गोरखनाथ की भक्ति भावना हठयोग साधना पर बल भोग विलास से दूर रहने का आवाहन मांस मदिरा के सेवन का विरोध गोरखनाथ ने हठयोग साधना का उपदेश गुरु महिमा
गोरखनाथ की भक्ति भावना
गोरखनाथ की भक्ति भावना का उल्लेख - नाथ परम्पराओं नौ नाथों के नामों की पुष्टि होती है। जिनमें गोरखनाथ सर्वाधिक ख्याति प्राप्त नाथ थे। डॉ.नगेन्द्र इन्हें ही नाथ साहित्य का आरम्भकर्ता भी मानते हैं। इनकी रचनाओं के विषय में विद्वान एक मत नहीं हैं। डॉ.पीताम्बर दत्त बडथ्वाल इनकी रचनाओं की संख्या १२ बताते हैं ,जिनमें सबदी ,पद ,प्राण संकली ,शिष्यादरसन आदि ही प्रमुख है। इन रचनाओं के आधार पर ही गोरखनाथ को समाज सुधारक रूप के दर्शन होते हैं जिससे उनके द्वारा प्रतिपादित गोरखवानिका महत्व भी सिद्ध होता है।
गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं में गुरु महिमा ,इन्द्रिय निग्रह ,प्राण साधना ,वैराग्य ,मन साधना ,कुंडली जागरण आदि का वर्णन किया है। इसके साथ ही इनकी रचनाओं में जीवन की पीड़ा और अनुभूति आदि के साथ साथ सामाजिक जीवन सम्बन्धी दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया गया है। गोरखनाथ की रचनाओं की विषय वस्तु का आगे चलकर संत काव्यधारा से प्रभाव भी पड़ा।
हसिबा बेलिबा रहिबा रंग। काम क्रोध न करिबा संग।।
हसिबा षेलिबा गाइबा गीत। दिढ़ करि राषिबा अपना चीत।।
हसिबा षेलिबा धरिबा ध्यान। अहनिसि कथिबा ब्रह्म गियान।।
हसै षेलै न करै मत भंग। ते निहचल सदा नाथ के संग।।
हबकि न बोलिबा ढबकि न चलिबा धीरे धरिबा पांव।
गरब न करिबा सहजै रहिबा भणत गोरष रांव।।
धाये न षाइबा भूषे न मरिबा अहनिसि लैब ब्रह्म अगिनि का भेवं
हठ न करिबा पड़या न रहिबा यूँ बोल्या गोरष देवं।।
गोरखनाथ से पूर्व में उनके संप्रदाय थे ,जिन सबका उनके नाथपंथ में विलयन हो गया था। बौद्ध ,जैन तथा वैष्णव के साथ साथ शैव और शाक्त भी उनके संप्रदाय में आकर मिल गए थे। गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं में गुरु महिमा ,इन्द्रिय निग्रह ,प्राण साधना ,वैराग्य ,मन साधना ,कुंडली जागरण आदि का वर्णन किया है। इसके साथ ही इनकी रचनाओं में जीवन की पीड़ा और अनुभूति आदि के साथ साथ सामाजिक जीवन सम्बन्धी दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया गया है। गोरखनाथ की रचनाओं की विषयवस्तु का आगे चलकर संत काव्यधारा से प्रभाव भी पड़ा।
गोरखनाथ ने हठयोग साधना का उपदेश दिया था। हठयोगियों के सिद्ध सिद्धांत पद्धति ग्रन्थ के अनुसार हठ शब्द दो वर्णों के मेल से बना है जिसके अनुसार ह का अर्थ है सूर्य तथा ठ का अर्थ चन्द्र। इन दोनों के योग को ही हठयोग कहते हैं। गोरखनाथ ने ही षष्टचक्रों वाला योग मार्ग हिंदी साहित्य में प्रतिपादित किया। इस मार्ग में विश्वास रखने वाला हठयोगी हिंदी साहित्य में प्रतिपादित किया। इस मार्ग में विश्वास रखने वाला हठयोगी साधना द्वारा शरीर और मन की शुद्ध करने के उपरांत शून्य में समाधि लगाता तथा तत्पश्चात यह ब्रह्म के दर्शन करता था। इस सम्बन्ध में गोरखनाथ ने लिखा भी है कि धीर वही है ,जिसका चित्त विकार युक्त होने पर भी विकृत न हो और संयम के साथ साधना मार्ग पर अग्रसर होता रहे।
गोरखनाथ की भक्ति भावना की निम्नलिखित विशेषताएं हैं -
हठयोग साधना पर बल
गोरखनाथ ने हठयोग साधना पर बल देते हुए प्राणायाम की प्रक्रिया पर बल देकर इड़ा - पिंगला के समीकरण के साथ कुंडलिनी को जाग्रत करने पर बल दिया है। वे लिखते हैं -
अवधू ईडा मारग चन्द्र मणीजै, प्यगुला मारग मान ।
सुषमना मारग वाणी बोलिए, त्रिय मूल अस्थान।
भोग विलास से दूर रहने का आवाहन
गोरखनाथ संसार के लोगों को भोग विलास से निर्लिप्त रहने के लिए प्रेरित करते हैं। वे कहते हैं कि जब मनुष्य का मन व इन्द्रिया इस संसार में रमण करते हुए भोग विलास में लीन रहते हुए सांसारिक बंधनों से बंध जाते हैं ,तो उनकी मुक्ति असंभव है। अतः वे लोगों को वैराग्य अपनाकर निवृत्ति के मार्ग पर प्रेरित करते हुए कहते हैं -
भोगिया सूते अजहूँ न जागे। भोग नहीं रे रोग अभागे।
भोगिया कहै भल भोग हमारा। बंदत गोरखनाथ आतमा विचारत
ज्यों लज दीसे चंदा।
मांस मदिरा के सेवन का विरोध
गोरखनाथ जनसामान्य को माँस मदिरा के सेवन से दूर रहने के लिए भी प्रेरित करते हैं। उनका मानना है कि माँस मदिरा आदि के सेवन से मनुष्य में तामसी प्रवृत्ति उत्पन्न होती है जिससे वह काम ,क्रोध ,ईर्ष्या ,घृणा ,मोह आदि से ग्रस्त हो जाता है। इस प्रकार की प्रवृत्ति या मनोवृत्ति साधना के लिए साधना के मार्ग में बाधा है। गोरखनाथ इस सम्बन्ध में कहते हैं -
अवधू माँस भषन्त दया धर्म का नास ।
मद पीवत तहाँ प्राण निरास ।
भाँगि भषन्त ग्यान ध्यान षोवँत ।
जम दरबारी ते प्राणी रोवँत ।।
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