बाबा के मुंह से स्वर्ग के अपने जीवन का विवरण जान कर मै तो स्वर्ग में जाने के लिये मचल गया और भागते भागते सीधा कब्रस्तान पंहुचा | वहां कब्रों कि लाइन द
पतियों का स्वर्ग
आखिरकर बहुत मेहनत मशक्कत , काला सफ़ेद और सच झूठ करने के बाद मै पत्नी को यह विश्वास दिलाने में सफ़ल हो ही गया कि तुम ही मेरा स्वर्ग हो , तुम मिल गई अब मेरे को किसी स्वर्ग की दरकार नहीं है | जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है , अक्सर मै यह कल्पना कर थरथरा जाता हूँ कि अगर यही औरत मेरे को स्वर्ग में भी मिल गई तो मेरा क्या होगा ? ये तो मेरे स्वर्ग को नर्क कर देगी और मै वहां यही गीत गाते हुए भटकता रहूगा – मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेगे ?
अपने छात्र जीवन में स्कूल का ऐसा कोई कानून नहीं था जो मैंने न तोड़ा हो | बस हेड़ मास्टर साहब का ही पियरेड ऐसा था जिसमें मुंह बंद किये बैठा रहता था | आज मै यही महसूस करता हूँ मानो मेरी शादी हेडमास्टर से ही हो गई है | अब पूरा जीवन ही हेडमास्टर साहब का पियरेड लगता है जिसमें मै मुंह बंद किये बैठे रहता हूँ | अब हर बात पर एक उपाधि मेरे नाम के साथ चस्पा कर दी जाती है | सुबह सो कर देर से उठो तो मनहूस , मुंह धोये बिना चाय पी ली तो गंदे , टावेल लपेट कर आंगन में आ गये तो बेशर्म , आफ़िस देर से जाने का सोचे तो कामचोर , ताश खेलो तो जुआड़ी , शतरंज खेलो तो निकम्मे , शाम को ज़रा देर किसी पान दूकान पर खड़े हो जाये तो बदमाश , पतंग उड़ाने छत पर चले जाये तो लफंगे , रात को देर से घर आये तो आवारा और चुपचाप नीचे मुंह किये हुए बैठे रहे तो बेवकूफ़ | पति का जीवन भी एक आग का दरिया है और बहते हुए जाना है | ये चंद उपमाये पति के हंसते गाते जीवन को नर्क बनाने के लिये काफ़ी होती है |
अब आप ही बताईये अपन दोनों पतियों का जीवन भी कोई जीवन है ? मै तो कहता हूँ काला पानी कि सज़ा भी इस जीवन से आसान ही होगी | खैर ज़िंदगी जैसी गुज़र रही है गुज़र रही है अब एक पति के हाथ में कुछ नहीं रहा वह तो अब बेचारा होकर रह गया है , हालत यह हो गई है कि जब एक पति सड़क पर चलता है तो लोग उसे हमदर्दी कि नज़र से देखते है , उसकी हालत पर तरस खाते है और उसके बेहतर अंजाम कि दुआ मांगते है कि अल्लाह अब तो इस बेचारे को उठा ले |
खैर जीवन जैसे बीत रहा है सो बीत रहा है लेकिन कभी कभी यह भी विचार आता है कि धरती का जीवन तो यह है अब तो स्वर्ग जाना पक्का है क्योकि एक इंसान को दो बार नर्क नहीं मिलता है | अब बार बार एक ही सवाल दिमाग़ में घूमता है कि वहाँ ऐसा क्या होगा जिससे स्वर्ग स्वर्ग कहलाया ? इस सवाल के जवाब में भटकते भटकते मेरे को एक बहुत पहुचे हुए बाबा का पता मिला कि इन्हें स्वर्ग नर्क की पूरी जानकारी है | बाबा भी पहले पति हुआ करते थे , जब इनकी पत्नी ने भी इनकी अक्ल ठिकाने लगा दी तब अर्द्धरात्रि इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और ये दबे पांव चलते हुए धीरे से घर का दरवाज़ा खोले और निकल लिये और कालांतर में एक पहुचे हुए बाबा हुए , आज इनकी कीर्ति दूर दूर तक फैली हुई है और लोग दूर दूर से बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करने आते है | बाबा कि इस सफ़लता का श्रेय भी उनकी पत्नी स्वयं लेती है कि मै ऐसी न होती तो आज वो वैसे न होते |
बाबा ने मेरी पूरी दास्तान सुनने के बाद कहा – मै स्वर्ग में तुम्हारा जीवन साफ़ साफ़ देख रहा हूँ और उन्होंने मेरे को बहुत सारी बाते बताई जिसे सुन कर मै तो मारे ख़ुशी के उछलने लगा | बाबा ने कहा ये बीवी वाली पाबंदिया तो इस पति वाली ज़िन्दगी तक ही है | स्वर्ग पत्नी के खतरों से पूरी तरह सुरक्षित है , औरत की खिचखिच और किचकिच स्वर्ग पर पूर्णतया प्रतिबंधित है , पृथ्वी वाली पत्नी स्वर्ग में दासी रहेगी | बाबा कि बात सुन कर तो मेरी आंखो में से ख़ुशी के आंसू झलक पड़े और मै सोचने लगा कि कब मरू और स्वर्ग का जीवन आरंभ हो | अगर स्वर्ग के लिये मरना अनिवार्य नहीं होता तो मै कब से स्वर्ग की नागरिकता ले लिया होता | बाबा ने मेरे को बताया कि –
स्वर्ग में मै सुबह दस ग्यारह बजे तक भी सोता रहूगा तो कोई मेरी चादर खीच कर नहीं उठायेगा | मेरी मर्ज़ी मै वहां दिन के ग्यारह बजे तक सोता रहूं या दिन भर सोता रहूं या फिर कई दिनों तक सोता रहूं कोई चै पे नहीं करेगा | बिना मुंह धोये चाय पीना तो छोड़ो अगर मै रज़ाई के अंदर ही चाय पीने की इच्छा करुगा तो कम पानी ज़्यादा दूध की गरमा गरम चाय ख़ुद केतली में से बल खाती निकल कर खूबसूरत कप में भर जायेगी और अगले ही पल चाय का कप मेरी रज़ाई में होगा | स्वर्ग में मै कोई भी काम करने पर मजबूर नहीं होगा बल्कि काम मजबूर होगे मेरे काम आने के लिये | वहां मेरे लिये कोई कायदा क़ानून मानने कि पाबंदी नहीं होगी बल्कि हर कायदा क़ानून मेरा पाबंद होगा | पृथ्वी पर तो दिसंबर जनवरी की ठंड में भी सुबह सुबह नहाने के लिये बाथरूम में धकेल दिया जाता था लेकिन स्वर्ग में न तो नहाने का दबाव होगा न स्वर्ग के केलेंडर में दिसंबर जनवरी होगे | वहाँ चौबीसों घंटे स्वर्गीय ख़ुद को नहाया हुआ सा अनुभव करेगा | स्वर्ग का सब से बड़ा और मुख्य आकर्षण यह होगा कि पृथ्वी वाली पत्नी स्वर्ग में सेविका के रूप में मौजूद रहेगी और हर दो चार दिन में कहा करेगी – कितने दिन हो गये है आप दोस्तों के साथ ताश खेलने नहीं गये है आज तो जाइये कुछ देर दोस्तों के साथ गप शप ही मार आइये | मेरे को शतरंज खेलने का मन होगा तो यही सेविका टेबल कुर्सी और मोहरे जमा कर कहेगी आ जाइये बिसात तैयार है और मै थोड़ी देर बाद उसे ही आवाज़ देकर कहूगा – चाय और भजिये तो भेजो |
बाबा के मुंह से स्वर्ग के अपने जीवन का विवरण जान कर मै तो स्वर्ग में जाने के लिये मचल गया और भागते भागते सीधा कब्रस्तान पंहुचा | वहां कब्रों कि लाइन देख कर उसमें सोने वालो कि किस्मत से इर्ष्या होने लगी कि ये सब स्वर्ग में मज़े कर रहे होगे , ख़ुदा जाने मेरा भाग्य कब जागेगा जब यहाँ सोना नसीब होगा |
मूल रचनाकार – शौकत थानवी
उर्दू से अनुवाद – अखतर अली
(शौकत थानवी जन्म 02 फ़रवरी 1904 , मृत्यु 4 मई 1963 लाहौर )
- अखतर अली
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