डिजिटल साक्षर होना बहुत ज़रूरी है. इससे किशोरियां आत्मनिर्भर बनती हैं. शहरों में महिलाएं और किशोरियां आत्मनिर्भर हैं, लेकिन हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में
कंप्यूटर की पहुंच से दूर ग्रामीण किशोरियां
वर्तमान दौर तकनीक का दौर कहलाता है. जिसमें कंप्यूटर की सबसे बड़ी भूमिका है. बिना कंप्यूटर के आधुनिक दुनिया के बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती है. दुनिया में यह विशाल परिवर्तन लाने तथा दुनिया को टेक्नोलॉजी की नयी सीढ़ियों पर ले जाने के लिए कंप्यूटर का योगदान बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. आज कंप्यूटर ने हर कार्य को आसान कर दिया है, मगर देश में आज भी बहुत से ऐसे राज्य हैं जहां कंप्यूटर की शिक्षा किशोरियों को नहीं मिल पा रही है. विशेषकर देश के ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्थिति बहुत विकट है.
इन्हीं में एक पहाड़ी राज्य उत्तराखंड का ग्रामीण क्षेत्र भी है. राज्य के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक का सलानी गांव इसका एक उदाहरण है. जहां स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाली किशोरियों के लिए भी कंप्यूटर की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. जिस वजह से किशोरियां अपनी पढ़ाई और नौकरी के फार्म भी नहीं भर पाती हैं. उन्हें फार्म भरने के लिए गांव से 27 किमी दूर जाना पड़ता है. इस संबंध में गांव की किशोरी कुमारी ममता कहती है कि हमारे गांव में कंप्यूटर सेंटर न होने के कारण हमें अपनी पढ़ाई के विषय के बारे में नवीनतम जानकारियां नहीं हैं. अगर हमें पढ़ाई के अलावा किसी अन्य विषय के बारे में भी जानकारी प्राप्त करनी हो तो हम नहीं कर पाते हैं क्योंकि न तो यहां पर इंटरनेट जैसी सुविधा है और न ही हमें उसे चलाना आता है. कंप्यूटर की जानकारी के अभाव के कारण हमारी नौकर और पढ़ाई के फार्म भरने की तिथि भी निकल जाती है. अंत में हमारे पास कोई विकल्प नहीं रहता है, बस 12वीं पास करने के बाद हमारे घर वाले हमारी शादी कर देते हैं.
कंप्यूटर ज्ञान के अभाव से परेशान गांव की एक अन्य किशोरी कुमारी आशा दोसाद का कहना है कि मुझे 2 साल हो गए हैं 12वीं पास किये हुए, मैं घर पर बैठी हुई हूं. मेरे पास आगे अपना भविष्य देखने के लिए कुछ भी नहीं है. मुझे भी अपनी जिंदगी में कुछ बनना है मगर कोई रास्ता नज़र नहीं आता है. कंप्यूटर एक ऐसा साधन है जिसके जरिए आप बहुत सा ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं. पर हमारे पास इस ज्ञान को प्राप्त करने का कोई साधन नहीं है. चाह कर भी हम अपनी जिंदगी में कुछ नहीं कर पाए हैं. वहीं गांव में कंप्यूटर सेंटर न होने से किशोरियों के अभिभावक भी परेशान हैं. संगीता देवी का कहना है कि जब हमारे गांव का ही विकास ही नहीं हो पा रहा है तो किशोरियों का सर्वांगीण विकास कहां से होगा? हमारी बेटियों को कोई फार्म भरना हो तो उन्हे गांव से 27 किमी दूर जाना पड़ता है. आज सरकार ने हर गांव में 12वीं तक के स्कूल बना दिए हैं इसीलिए तो मां बाप लड़कियों को पढ़ा देते हैं. लेकिन गांव में कोई भी लड़की कंप्यूटर की शिक्षा लेने के लिए बाहर नहीं जा पाती है. अगर हमारे गांव में ही कंप्यूटर सेंटर होता तो सभी को लाभ होता.
हालांकि सलानी गांव से 10 किमी दूर जखेड़ा गांव में दिल्ली स्थित चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन द्वारा दिशा प्रोजेक्ट के तहत डिजिटल लाइब्रेरी सेंटर खोला गया है. जहां किशोरियां कंप्यूटर की शिक्षा प्राप्त कर रही हैं. सलानी गांव की कई किशोरियां भी वहां जाकर कंप्यूटर की ट्रेनिंग ले रही है. इस सेंटर का नाम 'दिशा ग्रह' है. जानकी बताती है कि 'मैं 15 जनवरी से इस दिशा ग्रह डिजिटल लाइब्रेरी में कंप्यूटर सीखने जाती हूं. मुझे बहुत अच्छा लगता है जब मैंने पहली बार लैपटॉप देखा. अब हम इसी लैपटॉप पर टाइपिंग और बहुत सी चीजें सीख रहे हैं. वही दूसरी ओर कुमारी योगिता का कहना है कि 'मैं दिशा प्रोजेक्ट के साथ लगभग 9 महीने से जुड़ी हुई हूं. फिर मुझे पता चला कि हमारे नजदीकी गांव जखेड़ा में चरखा संस्था ने एक डिजिटल लाइब्रेरी खोली है. मैं वहां कंप्यूटर सीखने जाती हूं. हम लोग हर रविवार को वहां पर कंप्यूटर सीखने जाते हैं.
इस संबंध में चरखा की डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर नीलम ग्रैंडी का कहना है कि 'वर्तमान में किशोरियों को डिजिटल साक्षर होना बहुत ज़रूरी है. इससे किशोरियां आत्मनिर्भर बनती हैं. शहरों में महिलाएं और किशोरियां आत्मनिर्भर हैं, लेकिन हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को ऐसे मौके बहुत कम मिलते हैं. शिक्षा का अभाव है इसलिए अपने ऑनलाइन काम करवाने के लिए उन्हें साइबर कैफे जाना पड़ता है. वहां जाने की जरुरत न पड़े इसके लिए उन्हें कंप्यूटर का ज्ञान बहुत ज़रूरी है. चरखा संस्था द्वारा चलाये जा रहे दिशा प्रोजेक्ट के साथ बड़ी संख्या में किशोरियां जुड़ी हैं. शुरू शुरू में इस कंप्यूटर सेंटर से 20 से अधिक किशोरियां जुड़ी थीं. धीरे-धीरे इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. यह इन किशोरियों का सौभाग्य है कि इनके लिए ऐसे दूरस्थ्य ग्रामीण क्षेत्रों में चरखा संस्था के द्वारा कंप्यूटर सेंटर खोला गया है, जिससे इनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा.' नीलम बताती हैं कि 'इससे किशोरियों के अभिभावकों का भी मनोबल बढ़ा है और वह उन्हें सेंटर पर आने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.' बहरहाल, चरखा के प्रयास से सलानी और जखेड़ा गांवों की किशोरियां कंप्यूटर से तो जुड़ गई हैं लेकिन अभी भी देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां किशोरियां इस आधुनिक और महत्वपूर्ण उपकरण से दूर हैं. जिसके लिए सरकार और प्रशासन को प्रयास करने की ज़रूरत है. (चरखा फीचर)
- जानकी दोसाद
सैलानी, गरुड़ बागेश्वर, उत्तराखंड
आधुनिक व्यवसाय डिजिटल उपकरणों के बिना नहीं चल सकता, लेकिन सभी उद्यमी प्रासंगिक विशेषज्ञों के कर्मचारियों को बनाए रखने का जोखिम नहीं उठा सकते।
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