बारिश पता नही कब की थम गई थी । वह गरीब किसान पता नही कब का जा चूका था ।हम सब जल्दी से बाहर निकले । मैने अपनी कमीज देखी। एक दम सफ़ेद । शायद उसपर कोई दाग़
दाग
मौसम बाल मन सा परिवर्तित हो गया । अभी – अभी तो धुप का साम्राज्य था , कहाँ आसमान मेंबादलों ने डेरा डाल दिया । लू का सर्द पवन नेतख्ता पलट कर दिया ।मुझे इस की उम्मीद न थी । बिन बुलाया मेहमान ।मैं सफ़ेद कमीज पहन कर नयी मोटर कार से दफ्तर जा रहा था । सरकारी दफ्तर मे नयी नोकरी का पहला दिन था ।जरूर काली बिल्ली ने राह काट दी होगी । अन्यथा यह संभव न था । या दिन ही अशुभ था ।मैने मोटर कार की रफ़्तार बड़ा दी । वर्षा भी आज तैयारी के साथ आई थी ।मैंने आश्रय के लिए निगाह दौड़ाई । दूर एक पताका नज़र आई । मंदिर था ।
सड़क किनारे वृक्ष बहुत थे , परंतु कमीज पर दाग़ लगने का भय था। सो मंदिर ही गंतव्य बनाया गया ।मैंने मंदिर के द्वार पर गाड़ी रोक दी । द्वार बंद था । मंदिर प्रांगण तो न था । शायदकिसी ने उसे चबा लिया था । गुबंद बस था । छोटा सा ।मुझे एकांत का विश्वास था ,परन्तु यहाँ तो मेरी जाति के सफ़ेद कमीज वाला झुण्ड सिर छुपाए बैठा था । मैं उनके साथ बैठ गया।वर्षा बालक सी रोने लगी। बिछडन के आँसुओ की भाँति बुँदे गिरने लगी । हवा सहयोग को आ गई ।सर्द हवा चलने लगी । हम सबो को महसूस हुआ की दरवाजा बंद कर लिया जाए । गर्भगृह में ज्यादा जगह न थी । परंतु आराम था वहां ।अपने काम की चर्चाए शरू हुई । मंदिर में ज्ञान और बुद्धि के स्थान पर समृदि की बातेंहोने लगी । मैं भी इसमें बढ़ – चढ़ कर हिस्सा ले रहा था ।दरवाजे पर हुई अनचाही दस्तक ने वार्तालाप कीश्रृंखला खंडित कर दी । अब दरवाजा कौन खोलेगा ? हम एक दूजे को ताकने लगे । उठना कोई नही चाह रहा था । इस आराम की मुद्रा को कौन त्यागेगा ? दरवाज़े पर पुनः दस्तक हुई । हम सफ़ेद कमीज वालो में कौन छोटा साबित होना चाहेगा ?एक कच्ची उम्र का , मंदबुद्धि , सफ़ेद पोशाक धारी उठ खड़ा हुआ । हम अपनी विजय पर मुस्कुराने लगे । चलो ! एक तो है कमअक्ल । द्वार खोला तो आँखो पर विश्वास न हुआ । वर्षा अपने चरम पर थी । मंदिर प्रांगण जलमग्न हो चूका था । वायु भयावह रूप दे रही थी । अतिवृष्टि कहना होगा ।मालिक , मुझे भी शरण दे दीजिए ।सामने हाथ जोड़े एक वृद्ध खड़ा था । अब तक मेरीनज़र में नही आया था ।शरीर में माँस का कतरा न था । रगों में बह रहा लहू नज़र आ रहा था । अधनंगा शरीर । सिर परगमछा बाँध रखा था । पैर घुटनो तक कीचड़ से सन थे । हाथो में हंसिया और रस्सी थी । चेहरे काभाव , भावविभोर करने वाला था ।हाथो को जोड़े हुए उसने दोबारा कहा – बड़ी कृपा होगी बाबूजी । इस वर्षा से सिर छुपाने दीजिये ।सफ़ेद कमीज धारी ने हमारी तरफ देखा । हम में से कोई नही चाहता था की वह अंदर आए । शायद कोई एक – दो थे , जिन्हें अपनी कमीज गन्दी करवाने का शोक था ।न कहने का पाप मंदिर के पंडित ने अपने सिर लेलिया । मुझे बड़ी प्रसन्ता हुई । कम से कम कमीज पर दाग़ तो नही लगेगा । नही तो पहले दिन ही ….मालिक आपके कदमो के पास बैठ जाऊंगा । बड़ी तेज वर्षा हो रही है । प्राण ले लेगी । थोड़ी देर रुकुंगा । फिर चला जाऊंगा । उसके हाथ अभी भी जुड़े हुए थे ।पूरा शरीर ठिठुर रहा था । पैर जलमग्न थे। ऊपर से नंगी काया । बड़ी कष्टदयाक स्थिति थी ।कुछ ने उसे अंदर आने को बोल दिया । कुछ मना करने लगे । आपस में बहस होने लगी । वह बाहर कांप रहा था , अंदर चर्चा चल रही थी ।
मेरा ध्यान उस पर कम चर्चा पर ज्यादा था । मुझे डर था कही कमीज में दाग़ न लग जाए । इसलिए पंडित का साथ दे रहा था । कोई आधे घंटे बहस हुई । ईश्वर के यहाँ सब बराबर है। इस बात ने फैसला कर दिया । मैं मुकदमा हार गया था । दाग़ लगने का डर फिर आ गया ।हमने दरवाजे की ओर देखा । वहाँ कोई नही था । बारिश पता नही कब की थम गई थी । वह गरीब किसान पता नही कब का जा चूका था ।हम सब जल्दी से बाहर निकले । मैने अपनी कमीज देखी। एक दम सफ़ेद । शायद उसपर कोई दाग़ न था ।
- गोविन्द सिंह वर्मा
भोपाल ,9691252463
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