भाषा विज्ञान की परिभाषा एवं स्वरूप भाषा विज्ञान की परिभाषा तथा इसके प्रकार भाषाविज्ञान के अध्ययन का विषय भाषा विज्ञान और हिन्दी भाषा भाषाविज्ञान के अध
भाषा विज्ञान की परिभाषा एवं स्वरूप
भाषा विज्ञान की परिभाषा एवं स्वरूप भाषा विज्ञान की परिभाषा तथा इसके प्रकार भाषाविज्ञान के अध्ययन का विषय - भाषाविज्ञान का शाब्दिक अर्थ है- भाषा का विज्ञान। अतः भाषा के वैज्ञानिक विश्लेषण या क्रमबद्ध अध्ययन को भाषाविज्ञान कहते हैं।भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन ही 'भाषाविज्ञान' है।'भाषा-विज्ञान' का स्वरूप निम्नलिखित तीन तत्त्वों के संयोजन पर निर्भर करता है-
- भाषा की प्रकृति और गठन को समझने वाला, वैज्ञानिक दृष्टि-सम्पन्न, प्रबुद्ध अध्येता या अध्ययनकर्त्ता ।
- विज्ञान के अनुरूप तर्कसम्मत, वस्तुनिष्ठ विश्लेषण-पद्धति।
- भाषा या बोली, जिसका अध्ययन किया जाता है।
इन तीनों तत्त्वों को ध्यान में रखते हुए भाषाविज्ञान की परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है- किसी भाषा अथवा बोली का वैज्ञानिक दृष्टि सम्पन्न, अध्येता द्वारा तर्कसम्मत, वस्तुनिष्ठ विश्लेषण-पद्धति से किया गया व्यवस्थित अध्ययन ही भाषाविज्ञान है।
वास्तव में, किसी भी प्रकार के अध्ययन में ये तीन ही तत्त्व समाहित रहते हैं-अध्येता अध्ययन-पद्धति और अध्ययन का विषय । भाषाविज्ञान में अध्ययन का विषय भाषा है। अध्ययन के विषय को सीमित या विस्तृत करने से भाषाविज्ञान के विविध रूपों का विकास होता है। किसी एक भाषा का ध्वनिविज्ञान, शब्दविज्ञान, पदविज्ञान, वाक्य-विज्ञान, अर्थविज्ञान आदि सभी दृष्टियों से भी अध्ययन किया जा सकता है और इनमें से किसी एक दृष्टि से भी। इसी प्रकार अनेक भाषाओं या बोलियों का उक्त सभी दृष्टियों से या किसी एक दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।
भाषा विज्ञान की परिभाषा तथा इसके प्रकार
अध्ययन-पद्धति और अध्ययन के विषय को ध्यान में रखकर ही अनेक भाषावैज्ञानिकों ने भाषाविज्ञान की परिभाषाएँ दी हैं।
डॉ. श्यामसुन्दरदास भाषाविज्ञान की परिभाषा करते हुए लिखते हैं, "भाषाविज्ञान उस शास्त्र को कहते हैं, जिसमें भाषा मात्र के भिन्न-भिन्न अंगों और स्वरूपों का विवेचन तथा निरूपण किया जाता है।" स्पष्ट है कि भाषाविज्ञान में किसी एक ही भाषा का अध्ययन नहीं किया जाता, वरन् किसी भी देशी-विदेशी भाषा या बोली का अध्ययन किया जा सकता है। यह अध्ययन भाषा के ध्वनि, रूप, पद, वाक्य, अर्थ आदि अंगों को दृष्टि में रखकर किया जाता है। भाषा की उत्पत्ति, गठन, विकास और ह्रास को ध्यान में रखकर भाषा का ऐतिहासिक विकास-क्रम की दृष्टि से भी अध्ययन किया जा सकता है। भाषा के इसी विकासात्मक अध्ययन को केन्द्र में रखकर वे अपने ग्रन्थ 'भाषा-रहस्य' में लिखते हैं, “भाषाविज्ञान भाषा की उत्पत्ति, उसकी बनावट, उसके विकास तथा उसके ह्रास की वैज्ञानिक व्याख्या करता है।”
अध्ययन की वैज्ञानिक पद्धति तथा भाषा के गठन और विकास के विवेचन को दृष्टि-पथ में रखते हुए डॉ. भोलानाथ तिवारी ने भाषा-विज्ञान की परिभाषा इस प्रकार प्रस्तुत की है- "भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन को ही भाषा-विज्ञान कहते हैं। वैज्ञानिक अध्ययन से हमारा तात्पर्य सम्यक रूप से भाषा के बाहरी और भीतरी रूप एवं विकास आदि के अध्ययन से है।"
वैज्ञानिक अध्ययन बौद्धिक होता है। इसमें व्यक्तिगत भावावेश या कल्पना की उड़ान के लिए अवकाश नहीं है। वैज्ञानिक अध्ययन तर्कसम्मत और वस्तुनिष्ठ होता है। तर्कसम्मत का अर्थ है कारण-कार्य-शृंखला का अनुसरण करते हुए विषय के बौद्धिक विश्लेषण में अग्रसर होना तथा वस्तुनिष्ठ का आशय है- मूल विषय पर ही केन्द्रित रहना। डॉ० देवीशंकर द्विवेदी ने वैज्ञानिक अध्ययन की इसी वस्तुनिष्ठता को रेखांकित करते हुए भाषाविज्ञान की परिभाषा दी है। उन्होंने भाषाविज्ञान के लिए 'भाषिकी' शब्द का प्रयोग किया है। अपनी पुस्तक 'भाषा और भाषिकी' में 'भाषिकी' को परिभाषित करते हुए वे लिखते हैं- “भाषा की प्रकृति, उसके गठन तथा व्यवहार आदि की वस्तुनिष्ठ परीक्षा करने वाले विज्ञान का नाम 'भाषिकी' है।"
भाषा विज्ञान के अध्ययन का आधार क्या है ?
भाषाविज्ञान के अध्ययन का विषय केवल मनुष्य द्वारा बोली या लिखी जाने वाली भाषा तक सीमित है। पशु-पक्षियों की ध्वनियाँ भाषावैज्ञानिक अध्ययन के अन्तर्गत नहीं आती। मानव द्वारा प्रयुक्त भाषा के गठन का ध्वनि, रूप, पद, अर्थ आदि भाषिक अंगों या घटकों की दृष्टि से किया गया वैज्ञानिक अध्ययन वर्णनात्मक विश्लेषण कहलाता है। एक से अधिक भाषाओं के गठन की समानता-असमानताओं का अध्ययन तुलनात्मक अध्ययन कहा जाता है तथा किसी एक ही भाषा के विकास, ह्रास आदि का विवेचन ऐतिहासिक अनुशीलन कहलाता है। डॉ. मंगलदेव शास्त्री ने अपनी परिभाषा में भाषावैज्ञानिक अध्ययन की उपर्युक्त तीनों पद्धतियों को केन्द्र में रखते हुए भाषाविज्ञान की एक व्यापक परिभाषा दी है- “भाषाविज्ञान उस विज्ञान को कहते हैं, जिसमें सामान्य रूप से मानवीय भाषा का, किसी विशेष भाषा की रचना और इतिहास का और अन्ततः भाषाओं, प्रादेशिक भाषाओं या बोलियों के वर्गों की पारस्परिक समानताओं और विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।"
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