दाखिला देना,नौकरी लगाना,व्यक्तिगत आलोचना, नाराज़गी,मूड,संस्कार आदि दृष्टिकोण का अंग हैं,और दैनंदिन जरुरतों से जुड़े हैं।इसको लेखक-बुद्धिजीवी के मूल्या
मैनेजर पांडेय लेखक को कैसे देखें ?
कल जब मैनेजर पांडेय पर लिखा तो विभिन्न किस्म की प्रतिक्रियाएं सामने आईं,कुछ व्यक्तिगत मैसेज के रुप में,कुछ फेसबुक पोस्ट के रुप में।कुछ मित्र "कम्प्लीट बुद्धिजीवी "लिखने पर खफा हैं।कुछ जेएनयू में दाखिला न मिलने पर नाराज हैं,एक सज्जन तो फेसबुक पर निजी जिंदगी पर हमले करके लिख रहे हैं।कुछ इसलिए नाराज हैं कि उनका रिसर्च प्रस्ताव खारिज कर दिया।कुछ ने कहा उनकी नौकरी नहीं लगने दी।इस तरह की अनेक प्रतिक्रियाएं फेसबुक पर देखने को मिलीं।
मैं निजी समस्याओं और गैर -आलोचनात्मक मूल्यांकन के बारे में बातें करना गैर जरुरी मानता हूं।मैनेजर पांडेय का आलोचक व्यक्तित्व और लेखन बाजार में उपलब्ध है।उस पर लोग खुलकर लिखें ,खासकर वे लोग जरुर लिखें जो हमलावर हैं।मैं आरंभ में ही कह दूं कि मैं एमए ,एमफिल् में उनका छात्र रहा हूं और मुझे उनसे अधिक नम्बर नहीं मिले,जिनको उन्होंने अधिक नम्बर दिए ,टॉप बनाया,वे सब महानतम हैं और उन्होंने एक सुंदर पंक्ति उन पर नहीं लिखी।मेरी नौकरी उन्होंने नहीं लगाई,उलटे जब नौकरी की संभावना हो सकती थी तो मैं उनका प्रिय नहीं था।दाखिले में उन्होंने कोई मदद नहीं की।हकीकत यह है कि एमए के दौरान ही नामवर जी ने कहा कि मैं तुमको एमफिल् -पीएचडी में दाखिला नहीं दूंगा।मेरा कोई अपराध नहीं था ,मैं एमए में ही कौंसलर बना और छात्रों के लिए काम करता था,एसएफआई का सदस्य था।इस सबके बावजूद मेरा दाखिला हुआ।दाखिला सूची में अठारह नम्बर पर था।लेकिन मैंने एमफिल् शोध प्रबंध तीसरे सेमिस्टर के प्रथम दिन जमा किया।जो आज तक एक रिकॉर्ड है और मैं तुरंत मेरिट में सबसे ऊपर आ गया ,नामवर सिंह की सारी योजना बेकार हो गई,मेरे बैच में जिसे टॉपर कराया था उसका आय प्रमाणपत्र जाली पाया गया और उसे निकाल दिया गया और मुझे फैलोशिप देने को नामवर जी मजबूर हुए। राजनीतिक मतभिन्नता उनसे टकराव का प्रधान कारण थी।लेकिन मेरे मन में उनको लेकर असम्मान का भाव कभी नहीं आया।कभी उनसे मतभेद छिपाए नहीं, कैरियर की चिन्ता किए वगैर छात्रों के हितों के लिए अनेक मर्तबा उनके खिलाफ संघर्ष किया।इस चक्कर में नम्बर कम आए, उनकी कृपा हासिल न कर पाया।इसके बावजूद मैंने उन पर सबसे अधिक लिखा।आशय यह कि लेखक के लिखे पर बात करो।अन्य पर नहीं।हमारे यहां लेखक के लिखे पर बातें कम होती हैं और अन्य चीजों पर बातें अधिक होती हैं।यही वजह है मेरे अलावा उनकी आलोचनादृष्टि पर उनके किसी छात्र ने कोई किताब नहीं लिखी।जबकि सैंकड़ों को उन्होंने कृतार्थ किया।हजारों को पढ़ाया।
कायदे से लेखक -आलोचक पर लिखते समय उसके दृष्टिकोण पर नहीं विश्व दृष्टिकोण पर बातें होनी चाहिए। सिर्फ नैतिकता के पैमाने पर उसे नहीं परखा जाना चाहिए।बल्कि विचारधारा ,विधा की सैद्धांतिक समझ, अकादमिक अनुशासन और लेखन की गुणवत्ता के आधार पर परखें।
मैनेजर पांडेय कम्प्लीट बुद्धिजीवी इस अर्थ में हैं कि उन्होंने थ्योरी और आलोचना के जटिल संबंध को लोकल-ग्लोबल की अंतर्क्रियाओं के संबंध में देखा और विगत पचास साल में विकसित हुए विश्व आलोचना प्रवाह को सही ढंग से पहचाना।विश्व आलोचना प्रवाह में सैद्धांतिक विमर्श प्रमुख है और उसके सबसे चुनौतीपूर्ण विषयों और सिद्धांतकारों को केन्द्र में रखकर हिंदी आलोचना का नया ढांचा बनाया।यह पहली,दूसरी परंपरा से भिन्न एकदम नई विश्वदृष्टि के आधार पर विकसित अंतर्विषयवर्ती आलोचना है।इसमें परिप्रेक्ष्य ,चयन का विवेक और अवधारणा प्रमुख हैं।यह "लेखन के लिए लेखन" की हिंदी आलोचना से भिन्न है।उनकी आलोचनादृष्टि का कैनवास बहुत व्यापक है।
जिन लोगों को मैनेजर पांडेय औसत आलोचक नजर आ रहे हैं,वे आलोचना के कूपमण्डूक हैं।उनको विश्व आलोचना में क्या लिखा जा रहा है,इसका जरा भी ज्ञान नहीं है।
लिखते समय कैसे लिखें ,यह दूसरा बडा सवाल है जिसे बड़े कौशल के साथ पांडेय ने हल किया।मसलन् अधिकतर प्रोफेसर पाठ्यक्रम केन्द्रित लिखते हैं।मांग- पूर्ति के आधार पर लिखते हैं।मैनेजर पांडेय ने इस नजरिए से कोई किताब नहीं लिखी।इस मायने में वे हिंदी की पहली परंपरा,दूसरी परंपरा और मार्क्सवादी परंपरा से बाहर चले जाते हैं।वे अपनी विश्वदृष्टि को परंपरा की बजाय आलोचना के अनुशासन से बांधते हैं।आलोचना के अनुशासन के सर्जनात्मक उपयोग पर बल देते हैं। हिंदी आलोचना के रुढ़िबद्ध ढांचे को अस्वीकार करते हैं।यह चीज उनको कम्प्लीट बुद्धिजीवी बनाती है।नई अवधारणाओं से हिंदी जगत को सबसे पहले परिचित कराते हैं।आलोचना को नई पहचान प्रदान करते हैं।कायदे से आलोचना पर इस विधा के फ्रेमवर्क में बात की जानी चाहिए।
दाखिला देना,नौकरी लगाना,व्यक्तिगत आलोचना, नाराज़गी,मूड,संस्कार आदि दृष्टिकोण का अंग हैं,और दैनंदिन जरुरतों से जुड़े हैं।इसको लेखक-बुद्धिजीवी के मूल्यांकन का आधार नहीं बनाना चाहिए।इस तरह के मूल्यांकन के आधार पर लेखक के बारे में गलत समझ बनती है।लेखक तो विश्वदृष्टिकोण में मिलता है,दृष्टिकोण में नहीं।
- जगदीश्वर चतुर्वेदी
बहुत सुन्दर
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