गांव के विद्यालय में अध्यापकों की उचित व्यवस्था के लिए एप्लीकेशन लगाई है. लेकिन टीचर आते हैं और महीने भर के अंदर अपना ट्रांसफर करवा लेते हैं. अभी बड़ी
स्कूल है मगर शिक्षक नहीं
स्कूल एक ऐसी जगह है, जहां पर बच्चों का सामाजिक विकास तेजी से होता है. हमउम्र बच्चों के साथ वे घुलमिलकर चीजों को बेहतर तरीके से समझते हैं. स्कूल में बच्चों के सीखने की क्षमता तेज गति से बढ़ जाती है. वह आसपास के माहौल से प्रभावित होते हैं. यह वह जगह होती है जहां हर रोज उन्हें कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है. इसलिए सरकार स्कूलों में अधिक से अधिक प्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती करती है. लेकिन देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां शिक्षकों की काफी कमी है. विशेषकर देश के ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्थिति बहुत अधिक देखने को मिलती है. कई ऐसे स्कूल है जहां कई वर्षों से शिक्षकों के दर्जनों पद खाली हैं और एक अथवा दो शिक्षकों के भरोसे पूरा स्कूल चल रहा है. उन शिक्षकों पर पढ़ाने के साथ साथ ऑफिस के कामों को भी समय पर पूरा करने की ज़िम्मेदारी होती है. ऐसे में वह भला किस तरह पढ़ाते होंगे, इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है.
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के कई ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे सरकारी स्कूलों का यही हाल है. राज्य के बागेश्वर जिला के गरुड़ ब्लॉक से 27 किमी की दूर लमचूला गांव स्थित राजकीय जूनियर हाई स्कूल इसका उदाहरण है. जहां पर कक्षा 6 से लेकर 10वी तक को पढ़ाने के लिए मात्र 2 शिक्षक मौजूद हैं. स्कूल में बच्चों की कुल संख्या 80 है, जिसमें से 40 लड़के और 40 लड़कियां हैं. इन्हीं दोनों शिक्षकों पर बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के साथ साथ समय पर ऑफिस के काम को पूरा करने की भी ज़िम्मेदारी है. ऐसे में यहां शिक्षा का स्तर कैसा होगा? इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. शिक्षकों की कमी झेल रही स्कूल की एक छात्रा कुमारी गीत का कहना है कि इस स्कूल में पिछले कई वर्षों से सिर्फ दो ही टीचर हैं और वही हमें सभी विषय पढ़ाते हैं. मात्र दो टीचर एक साथ सभी कक्षाओं को संभाल नहीं सकते हैं. इसका असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है.
स्कूल में टीचर न होने का दर्द बयां करते हुए पूर्व छात्रा कुमारी माहेश्वरी कहती है कि 'मैंने दसवीं तक इसी विद्यालय में पढ़ाई की है, उस समय भी यहां पर दो ही टीचर थे. हम लोग हर विषय नहीं पढ़ पाते थे. ऐसे में हमें विज्ञान और सामाजिक विज्ञान विषय को समझने में बहुत कठिनाई होती थी.' वह बताती है कि 'मेरी हाई स्कूल में सेकंड डिवीजन आई थी. अगर पूर्ण रूप से बोर्ड की परीक्षा के लिए स्कूल के द्वारा हमारी तैयारी करवाई गई होती तो शायद हम बहुत ही अच्छे नंबरों से पास हो सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि सिर्फ दो टीचर ही पूरे स्कूल को पढ़ाते हैं. ऐसे में वह हमें बोर्ड परीक्षा की तैयारी कैसे करा सकते हैं? गांव के लोगों ने शिक्षा विभाग में धरने भी दिए कि इस स्कूल में कम से कम 5 टीचर होने चाहिए, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ. जिसका असर हमारी पढ़ाई और परिणाम पर होता है.' कुमारी कविता और कुमारी रूपा जो अभी कक्षा 10 की छात्रा हैं, उनका कहना है कि इस वक्त हमारी बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं. स्कूल में विषयवार शिक्षक के नहीं होने से हमें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. स्कूल में सिर्फ दो ही टीचर्स हैं, एक बीमार हो जाए तो सिर्फ एक ही टीचर आते हैं, ऐसे में हम उतना पढ़ नहीं पाते जितना हमें पढ़ना चाहिए, क्योंकि कोर्स ही पूरा नहीं होता है. हम इतने नंबर नहीं ला पाते हैं जिससे भविष्य में हमें किसी अच्छे कॉलेज में प्रवेश मिल जाए क्योंकि अगर परसेंटेज अच्छे होते हैं तो आगे का भविष्य अच्छा होगा.
बच्चो के अभिभावक भी स्कूल में टीचर न होने से परेशान हैं. एक अभिभावक पुष्कर राम का कहना है कि पिछले 6 वर्ष से गांव का विद्यालय सिर्फ दो अध्यापकों के सहारे चल रहा है. न तो बच्चे अच्छे से पढ़ाई कर पाते हैं और न ही स्कूल में व्यवस्था सुचारू रूप से चल पा रही है. असली मुश्किल तो तब होती है जब बोर्ड की परीक्षा के लिए बच्चे बैठे हैं और उनके स्लेबस तक पूरे नहीं हुए होते हैं. हम जैसे-तैसे करके अपने बच्चों को पढ़ाते हैं. हमारे गांव में कोई इतना पढ़ा लिखा भी नहीं है कि हम अपने बच्चों को ट्यूशन दे सके. हम लोगों ने कई बार अपने गांव में आने वाले अधिकारियों से भी बात की और उनसे सभी विषयों के शिक्षकों की तैनाती का अनुरोध भी किया, लेकिन आज तक कोई शिक्षक नहीं आया है.
स्कूल के शिक्षक प्रकाश कुमार का कहना है कि "मैं पिछले 7 सैलून से यहां कार्यरत हूं और जब से इस स्कूल में कार्य कर रहा हूं तब से सिर्फ हम दो ही टीचर्स यहां पर उपस्थित हैं. हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाता है इतने सारे बच्चों को हैंडल करना और स्कूल में अनुशासन बनाये रखना." प्रकाश कुमार कहते हैं कि "वैसे तो हम दोनों मिलकर ही सारे विषय हर क्लास में बच्चों को पढ़ाते हैं लेकिन कभी अगर एक बीमार हो जाए या कोई जरूरी काम हो जाए तो अकेले सभी क्लास को एक शिक्षक संभाल नहीं सकता है. हमारे स्कूल में प्रिंसिपल भी नहीं हैं. मैं ही प्रिंसिपल का कार्यभार भी संभाल रहा हूं. बच्चों की पढ़ाई उनके कोर्स पूरे कराना, ऑफिस के काम देखना और फिर विभाग के मीटिंग भी अटेंड करना, यह सब हमारे लिए बहुत मुश्किल है. हमारी स्थिति आज ऐसी गई है कि इस स्कूल के हम ही टीचर हैं, हम ही प्रिंसिपल हैं, हम ही चौकीदार हैं और हम ही क्लर्क है."
इस संबंध में गांव के प्रधान पदम राम का कहना है कि "मैंने हर वो मुनासिब कोशिश की जो एक ग्राम प्रधान को अपने स्तर पर करनी चाहिए. मैंने ब्लॉक से लेकर जिला शिक्षा विभाग तक जाकर अपने गांव के विद्यालय में अध्यापकों की उचित व्यवस्था के लिए एप्लीकेशन लगाई है. लेकिन टीचर आते हैं और महीने भर के अंदर अपना ट्रांसफर करवा लेते हैं. अभी बड़ी मुश्किल से हमारे गांव में सिर्फ दो अध्यापक हैं. जिसकी वजह से बच्चों के भविष्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है." बहरहाल, लमचूला गांव के इस स्कूल में शिक्षकों की कमी का टोटका कैसे ख़त्म होगा इसका फैसला शिक्षा विभाग को करनी है. यदि फैसला जल्द नहीं हुआ तो आने वाले समय में इसका असर रिज़ल्ट में दिखेगा, जो यक़ीनन सुखद नहीं होगा. (चरखा फीचर)
- मोना खुलजुनिया,
कपकोट, बागेश्वर उत्तराखंड
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