आधुनिकीकरण किसी भी देश के विकास का अहम पैमाना होता है. लेकिन अंधाधुंध विकास अब विनाश का कारण बनता जा रहा है. इसका प्रभाव केवल महानगरों तक ही सीमित नही
पर्वतीय क्षेत्रों में आधुनिकीकरण बन सकता है विनाश का कारण
आधुनिकीकरण किसी भी देश के विकास का अहम पैमाना होता है. लेकिन अंधाधुंध विकास अब विनाश का कारण बनता जा रहा है. इसका प्रभाव केवल महानगरों तक ही सीमित नहीं है बल्कि पर्वतीय राज्य भी इससे प्रभावित हो रहे हैं. विशाल निर्माण कार्य पर्वतीय राज्यों के भविष्य पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा रहे हैं, साथ ही पहाड़ों की स्थिरता के लिए चिन्ता का विषय भी बन रहे हैं. उत्तराखंड के जोशीमठ में वर्तमान स्थिति हर किसी के दिल को गमगीन कर रही है. जहां जमीन धंसने की घटनाओं ने जोशीमठ के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया है. वास्तविकता देखी जाए तो जोशीमठ भूगर्भीय रूप से अति संवेदनशील जोन-5 के अंतर्गत आता है. इसके बावजूद भी शहर से बड़ी-बड़ी मशीनों को मंगवा कर सुरंगे खोदने और पहाड़ तोडने के लिए ब्लास्ट के कार्य लगातार होते रहे. जलविद्युत परियोजना व एन.टी.पी.सी की तपोवन विष्णुगाड परियोजना के कार्य की मंजूरी ने आग में धी का काम किया. हेलांग-मारवाड़ी बाईपास योजना, चारधाम परियोजना बद्रीनाथ हाइवे, चारधाम रेलवे और टनल परियोजना व चारधाम ऑलवेदर रोड परियोजना के तहत चल रही सड़क चौड़ीकरण जैसे कार्य भू-धसाव के प्रमुख कारण बन गए हैं.
आधुनिकीकरण की होड़ के कारण होने वाली तबाही के दर्द को आज जोशीमठ की जनता झेल रही है. यदि पर्वतीय क्षेत्रों में निर्माण कार्य लगातार होते रहेंगे तो वह दिन दूर नहीं होगा जब समस्त पर्वतीय क्षेत्रों में इस प्रकार की घटनाएं देखने को मिलेंगी. समय है प्रशासन को सचेत होकर कड़े नियम बनाने व उन्हें लागू करने का. इस समय भू-कानून को लागू किया जाना अति आवश्यक हो गया है जिससे बाहर के लोग जमीनों को न खरीद सकें व विशाल निर्माण कार्य रुके. निर्माण कार्यो से केवल यहां के जल, जंगल, जमीन और जलवायु ही नहीं, बल्कि सभ्यता, परम्परा, संस्कृति और लोकभाषा के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है.
आरामदायक जीवन यापन हर किसी का सपना है. ग्रामीण समुदाय का एक बड़ा हिस्सा अपनी न्यूनतम आवश्यकताएं भी पूरी कर पाने में सक्षम नहीं है. वह गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा है. इससे जहां एक ओर पलायन हुआ जिसने राज्य के आर्थिक व सामाजिक ढ़ाचे को बदलकर रख दिया वहीं 70 प्रतिशत लोगों द्वारा अपनी जमीनों को कम दामों पर बेचना शुरू कर दिया है जिससे आर्थिक सहायता तो मिली पर राज्य अपनी सौन्दर्यता को खोने लगा है. राज्य के एक प्रमुख पर्यटन स्थल नैनीताल के भटेलिया गांव के बुज़ुर्ग विपिन चन्द्र बताते हैं कि 30-35 वर्ष पूर्व उनके गांव के बाजार की दुकानें पत्थर की हुआ करती थीं, वही आज इन दुकानों ने लिंटर का रूप ग्रहण कर लिया है और नयी दुकाने, माॅल के साथ विशाल रिसोर्ट का निर्माण प्रगति पर है. बाजार का विकराल रूप नजदीकी ग्रामों के लिए चिंता का विषय बन रहा है क्योंकि लगातार निर्माण कार्य से भू-धसाव का खतरा बढ़ता जा रहा है.
पूर्व में किये जाने वाले निर्माण कार्य पर्यावरण को ध्यान में रख कर किये जाते थे. जिनमें आपदाओं को सहन करने की क्षमता होती थी. चाहे वह सड़क निर्माण हो जो हजारों मजदूरों के द्वारा बिना ब्लास्ट व जेसीबी के किये जाते थे, भवन निर्माण में पत्थर की मोटी दिवार 18 से 24 इंच की होती थी जो भूकम्प को सहन करने की क्षमता रखते थे. वही आधुनिकता की होड से ग्रसित होकर ईंट की मात्र 9 या 4.5 इंच की दीवार पर भवनों का निर्माण कर स्वयं के लिए खतरा उत्पन्न किया जा रहा है. पर्वतीय इलाकों में 90 प्रतिशत पत्थर से निर्मित घर को देख पाना असम्भव हो गया है. कही दिख भी रहे है तो वह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में प्रयोग में लाये जा रहे हैं. पहाड़ियों पर लगातार हो रही ब्लास्टिंग कर कई लिंक रोड़ों व भवनों का निर्माण समुदाय के लिए उपयुक्त है, पर यह ब्लास्टिंग पहाड़ों की नीव को हिला कर भविष्य में भू-स्खलन का कारण बन रहे हैं.
हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि जिन लोगों को जमीन बेच रहे हैं, उन्हें हमारे प्राकृतिक सौंदर्यता से किसी भी प्रकार का कोई लगाव नहीं होता है. वह केवल इन निर्माण से अपनी आय सृजन कर रहे हैं. यदि यह सिलसिला जारी रहा तो आने वाले 10 से 15 वर्षों में हो सकता है कि ग्रामीण परिवेश पूर्ण रूप से शहरी छवी में समा जाय. यह विकास की परिभाषा में तो फिट बैठ जायेगा परंतु विनाश का बहुत बड़ा कारण बन जायेगा. ऐसे में मीडिया व अन्य माध्यमों से लोगों व प्रशासन को विशाल निर्माणों के द्वारा होने वाले नुकसानों के प्रति सचेत करने की आवश्यकता है. इतना ही नहीं, हम सबका दायित्व है कि यदि प्रशासन के सक्रिय व भू-कानून के लागू न होने पर भी हमें अपनी जमीन को बेचना नहीं है. इन जमीनों पर स्वयं के रोजगार विकसित करने के प्रयास करने होगें जिससे हम अपनी और आने वाली पीढ़ी के लिए आर्थिक सुदृढ़ीकरण के सकारात्मक प्रयास को शुरू कर सकें, क्योंकि अंधाधुंध आधुनिकीकरण कुछ देर के लिए विकास का माध्यम तो बन सकता है लेकिन आने वाली पीढ़ी के लिए यही विनाश का कारण बन जाएगा. (चरखा फीचर)
- नरेन्द्र सिंह बिष्ट
हल्द्वानी, नैनीताल
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