भीष्म साहनी की कहानी कला की समीक्षा समाज का कटु यथार्थवादी चित्र भीष्म साहनी के कहानी के पात्र भीष्म साहनी की भाषा शैली कहानियों का उद्देश्य
भीष्म साहनी की कहानी कला की समीक्षा
भीष्म साहनी की कहानी कला की समीक्षा bhisham sahni ki kahani kala ki samiksha - भीष्म साहनी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के नए कहानीकारों में अपना सर्वप्रमुख स्थान रखते हैं। इसके समबन्ध में डॉ.लक्ष्मीनारायण लाल ने लिखा है कि "दृष्टि बदली ,मानव और जीवन को देखने के ढंग बदले तो कहानी का शिल्प भी बदला ,पहले की सी कथानक प्रधान,झटका देने और मधुर तीस उत्पन्न करने वाली ,गढ़ी -गढ़ाई कहानियों के बदले जीवन की गहमागहमी ,रंगारंगी ,कटु यथार्थता ,जटिलता ,संश्लिष्ट का प्रतिविम्ब लिए हुए।"
स्वतंत्रता के बाद जो साहित्य के क्षेत्र में एक आन्दोलन चला ,उसमें कविता के क्षेत्र में नयी कविता एवं कहानी के क्षेत्र में नयी कहानी का खूब बोलबाला रहा। कुछ कहानीकारों ने अपने आपको नयी कहानी का लेखक घोषित किया ,कुछ लेखकों ने अनुकरण किया तथा कुछ लोगों को अनायास यह संज्ञा प्रदान की गयी ,किन्तु उसी में कहानीकारों का एक वर्ग ऐसा भी रहा ,जिसने इस प्रकार की किसी भी गुटबंदी को स्वीकार नहीं किया ,अपितु चुपचाप नयी कहानियों का निर्बाध गति से सृजन करने लगे। इसी कोटि के कहानीकारों में भीष्म साहनी जी का नाम अग्रणी हैं। यद्यपि इन्होने स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व ही कहानी लेखन प्रारम्भ कर दिया था ,किन्तु इनकी महत्वपूर्ण कृतियों का प्रकाशन स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ही हुआ। उनके मुख्य कहानी संग्रह हैं - भाग्य रेखा ,पहला पाठ ,भटकती राख तथा कड़ियाँ आदि। इनके प्रारंभिक लेखन पर यशपाल का स्पष्ट प्रभाव है।
समाज का कटु यथार्थवादी चित्र
नयी कहानी ने पूर्ववर्ती गतिमान कहानी लेखन परंपरा को एक प्रकार की नवीनता प्रदान किया। भीष्म साहनी इसी प्रकार के दिशा प्रदाता कहानीकारों में से एक हैं। इस सम्बन्ध में डॉ.लक्ष्मीनारायण लाल ने स्पष्ट लिखा है कि गढ़े -गढ़ाए अतिनिर्मित अतिशिल्प प्रधान तथा कृत्रिम कथानकों को तथा फलों के बाँध फूटे और एक बेगवती सहज धारा ऐसी फूटी कि हमारा सारा समाज ,सारी प्रकृति ,जहाँ तक कहानीकार की नज़र दौड़ सकती है - वह सब कुछ नयी कहानी का विषय दिखा। " भीष्म साहनी ने समाज से नवीन विषयों को ग्रहण किया और उसी पर अपनी कहानी का सृजन किया। यही कारण है कि वर्तमान समाज का कटु यथार्थवादी चित्र उनकी कहानियों में स्पष्टतः परिलक्षित होता है।
भीष्म साहनी के कहानी के पात्र
भीष्म साहनी के सभी पात्र आज के प्राणी हैं। वे जीते जागते सजीव एवं विश्वसनीय हैं। इनके चरित्र कहीं कहीं वर्ग का भी प्रतिनिधित्व करते हुए दिखाई पड़ते हैं। इन चरित्रों का अपना व्यकित्व होता है ,जिसे कहानीकार बिना किसी साधन का सहारा ग्रहण किये ही सीधे सादे ढंग से मुखर कर देता है। इन चरित्रों में आज का बदलता हुआ पुरुष वर्ग भी है। उदाहरणतः चीफ की दावत को देखा जा सकता है। इन चरित्रों की समस्याएँ ,कार्य कलाप ,वैयक्तिक पारिवारिक होने के साथ - साथ आज के युग बोध और कटुरूप को भी उजागर कर देने वाली है।
वातावरण की दृष्टि से भीष्म साहनी की कहानियाँ अत्यंत सफल हैं। आधुनिक नगर जीवन और परिवेश को साहनी जी ने अपनी कहानियों का वातावरण बनाया है। इसमें भी मध्यवर्गीय जन जीवन की इनमें प्रधानता है। यथार्थप्रिय होने के कारण वे वातावरण का ज्यों का त्यों अर्थात रूप में प्रस्तुत कर देते हैं। आज का सब कुछ बहा ले जाने वाला तथाकथित उन्मेष परक वातावरण इनके व्यंग का सबसे बड़ा लक्ष्य है। साथ ही साथ आंतरिक वातावरण चित्रण में भी क्षण विशेष की पकड़ संकेत और सूक्ष्म विश्लेषण इनमें पूर्णतया मिलती है। इसके लिए लेखक वर्णन ,पात्रों के क्रियात्मक संकेत ,शब्दावली और संवाद विविध चित्रण शैलियों का प्रयोग करता है।
भीष्म साहनी की भाषा शैली
साहनी जी ने अपनी कहानियों में भाषा शैली पर विशेष ध्यान दिया है। उनकी स्थापना है कि विचार पक्ष के साथ साथ कला पक्ष की ओर उतना ही ध्यान देना जरुरी है। " भाषा शैली कहानी के कलापक्ष से सम्बंधित है। इनकी भाषा स्वाभाविक है। उसमें सूक्ति और काव्यात्मक की झलक नहीं दिखाई पड़ती है। उनकी भाषा में सरल बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हुआ है। यही कारण है कि उसमें अंग्रेजी ,उर्दू ,,पंजाबी आदि भाषाओँ के शब्द भी प्रयोग होते हैं।
भीष्म साहनी की कहानियों का उद्देश्य
भीष्म साहनी की कहानियों के पीछे कोई न कोई निश्चित उद्देश्य अवश्य छिपा होता है।प्रमुख उद्देश्य है - वर्ग वैषम्य ,सामाजिक वैयक्तिक ,अंतर्बोध समस्याओं का दिग्दर्शन ,कुलबुलाते नगरीय जीवन का उद्घाटन एवं जीवन निष्ठा और आस्था की विजय का प्रतिपादन करना। साथ ही साथ व्यक्ति के माध्यम से आधुनिक समाज और युग बोध को प्रकट करना। वर्तमानकालीन यह नगरीय जीवन का यथा तथ्य चित्रण ,चहुँओर व्याप्त कुपरम्पराओं और नयी सभ्यता से उत्पन्न विसंगतियों पर करुणापरक व्यंग्य आदि भी इन्होने अपनी कहानियों का उद्देश्य बनाया है।
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