भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में बाधक तत्व और उनका समाधान हिंदी भाषा के विकास में बाधाएं राजभाषा हिंदी की संवैधानिक
राजभाषा का आशय स्पष्ट करते हुए इसकी समस्याओं पर प्रकाश डालिए
भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में बाधक तत्व और उनका समाधान हिंदी भाषा के विकास में बाधाएं राजभाषा हिंदी की संवैधानिक स्थिति हिन्दी की संवैधानिक एवं व्यावहारिक स्थिति राजभाषा हिंदी की समस्या और समाधान राजभाषा से तात्पर्य - किसी भाषा को राजभाषा तब कहते हैं, जब देश का संविधान उस भाषा को प्रशासन की भाषा घोषित कर देता है। इस प्रकार की स्थिति में सभी औपचारिक कार्यों के लिए इस भाषा का प्रयोग अनिवार्य होता है। किसी भाषा के राजभाषा बन जाने पर यह बात प्रमुख नहीं कि लोग उस भाषा को भावनात्मक स्तर पर स्वीकार करते. हैं या नहीं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में यह बात स्पष्ट रूप से कही गयी है कि हिन्दी भारत की राजभाषा है। इस प्रकार सन् 1950 को हिन्दी को भारत संघ की राजभाषा घोषित किया गया। इसके साथ अंग्रेजी को भारत की सह-राजभाषा भी घोषित किया गया। इसके अतिरिक्त संविधान की आठवीं सूची में 15 राजभाषाओं (अब 20) का भी उल्लेख किया गया। ये औपचारिक रूप से भारत के विभिन्न राज्यों की प्रशासनिक भाषाएँ हैं। ये भाषाएँ हैं- असमी, बंगाली, गुजराती, मराठी, ओडिया, कश्मीरी, पंजाबी, मलयालम, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, संस्कृत, उर्दू और सिंधी; ये किसी एक विशेष प्रदेश की भाषाएँ नहीं हैं। हिन्दी बिहार, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली- इन सात राज्यों की राजभाषा है। यहाँ पर ध्यान देने की बात यह है कि हिन्दी और अंग्रेजी पूरे देश की सरकार अर्थात् संघ या केन्द्रीय सरकार की भाषाएँ हैं और हिन्दी सात राज्यों की राजभाषा है। इस प्रकार औपचारिक रूप से हिन्दी भारत संघ की राजभाषा और सात राज्यों की राजभाषा है। संविधान ने हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया है, राष्ट्रभाषा नहीं।
राजभाषा हिंदी की संवैधानिक स्थिति और समस्या
यह तो निश्चित है कि हिन्दी को राजभाषा घोषित किया जा चुका है और सरकार ने इसके लिए पर्याप्त प्रयत्न भी किये हैं। कई आयोग और अधिनियमों के माध्यम से हिन्दी को राजभाषा का पद दिया गया है। यह सब होते हुए भी राजभाषा हिन्दी के मार्ग में कतिपय समस्याएँ अभी भी हैं। इन समस्याओं के कारण ही राजभाषा के रूप में हिन्दी को पूर्णत: या कहें कि महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हो पाया है। इसके प्रमुख कारण छः बताये जाते हैं, जो इस प्रकार हैं-
- सबसे प्रमुख कारण यह है कि आज भी अधिकांश सरकारी अधिकारी अंग्रेजी के भक्त हैं और अंग्रेजी माध्यम से पढ़कर ही राजकीय सेवा में आये हैं। अंग्रेजीपरस्त होने के कारण वे हिन्दी को पूर्णत: राजभाषा नहीं बनने दे रहे हैं।
- अंग्रेजी अंग्रेजों की भाषा है और अंग्रेजों का शासन हमारे देश पर बहुत समय तक रहा है। इसलिए हमारे यहाँ के बहुत से लोग भी अंग्रेजी में काम करने में ही गौरव का अनुभव करते हैं।
- देशभक्ति, राष्ट्रीयता और अपनी संस्कृति के प्रति लगाव कम होने के कारण भी अंग्रेजी को महत्त्व मिलता जा रहा है और हिन्दी उपेक्षित होती जा रही है।
- हिन्दी वर्णमाला में 52 अक्षर हैं। टाइपराइटर, कम्प्यूटर और छाषेखाने का कार्य हिन्दी में त्वरित गति से नहीं हो पाता है, किन्तु अंग्रेजी में हो जाता है, इसलिए भी हिन्दी राजभाषा का पद पूरी तरह प्राप्त नहीं कर सकी है।
- भारत को विदेशों से सम्पर्क करना पड़ता है और जो लोग भारत से विदेश जाते हैं, वे भी अंग्रेजी का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए अंग्रेजी में ही काम चलाना अधिक उपयुक्त समझते हैं। इस प्रकार हिन्दी उपेक्षित हो जाती है।
- सुप्रीम कोर्ट ही नहीं, हाईकोर्ट और अधिकांश जिला कोर्ट भी हिन्दी की अपेक्षा अंग्रेजी में काम करते हैं। परिणामस्वरूप वकीलों और न्यायाधीशों को अंग्रेजी का सहारा लेना पड़ता है। वास्तव में ये कुछ ऐसी बाधाएँ हैं जो हिन्दी को पूरी तरह राजभाषा बनने के मार्ग में दीवार बनकर खड़ी हुई हैं, इनसे निजात पाना अत्यन्त आवश्यक है।
हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में बाधक तत्व और उनका समाधान
विद्वानों ने उपर्युक्त समस्याओं और कारणों का निराकरण करते हुए निम्नांकित सुझाव दिये हैं-
- अंग्रेजीपरस्त अधिकारी और अंग्रेजी के हिमायती अधिकारी एक सीमा पर पहुँचकर सेवानिवृत्ति प्राप्त करेंगे और आने वाले नये अधिकारी यदि अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दी का सहारा लें और उसे महत्त्व दें, तो मानसिकता बदलेगी और हिन्दी राजभाषा के रूप में पूरी तरह प्रतिष्ठित हो जायेगी।
- जब हम हिन्दी के महत्त्व को समझेंगे और हिन्दी का पक्ष लेते समय हीनता का अनुभव नहीं करेंगे, तब अंग्रेजी से उत्पन्न बाधाएँ स्वत: ही दूर हो जायेंगी। हमें अपने हिन्दी पर गर्व और गौरव तो करना ही चाहिए, हिन्दी का प्रयोग करते हुए स्वाभिमानी भी बने रहने का प्रयत्न करना चाहिए।
- यदि हम राष्ट्रीयता, देशभक्ति और अपनी संस्कृति को महत्त्व दें, तब निश्चित रूप से हिन्दी को राजभाषा का पद प्राप्त हो सकता है और वह भी हल्के रूप में नहीं, विशिष्ट रूप में।
- टाइपराइटर, कम्प्यूटर आदि की हिन्दी के प्रकृति के अनुकूल परिवर्तन करके भी राजभाषा को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- विदेशों से सम्पर्क सब तो करते नहीं हैं, किन्तु जो भी विदेश में जाते हैं, वे यदि सच्चे भारतीय प्रतिनिधि बनकर जायें और हिन्दी को ही अपनाकर उसी में वार्तालाप और कार्य करें, तो हिन्दी राजभाषा के रूप में पूरी तरह प्रतिष्ठित हो सकती है।
- विविध प्रशासनिक परीक्षाओं में जैसे- आई.ए.एस., आई.पी.एस. और ऐसी ही अन्य परीक्षाओं में हिन्दी को महत्त्व दिया जाने लगे, तो भी हिन्दी को राजभाषा बनने में कोई कठिनाई नहीं होगी।
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हिंदी भाषा अमर रहे 😊
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