सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका समाज को परिवर्तन करने में शिक्षा की भूमिका भारतीय समाज में शिक्षा सामाजिक परिवर्तन Education and Social Change
सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका
सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका समाज को परिवर्तन करने में शिक्षा की भूमिका समाज को परिवर्तन करने में शिक्षा का योगदान सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा का योगदान समकालीन भारतीय समाज में शिक्षा शिक्षा एवं सामाजिक परिवर्तन Education and Social Change - शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का प्रभावपूर्ण कारक है क्योंकि शिक्षा समाज की आवश्यताओं की पूर्ति करके उन विचारों का प्रचार एवं प्रसार करती है ,जो समाजिक परिवर्तनों को सहज बनाते हैं। इससे समाज में व्यक्तियों के आचार - विचार एवं व्यवहार में परिवर्तन होता है। इस प्रकार सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा एक कारक के रूप में निम्नलिखित रूप में अपनी भूमिका निभाती है -
शाश्वत मूल्यों को स्थायी बनाना
समाज के कुछ शाश्वत मूल्य होते हैं ,जिनसे सामाजिक व्यवस्था संचालित एवं नियंत्रित रहती है। जब इन मूल्यों में पतन होने लगता है ,तब सामाजिक परिवर्तन होते हैं। ऐसी स्थिति में शिक्षा इन शाश्वत मूल्यों को संरक्षित करती है और उन्हें स्थायित्व प्रदान करती है।
नवीन सामाजिक परिवर्तनों को प्रोत्साहित करना
भारतीय प्राचीन समाज विभिन्न कुरीतियों ,रूढ़ियों एवं अंधविश्वासों से ग्रसित था ,जिससे बाल - विवाह ,सती प्रथा एवं छुआछूत का बोलबाला था। शिक्षा के प्रचार -प्रसार से आधुनिक समाज की संरचना हुई। शिक्षा के प्रभाव से ही उपयुक्त कुरीतियों का अंत हुआ। शिक्षा ने वर्तमान समय में ऐसा सामाजिक वातावरण सृजित किया है ,जिससे नवीन सामाजिक परिवर्तनों को स्वीकृत एवं अंगीकृत करने हेतु व्यक्ति स्वयं तत्पर हो जाता है।
सामाजिक परिवर्तनों की समीक्षा करना
समाज में परिवर्तन की प्रक्रिया सतत चलती रहती है। इनमें कुछ परिवर्तनों वांछित होते हैं और कुछ अवांछित। अतः इन परिवर्तनों की समीक्षा आवश्यक हो जाती है ,जिससे यह ज्ञान हो सके कि कौन से सामाजिक परिवर्तन वांछित हैं और कौन से अवांछित ? इसके लिए शिक्षा ही मार्ग दर्शन कराती है और इसे मानकों को सृजन में सहायता करती है ,जिनसे सामाजिक परिवर्तनों की सम्यक समीक्षा करके वांक्षित और अवांक्षित में विभेद किया जा सकता है तथा व्यक्तियों की वांछनीय सामाजिक परिवर्तनों को ग्रहण करने और अवांछनीय को त्यागने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
सामाजिक परिवर्तनों का ज्ञान
समाज में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी शिक्षा द्वारा विभिन्न विधियों से दी जाती है। जब सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी सोच जनता में विकसित हो जाती है ,तो जनता उसे सहर्ष स्वीकृति प्रदान करती है ,किन्तु इन समस्त प्रक्रिया हेतु व्यक्तियों को इसकी जानकारी देना आवश्यक है ,ताकि लोग यह जान सकें कि यह परिवर्तन समाज के हित में हैं अथवा नहीं। शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन का ज्ञान अनेक विधियों से कराया जाता है।
सामाजिक परिवर्तन में बाधाओं का निराकरण
सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक सुधार में अनेक बाधाएँ पुरातन सोच के व्यक्तियों द्वारा उत्पन्न की जाती हैं। वस्तुतः नवीन विचारधारा एवं पुरातन ,विचारधारा में आपसी टकराव के फलस्वरूप सामाजिक परिवर्तन की गति प्रभावित होती है। शिक्षा के प्रसार से व्यक्तियों में विवेक उत्पन्न होता है और उसकी सोच तार्किक हो जाती है। समाज में शिक्षित लोगों की संख्या जितनी अधिक होती है ,बाधक तत्व उतने ही कम होते हैं। समाज में शिक्षित लोग अन्य व्यक्तियों को इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि वे अपनी मनोवृत्ति में सुधार करके सामाजिक परिवर्तन में बाधक तत्वों को दूर करें तथा स्वस्थ एवं विकाशील समाज की स्थापना में सहयोग करें।
सामाजिक परिवर्तन में नेतृत्व
प्रजातांत्रिक भावना एवं विकासशील दृष्टिकोण के द्वारा समाज में लोगों के मध्य प्रचार एवं प्रसार करके वांछनीय सामाजिक परिवर्तन हेतु उनके दृष्टिकोण में नवीनता उत्पन्न की जा सकती है ,किन्तु यह कार्य शिक्षा द्वारा ही संभव है। शिक्षा सामाजिक परिवर्तन में नेतृत्व प्रदान करती है ,साथ ही सामाजिक परिवर्तन में गति भी लाती है। विवेकशील होने के कारण शिक्षित व्यक्ति में सामाजिक बुराइयों से लड़ने की शक्ति होती है। वह स्वयं सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध लड़ने के लिए तत्पर होता है तथा अन्य को सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस प्रकार सामाजिक परिवर्तन में नेतृत्व प्रदान करने के लिए शिक्षा व्यक्तियों को प्रशिक्षित करती है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण है।
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