नितिन उनके घर के आगे काफी देर तक खड़ा रहा। फिर वह पास वाले स्टैन्ड पर गाड़ी लेकर पहुच गया और एक सिगरेट जला ली। जो कुछ घटित हुआ वह अपने साथ एक बिजली लेके
इक चिंगारी
दिन इतवार का था। बाहर बारिश तेज हो चुकी थी और नितिन अपनी निर्धारित जगह पर गाड़ी लगाकर बेतक्कलुफ था. ऐसा शायद इसलिए क्यूँकी उसे पता था की आज कोई सवारी नहीं मिलेगी।
वह जानता था इस मूसलाधार बारिश में कोई अपने घर से निकलना नहीं चाहता।
कहने को वह एक बड़े शहर में रहता है, लेकिन यह बड़ा शहर भी बरसात के आगे अपने घुटने टेक देता है और इसकी सारी भाग-दौड़ थम जाती है। देखते ही देखते इतना बड़ा शहर बारिश के सामने बहुत छोटा नज़र आने लगता है।
नितिन जिस शहर-समाज से हारा था उसका यूं मामूली सी बरसात जैसी चीज से हार जाना नितिन को एक अलग किस्म का संतुष्टि देता है। बारिश की बूंदे गाड़ी की छत पर गिरती हैं तो यूं आवाज़ होती है जैसे किसी ने दूर से कोई पत्थर फेंका हो। गाड़ी के अंदर बैठा नितिन कुछ पत्थर खुद पर फेंक रहा था,शायद सच ही है की कुछ दुख हम अपनी किस्मत में खुद लिखते हैं।
अधेड़ उम्र में हर आदमी के पास दो ही चीजें रह जाती हैं – बीते हुए दिनों का सुख और आने वाले कल की जिम्मेदारियों का बोझ। ‘आज’ दोनों के बीच कहीं खो जाता है और ढूंढे नहीं मिलता।
वह कई बार जोड़-भाग कर चुका था पर दहेज की रकम है की पूरी नहीं होती। उसने देर रात तक टैक्सी चलाना भी (तो) इसलिए ही शुरू किया था की जैसे तैसे जोड़ तोड़ के बस दहेज की रकम इकट्ठा कर ले।
लड़का एक बड़ी कंपनी में बाबू है और तनख्वाह के ऊपर भी काफी कुछ कमा लेता है ।
“यह रिश्ता हाथ से जाना नहीं चाहिए।“ माँ का हुकूम था।
“लेकिन माँ, नीतू का यह आखिरी साल है फिर इसकी डिग्री भी पूरी हो जाएगी। और साल दर साल यह कॉलेज टॉप करती आई है । शादी की इतनी जल्दी भी कहाँ है?”
“क्यूँ? शादी के बाद भी तो पढ़ाई जारी रख सकती है – कहा तो है समधी जी ने – और इसे कौनसा कलेक्टर बनना है कहीं का? तेरा जो हाल हुआ है नीतू का भी वही हाल करना है क्या?’
बस इसी तरह जो बीत गया था उसका तमगा किसी गाली की तरह उसके माथे पर लगा दिया जाता और उसकी पहचान को उसी तमगे में सिकोड़ दिया जाता. कुछ गलतियाँ ऐसी होती हैं जिन्हे माफ किया जा सकता है। जिन्हे माफ कर देना चाहिए।
खैर
एक तरफ माँ, बाकी का परिवार और समाज, और दूसरी तरफ, केवल नीतू और समाज से हारा हुआ नितिन। पलड़ा किस तरफ झुकेगा यह बताना सरल था। यह सब सोचते हुए एकाएक नितिन का दम घुटने लगा। उसे लग रहा था जैसे उसका अतीत फिर उसकी गर्दन जकड़ने आ रहा हो। यह देखकर, की जिन बातों को भूलने की कोशिश में वह एक अरसे से है वह हर बार उसे अगले मोड़ पर इंतजार करती मिलती हैं , वह उत्तेजित हो गया. । गाड़ी के परिवेश में एक बोझिल भारीपन दाखिल होने लगा था ।
उसने इतनी खिड़की खोल ली की बारिश की बूंदें गाड़ी के अंदर न गिरें पर जो भारीपन भीतर है वह बाहर फैल जाए।
फिर नितिन ने गाड़ी की सीट पीछे की और जेब से एक सिगरेट निकाली। वह सिगरेट जलाने ही लगा था की फोन बज उठा।
“अभी कुछ देर और लगेगी।या तड़के ही आऊँ यह भी हो सकता है। “
माँ का यह सवाल न करना की इतनी भीषण बारिश में कहाँ कोई सवारी मिलेगी या इस तरह बरसात में क्यूँ (और) परेशान होना उसे खला नहीं।
“क्या बात है? अभी कह दो।“
यह भी उसने इस उदासीनता से कहा था जैसे अब उसे किसी बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता हो।
“क्या? लेकिन उन्होंने तो साफ साफ कहा था की नीतू शादी के बाद अपनी पढाई जारी रख सकती है?
नितिन बौखला गया।
माँ उस से कुछ और देर तक कुछ बातें कहती रहीं। वह बातें उसके कान पर रेंगी तो लेकिन भीतर न प्रवेश कर सकी। उसे अब केवल इस बात की फिक्र थी की नीतू जैसी प्रौढ़ भी समाज के नियम तले दब जाएगी, नीतू के लिए जिस उज्जवल भविष्य की कामना उसने की थी वह उसे धूमिल होती हुई नज़र आने लगी।
माँ की बातें जैसे ही खत्म हुई नितिन ने तिलमिलाकर फोन रख दिया। एक भद्दी गाली उसके मुँह से लड़के के बाप के लिए निकली। उसने कुछ गुस्से से सिगरेट जलाई और धीरे धीरे लंबे कश खींचने लगा। उसे महसूस हुआ की यदि उसकी पिछली नौकरी न छूटी होती तो शायद आज स्तिथि कुछ और होती। अब नितिन अपनी बात रखता भी तो उसे तानों से चुप करा दिया जाता.
उसका वापस अपना जीवन पटरी पर लाना, खुद की एक टैक्सी कर लेना किसी को दिखाई नहीं देता।
जीत भले ही कालजयी होती हो, लेकिन हार ज्यादा पुख्ता होती है – वह कभी भी भुनाई जा सकती है।
सिगरेट खिड़की से बाहर फेंक , नितिन ने अपने वॉलेट की जेब से अपनी पिछली कंपनी वाला ई कार्ड निकाला। और उस पर यूं हाथ फिराया जैसे अपने पुराने दिनों को सहला रहा हो, वह दिन जो उससे छीने जा चुके हैं उनपर अपना अधिकार दुबारा इख्तियार कर रहा हो। चीजों में पुराने दिन वैसे ही रह जाते हैं जैसे हम चाहते हैं, चीजें दिन सहेज कर रखती हैं और हमसे कोई सवाल नहीं करती। उनपर हमारा हक हमेशा कायम रहता है।
वह खुद में ही गुम था की खिड़की पर किसी ने दस्तक दी। । नितिन लोगों को पढ़ना इतना तो सीख गया था की वह उन दोनों के बीच के रिश्ते को भांप सके, दोनों की शादी को ज्यादा समय नहीं हुआ लगता था पर लड़की की आँखों में एक मरे हुए रिश्ते को खीचने का बोझ जीवित था.
उसने खिड़की थोड़ी और नीचे की तो उस आदमी ने रोबीली आवाज़ में पूछा – “कालिंदी कुञ्ज जाना है, चलोगे?
“बैठो”
वह दोनों गाड़ी में बैठ गए। नितिन ने पहले ही उन्हे देख सुनिश्चित कर लिया था की वो कितने भीगे हैं और गाड़ी उनके बैठने से कितनी खराब हो सकती है।
नितिन की टैक्सी में भिन्न भिन्न प्रकार के लोग बैठते हैं लेकिन इतनी अलग अलग तरह के लोगों में भी एक बात समान है की हर सवारी मुनासिब समय से जल्दी अपने गंतव्य पर पहुँचना चाहती है.
“आर यू हैप्पी नाउ? आफ्टर इन्सल्टिंग मी इनफ्रंट ऑफ सो मैनी पीपल?”
‘मैनी पीपल? Thatस माई पेरेंट्स, माई फॅमिली यू आर टॉकिंग अबाउट। अभी ये बात करना जरूरी है? घर जाकर डिस्कस करेंगे”
“घर जाकर क्या होगा यू have नो idea।“
उस आदमी ने जैसे यह कहकर नितिन देखा और नितिन को उसकी नजरें किसी कांटे की तरह चुभी। शायद उसे यह विश्वास हो गया की नितिन अंग्रेजी नहीं समझता और वह फिर अंग्रेजी में कहने लगा।
“यू बिच। यू हैव स्टार्टेड अर्निंग मोर देन मी सो यू थिंक यू आर अबव मी? आई शुड नॉट हैव allowed यू टू वर्क इन द फर्स्ट प्लेस”
उसकी आवाज़ द्वेष से लबालब थी और जरूर जहर की तरह उस लड़की के भीतर उतरी होगी, जिसने उसे भीतर से पूरी तरह झुलसा दिया होगा।
वह ज़रा धीमी आवाज़ में बोली “ह्वट आर यू सैइंग? ह्वट अबाउट ऑल दोस टॉक्स अबाउट equality एण्ड एव्रीथिंग?” फिर जैसे उसने किसी तरह खुद को थामा और बोली “लेट्स नोट क्रीऐट अ सीन हेरे।“
सीन। हम हमेशा सीन कहाँ क्रीऐट हो रहा है इसकी चिंता में रहते हैं। भले ही सीन में कितना भी घिनौना सच उबल रहा हो इस से परे हमारा वास्ता होता है केवल इस बात से की कौन यह सीन करते हुए हमे देख रहा है क्या सोच रहा है।
लेकिन उस लड़के का वही बर्ताव कायम था। उसने उसी लेहज़े में कहा “यू स्लट। डॉन्ट टेल मी ह्वट तो डू।
फिर एक गहरी चुप्पी गाड़ी में गहरा गई।
नितिन यूँ ही गाड़ी चलाता रहा जैसे उसने कुछ न देखा कुछ न सुना हो.
उनके उतरने की जगह आ गई। वह आदमी तेजी से उतर पैरों से जमीन ठोकता हुआ चला गया। वह लड़की ज़रा एक मिनट ठहरी जैसे किसी बड़ी क़यामत के लिए खुद को तैयार कर रही हो। उसने अपने बैग से बटुआ निकला और बकाया पैसे नितिन को दिए. फिर बिना नितिन को देखे ही उतरी और बड़ी धीरे से छोटे छोटे कदम ले अपने घर की तरफ बढ़ गई।
नितिन उनके घर के आगे काफी देर तक खड़ा रहा। फिर वह पास वाले स्टैन्ड पर गाड़ी लेकर पहुच गया और एक सिगरेट जला ली। जो कुछ घटित हुआ वह अपने साथ एक बिजली लेके आया था, जो नितिन के भीतर क्रौन्ध रही थी. इक चिंगारी, इक क्षण में कितनी ताकत होती है यह उसने आज जाना. धीरे धीरे अपनी सिगरेटे ख़त्म कर उसने अपनी माँ को फोन किया।
“नीतू की शादी हम अभी नहीं करेंगे। अभी वो पढ़ेगी और पहले अपना साल खत्म करेगी”।
- जूही
शिक्षा : कॉमर्स में स्नातक
लेखन विधाएँ: कहानियाँ व लेख
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