हिंदी की चुनौतियां और संभावनाएं हिंदी हमारी स्वातंत्र आंदोलन की प्रमुख भाषा थी जिससे हमारी राष्ट्रभक्ति की भावना प्रबल होती थी। आज के इस दौर में हम
हिंदी की चुनौतियाँ
विश्व की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक हिंदी है जिस पर प्रत्येक भारतीय को सदैव से गर्व रहा है। इसके द्वारा ही हमारे सांस्कृतिक संस्कारों एवं जीवन मूल्यों का उचित संप्रेषण होता है। हिंदी बहुत ही समृद्ध एवं सरल होने के कारण हमारी राजभाषा है जिसमें अन्य बोली, भाषाओं के शब्दों को समाहित करने की अकूत क्षमता है।
वर्तमान में हिंदी भारत के 11 राज्यों एवं तीन संघ शासित क्षेत्रों की प्रमुख राजभाषा होने के साथ ही आठवीं अनुसूची में उल्लेखित 21 भाषाओं में से इसका भी एक स्थान है। 14 सितंबर 1949 में हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था तथा 14 सितंबर 1953 से प्रतिवर्ष हिंदी दिवस मनाया जा रहा है।यूनेस्को की 7 भाषाओं में हिंदी को भी मान्यता मिली हुई है। विदेश मंत्रालय द्वारा विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन किया जाता रहा है। हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए 'विश्व हिंदी सचिवालय' कार्यरत है। आज विश्व के विविध देशों में 175 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है।
हिंदी बोलने में गर्व होना चाहिए
हिंदी बोलने, लिखने-पढ़ने में हमें गर्व महसूस करना चाहिए क्योंकि यही हमारे मौलिक विचारों एवं संवाद की भाषा है। भाषा का विकास उसे स्वीकारने,बोलने और उसके साहित्य रचने तथा पढ़ने-पढ़ाने पर निर्भर करता है वरना वह धीरे-धीरे विलुप्त हो जाती है। आज के इस दौर में हिंदी को बढ़ावा देने में हिंदी साहित्य की स्वर्णिम परंपरा के साथ-साथ बॉलीवुड और सोशल मीडिया के प्लेटफार्म की भी प्रशंसा करनी होगी लेकिन इन दिनों संक्षेप में लिखी जाने वाली सांकेतिक भाषा के बढ़ते प्रचलन (इमोजी) से हिंदी को खतरा है । यह हमें सांकेतिक भाषा की ओर खींच ले जाने की प्राथमिक अवस्था है। देवनागरी लिपि के स्थान पर रोमन लिपि का उपयोग भी चिंता उत्पन्न करता है। तकनीकी रूप से समृद्ध हमारी हिंदी के खतरे इन दिनों अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों में उगने लगे हैं जहाँ भविष्य के लिए अंग्रेजी की फसल तैयार हो रही है; हिंदी विद्यालयों को बंद किया जा रहा है । आम जनमानस अंग्रेजी संस्कृति की बाढ़ में हाथ पर हाथ धरे बैठा है यह कहते हुए कि-'जमाना बदल गया है इसी के अनुसार चलना पड़ेगा'।
हिंदी लेखकों एवं पत्र-पत्रिकाओं की आत्ममुग्धता ने इसके विकास की गति पर अंकुश लगाया हुआ है; हिंदी पाठकों की कमी पर विचार करना होगा। एक वह दौर भी था जब हिंदी हमारी स्वातंत्र आंदोलन की प्रमुख भाषा थी जिससे हमारी राष्ट्रभक्ति की भावना प्रबल होती थी। आज के इस दौर में हम सबका यह दायित्व है कि हिंदी को कमजोर बनाने वाली तमाम कोशिशों को नाकाम करें। हम सबको चाहिए कि- हिंदी की वैश्विक यात्रा को सुगम बनाने के लिए इसे गूगल और इंटरनेट की भी भाषा बनाएँ ; ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ें ताकि हमारी वसुधैव कुटुंबकम की वैश्विक भावना सुदृढ़ हो सके। हिंदी हमारे आत्मसम्मान की भी प्रतीक है इसे अपनाने के लिए रूढ़िवादी सोच से ऊपर उठकर हमें आधुनिक सोच बनानी होगी ताकि हमारी भाषिक विशेषताओं की पूर्णता वाली यह भाषा हमारी अस्मिता और गौरव की भाषा के रूप में और निखर सके।
हिंदी दिवस पर हम सब की प्रतिज्ञा होनी चाहिए की विरासत में मिली हमारी इस हिंदी भाषा को हम और समृद्ध बना सकें। हिंदी दिवस के अवसर पर हम सभी को कुछ न कुछ आयोजन करते हुए लोगों को जोड़ने का उपक्रम करना चाहिए।
जय हिंदी-जय देवनागरी।
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रमेश कुमार सोनी,
रायपुर, छत्तीसगढ़
हिंदी दिवस पर आपने मेरे आलेख को अपने पटल पर स्थान दिया इसके लिए-आभार।
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