कविता की मौत का भावार्थ व्याख्या धर्मवीर भारती की कविता Kavita ki maut Kavita ki maut Kavita saransh Dharamvir Bharati in Hindi कविता कभी मरती नहीं है
कविता की मौत
लादकर ये आज किसका शव चले?
और इस छतनार बरगद के तले,
किस अभागन का जनाजा है रुका
बैठ इसके पाँयते, गर्दन झुका,
कौन कहता है कि कविता मर गई?
मर गई कविता,
नहीं तुमने सुना?
हाँ, वही कविता
कि जिसकी आग से
सूरज बना
धरती जमी
बरसात लहराई
और जिसकी गोद में बेहोश पुरवाई
पँखुरियों पर थमी?
वही कविता
विष्णुपद से जो निकल
और ब्रह्मा के कमण्डल से उबल
बादलों की तहों को झकझोरती
चाँदनी के रजत फूल बटोरती
शम्भु के कैलाश पर्वत को हिला
उतर आई आदमी की जमीं पर,
चल पड़ी फिर मुस्कुराती
शस्य-श्यामल फूल, फल, फ़सल खिलाती,
स्वर्ग से पाताल तक
जो एक धारा बन बही
पर न आख़िर एक दिन वह भी रही!
मर गई कविता वही
एक तुलसी-पत्र 'औ'
दो बून्द गँगाजल बिना,
मर गई कविता, नहीं तुमने सुना?
सन्दर्भ- प्रस्तुत पंक्तियाँ धर्मवीर भारती द्वारा रचित 'कविता की मौत' शीर्षक से उद्धृत है। यह रचना दूसरे तार सप्तक में प्रकाशित हुई थी .
प्रसंग - इन पंक्तियों में कवि ने बताया है कि कविता मर गयी पर वह कहते हैं कि कविता कभी मरती नहीं है, कवि कहता है कि-
व्याख्या- आज किसका शव अपने कंधों पर लादकर इस छायादार बरगद के नीचे से ले जा रहे हो। यह किस अभागन का जनाजा यहाँ रुका हुआ है। कौन कहता है कि कविता मर गयी, क्या तुमने भी सुना क्या कविता मर गयी, वही कविता जिसकी आग से सूरज बना, धरती जमी, बरसात लहराई, हवा के झोंकों से सारा मण्डल सुशोभित होता है, वह सब थम गया, हाँ वही कविता मर गयी। वह कविता जो विष्णु के पैरों से निकली, ब्रह्मा के कमण्डल से निकलती हुई बादलों को झकझोरती, चाँदनी रंगों से खेलती हुई फसलों को खिलाती हुई जो स्वर्ग से पाताल तक घूमती हुई एक दिन भी नहीं रह पायी। अन्तत: वह एक तुलसी पत्र और दो बूँद गंगाजल के बिना मर गयी, वह कविता मर गयी, क्या तुम्हें पता है कि कविता मर गयी।
विशेष- उपरोक्त पंक्तियों में निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं -
- यदि कविता मर गयी तो सृष्टि का सौंदर्य मर जायेगा।
भूख ने उसकी जवानी तोड़ दी,
मर गया बनकर तपेदिक का मरीज़
'औ' सितारों से कहीं मासूम सन्तानें,
माँगने को भीख हैं मजबूर,
या पटरियों के किनारे से उठा
बेचते है,
अधजले
कोयले.
(याद आती है मुझे
भागवत की वह बड़ी मशहूर बात
जबकि ब्रज की एक गोपी
बेचने को दही निकली,
औ' कन्हैया की रसीली याद में
बिसर कर सुध-बुध
बन गई थी ख़ुद दही.
और ये मासूम बच्चे भी,
बेचने जो कोयले निकले
बन गए ख़ुद कोयले
श्याम की माया)
और अब ये कोयले भी हैं अनाथ
क्योंकि उनका भी सहारा चल बसा !
भूख ने उसकी जवानी तोड़ दी !
यूँ बड़ी ही नेक थी कविता
मगर धनहीन थी, कमजोर थी
और बेचारी ग़रीबिन मर गई !
मर गई कविता?
जवानी मर गई?
मर गया सूरज सितारे मर गए,
मर गए, सौन्दर्य सारे मर गए?
सन्दर्भ एवं प्रसंग- पूर्ववत् ।
व्याख्या- कवि कहता है कि उस अभागिन के माँग का सिन्दूर अर्थात् उसका पति तपेदिक से मर गया और उनकी सन्तानें भीख माँगने को मजबूर हैं। कवि का आशय है जो कवि कविता का सौन्दर्य पूर्ण वर्णन करते थे वह बीमारी से मर गये और उसकी सितारों जैसी मासूम सन्तानें भूख से व्याकुल होकर भीख माँगने को मजबूर हैं। वे सड़क किनारे पड़े अधजले कोयलों को बेचकर जीवन व्यतीत करते हैं। उन्हें देखकर मुझे भागवत की बात याद आती है जब ब्रज की गोपी दही लेकर निकलती तो वह कृष्ण की मधुर बातों में अपनी सुध-बुझ खो देती थी। अब वह बच्चे कोयला बेचते खुद काले हो गये हैं, भूख ने उनकी जवानी समाप्त कर दी है, भूख ने कविता की जवानी तोड़ दी, वह अच्छी कविता थी, मगर वह धनहीन और कमजोर इसलिए जवानी में मर गयी, उसके मरने से सूरज, सितारे तथा सृष्टि का सौन्दर्य सब समाप्त हो गया है।
विशेष- उपरोक्त पंक्तियों में निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं -
- कविता गरीबी में मर गयी उसे कोई प्रेरणा स्रोत नहीं मिला।
- करुण रस है।
सृष्टि के प्रारम्भ से चलती हुई
प्यार की हर साँस पर पलती हुई
आदमीयत की कहानी मर गई?
झूठ है यह !
आदमी इतना नहीं कमज़ोर है !
पलक के जल और माथे के पसीने से
सींचता आया सदा जो स्वर्ग की भी नींव
ये परिस्थितियाँ बना देंगी उसे निर्जीव !
झूठ है यह !
फिर उठेगा वह
और सूरज की मिलेगी रोशनी
सितारों की जगमगाहट मिलेगी !
कफ़न में लिपटे हुए सौन्दर्य को
फिर किरन की नरम आहट मिलेगी !
प्रसंग- इन पंक्तियों में कवि कविता के न मरने की बात कहता है-
व्याख्या- कवि कहता है कि अनादिकाल से लोगों के हृदय में प्यार बरसाती कविता यदि मर गयी तो मानवता मर जायेगी, आदमी इतना कमजोर नहीं है कि वह पृथ्वी को स्वर्ग बनाने का जो उपक्रम कर रहा था वह जुनून अभी समाप्त नहीं हुआ। मानव ने नव निर्माण का जो स्वप्न देखा था उनमें कविता नयी उत्साह को मार देगी। मनुष्य में आशा का संचार पुनः होगा। कविता जो मर-सी गयी है वह फिर से विस्तार को पायेगी। यह कविता इतनी जल्दी मर नहीं सकती।
विशेष- उपरोक्त पंक्तियों में निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं -
- कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि कविता उत्साह लेकर आयेगी।
फिर उठेगा वह,
और बिखरे हुए सारे स्वर समेट
पोंछ उनसे ख़ून,
फिर बुनेगा नई कविता का वितान
नए मनु के नए युग का जगमगाता गान !
भूख, ख़ूँरेज़ी, ग़रीबी हो मगर
आदमी के सृजन की ताक़त
इन सबों की शक्ति के ऊपर
और कविता सृजन कीआवाज़ है.
फिर उभरकर कहेगी कविता
"क्या हुआ दुनिया अगर मरघट बनी,
अभी मेरी आख़िरी आवाज़ बाक़ी है,
हो चुकी हैवानियत की इन्तेहा,
आदमीयत का अभी आगाज़ बाकी है !
लो तुम्हें मैं फिर नया विश्वास देती हूँ,
नया इतिहास देती हूँ !
कौन कहता है कि कविता मर गई?
प्रसंग - कवि इन पंक्तियों में कह रहा है कि कविता मर गयी तो आदमी का जो सपना पृथ्वी को स्वर्ग बनाने का था वह समाप्त हो जायेगा, यह सपना समाप्त नहीं हो सकता, वह कविता फिर उठेगी, लोगों को जाग्रत करेगी उनमें उत्साह भरेगी।
व्याख्या- कवि कहता है कि जो कविता मृतप्राय-सी हो गयी है वह पुनः लोगों में एक उत्साह लेकर आयेगी। जो शब्द बिखरे हुए हैं। उन्हें समेटकर फिर से नयी कविता की रचना होगी। जिस प्रकार सृष्टि नष्ट होने पर मनु ने नूतन सृष्टि की रचना की, उसी प्रकार से नयी कविता की रचना होगी। भले भूख, गरीबी आदि हो लेकिन आदमी का सृजन कर्म इन सबसे ऊपर होगा। यह संसार अभी मरघट के समान दिखाई पड़ रहा है, लेकिन नयी कविता आशा और विश्वास को लेकर आयेगी। अभी मेरी आखिरी आवाज बाकी है। क्रूरता की भी हद हो चुकी है। मानवता की मुखरता अभी बाकी है। कविता लोगों के अन्दर नया उत्साह नया विश्वास देने के लिए फिर आ रही है। कवि कहता है कि कौन कह रहा था कि कविता मर गयी है।
विशेष- उपरोक्त पंक्तियों में निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं -
- कवि ने लोगों में उत्साह एवं साहसपूर्ण होने का आमन्त्रण दिया है।
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