स्वच्छता में कमी की एक और वजह इस क्षेत्र में अत्याधिक संख्या में पर्यटकों का आवागमन भी है. जिनके द्वारा कई बार कूड़ा इधर उधर फेंक दिया जाता है.
पर्वतीय क्षेत्रों में क्यों सफल नहीं हो रहा स्वच्छ भारत मिशन ?
भारत सरकार द्वारा सार्वभौमिक रूप से 02 अक्टूबर, 2014 से स्वच्छ भारत मिशन का आगाज दो भागों में, शहरी व ग्रामीण मिशन के रूप में किया गया था. शहरी क्षेत्रों में कूड़ा उठाने वाली गाड़ियां अक्सर घरों से कूड़ा ले जाती हैं. इसके बावजूद आज भी शहरों में घरों, सड़क, दुकानों, पार्क व सार्वजनिक स्थलों के आसपास कूड़ा देखने को मिल ही जाते हैं. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के स्थिति की बात करें तो यह अत्यंत ही दयनीय है. यहां न तो नियमित रूप से कूड़ा उठाने वाली गाड़ियां आती हैं और न ही उचित रूप से कूड़ाघर बनाये गये हैं. जो बनाए भी गये हैं वह भरने के बाद इलाकों में बदबू व गंदगी का कारण बने हुए हैं.
उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. आंकड़ों के अनुसार राज्य के 85 प्रतिशत ग्राम खुले में शौचमुक्त व अटल आदर्श ग्रामों की श्रृंखला में आते हैं. परंतु हकीकत में इस विषय में गंभीरता एवं निष्पक्षता के साथ घरातल पर देखने की आवश्यकता है. यह समझने की ज़रूरत है कि क्या वास्तव में यह घरातल पर सत्य है या फिर कागजों तक ही स्वच्छता सीमित है? इस संबंध में राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थल नैनीताल स्थित घारी विकासखण्ड के जलना नीलपहाड़ी गांव के ग्राम प्रधान विनोद कुमार बताते हैं कि उनके गांव में इस मिशन के तहत 35 शौचालयों का निर्माण किया गया. इसके अतिरिक्त कूड़े के निस्तारण के लिए भी व्यवस्था की गई थी. लेकिन गांव वाले स्वच्छता के प्रति विशेष जागरूक नहीं हैं, इसलिए इसे शत प्रतिशत कामयाब नहीं बनाया जा सका है.
भले ही आंकड़ों में सभी ग्राम पंचायतें खुले में शौच मुक्त हो गयी हैं, लेकिन आज भी गांव में कई ऐसे घर हैं जिनके पास अपने शौचालय न होने की दशा में उन्हें जंगलों में जाना पड़ता है. गांवों की हालत ऐसी है कि वहां पंचायत भवनों का निर्माण तो किया जाता है, परंतु उनमें शौचालयों की व्यवस्था नहीं होती है. ऐसी स्थिति में पंचायत की बैठकों के दौरान सदस्यों द्वारा भी जंगलों का ही प्रयोग किया जाता है. ग्राम स्तर पर भी अपशिष्ट पदार्थों के उचित निस्तारण की व्यवस्था न होने की दशा में ग्राम वासियों द्वारा नजदीकी जंगल या खेतों का प्रयोग किया जाता है और उनके जानवर अक्सर उन्हीं स्थानों में चरने जाते हैं. अधिकांश कूड़ा या अवशिष्ठ पदार्थ या खाना पाॅलीथीन में भरकर फैका जाता है. जिसे पालतू जानवर इन्हें अपने भोजन का हिस्सा बना लेते हैं, जो भविष्य के लिए भयानक साबित हो सकता है. कुछ ऐसा ही हाल सेलालेख गांव का भी है, जहां का कूड़ाखड विगत एक वर्ष से साफ़ नहीं किये जाने के कारण कचरे के ढेर में तबदील हो चुका है.
इस संबंध में हल्द्वानी के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ रजनीश पाठक पॉलिथीन से होने वाले नुकसान और इसके दुष्प्रभाव के संबंध में बताते हैं कि अक्सर लोगों द्वारा जानवरों के प्रति प्यार दिखाते हुए उन्हें खाना दिया जाता है, जो कई बार पॉलिथीन में परोसा जाता है. जिसे जानवरों द्वारा खा लिया जाता है. जो पाचन न होने के कारण उनके लिए जानलेवा साबित होता है. अधिकांश पालतू जानवर या छोडे़ जाने वाले जानवरों के साथ इस प्रकार की समस्या देखने को मिलती है. वह सलाह देते हुए कहते हैं कि इसके लिए लोगों को जागरूक होने की जरूरत है. जहां भी जानवरों की आवाजाही अधिक होती है उन स्थानों की सफाई होनी चाहिए ताकि जानवर इसे खाने से बच सकें.
स्वच्छता में कमी की एक और वजह इस क्षेत्र में अत्याधिक संख्या में पर्यटकों का आवागमन भी है. जिनके द्वारा कई बार कूड़ा इधर उधर फेंक दिया जाता है. जिसका विदोहन न तो सरकार और न ही ग्रामवासियों के स्तर से होता है. कूड़े का यही ढेर पहाड़ी क्षेत्रों में पहाड़ के रूप में बदलते जा रहे है. इसके अलावा इस पर्वतीय मार्ग में स्थित रेस्टोरेंट, ढाबे, फास्ट फूड इत्यादि की दुकाने भी गंदगी फैलाने के सबसे बड़े कारकों में हैं. अक्सर इनके नजदीक गंदगी व दुर्गंध पायी जाती है. इस संबंध में लमगड़ा गांव स्थित आर्शीवाद रेस्टोरेन्ट के संचालक कमल फम्र्याल का कहना है कि उनके द्वारा सफाई की जो भी व्यवस्था अपने स्तर से की गयी है वह काफी नहीं है. सरकार द्वारा ग्रामीण इलाकों में भी कूड़े हेतु वाहन की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे प्रतिदिन कूड़ा उठाया जा सके.
नैनीताल स्थित ग्राम सेलालेख का पोखरा खेत मैदान पिछले कुछ वर्षों से कूड़े के इस दर्द को झेल रहा है. यह मैदान प्राकृतिक सुंदरता के कारण पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है. परंतु अक्सर यह मैदान गंदगियों से भरा होता है. सरकारी स्तर पर भी इसे स्वच्छ बनाए रखने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए हैं. परिणामस्वरूप इसके आस-पास के इलाके भी गंदगी झेलने पर मजबूर हैं. इस संबंध में स्थानीय लोगों का मानना है कि स्वच्छता बनाये रखने के लिए यह ज़रूरी है कि पर्यटकों के लिए कुछ सख्त नियम बनाये जाएं, साथ ही ग्राम स्तर पर भी कुछ लोगों को उनके इलाकों को स्वच्छ बनाये रखने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए जिससे पर्यटकों की आवाजाही भी बनी रहे और आसपास का क्षेत्र भी स्वच्छ रह सके.
हकीकत यह है कि जब तक हमारी सोच स्वच्छ नहीं होगी उस समय तक देश को स्वच्छ बनाना मुमकिन नहीं है. सबसे पहले हमें अपनी मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत है. आज भी हमारे समाज के लोग घरों से निकलने वाले कूड़े को इधर उधर फेंकने से नहीं कतराते हैं. इसके अलावा कचरे के उचित निस्तारण पर भी गंभीरता से कार्य किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि एक स्थान से कूड़ा ले जाकर दूसरे स्थान पर फेंक देना स्वच्छ भारत मिशन के सफलता की गारंटी नहीं हो सकती है. (चरखा फीचर)
- नरेन्द्र सिंह बिष्ट
नैनीताल, उत्तराखंड
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