अमीर खुसरो के काव्य में लोक संस्कृति अमीर खुसरो की लोकप्रियता का आधार अमीर खुसरो के काव्य की मूल संवेदना साहित्य की दुनिया में मुख्य योगदान खुसरो
अमीर खुसरो के काव्य में लोक संस्कृति
अमीर खुसरो ने अपने काव्य में भारतवर्ष, यहाँ के वातावरण, संस्कृति आदि की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। हिन्दी व हिंदुस्तान के प्रति खुसरो का यह अनुराग उनके मन में भारतीय जन-जीवन के प्रति प्रगाढ़ राग का प्रतिफल है। उनकी हिन्दी रचनाओं में समकालीन लोक परम्परा, रीति-रिवाजों आदि का वर्णन हुआ है। उन्होंने सफल अपनी मुकरियों में विचित्र वेष तथा सिद्धियों से आकृष्ट करने वाले अवधूतों के साथ-साथ लोक-जीवन में व्याप्त राम का वर्णन किया है-
बखत बेबखत मोयं वाकी आस । रात दिना वह रहवत पास।
मेरे मन को सब करत है काम । ए सखि साजन ? ना सखि राम ।।
इसी प्रकार उन्होंने लोक के चिर जीवन- सहचर लोटा, गगरी, चरखा, सकरकंद, हुक्का चिलम आदि का भी बड़ी आत्मीयता से वर्णन किया है-
चढ़ छाती मो को लचकावत, धोय हाथ मोपर चढ़ि धावत ।
सरम लगत देखत सब नगरी, ए सखि साजन ? ना सखि गगरी ।
अमीर खुसरो के काव्य की मूल संवेदना
खुसरो भले ही सात मुस्लिम शासकों के दरबारी कवि रहे हों, परन्तु उन्होंने लोक-जीवन की ओर से कभी आँखें नहीं फेरी। उन्होंने ग्रामीण रीति-रिवाजों में लड़कियों की विदाई का चित्रण भी अपनी हिन्दी कविता में किया है। 'बाबुल' शीर्षक गीतों में विवाह के पश्चात् ससुराल जाती हुई बेटी का करुण क्रन्दन अभिव्यक्त हुआ है। उनके संवेदनशील मानस में जाड़े से ठिठुरते हुए दीन-हीन लोग, घर की देहरी पर लटके हुए पिंजरे में राम-राम रटने वाले तोते, ठठरियों के बल पर महाकाल से लोहा लेने वाले निरीह बुड्ढे, गर्मियों में शरीर का पसीना सुखाने वाले पंखें, तिरस्कार करने पर भी पैर चाटने वाला व रोटी का टुकड़ा पाकर घर की रखवाली करने वाला कुत्ता, काँटे और कीचड़ से रक्षा करते हुए पैर चूमने वाले निष्काम कर्मयोग के प्रतीक जूतों के प्रति भी पर्याप्त समादर था। इसीलिए ऐसे-ऐसे तुच्छ समझे जाने वाले तत्त्वों, पदार्थों को भी उन्होंने अपनी कविता में विशिष्ट रूप से अभिव्यक्त किया है -
छठे छमासे मोरे घर आवे। आप हिले और मोहि हिलावै ।
नाम लेत मोहि आवे संका। ए सखि साजन ? ना सखि पंखा । ।
इनके अतिरिक्त उनकी हिन्दी रचनाओं में देहाती जीवन में काम आने वाली जड़ी-बूटियों के नुस्खे, देहातों में दिखाई देने वाले झूलों, बर्रे के छतों, चरखा, हुक्का, चिलम आदि का भी वर्णन हुआ है।
साहित्य की दुनिया में अमीर खुसरो का मुख्य योगदान
अमीर खुसरो मुख्यतः फारसी के कवि थे, परन्तु उन्होंने तुर्की व हिन्दी में भी कुछ रचनाएँ लिखी हैं। उनके समय में हिन्दी भारत की एक बहु-प्रचलित व समृद्ध भाषा तो बन चुकी थी परन्तु उसका साहित्य में प्रयोग नहीं हुआ था। यहाँ पर ध्यातव्य है कि खुसरो जिस हिन्दी भाषा की बातें करते हैं वह वस्तुत: खड़ी बोली है जिसे उस समय में हिन्दवी या हिन्दी कहा जाता था तथा सन् 1803 ई. के पश्चात् खड़ी बोली कहा गया। अमीर खुसरो द्वारा प्रयुक्त हिन्दी भाषा में भारतीय आर्यभाषाओं की सभी ध्वनियों का प्रयोग हुआ है। केवल 'ऋ' और 'ष' ध्वनियाँ इसमें प्रयुक्त नहीं हुई हैं। इनके स्थान 'रि' तथा 'स' या 'ख' ध्वनियों का प्रयोग हुआ है। अमीर खुसरो ने 'ड़' और 'ढ' ध्वनियों का स्पष्टता के साथ प्रयोग किया है। यथा - खड़ी, बड़ी, ठाड़ी, टेढ़ी आदि । अधिकतर स्वरान्त शब्दों का प्रयोग हुआ है तथा प्रायः नासिक्य स्वरों का प्रयोग करने का प्रयास किया गया है। यथा- अंगिया, आँख, सींग, करूँ, कहें, काछें आदि में नासिक्य स्वरों का प्रयोग हुआ है। उन्होंने द्वित्व व्यंजनों का भी प्रयोग किया है। यथा- कुत्ता, बुत्ता, ठट्ट, पक्की आदि। आधुनिक हिन्दी की भाँति खुसरो द्वारा प्रयुक्त हिन्दी में भी दो लिंग व दो वचन हैं।
संज्ञा के बहुवचन रूप बनाने के लिए अधिकतर ए, एं तथा अं का प्रयोग हुआ है। 'ए' का प्रयोग पुल्लिंग का बहुवचन बनाने में, 'ए', 'आं' का प्रयोग स्त्रीलिंग का बहुवचन बनाने में हुआ है। कहीं-कहीं अन प्रत्यय लगाकर भी संज्ञा को बहुवचन बनाया गया है। यथा - छतिअन, बातन, होंठन आदि। पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के लिए‘ई' और 'नी' प्रत्यय को जोड़ा गया है। यथा- खूंटा-खूंटी, ढोलक-ढोलकी, डोम-डोमनी आदि । खुसरो द्वारा प्रयुक्त हिन्दी में जो सर्वनाम प्रयुक्त हुए हैं उन पर ब्रजभाषा का प्रभाव है। उनकी रचनाओं में अधिकतर द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया के रूप ही प्रयुक्त हुए हैं। यथा- बुलवाया, लगवाया, बढ़वाया आदि। उन्होंने हिन्दी भाषा के जीवन्त व सार्थक प्रयोग के लिए मुहावरों का भी प्रयोग किया है। यथा-नैनन चढ़ि जावे, दाँत से दाँत बजे, फाटे हिया आदि उन्होंने तत्सम शब्दों का बहुत ही कम प्रयोग किया है। तत्सम शब्दों की तुलना में देशज शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। अतः संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि खुसरो ने तत्कालीन | हिन्दी अर्थात् खड़ी बोली को अच्छे ढंग से पहचान कर, समझकर ही उसको अपनी कविता में प्रयुक्त किया है।
अमीर खुसरो की लोकप्रियता का आधार क्या है?
अमीर खुसरो को लोकप्रिय मनोरंजन और रसिकता का अवतार इसलिए कहा जाता है कि उनके काव्य में जहाँ एक ओर मनोरंजन परक पहेलियाँ, मुकरियाँ, ढकोसले, गीत, कव्वालियाँ, निस्बतें, गजलें, सुखन, शेयर आदि मिलते हैं वहीं उनमें रसिकों के लिए रस-मुक्त प्रेम एवं सौंदर्य का भी वर्णन है। यद्यपि उनका यह प्रेम एवं सौंदर्य निरूपण अध्यात्मवाद से प्रभावित है परन्तु फिर भी उससे आनन्द की अनुभूति होती है। उदाहरण देखिए-
'काहे को बियाहे विदेश! लखि बाबुल मोर,
हम तो बाबुल तोरे बागों की कोयलिया
कुहकत घर-घर जाऊँ लखि बाबुल मोरे
हम तो बाबुल तोरे खेतों की चिड़िया
चुग्गा चुगत उड़ि जाऊँ लखि बाबुल मोरे। '
इसी प्रकार उसके सावन महीने के गीत आज भी युवक-युवतियों द्वारा गाये जाते हैं। जैसे कि बताया गया कि अमीर खुसरो को काव्य मनोरंजन प्रधान काव्य हैं। उन्होंने हास्य-व्यंग्य विनोद प्रधान शैली में पहेलिया, मुकरिया, गीत, ढकोसले आदि लिखे जिससे पाठक आनन्द की अनुभूति करता है। उनकी पहेलियाँ आज भी लोगों के लिए मनोरंजन का साधन बनी हुई है।
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