शिवप्रसाद सिंह एक आंचलिक कथाकार हैं शिवप्रसाद सिंह की कहानियाँ ग्रामांचल के समूचे वातावरण ,वहाँ की सारी स्थितियों से वहां की सारी विषमताओं से वे मात्र
शिवप्रसाद सिंह एक आंचलिक कथाकार हैं
शिवप्रसाद सिंह एक आंचलिक कथाकार हैं। उनकी रचनाओं में ग्रामांचल के समूचे वातावरण ,वहाँ की सारी स्थितियों से वहां की सारी विषमताओं से वे मात्र परिचित ही नहीं हैं ,वे सब उनकी रचनाओं के चेतना में रमी हुई हैं। अतः वे वातावरण चित्रण में बड़े ही प्रवीण हैं - चाहे वह ग्रामीण वातावरण हो या नगरीय वातावरण।
वातावरण कहानी की स्थितियों में ऐसा रम जाता है कि उसका समूचा यथार्थ पूर्ण बारीकी के साथ पूर्ण सूक्ष्मता को समेटे स्वतः उभरता चला जाता है। पाठक इसमें डूबता चला जाता है। कभी कभी तो वही कहानी का मूलाधार भी बन जाता है और कहीं कहीं तो पात्र की त्रासक स्थितियों मानसिक पीडाओं को उभारने में भी वातावरण का ही योग दिखाई देता है।
अधिकांश कहानियाँ तो ग्रामांचलों से ही जुडी हैं। अतः वहाँ की हर उल्टी सीधी ,अच्छी बुरी ,नाना विचित्र स्थितियों के आलोक में स्थानीय वातावरण पूर्णतः उभरकर सामने आ जाता है। कहीं डायन की चर्चा हैं ,कहीं जादू टोने की चर्चा है। रूढ़ियों ,परम्परा ,थोथी मान्यताओं का तो दमघोंटू वातावरण उनकी कहानियों में बड़ा ही सजीव और प्रभावी है।
कहानियों के पात्र
शिवप्रसाद सिंह के पात्र इसी धरती के हैं ,हाड़ - माँस के हैं ,यथार्थ जीवन से उभरे हैं ,सजीव ,गतिशील ,आदर्शोन्मुख ,समाज की कठपुतली तो हैं ही ,साथ ही उनमें जीने की ललक भी हैं और पृष्टभूमि के त्रासक वातावरण में आत्महत्या करने की विवशता भी ,क्योंकि अधिकाँश कहानियाँ ग्रामांचल से सम्बंधित हैं ,उसी प्रकार अधिकांश पात्र भी ग्रामीण परिवेश के ही हैं।कहानीकार ने स्वयं स्पष्ट किया है - मेरी अधिकांश कहानियाँ चरित्र प्रधान हैं क्योंकि चरित्र का कर्म मुझे ज्यादा आकृष्ट करता है।
शिवप्रसाद सिंह के पात्र प्रायः परिस्थितियों से त्रस्त ,सामाजिक विषमताओं से पीड़ित और वैयक्तिक पीड़ा से दबे हैं। नारी जीवन की त्रासदी ,उसके जीवन में व्याप्त नाना प्रकार की विषमताओं ,पीड़ादायक स्थितियाँ ,दमघोंटू वातावरण ,लांछन आदि का अपने समूचे यथार्थ का चित्रण आपकी कहानियों में देखा जा सकता है ,साथ ही कतिपय पात्र तो ऐसे ही हैं जो प्रायः कथा साहित्य में सर्वथा उपेक्षित रहे हैं। जैसे - बिंदा महाराज जो हिजड़ों के समूह के प्रतिनिधि हैं।
कथा विकास एवं चरित्रांकन
चरित्रांकन की आपकी एक विशिष्ट शैली है। एक ओर यथार्थ ,दूसरी ओर आदर्श और तीसरी ओर कुत्सित निकृष्टतम के बीच ही पात्रों का चरित्र झूलता दिखाई देता है ,फिर चाहे वह हत्या आत्महत्या के बीच की शोभा हो ,चाहे बिंदा महाराज हों या फिर नन्ही की नन्हो हो ,आदर्श छोड़ना सहज संभव नहीं ,यथार्थ पिस रहा है और निकृष्टता तोड़ रही है। सभी पात्र स्वजनों द्वारा प्रदत्त त्रास भोगते दिखाई देते हैं। ऐसी स्थिति में जो चरित्र उभरा है ,उसका प्रभावी होना स्वाभाविक है। यह बात दूसरी है कि इसमें थोड़ा सालेखनिय चिंतन का पुट भी समाहित है। पर वह पात्र के व्यतित्व को एक रूप प्रदान करता है और पात्र थोड़ा सा साधारण से हटकर असाधारण हो जाता है। यही आपके चरित्रांकन की विलक्षण विशेषता है।
प्रायः कथा साहित्य में संवादों की भूमिका बड़ी प्रभावी होती है। कथा विकास एवं चरित्रांकन में तो ये सहायक होते ही ही ,साथ ही वातावरण चित्रण में भी प्रभावी भूमिका निर्वाह करते हैं। इनके आधार पर कहानी में विश्वसनीयता ,यथार्थता और सजीवता का समवेश होता है। शिवप्रसाद सिंह एक चिन्तक विचारक और प्राध्यापक हैं। अतः उनके संवादों का विचार बोझिल गंभीर चिन्तकपरक होना स्वाभाविक है ,फिर भी अधिकांश संवाद प्रायः सरल ,भावपूर्ण ,व्यंजक ,पात्रोचित वातावरण और परिस्थिति के अनुरूप ही हैं व सजीव ,भाव व्यंजक भी है। उसमें हास्य - परिहास का भी पुट है ,वे सजीवता और गंभीरता का भी संचार करते हैं। हास्य व्यंग्य की एक झलक देखिये -
को हो बिन्दो रानी हम तुमसे परेम करते हैं।
अरे वाह रे छोकरे वाह ! तू मुझ को परेम करता है ,परेम ही ही ही ही ! "
शिवप्रसाद सिंह जीवन की स्थितियों को चित्रित करते हैं ,उनसे जूझ रहे पात्रों की स्थिति व्यंजित करते हैं और अतथ्य को रेखांकित करते हैं ,जिनके भीतर फँसा व्यक्ति कितनी पीड़ा का अनुभव कर रहा है। सब कुछ सहना ,कुछ न कहना ,हर स्थिति से उस समय तक समझौता करना जहाँ व्यंजित है ,वहीँ उनके पात्रों में मुक्ति कामना भी है ,भले ही त्रासक स्थितियों से मुक्ति पाने का उपाय आत्महत्या ही हो। ये स्थितियाँ ही एक सोच उभारती हैं और प्रेरणा देती है कि यदि समाज जीवन से व्यर्थ में आरोपित ये ढकोसला ,विसंगतियां आदि हटा दी जाएँ तो शायद समाज जीवन स्वर्ग तुल्य बन सकता है। यथार्थ को आदर्श तभी मिल सकता है ,जब सभी चाहें। यही बात शायद वे कहना चाहते हैं।
जीवन का यथार्थ चित्रण
जीवन जगत से उठाये गए ,साधारण कथानक आम पात्रों से सम्बंधित हैं और उनकी दैनिक घटनाओं के ताने बाने से ही बुने गए हैं। आपकी कहानियाँ प्रायः चरित्र प्रधान होती हैं ,फिर भी घटनाओं का उनमें अभाव नहीं है। इसे यो भी कहा जा सकता है कि घटनाओं और स्थितियों में से ही चरित्र का विकास दिखाया गया है। साथ ही छोटे से छोटे ,सूक्ष्म घटनाओं को उभाने की ऐसी विलक्षण योजना कहानी में बनायीं जाती है कि वही कहानी का एक मुख्य अंग बनकर रह जाती है। हर घटना ही महत्वपूर्ण लगने लगती है। इनकी कहानियों की एक अद्भुत विशेषता यह भी है कि कथानक का प्रतीकात्मक और बिम्बात्मकता के द्वारा ही ताना बाना बुना जाता है। परंपरागत कथानक इनकी कहानियों में प्रायः कम ही है। इस सम्बन्ध में कहानीकार का स्पष्ट मत है कि इन कहानियों में रेशमी ताने - बाने को झटके के साथ तोड़ा गया है। स्क्रेच खोजने वालों को थोड़ी परेशानी होगी। रुपश्रयी - रुझाने या कथ्य को बारीकी से लपेटने की कला नहीं है ,बल्कि खुरदुरे ,पर जीवंत यथार्थ के आमने - सामने पाठकों को खड़ा करने की लेखकीय कोशिश है। "
कहीं कहीं कथानक दोहरे भी हैं ,फिर भी प्रायः साधारण ,ग्रामांचल से जुड़े हुए जिनमें व्यावाहारिक जीवन की त्रासदी ,समाज द्वारा उत्पीड़नपरक स्थितियों में जीना ,वैधव्य के पीड़ा ,लांछन ,गरीबी ,विवशता आदि को न जाने कितनी विषम जीवन स्थितियों को समेटा गया है। इसी से कथा संगठन प्रभावी ,सुसंबंध और रोचक बन पड़ा है।
अति सुंदर
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