सैलानी चाँद में आपकी भाषा सरल एवं बोधगम्य है,देशज शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है। इसके विविध उपशीर्षकों के तहत हाइकु की संख्या में बड़े अंतर हैं इससे बचा
अनुभूतियों की विविधताओं का बागीचा
जापानी साहित्य की विधाओं में से हाइकु को हिंदी साहित्य ने अपनाया है इसकी ख्याति अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है। इस पर अनेक पत्रिकाओं के विशेषांक,एकल एवं साझा संग्रह लगातार प्रकाशित हो रहे हैं तथा सोशल मीडिया पर इसकी धमक बनी हुई है। आँचलिक भाषा एवं बोलियों में भी हाइकु के संग्रह प्रकाशित हो रहे हैं। हाइकु के अन्य भाषाओं से अनुवाद भी किए जा रहे हैं । हाइकु से परहेज करने वाले भी इन दिनों इस पर कलम चलाते हुए गर्वित हो रहे हैं। अमेरिका निवासी डॉ.अनिता कपूर बहुमुखी प्रतिभा की धनी एवं हिंदी ग्लोबल ज्योति की संस्थापिका का यह दूसरा हाइकु संग्रह है। इससे पूर्व आपका प्रथम हाइकु संग्रह-'दर्पण के सवाल' एवं आपके संपादन में दो हाइकु संग्रह क्रमशः-'आधी आबादी का आकाश' एवं 'बोंजाई' प्रकाशित हो चुकी है।
आपके इस संग्रह में कुल-261 हाइकु इन उपशीर्षकों के अंतर्गत प्रकाशित हुए हैं- 1लटका चाँद, 2रिश्ते, 3सतरंगी हाइकु, 4यादें, 5तुम्हारा होना, 6अनुभूति, 7धूप, 8वर्षा, 9 फागुन, 10पतझड़, 11दिवाली, 12होली, 13 लंका दहन, 14गाँधी एवं 15विविधता। इन दिनों अधिसंख्य हाइकु वाले संग्रह के प्रकाशन का प्रचलन बढ़ गया है लेकिन आपने इससे परहेज किया है। इस संग्रह में आपने 'मन' को केंद्रीय भाव में रखकर ही हाइकु रचे हैं।
हाइकु अपने आपमें एक संपूर्ण कविता है,जिसमें 5,7,5 के वर्ण का तीन पंक्तियों में पालन किया जाता है। हाइकु में प्रकृति वर्णन एक अनिवार्य तत्व की तरह है जैसे हमारी साँस। प्रकृति की अनुपम छटा हर किसी की संवेदनशीलता में हिलोरें उठाने के लिए पर्याप्त होती है। प्रकृति को महसूसने की सबकी अपनी अलग क्षमता होती है। इस संग्रह के हाइकु में प्रकृति का मानवीयकरण अद्भुत दृश्य उत्पन्न करने में सक्षम है। इनमें चाँदनी को नर्तकी, गगन का कुर्ता सीने वाला दर्जी, जाड़े की धूप का झाँकना और सर्दी में धूप का शॉल ओढ़कर-सर्दी का भाग जाना-ये सभी अद्भुत बिम्ब हैं और इनका कथ्य गज़ब का है-
चाँद तबला/नर्तकी-सी-चाँदनी/सितारे झूमे।
टाँके सितारे/सीला गगन कुर्ता/कौन रे दर्जी।
घर ना आई/वो झाँक कर गई/जाड़े की धूप।
भाग ही गई/धूप का शॉल ओढ़े/भोर की सर्दी।
कुछ और बिम्ब और प्रतीकों के माध्यम से आपने अपने हाइकु रचे हैं इनमें हैं-सूरज खा लेने वाला भूखा दिन और बादलों के लौटने को आतंक से जोड़ना। हिंदी हाइकु को इसी नयेपन की तलाश सदैव से रही है।
कोहरे ने ही/खा लिया सूरज को/भूखा है दिन।
खाली बादल/बरसा के आतंक/उड़े फिर से।
वर्तमान में न्यूक्लियर परिवारों के साथ कुछ रिश्ते लुप्त हो रहे हैं,दायित्वों से भागने की बयार सी चल रही है;अपेक्षाओं से उपजी उपेक्षा के दर्द की दवा गायब है। वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देने वाले इस राष्ट्र में अपने ही परिवार को संभाले रखना अब मिसाल होगा। इन रिश्तों में यकीनन माँ का रिश्ता सर्वोच्च है तथापि इन रिश्तों को निभाने की एकतरफा जिम्मेदारी नारियों के पल्ले पड़ा हुआ है। पश्चिम की हवा ने हमारी साँझी विरासत को निगल लिया है ऐसे में ये विषय हाइकु साहित्य से अछूता नहीं रह सकता। आप लिखती हैं- दुःख जो पाहुन है-मालिक बन गया है, मन के साँप-केंचुली बदल रहे हैं, सिगरेट उम्र की-धुआँ-धुआँ हो रही है,मजहबी कुल्हाड़ी हमारे विश्वासों को खोखली कर रही है। देखें ये हाइकु आपसे कैसी दोस्ती चाहते हैं-
कागजी रिश्ते/करुँ क्या घटा-जमा/भूली गणना।
मौसमी दोस्त/रेल के मुसाफिर/चढ़े उतरे।
इस जीवन चक्र में सुख-दुःख का क्रम आते-जाते रहता है। सुख का वक्त जल्दी बीत जाता है वहीं कष्ट देता हुआ वक्त लम्बा अहसास देता है और यह गहरा ज़ख्म देकर भी जाता है। ऐसे ही भाव लिए ये हाइकु यहाँ दृष्टव्य हैं-
घाट-घाट पे/बँधी पीड़ा की नाव/चप्पू गायब।
खिड़की मन/चरमराये कुंडे/ढूँढे हैं कंधा।
चार दिन की इस जिंदगी में माया-मोह का जाल सभी को फाँसता अवश्य है। प्रेम इस दुनिया का हमारे लिए विशिष्ट उपहार है चाहे वह ईश्वर से हो या अपनों से हो,सदैव पवित्र होता है। माटी के इस तन को जिसे किराए का घर भी कहा जाता है को जितना भी सजाओ-सँवारो कम ही लगता है लेकिन यदि यहीं ईश्वर के प्रति समर्पण हो गया तो भवसागर पार होना निश्चित ही है। आइए इन हाइकु के साथ हो लें-
मन कातता/संसारी चरखे से/धागा मोह का।
साँसों का सूत/बुनूँ प्रेम-ओढ़नी/बन जुलाहा।
जीवन की घटनाओं का हिसाब-किताब यूँ तो वक्त के पास होता है लेकिन उसका खजाना मन में यादों का लिहाफ ओढ़े कहीं बैठा होता है। जब भी इन यादों को फुर्सत मिलती है या कोई अपना सा कहीं,कोई मिल जाता है तो ये हरे हो जाते हैं। इन यादों की अपनी अनोखी दुनिया होती है जिसमें दुःख के साथ -साथ सुख की महकती बगिया भी होती है। आपके मन के हंटर से गतिमान इन यादों को लिखते हुए स्याही सूख रही है और शब्द सन्यासी हो रहे हैं-
लिखती यादें/दर्द का इतिहास/मन किताब।
सूखी है स्याही/शब्द हुए सन्यासी/खाली है पृष्ठ।
रामायण के दृश्यों को हाइकु में आपने पिरोया है जिसमें रावण की लाचारी और हनुमान जी के द्वारा लंकादहन का भाव है। हाइकु में यह एक नया प्रयोग है साथ ही यह हमें हमारी आस्था और विश्वास से भी जोड़ती है-
अग्नि की बूँदें/झाड़ते रहे पूँछ/पिघली लंका।
देखे रावण/लंका का सर्वनाश/बीस आँखों से।
सैलानी चाँद में आपकी भाषा सरल एवं बोधगम्य है,देशज शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है। इसके विविध उपशीर्षकों के तहत हाइकु की संख्या में बड़े अंतर हैं इससे बचा जाना चाहिए था। भूमिका में आपको वृहत आशीर्वाद मिला है-बधाई। आपने होली, दीवाली,फागुन और गाँधी जी पर भी हाइकु लिखे हैं।
आपके शब्दों के कैनवास का फलक विस्तृत है जिसमें आपकी भारत से अमेरिका तक की यात्राओं के अनुभव की पोटली विविधताओं से भरी हुई है। इसमें से हाइकु फुदक कर निकल रहे हैं इनकी महक पूरे विश्व तक अवश्य फैलेगी ऐसी मुझे उम्मीद है।
आपको इस हाइकु संग्रह-'सैलानी चाँद' के लिए मेरी अनंत शुभकामनाएँ।
रमेश कुमार सोनी
रायपुर, छत्तीसगढ़
मो.-7049355476
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सैलानी चाँद- हाइकु संग्रह, डॉ.अनिता कपूर (कैलिफोर्निया-अमेरिका)
प्रकाशक- इंडिया नेटबुक्स एल एल सी
San Antonio,USA- 2023
ISBN:-978-93-95503-06-8
पृष्ठ-95,मूल्य- 3 USD
भूमिका-श्री कमल किशोर गोयनका-दिल्ली,
श्री कमलेश भट्ट कमल-नोएडा,डॉ.जगदीश व्योम-दिल्ली।
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