मशरिकी एक विवादास्पद व्यक्ति रहे हैं। कुछ लोग उन्हें एक धार्मिक कार्यकर्ता, एक क्रांतिकारी और एक अराजकतावादी के रूप में चित्रित करते हैं। जबकि कुछ लोग
इनायतुल्लाह खान मशरिकी
राष्ट्रीय आंदोलन के कुछ पक्ष अभी सामने आने बाकी है।उनमें से एक हैं इनायतुल्लाह खान मशरिकी (1888 -1963), जिन्हें अल्लामा मशरिकी की मानद उपाधि से भी जाना जाता है। वे एक गणितज्ञ, तर्कशास्त्री, राजनीतिक सिद्धांतकार, इस्लामी विद्वान और खाकसार आंदोलन के संस्थापक थे। इनायतुल्लाह खान का जन्म 25 अगस्त 1888 अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, क्राइस्ट कॉलेज, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय यू के में शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने 1930 में खाकसार आंदोलन चलाया था जिसका मक़सद अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी पाना था। वे भारत विभाजन के सख़्त विरोधी थे। हिन्दू मुस्लिम एकता के बड़े समर्थक थे। खाकसार आंदोलन का उद्देश्य आज़ादी और पूरे देश के लोगों को ख़ुशहाल करना था।
कैंब्रिज में उस समय उन्हें चार अलग अलग विषयों में आनर्स सम्मान प्राप्त करने वाला किसी भी राष्ट्रीयता का पहला व्यक्ति माना जाता था।1914 में मशरीकी को कॉन्वोकेशन में स्वर्ण पदक के साथ गणित में डीफिल की डिग्री दी गयी थी।
1924 में, 36 वर्ष की आयु में, मशरिकी ने अपनी पुस्तक 'तज़किरा' का पहला खंड पूरा किया था।। यह विज्ञान के प्रकाश में कुरान पर एक टिप्पणी है। इसे 1925 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था पर शर्त यह थी कि इसका किसी यूरोपीय भाषा में अनुवाद किया जाय। मशरिकी ने इस शर्त को मानने से इंकार कर दिया था और इस तरह उन्हें नोबेल प्राइज नहीं मिल पाया था।
अल्लामा एक ईश्वरवादी विकासवादी थे जो डार्विन के कुछ विचारों को स्वीकार करते थे । उनका मानना था कि धर्मों का ज्ञान अनिवार्य रूप से मानव जाति के सामूहिक विकास का ज्ञान है; सभी 'भविष्य वक्ता' मानवजाति को एक करने आए थे, उसे बाधित करने के लिए नहीं। सभी धर्मों का मूल नियम संपूर्ण मानवता के एकीकरण और संयोजन का नियम है।
मशरिकी और उनके ख़ाकसार आंदोलन ने भारत के विभाजन का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि "वर्तमान परिस्थितियों में अंतिम उपाय यह है कि सभी इस साजिश के खिलाफ उठ खड़े हों। एक आम हिंदू-मुस्लिम क्रांति होने दें। ... यह समय है कि हमें सत्य को बनाए रखने के लिए बलिदान देना चाहिए।" मशरीकी ने भारत के विभाजन का विरोध किया क्योंकि उन्हें लगता था कि यदि मुसलमान और हिंदू सदियों से भारत में बड़े पैमाने पर शांतिपूर्वक एक साथ रहते थे, तो वे एक स्वतंत्र और एकजुट भारत में भी ऐसा कर सकते थे।
उन्होंने तर्क दिया था कि धार्मिक आधार पर भारत का विभाजन सीमा के दोनों ओर कट्टरवाद और उग्रवाद को जन्म देगा। मशरीकी कहते थे कि "मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र पहले से ही मुस्लिम शासन के अधीन थे, इसलिए यदि कोई मुसलमान इन क्षेत्रों में जाना चाहता था, तो वे देश को विभाजित किए बिना ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है।" अल्लामा के अनुसार , अलगाववादी नेता "सत्ता के भूखे थे" और ब्रिटिश एजेंडे को पूरा करने के लिए अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए मुसलमानों को गुमराह कर रहे हैं।"
समय-समय पर अल्लामा पर आरोप भी लगते रहे हैं और केस भी चलते रहे हैं। 20 जुलाई 1943 को, मोहम्मद अली जिन्ना पर रफीक साबिर द्वारा हत्या का प्रयास किया गया था, जिसे खाकसार कार्यकर्ता माना गया था। मशरिकी द्वारा हमले की निंदा की थी और किसी भी संलिप्तता से इनकार किया गया था। बाद में, बंबई उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में हमले और खाकसरों के बीच किसी भी संबंध को खारिज कर दिया था।
पाकिस्तान में, मशरीकी को कम से कम चार बार कैद किया गया था।1958 में रिपब्लिकन नेता ख़ान अब्दुल जब्बार ख़ान (डॉ. ख़ान साहब के नाम से लोकप्रिय) की हत्या में कथित रूप से शामिल होने के लिए और, 1962 में राष्ट्रपति अयूब की सरकार को गिराने के प्रयास के संदेह में। हालांकि, कोई भी आरोप साबित नहीं हुआ था और उन्हें हर मामले में बरी कर दिया गया था।
मशरिकी एक विवादास्पद व्यक्ति रहे हैं। कुछ लोग उन्हें एक धार्मिक कार्यकर्ता, एक क्रांतिकारी और एक अराजकतावादी के रूप में चित्रित करते हैं। जबकि कुछ लोग उन्हें एक दूरदर्शी, एक सुधारक, एक नेता और एक वैज्ञानिक-दार्शनिक मानते हैं।
27 अगस्त 1963 को लाहौर के मेयो अस्पताल में मशरिकी का निधन हुआ था।
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