सूरदास और पुष्टिमार्ग पुष्टिमार्गीय भक्ति के प्रवर्तक आचार्य बल्लभाचार्य जी हैं।इनके दार्शनिक मत को 'शुद्धाद्वैतवाद' कहा जाता है सूरदास और वल्लभाचार्य
सूरदास और पुष्टिमार्ग
सूरदास और पुष्टिमार्ग पुष्टिमार्गीय भक्ति के प्रवर्तक आचार्य बल्लभाचार्य जी हैं।इनके दार्शनिक मत को 'शुद्धाद्वैतवाद' कहा जाता है।पुष्टि का अर्थ है-पोषण और पोषण का अर्थ है- भगवत् कृपा (अनुग्रह) । साधन निरपेक्ष भक्ति को 'पुष्टिमार्गी' भक्ति कहा जाता है, जिसमें भक्त भगवानाश्रित हो जाता है। भगवान् अनुग्रह करके जीव को अपने ही समान आनन्दमय बना देते हैं। इस आनन्दमय स्थिति की प्राप्ति को ही 'मुक्ति' कहा गया है। 'मुक्ति' को प्राप्त करने का एकमात्र साधन भक्ति ही है। आचार्य बल्लभ के अनुसार भक्ति के दो प्रकार हैं-
- (क) मर्यादा भक्ति और
- (ख) पुष्टि भक्ति ।
मर्यादा भक्ति में फल की आसक्ति बनी रहती है। इसके विपरीत 'पुष्टि भक्ति' में किसी भी प्रकार के फल की आकांक्षा नहीं रहती। मर्यादा भक्ति भगवान् के चरणारविन्द की भक्ति है, जबकि पुष्टि भक्ति उनके मुखारविन्द की भक्ति है। मर्यादा भक्ति दैन्य भाव की भक्ति है किन्तु पुष्टि भक्ति कान्ता भाव की। पुष्टि भक्ति के चार स्तर हैं -
- प्रवाह पुष्टि
- मर्यादा पुष्टि
- पुष्टि पुष्टि
- शुद्ध-पुष्टि
हिन्दी साहित्य प्रवाह पुष्टि में भक्त संसार में रहते हुए भगवान् की कृपा की याचना करता है। मर्यादा पुष्टि में जीव संसार के समस्त सुखों से विरत होकर कीर्तनादि के द्वारा भगवान् की भक्ति करता है। पुष्टि-पुष्टि में उसे भगवान् की कृपा प्राप्त हो जाती है, फिर भी वह भक्ति साधनों में संलग्न रहता है। शुद्ध पुष्टि की स्थिति में भक्त भगवान् की लीलाओं से अपना मानसिक तादात्म्य स्थापित कर लेता है। पुष्टिमार्गीय भक्ति की यह सर्वोच्च एवं सर्वकाम्य स्थिति है। इसकी प्राप्ति पुष्टि मार्गीय साधना का चरम लक्ष्य है।
पुष्टिमार्गीय भक्ति भावना
सूर साहित्य में पुष्टिमार्गीय भक्ति-भावना ही प्रस्फुटित हुई है। ब्रह्म, जीव, जगत, संसार, माया आदि के सम्बन्ध में सूर के विचार बल्लभाचार्य के मत के अनुरूप ही मिलते हैं।पुष्टिमार्गीय भक्ति और सेवा-प्रणाली 'सूरसागर' में आद्योपान्त मिलती है।प्रवाह, मर्यादा एवं पुष्टि के रूप में ब्रजांगनाएँ वर्णित हैं। ब्रजांगनाओं के वर्णन में प्रवाह-पुष्टि की अभिव्यक्ति मिलती है।वे कृष्ण को वात्सल्य भाव से भजती हैं -
मैं देख्यौ जसुदा कौ नंदन, खेलत आँगन बारौ री।
ततछन प्रान पलटि गयौ मेरौ, तन मन ह्वै गयो कारो री ।।
कहा कै हाँ कछु कहत न आवै, औ रस लागत खारौ री।
इनहिं स्वाद जी लुब्ध 'सूर' सोइ जानत चाखन हारौ री।।
मर्यादा पुष्टि के पालन के रूप में वे कुमारिकाएँ आती हैं, जो गौरीपति और सूर्य की इसलिए पूजा करती हैं कि उन्हें कृष्ण पति के रूप में प्राप्त हों। इनकी भक्ति स्वकीया भाव की है-
सिव सो विनय करति कुमारि ।
हमहिं होहु दयाल दिनमनि, तुम बिदित संसार ।
काम अति तनु दहत दीजै, 'सूर' हरि भरतार ।।
पुष्टि भक्ति का आधार गीता का वह श्लोक है, जिसमें कहा गया है कि- “सब धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हारे सभी पापों को दूर कर दूँगा। तू शोक मत कर। पुष्टि-पुष्टि के रूप में वे ब्रजांगनाएँ हैं, जो लोक-वेद के भय से मुक्त होकर मात्र श्री कृष्ण को भजती हैं। इनमें परकीया भाव प्रधान होता है यथा-
काके पति सुत मोह कौन कौ, घर ही कहा पठावत ।
कैसो धर्म पाप है कैसो, आस निरास करावत ।
हम जानैं केवल तुमही कौं और वृथा संसार ।
सूर स्याम निठुराई तजिये तजिये वचन विकार ।।
पुष्टिमार्ग का जहाज सूरदास
सूरदास जी की अपने गुरु बल्लभाचार्य जी के प्रति अनन्य निष्ठा है।वे अपने गुरु को ही पुष्टिमार्गीय सेवा विधि में गुरु-आश्रय, नित्य-सेवा विधि और वर्षोत्सव सेवा प्रमुख है।वे अपने गुरु को ही एकमात्र आलम्बन मानते थे। यथा-
भरोसो दृढ़ इन चरनन केरौ ।
श्री बल्लभ-नखचन्द्र-छटा बिनु, सब जग माँह अँधेरौ।
साधन और नाँहि या कलि में, जासौ होत निबेरौ ।
सूर कहा कहै द्विविध आँधरौ, बिना मोल कौ चेरौ।।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सूरदास ने अपनी भक्ति भावना में पुष्टिमार्गीय भक्ति के तत्त्वों का समावेश करते हुए उसका काव्यात्मक विस्तार किया है। औपचारिकता के स्थान पर निजी अनुभवों के संयोग से उनका सम्प्रदाय के अनुसार विरचित काव्य भी विशुद्ध मानवीय भावभूमि पर प्रतिष्ठित हो सका है। उन्होंने धर्म सम्प्रदाय की आत्मा को तो ग्रहण किया है किन्तु उसकी योजना इस प्रकार की है कि काव्य की आत्मा अक्षत रह सके, यही सूर के भक्ति साहित्य की विशिष्टता है। इसमें सन्देह नहीं कि सूर पुष्टि-सम्प्रदाय के जहाज के रूप में प्रतिष्ठित होने के कारण साम्प्रदायिक भावना की उपेक्षा न कर सके। बल्लभ सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार भक्ति का केन्द्रीय तत्त्व प्रेम है। प्रेम की परम सिद्धि विरह में होती है। सूर ने विरह का महत्त्व अनेक स्थलों पर निरूपित किया है।
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