सन्त काव्य धारा कवि एवं रचनाएँ SANT KAVYA DHARA KE PRAMUKH KAVI EVAM RACHNAYE sant kavya in hindi hindi sahitya ka itihas bhakti kaal Sagun-nirgun bha
संत काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ
सन्त काव्य धारा कवि एवं रचनाएँ SANT KAVYA DHARA KE PRAMUKH KAVI EVAM RACHNAYE sant kavya in hindi hindi sahitya ka itihas bhakti kaal Sagun-nirgun bhakti kavy Nirgun bhakt kavi or unka kavya ज्ञानमार्गी शाखा के कवि के बारे में बताएं संत काव्य धारा के कवि हिन्दी साहित्य का इतिहास भक्तिकाल sant kavya dhara ke kavi sant kavya parampara - हिन्दी साहित्य में 15वीं शताब्दी वि. से लेकर 20वीं शताब्दी वि. के पूर्वार्द्ध तक एक लम्बी कालावधि के मध्य हिन्दी में जिस विचारधारा और रचना-पद्धति पर साहित्य-सृजन होता रहा, उसे 'सन्तकाव्य' के नाम से जाना जाता है। इस परम्परा का साहित्य एक विशेष साधनापरक विचारों से ओत-प्रोत है। जिसके कारण समाज को एक नयी दिशा मिली, उसे एक नयी चेतना का आभास हुआ। महात्मा कबीर से पूर्व भी सन्तमत के अनुयायी साधक हो चुके थे, लेकिन सन्त साहित्य का प्रादुर्भाव कबीर की काव्य-साधना से माना जा सकता है।
सन्तकाव्यधारा के प्रमुख कवियों और उनकी रचनाओं का विवरण निम्नलिखित है -
कबीरदास
कबीरदास का आविर्भाव काल सम्वत् 1456 माना जाता है। कबीर सन्त काव्यधारा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। ये स्वामी रामानन्द के शिष्य थे। कबीर पढ़े-लिखे नहीं, निरक्षर थे। जैसा कि प्रसिद्ध है- “मसि कागद छूयौ नहीं, कलम गही नहिं हाथ।" इस प्रकार इनकी रचनाओं का स्वरूप मौखिक था, जिसको बाद में इनके शिष्यों ने लिखित रूप प्रदान किया। कबीर की जो रचनाएँ प्राप्य हैं, उनकी प्रामाणिकता के विषय में स्पष्टत: कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। कबीर की मुख्य रचना 'बीजक' है- जिसके अनेक रूप प्राप्त होते हैं। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इसके तीन भेद किये गये हैं- साखी, सबद और रमैनी। कबीर की भ्रमणशीलता का प्रभाव उनकी वाणी में भी विद्यमान है, जिसके कारण उनकी भाषा में अनेक प्रान्तों के शब्द पाये जाते हैं। यही कारण है कि विद्वानों ने उनकी भाषा को सधुक्कड़ी या पंचमेल खिचड़ी कहा है। फिर भी भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था, इसीलिए आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने कबीर को वाणी का डिक्टेटर कहा है। कबीर एक उच्चकोटि के साधक थे। उनकी रहस्य भावना, सुरति, शब्द योग, सहज समाधि, सुरति-निरति, उलटबाँसी तथा खण्डन-मंडन की प्रवृत्ति उनकी काव्य साधना में सहज प्राप्त होते हैं। उनकी साधना निर्गुण ब्रह्म की थी।
दादूदयाल
सन्तकाव्यधारा के महान् कवियों में कबीर के बाद दादूदयाल का नाम सश्रद्ध भाव से लिया जाता है। ये जाति के धुनिया थे और इन्होंने दादू पंथ की स्थापना की। इनके काव्य में ईश्वर की व्यापकता, हिन्दू-मुस्लिम एकता, संसार की अनित्यता और अलौकिकता का चित्रण हुआ है। इनकी भाषा राजस्थानी, मारवाड़ी और गुजराती मिश्रित पश्चिमी हिन्दी है। इनके पदों में प्रेम-मिलन और विरह का सुन्दर चित्रण हुआ है।
सुन्दरदास
ये दादूदयाल के शिष्य थे। इन्होंने पाँच वर्ष की अवस्था में घर-बार त्याग़ दादू से वैराग्य की दीक्षा ग्रहण की थी। सन्त कवियों में अध्ययन और विद्वता की दृष्टि से सुन्दरदास का स्थान सर्वोपरि है। इनकी प्रमुख कृति ज्ञान समुद्र और सुन्दर विलास हैं। उनकी भाषा परिमार्जित ब्रजभाषा है। इन्होंने कवित्त और सवैया शैली का प्रयोग किया है।
गुरुनानक
गुरुनानक का स्थान सन्त कवियों में बहुत ऊँचा है। इनकी रचनाएँ 'गुरु-ग्रन्थ साहब' में संकलित हैं। कबीर की भाँति इन्होंने निर्गुण उपासना पर विशेष बल दिया है। बाह्याचारों का खण्डन और गुरु कृपा के महत्त्व का वर्णन किया है। इनके भजनों में से कुछ की भाषा पंजाबी और कुछ की तत्कालीन हिन्दी है।
रैदास
ये उच्चकोटि के सन्त कवि थे। इनके कुछ पद 'गुरु-ग्रन्थ साहब' में प्राप्त होते हैं। इनके काव्य में व्यक्तित्व की कोमलता, अनुभूति की तरलता और अभिव्यक्ति की सरलता मिलती है।
सन्त काव्य धारा परम्परा के अन्य कवि
कबीर के अनुयायी सन्तकवियों में धर्मदास जी का नाम उल्लेखनीय है। इनके स्वरचित पदों का संग्रह जो धर्म-भावना से ओत-प्रोत है, 'धनी धर्मदास की बानी' नाम से प्रसिद्ध है। सन्तकवियों में रज्जबदास का नाम भी दादूदयाल की शिष्य परम्परा में उल्लेखनीय है। इन्होंने पाँच हजार छन्दों की रचना की, जो उनकी 'बानी' नामक काव्य में संगृहीत हैं। शेष कवियों में पारी साहब, पलटू साहब, मलूकदास, प्राणनाथ, सहजोबाई, दयाबाई आदि प्रसिद्ध हैं।
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