भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाओं में देशभक्ति और देशप्रेम bharatendu Harishchandra ki kavita mein Deshbhakti भारतेंदु की कविता में राजभक्ति और देशभक्ति
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र देशभक्ति देशप्रेम
भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाओं में देशभक्ति और देशप्रेम bharatendu Harishchandra ki kavita mein Raj Bhakti aur Deshbhakti भारतेंदु की कविता में राजभक्ति और देशभक्ति bharatendu Harishchandra ki kavita aadhunik Kal भारतेन्दु जी की रचनाओं में देशभक्ति का स्वर अपने पूर्ण रूप से मुखरित है। उनकी देशभक्ति कई रूपों में उजागर होती है। उन्हें सदैव अपने देश और देशवासियों की चिन्ता रहती थी। वे उनके उद्धार के लिए कभी विचार करते थे कि अंग्रेजी शासन का सदुपयोग किस प्रकार किया जाय, कभी सोचते थे कि अंग्रेजी-शासन से छुटकारा कैसे पाया जा सकता है, कभी चिन्तित होते थे कि समाज में व्याप्त अनेकानेक कुरीतियाँ और कुप्रथाएँ किस प्रकार दूर की जा सकती हैं।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की देशभक्ति और राजभक्ति
सन् 1868 में भारतेन्दु जी ने 'कविवचन सुधा' पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया और अनवरत 18 वर्षों तक इस पत्रिका के माध्यम से जनजागरण तथा देशोद्धार का शंखनाद करते रहे। इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को भाषा-साहित्य, सभ्यता-संस्कृति तथा देशप्रेम-देशभक्ति की शिक्षा दी। अंग्रेजी-नीति का भण्डाफोड़ किया। इस तरह भारतेन्दु के साहित्य में देशभक्ति की कई सारी धाराएँ प्रवाहित होती दिखाई देती हैं। उनकी देशभक्ति कहीं राजभक्ति के भीतर दिखाई देती है तो कहीं उससे विरुद्ध उसके बाहर दिखाई देती है।
अंग्रेजी शासन की सच्चाई
भारतेन्दु ने अपने समय के शासन-प्रशासन का कभी खुलकर (मुखर) विरोध नहीं किया (यद्यपि व्यंग्यपूर्ण शैली में उन्होंने उसकी सदैव आलोचना की।) तो इसलिए कि उन्हें लगता था कि अंग्रेजी शासन के साथ भारतवर्ष को सुरक्षा एवं सुव्यवस्था की भावना प्राप्त हुई है । निस्सन्देह अंग्रेजी-प्रशासन ने चोरी-डकैती, लूटमार, राहजनी आदि की समस्याएँ सुलझाई र्थी, रेल, तार, डाक आदि के माध्यम से अनेक वैज्ञानिक सुविधाएँ उपलब्ध करायी थीं, जीवन- -जगत् के प्रति वृहद जानकारी एवं नवीन दृष्टि प्रदान की थी। अतः आरम्भिक दिनों में यह कहना और समझना कठिन था कि अंग्रेजी-शासन वाकई देश के हित में है या अहित में। किन्तु, जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे-वैसे अंग्रेजी शासन की सच्चाई उजागर होती गयी और प्रबुद्ध वर्ग उसका विरोधी होता गया।
भारतेंदु का साहित्य राष्ट्रीय संस्कृति का आधार
भारतेन्दु जी की देशभक्ति पर डॉ. रामविलास शर्मा की यह टिप्पणी रेखांकनीय है कि, "अंग्रेज सरकार पक्षपात की सरकार थी। वह अपने यहाँ वालों का भला करने आयी थी, न कि हमारे देश का। यद्यपि भारतेन्दु ने पूर्ण रूप से अंग्रेजी-राज्य के खिलाफ इस धारणा का प्रचार नहीं किया, फिर भी यह धारणा उस राष्ट्रीय संस्कृति का आधार बन गयी थी, जिसका विकास भारतेन्दु और उनके सहयोगियों ने किया। इनकी असंगतियाँ चाँद के धब्बों की तरह हैं, उनकी देशभक्ति पूनम के चाँद की तरह है, जिसका शीतल प्रकाश हमें आज भी रास्ता दिखाता है।"
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के विपुल साहित्य में उपस्थित अतीत और उसके गौरव का गान, तत्कालीन परिस्थितियों के प्रति विक्षोभ, उज्ज्वल भविष्य की कामना, देश पर बलिदान की भावना, देशोन्नति के उपाय आदि-इत्यादि उनकी देशभक्ति तथा राष्ट्रीय भावना के जीवन्त एवं ज्वलन्त प्रमाण हैं। उनकी देशभक्ति के प्रमाण में, उनके द्वारा लिखा गया उनका केवल एक निबन्ध 'भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है', ही काफी है।
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