निराला क्रांति एवं विद्रोह के कवि हैं | निराला की काव्य में ओज और विद्रोह

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निराला की काव्य में ओज और विद्रोह निराला को विद्रोही कवि क्यों कहा जाता है छायावादी युग के विद्रोही कवि विद्रोह, क्रांति व परिवर्तन के कवि थे निराला

निराला क्रांति एवं विद्रोह के कवि हैं


निराला एक विद्रोही कवि थे।इस विद्रोह का प्रभाव उनके काव्य पर भी पड़ा। समाज में वर्ग-संघर्ष एवं कुप्रथाओं को देखकर उनके अन्दर क्रान्ति का उद्वेलन हुआ। दीन-हीनों, पद-दलितों के प्रति उनके हृदय में प्रेम समाया हुआ था। उनकी दीन-दशा को देखकर उनका हृदय पीड़ित हुआ और उन्होंने उनके सम्मान के लिए आवाज उठायी। उन्होंने शोषक वर्ग का विद्रोह किया। उनका काव्य विद्रोहात्मक है। निराला जिस समय काव्य-रचना कर रहे थे, उस समय समाज में बड़ी विडम्बना थी। धनी व्यक्ति अधिक धनी होता जा रहा था और गरीब व्यक्ति अधिक गरीब। अत्याचार बढ़ रहा था। गरीब लोग सताये जा रहे थे। दुराचारियों का बोलबाला था। इस प्रकार की अनेक समस्याएँ समाज में व्याप्त थीं। निराला जी ने इन सभी बुराइयों के प्रति संघर्ष किया। स्वयं निराला जी का निजी जीवन दुखों एवं संघर्षों से भरा हुआ था, किन्तु उन्होंने कभी हार नहीं मानी और जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे। अस्तु, निराला के क्रान्तिपूर्ण एवं विद्रोहात्मक भावनाओं का मूल्यांकन निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत करना समीचीन होगा - 

क्रान्ति का आह्वान

निराला जी विद्रोह एवं क्रान्ति के कवि हैं। इसलिए उनकी रचनाएँ क्रान्ति का आह्वान करती हैं। उनकी इस तरह की रचनाओं को पढ़कर या सुनकर हृदय में उत्साह का अपूर्व संचार होता है। उनकी विद्रोहात्मक रचना का एक उदाहरण प्रस्तुत है- 

एक बार बस और नाच तू श्यामा ! सामान सभी तैयार 
कितने ही हैं असुर, चाहिए कितने तुमको हार ? 
कर मेखला मुण्डमालाओं से बन मन-अभिरामा एक बार बस और नाच तू श्यामा । 

संघर्षपूर्ण जीवन 

निराला जी ने अपने निजी जीवन में बहुत संघर्ष किये। सामाजिक जीवन ने भी उन्हें अधिक घायल किया था। उनका पौरुष एवं साहस इतना दृढ़ था कि कभी वे हारे नहीं। कभी भी उन्होंने अपने को झुकाया नहीं। उनका स्वाभिमान हमेशा अडिग बना रहा। यथा- 

वह एक और मन रहा राम का, जो न थका, 
जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय ! 

निराला क्रांति एवं विद्रोह के कवि हैं

पौरुष की हुंकार

निराला के अन्दर पौरुष का हुंकार था। उनके व्यक्तित्व में ओज और तेज का समन्वय था। जीवन में बड़े से बड़ा संघर्ष और दुःख उन्हें झेलना स्वीकार था, किन्तु अन्याय, अत्याचार और शोषण को वे तनिक भी सहन नहीं कर सकते थे। अन्याय और अत्याचार के विरोध में उनका पौरुष हुंकारने लगता था तथा उनके अन्दर का ओज और तेज भभक उठता था। उदाहरणतः 'धारा' कविता की निम्नांकित पंक्तियाँ दर्शनीय हैं, जिसमें उनके अखण्ड आत्मविश्वास तथा उनकी अप्रतिहत शक्ति-युक्त पौरुषमयी ललकार स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ती है- 

बहने दो 
रोक-टोक से कभी नहीं रुकती है 
यौवन-मद की बाढ़ नदी की 
किसे देख झुकती है ? 
गरज- गरज वह क्या कहती है, कहने दो। 
अपनी इच्छा से प्रबल वेग से बहने दो। 

शोषितों के प्रति सहानुभूति

निराला जी का जीवन और जगत् के प्रति चिन्तन गम्भीर था। उन्होंने पीड़ित, दलित, शोषित एवं सर्वहारा के प्रति बहुत सहानुभूति दिखायीं और उनके मन में चेतना जगाकर उन्हें अन्याय, अत्याचार एवं असमानता के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया । सम्पूर्ण मानवता के प्रति उनके हृदय में करुणा भरी थी । उदाहरणस्वरूप उनकी ये पंक्तियाँ दर्शनीय हैं- 

दुख की छाया पड़ी हृदय में, 
झट उमड़ वेदना आयी । 
देखा दुखी एक निज भाई, 
मैंने 'मैं' शैली अपनायी । 

विद्रोही स्वर

निराला जी के हृदय में सामाजिक असमानता ने विद्रोह भर दिया। उन्होंने समाज में नवीनता लाने के लिए क्रान्ति एवं विद्रोह का आह्वान किया। कवि निराला ने मजदूरों और किसानों को आन्दोलन छेड़ने के लिए प्रेरित किया। वे समाज में समानता लाने के लिए विद्रोह को आवश्यक मानते थे। उनका विश्वास था कि बिना संघर्ष के समाज में समरसता नहीं लायी जा सकती है। कवि की 'बादल-राग' कविता में क्रान्ति एवं विद्रोह का स्वर स्पष्ट सुनायी पड़ता है- 

जीर्ण बाहु है, शीर्ण शरीर, 
तुझे बुलाता कृषक अधीर, ऐ विप्लव के वीर । 
चूस लिया है उसका सार, हाड़ मात्र ही है आधार, 
ऐ जीवन के पारावार । 

यथार्थ निरूपण

निराला जी ने अपनी ओजस्वी कविता के माध्यम से भारत की सोयी शक्ति को जगाया। उन्होंने स्वाधीन चेतना को जाग्रत करने का पूर्ण प्रयास किया है। कवि वीर-पुरुष गुरु गोविन्द सिंह जी का स्मरण भारतवासियों को दिलाकर, उनमें शक्ति भरने का प्रयास करता है। निराला जी ने जनता को आत्मा की अमरता का सन्देश दिया और शक्ति की आत्मिक समवायिक उपासना करने की सलाह भी दी है। उदाहरणार्थ निम्न पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं- 

योग्य जन जीता है 
पश्चिम की उक्ति नहीं, गीता है, गीता है, 
स्मरण करो बार-बार 
जागो फिर एक बार । 

रूढ़ियों का विरोध

निराला जी ने अपने काव्य में भारतीयों की रूढ़िवादिता की कड़ी आलोचना की है। वे जाति-पाँति के भेद-भाव, दहेज-प्रथा और धर्माडम्बर के आवरण को उतार फेंकते हैं। मानव-द्रोही स्वरूप को वे जनता के सामने खोलते हैं। कपट, चोरी, मिथ्याचार को कवि बड़े साहस से धिक्कारता है। यथा- 

भेद कुल खुल जाय, 
वह सूरत हमारे दिल में है, 
देश को मिल जाय, 
जो पूँजी तुम्हारे मिल में है। 

जागरण का सन्देश 

निराला जी ने पुरानी कुरीतियों का घोर विरोध किया। उन्होंने समाज में नवजागरण का सन्देश दिया। उनके काव्य में नव-निर्माण का संकल्प है- 

जागो फिर एक बार 
प्यारे जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें 
अरुण पंख तरुण किरण खड़ी खोल रही द्वार । 

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि निराला जी के व्यक्तित्व में दुःखों और पीड़ाओं को झेलने का अदम्य साहस है, अन्याय और अत्याचार से संघर्ष करने का अखण्ड आत्मविश्वास है और पौरुष की प्रचण्ड हुंकार है, जिसके कारण कवि की रचनाओं में क्रान्तिकारी मुखरित हुई हैं। निराला ऐसे कवि-कलाकार हैं, जिनका जीवन किसी 'वाद' की सीमा में आबद्ध नहीं होता। वे कबीर की तरह क्रान्तिकारी और फक्कड़ कवि हैं। दोनों रचनाकारों में यदि कोई अन्तर है, तो यह कि कबीर सन्त पहले और कवि बाद में और निराला कवि पहले और सन्त बाद में। कविवर निराला बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार हैं। इनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता और देश-प्रेम की अजस्र सरिता प्रवाहित हुई है। देश के सांस्कृतिक पतन की ओर निराला जी ने अत्यन्त ओज पूर्ण भाषा में संकेतित किया है। उनका मानना है कि देश के भाग्याकाश को विदेशी सत्ता के राहु ने अपना ग्रास बना लिया है। अतः उसे उस पापग्रह से मुक्त कराकर उसकी खोयी हुई अस्मिता को वापस लाना है। इसके लिए अपेक्षित त्याग, तप, बलिदान देने के लिए वे सुषुप्त भारतीय जन-मानस को बार-बार प्रबोधित करते हैं। देश-प्रेम और राष्ट्रीय उद्बोधन की उनकी अपनी शैली है, जो उनके आरम्भिक काव्य-जीवन से ही मुखरित होने लगी थी। निराला की काव्य में ओज और विद्रोह निराला को विद्रोही कवि क्यों कहा जाता है  छायावादी युग के विद्रोही कवि विद्रोह, क्रांति व परिवर्तन के कवि थे निराला

डॉ० दूधनाथ सिंह के शब्दों में कहा जा सकता है कि- उनकी वाणी की ओजस्विता, मार्मिकता और प्रतिभा निखार भारतीय जीवन की सच्चाई में गहरे पैठ कर हुआ है। उन्होंने अपने निजी जीवन और रचनात्मक व्यक्तित्व के बीच कभी कोई द्वैत नहीं रखा। उनकी कविता और रचना में आयी हुई वैचारिक दृष्टि शुद्ध, पवित्र और उच्छल है। कहीं भी किसी भी तरह का एडल्टरेशन नहीं है। उनका राजनीतिक और राष्ट्रीय दर्शन ही उनका व्यक्तित्व दर्शन है। 

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