प्रयोजनमूलक भाषा के रूप में हिंदी का भविष्य प्रयोजनमूलक हिंदी के विविध रूप प्रयोजनमूलक हिंदी का महत्व प्रयोजनमूलक हिंदी की उपयोगिता और कार्य क्षेत्र
प्रयोजनमूलक भाषा के रूप में हिंदी का भविष्य
प्रयोजन और उपयोगिता प्रायः समानार्थी शब्द हैं।वस्तु की उपयोगिता ही प्रयोजन की सार्थकता का मापदंड है। इसीलिए जब किसी विशेष लक्ष्य के सन्दर्भ में किसी वस्तु विशेष का निर्माण या अवतरण किया जाता है ,तो उसकी उपयोगिता का भी ध्यान अवश्य रखा जाता है। यह बात भाषा पर पूरी की पूरी लागू होती है। प्रयोजनमूलक भाषा के रूप में हिंदी का भविष्य आलोकमय है। प्रयोजनमूलक भाषा के रूप में हिंदी का भविष्य को निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत चर्चा की जा सकती है -
- विज्ञान और तकनीकी से सम्बंधित शब्दावली प्रयोजनमूलक हिंदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। आज आवश्यकता है कि विज्ञान एवं तकनीकी से सम्बंधित पारिभाषिक शब्दावली को विषय वस्तु एवं सन्दर्भ के अनुसार सम्यक रूप से प्रचलित करने के प्रयास किये जाएँ।
- अनुवाद से सम्बंधित समस्या को हल करके प्रयोजनमूलक हिंदी की राह सुगम की जा सकती है। विधि ,भौतिकी ,रसायन ,गणित ,दूरसंचार ,कंप्यूटर ,प्रौद्योगिकी एवं मानविकी ग्रंथों के अंग्रेजी से किये गए अनुवाद प्रायः जटिल ,दुरूह और भाषिक आधार पर क्लिष्टता के बोधक है। प्रयोजनमूलक हिंदी को पुष्ट करने के लिए आवश्यकता इस बात की है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से सम्बंधित ग्रंथों का प्रारूपण मूलतः हिंदी में किया जाए। हाँ ,जो ज्ञान -विज्ञान की अवधारणायें अन्य भाषाओँ से ली जाएँ ,उनके अनुवाद की स्थिति में सहज - सरल भाषा का प्रयोग किया जाए और हिंदी भाषा की प्रकृति के अनुरूप छोटे वाक्यों का प्रयोग किया जाए।
- प्रयोजनमूलक हिंदी की प्रवृत्ति प्रयोगशील और उसकी प्रक्रिया विकासशील है। अस्तु ,इसकी प्रवृत्ति और प्रक्रिया को ध्यान में रखकर पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण आवश्यक प्रतीत होता है। ऐसी शब्दावली का प्रयोग केवल कोश एवं सन्दर्भ तक ही सीमित न रखकर उसके प्रचलन -परिचालन हेतु योजनाबद्ध ढंग से प्रयास किये जाएँ।
- जो भाषा जन सामान्य की भाषा नहीं बनती ,राजकाज की भाषा नहीं बनती ,देश के अर्थतंत्र एवं वणिज्यक व्यापारिक संस्थानों की भाषा नहीं बनती ,उसकी प्रयोजनमूलकता पर प्रश्न चिह्न लग जाता है। प्रयोजनमूलक हिंदी के प्रसार हेतु बैंकों एवं अन्य संस्थानों को हिंदी माध्यम से कार्य करने की प्रणाली अपनानी होगी।
- केवल विरोध के लिए विरोध के अनुसार भले ही कोई हिंदी का विरोध करें ,पर हिंदी तुलसी के बिरवा की भाँती प्रत्येक घर - आँगन में पालन - पोषण कर रही है। अब हिंदी को और अधिक समर्थ बनाने की आवश्यकता है। आज सूर ,तुलसी ,जायसी ,कबीर ,पन्त ,प्रसाद ,निराला ,महादेवी ,दिनकर ,अज्ञेय आदि का नाम लेकर हिंदी को बड़ा नहीं किया जा सकता है। नए समकालीन भाषा सन्दर्भ में हिंदी को प्रयोजनपरक बनने के लिए उसे हाट बाज़ार ,गाँव देश ,सड़क चौराहे ,कचहरी - दफ्तर एवं व्यापारिक ठिकानों के बीच उतरना -उतारना पड़ेगा। आज अंग्रेजी शेक्सपियर ,मिल्टन ,बर्नाड शा ,इलियट के सूचनात्मक साहित्य की बदौलत बड़ी नहीं है ,वह अपनी प्रयोजनमूलकता के बल पर बड़ी है। इसीलिए बड़ी है कि रोजीरोटी देती है। इसी प्रकार कहा जा सकता है कि जो भाषा जीवन के साधन जुटाने में सहायता देती है ,वह बड़ी बन जाती है। कहा जा सकता है कि उपयोगिता ही किसी भाषा की औकात का मापदंड होती है। हिंदी में अन्य भाषाओँ के शब्दों को पचा लेने की अद्भुत सामर्थ्य है ,इसीलिए हिंदी की प्रयोजनपरकता का भविष्य आलोकमय है।
- प्रयोजनपरक हिंदी विकसनशील अवस्था में हैं। जीवन के सामाजिक ,मानविकी ,कंप्यूटर एवं अन्तरिक्ष विज्ञान से सम्बंधित अनेक क्षेत्र ऐसे हैं ,जिनके लिए प्रयोजनपरक हिंदी की प्रत्युक्तियाँ रूपायन की प्रक्रिया में हैं। आज आवश्यकता उदारवादी दृष्टि अपनाने की है। हिंदी में अद्भुत लोच है। प्रयोजनपरक हिंदी को संपुष्ट करने के लिए इस लोच का उपयोग व्यापक स्तर पर हो रहा है।
समग्रतः इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रयोजनमूलक हिंदी का भविष्य उज्जवल एवं आलोकमय है।
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