दिलाने वाले तथाकथित उच्च हिंदी दुराग्रही लोग आजकल अव्वल तो बहुत बन-बनकर हिंदी बोलते पाए जाते हैं या फिर उकसाने की सी हरकत करते हुए जानबूझकर हिंदी को विवाद का विषय बनाने का प्रयास करते नजर आते हैं। ऐसे में समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि वे हिंदी को हीनता का शिकार नहीं बना पा रहे हैं या कि स्वयं हीनता का शिकार हो गए हैं। लेकिन एक बात तय है कि उनके ऐसे भड़काऊ प्रयासों ने यह साबित कर दिया है कि अब हिंदीभाषी उनकी रची हीनता से उबर आए हैं।
हिंदी को हेय भाव से देखने वालों को यह पचा पाना मुश्किल हो रहा है कि वैश्विक व्यवसाय से लेकर शैक्षिक स्तर तक का विस्तार हो अथवा राष्ट्रीय स्तर पर हर क्षेत्र में हिंदी की बढ़ती रफ्तार हो, उस पर हीनता जैसे अस्त्र के प्रहार का अब कोई असर नहीं पड़ रहा है। निःसंदेह हिंदी को हीनता से उबारने में सोशल मीडिया जैसे संचार के वे माध्यम बड़े सहयोगी कहे जा सकते हैं, जिन्होंने हिंदी को जन-जन के उपयोग के लिए सरल और सहज बनाया। देश के उच्च पदाधिकारियों के व्यवहार में हिंदी के बढ़ते प्रयोग ने भी हिंदी के प्रति पूर्वाग्रही हीनता को समाप्त करने में उल्लेखनीय सहयोग प्रदान किया है।
हिंदी के लिए संयुक्त राष्ट्र की वित्तीय सहायता
हिंदी को हीनता से उबारने में संभवतः एक और सबसे बड़ा कारण हिंदी का संयुक्त राष्ट्र में शामिल किया जाना भी है। वर्ष 2022 का जून माह हिंदी और हिंदीप्रेमियों के लिए विशेष खुशी लेकर आया, जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पहली बार बहुभाषावाद पर भारत के प्रस्ताव को मंजूरी देने की घोषणा की। इसी निर्णय के तहत अब संयुक्त राष्ट्र ने अपनी भाषाओं में हिंदी को भी शामिल कर लिया है। अब से संयुक्त राष्ट्र के कामकाज, उसके उद्दश्यों की जानकारी यूएन की वेबसाइट पर हिंदी में भी उपलब्ध होती जा रही है। हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने के लिए भारत के प्रयास किसी से छिपे नहीं हैं। भारत ने सन् 2018 में हिंदी @ यूएन नामक एक परियोजना इस उद्देश्य को लेकर प्रारंभ की थी, कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की सार्वजनिक पहुंच तक ले जाया जा सके। संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक संचार विभाग के साथ भी लगातार भागीदारी जारी है। इसी का सुखद परिणाम यह भी रहा कि वर्ष 2018 से संयुक्त राष्ट्र ने हिंदी में अपना ट्विटर अकाउंट और न्यूज पोर्टल शुरू कर दिया है। यहां तक कि हर हफ्ते संयुक्त राष्ट्र का एक हिंदी ऑडियो बुलेटिन भी जारी होता है। संयुक्त राष्ट्र के समाचार और मल्टीमीडिया सामग्री को हिंदी में प्रसारित करने के लिए भारत हर संभव वित्तीय सहायता भी दे रहा है।
समग्ररुप में देखें तो वैश्विक, राष्ट्रीय और सामाजिक स्तरों पर हिंदी को क्रमशः मिल रही शक्तियों ने इतनी सुदृढ़ता तो अवश्य प्रदान कर दी है कि अंदर से उसे खोखला बनाने वालों के हीनता भरे प्रयास भी धराशाई होते जा रहे हैं। सच, अब हमारी हिंदी हीनता के हर दुराग्रह से उबर चुकी है। जयतु हिंदी।
- डॉ. शुभ्रता मिश्रा
वास्को-द-गामा, गोवा
मोबाइल-8975245042
लाजवाब 👏👏👌👍
जवाब देंहटाएंआपके विचारों और लेखन से मैं सदा आपकी ओर खींची चली जाती हूं
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार लेख।
हिंदी दिवस की भीड़ में कुछ अलग सा