धूमिल व्यंग्य और आक्रोश के कवि हैं धूमिल की कविता का मुख्य स्वर सामाजिक एवं राजनीतिक विसंगतियों का चित्रण क्रांतिकारी भावना यथार्थ का निरूपण भाषा
धूमिल व्यंग्य और आक्रोश के कवि हैं
धूमिल व्यंग्य और आक्रोश के कवि हैं धूमिल की कविता का मुख्य स्वर - सुदामाप्रसाद पाण्डेय धूमिल छठें दशक के अत्यंत प्रगतिशील एवं सशक्त कवि हैं। उनकी काव्य सर्जना के आलोक में सम्पूर्ण साहित्य जगत आलोकित हो उठा। उनके शिल्प विधान और भावों की अद्भूत प्रवणता ने अन्य कवियों की रश्मि को धूमिल कर दिया। उन्होंने अपनी ओजस्वी एवं निडर वाणी से सामाजिक जीवन में क्रांति पैदा कर दिया। समाज की विद्रुपता और ऊँच - नीच ,अमीर - गरीब के मध्य इतने बड़े अंतराल को देखकर कवि तिलमिला उठता है। वह अपने अमोघ अस्त्र से उस पर प्रहार करके अपने क्रोध को शांत करता है। पुरानी रूढ़िवादी परम्पराओं ,अंधविश्वासों एवं कुरीतियों पर कवि ने पूरे आवेश के साथ प्रहार किया है। धूमिल के काव्य में विद्यमान आक्रोश भाव की विशिष्टाएँ इस प्रकार है -
सामाजिक एवं राजनीतिक विसंगतियों का चित्रण
स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ समय बाद तक सामाजिक एवं राजनीतिक दिशा में काफी उत्साहवर्धक एवं निष्ठा के साथ कार्य हुआ ,किन्तु समय बीतने के साथ ही ऐश्वर्य एवं वैभव की छाया में पूँजीपति व राजनेता देश और समाज के प्रति अपने दायित्वों को भूलकर ,स्वार्थ के दंभ में फँसते चले गए। कवि का भावुक एवं विद्रोही मन इनके छल - कपट के प्रति विद्रोह कर उठा। उनके काव्य में तत्कालीन समाज में व्याप्त भ्रष्ट्राचार ,उत्पीडन ,स्वार्थपरता ,चरित्रहीनता ,आडम्बर प्रियता पर कटु व्यंग किया गया है -
आह! वापस लौटकर
छूटे हुए जूतों में पैर डालने का वक़्त यह नहीं है
बीस साल बाद और इस शरीर में
सुनसान गलियों से चोरों की तरह गुज़रते हुए
अपने-आप से सवाल करता हूँ –
क्या आज़ादी सिर्फ़ तीन थके हुए रंगों का नाम है
जिन्हें एक पहिया ढोता है
या इसका कोई खास मतलब होता है?
क्रांतिकारी भावना
अन्याय ,शोषण एवं स्वार्थ लोलुपता के विरुद्ध के स्वर को मुखरित करने वाले धूमिल ने इसका डटकर मुकाबला किया। वे समाज की व्यवस्था में सामंजस्य एवं एकरूपता चाहते थे ,जिससे स्वस्थ समाज का सृजन किया जा सके। इसमें बाधक स्वार्थपरता का उन्होंने साहस और आत्मविश्वास के साथ विरोध का विश्वबंधुत्व और शान्ति भावना का प्रतिपादन किया। वे अनुरोध और याचना में विश्वास नहीं रखते हैं ,बल्कि अपने अधिकारों के लिए वे क्रांति का सन्देश देते हैं।
यथार्थ का निरूपण
धूमिल ने अपने काव्य में समाज के नग्न और यथार्थ रूप को प्रस्तुत किया है। वर्तमान परिवेश में चारों ओर घृणित और कुत्सित कर्मों में लिप्त व्यक्तियों पर धूमिल ने तीखी और कटु प्रतिक्रिया व्यक्त की है। वर्तमान प्रजातंत्र में संसद में होने वाली बहसें मात्र जनता को मूर्ख बनाने के लिए होती हैं। कवि ने उनको आड़े हाथों लिया है। जो कथनी और करनी में विभेदकर स्वार्थ सिद्धि में तल्लीन हैं -
मगर मैं जानता हूँ कि मेरे देश का समाजवाद
मालगोदाम में लटकती हुई
उन बाल्टियों की तरह है जिस पर ‘आग’ लिखा है
और उनमें बालू और पानी भरा है।
भाषा की विद्रूपता
तत्कालीन जीवन में व्याप्त विद्रूपताओं ,विसंगतियों और कुत्सापूर्ण जीवन पद्धतियों के नग्न चित्रण के लिए कवि ने अश्लील भाषा का प्रयोग करते समय तनिक भी संकोच नहीं किया है। अश्लील शब्दावली के प्रयोग से वे अपने मन के आक्रोश और कुत्सा को प्रकट करना चाहते हैं धूमिल ने जीवन यथार्थ की अभिव्यक्ति के लिए कहीं कहीं तो ग्रहित और अमर्यादित भाषा का प्रयोग धडल्ले के साथ किया है। उदाहरणस्वरुप कुछ पंक्तियों इस प्रकार है -
नगर के मुख्य चौराहे पर
शोक प्रस्ताव पारित हुए
हिजड़ों ने भाषण दिए
लिंग बोध पर
वेश्याओं ने कविताएँ पढ़ी ,
आत्मबोध पर
धूमिल का शब्द चयन मारक क्षमता के अनुकूल होता है ,फिर चाहे शब्द अभिजात्य भाषा के हों ,चाहे गँवारू और अमर्यादित भाषा के हों। मोचीराम कविता में कवि का उदगार इसी रूप में प्रकट हुआ है -
और बाबूजी! असल बात तो यह है,
कि ज़िंदा रहने के पीछे ,
अगर सही तर्क नहीं है तो रामनामी बेचकर ,
या रंडियों की दलाली करके ,
रोज़ी कमाने में कोई फ़र्क़ नहीं है।
उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि धूमिल की कविताओं ने भारतीय समाज की साठोत्तरी विद्रूपताओं को बेनकाब कर दिया है। उन्होंने जहाँ भी कुरीतियों को देखा ,वही वह शब्दों का करारा प्रहार किया है।
COMMENTS