मेरे मास्टर साहब कहानी का सारांश चरित्र चित्रण प्रश्न उत्तर mere master sahab by chandragupt vidyalankar मेरे मास्टर साहब कहानी के शब्दार्थ विनायक शिष
मेरे मास्टर साहब चंद्रगुप्त विद्यालंकार
मेरे मास्टर साहब कहानी का सारांश - चंद्रगुप्त विद्यालंकार द्वारा रचित 'मेरे मास्टर साहब' एक भावना प्रधान कहानी है जिसमें गुरु-शिष्य के पावन संबंध को अभिव्यक्ति मिली है। विनायक एक प्रतिष्ठित प्रिसिंपल है जिसकी विद्वता, मौलिकता और अनुशासन की धाक इलाहाबाद के सरकारी हाई स्कूल में जमी हुई है। विनायक को अपने बचपन और स्कूल की कुछ श्रेष्ठ पल सदैव ध्यान रहते हैं। वे अपने भूगोल के मास्टर साहब से सदैव प्रभावित रहता था तथा उनका प्रिय शिष्य भी था। बचपन में उसका कद छोटा, तेज चाल और चमकीली आँखे थी इसी कारण एक बार इनके गणित के मास्टर ने इन्हें चूहा कहकर पुकारा था तभी से सभी विद्यार्थी इसे चुहा कहकर बुलाते। इतना ही नहीं शरारत वे स्वयं करते थे लेकिन विवाद बढ़ने पर मास्टर के समक्ष कहते कि 'पहले चूहे ने ही मुझे काट खाया था।' ऐसा कहकर मजाक उड़ाते और मास्टर भी उसकी गलती मानते। ऐसे में जब उसका मन खराब हो जाता तो भूगोल के मास्टर साहब उसे दिलासा देते और दूसरे विद्यार्थियों को डांट मारते। इसी कारण विनायक के मन में मास्टर साहब की एक पृथक छवि अंकित हो गई थी जिसकी छाप उसके प्रिसिंपल बनने के बाद भी ज्यों की त्यों रही।
भूगोल के मास्टर साहब उर्दू के मिडिल पास ही थे लेकिन वे बहुत विद्वान कहलाते थे जिनकी सारी जमात कायल थी। विनायक भूगोल की कक्षा में प्रथम आने के कारण उस कक्षा का मॉनीटर बन गया था जबकि असली मॉनीटर इससे ईर्ष्या करता था तथा उसे सदैव कष्ट पहुँचाने का प्रयास करता। इसी कारण भूगोल की कक्षा में विनायक भारी प्वाइंटर उठाकर सबसे प्रश्न करता और उन्हें तंग कर अपना बदला लेता। असल में मास्टर साहब बहुत गरीब परिवार से थे और अन्हें 25 रूपये मासिक वेतन ही मिलता था लेकिन फिर भी उनका मन बहुत उदार था। वे कष्ट में विनायक के दुख दूर करते और पढ़ाई-लिखाई में भी उसका ध्यान रखते। लेकिन मास्टर साहब का स्वभाव आलस्य से परिपूर्ण था जिस कारण वे कक्षा देरी से आते और देर तक कक्षा लेते रहते। जब मास्टर जी कक्षा में आने में देर लगाते तब | विनायक ही कक्षा का निरिक्षण करता और प्वाइंटर से सब पर नियंत्रण रखता। इसी कारण कुछ विद्यार्थियों ने ईर्ष्यावश प्वाइंटर को चूहे की मूँछ कहना शुरु कर दिया था ऐसे में जब विनायक का मन खराब होता हो मास्टर साहब सब पर क्रोध करते थे।
आज स्कूल को पूरा हुए दस-बारह वर्ष बीत चुके हैं। विनायक ने प्रथम श्रेणी में एम ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा अपने ही स्कूल का मुख्याध्यापक नियुक्त हुआ। अब वह डिस्ट्रिक बोर्ड का साधारण मिडिल स्कूल सरकारी हाई स्कूल बन गया था जिसका पूरा वातावरण बदल चुका था। पुराने जमाने का कोई चिह्न शेष नहीं था लेकिन विनायक के स्नेही माग्य साहब अभी भी वहां कार्यरत हैं। वे अब वृद्ध हो चुके हैं। विनायक उस स्कूल का मुख्याध्यापक है जिससे सब डरते हैं और उसका सम्मान भी करते हैं। उनके नियंत्रण में पूरा स्कूल अनुशासन के साथ चल रहा है। विनायक के मास्टर साहब भी उनके नियंत्रण में प्रायः डरते हुए ही कार्य करते हैं। लेकिन विनायक के मन में उसके अध्यापक के प्रति सम्मान का भाव ज्यों का त्यों विद्यमान है।
मास्टर साहब विनायक की नियुक्ति से प्रसन्न और खिन्न दोनों ही हैं। वे खिन्न इसलिए हैं कि उन्हें पहले के मुख्याध्यापकों से उनकी आलसी वृति के कारण बात सुननी पड़ी है। लेकिन अपने शिष्य के सम्मुख वे इस वृति से निजात पाने की कोशिश से युक्त दिखलाई देते हैं। वे अपनी आदत को बदलना चाहते हैं लेकिन इनका भी स्वभाव बदल नहीं पा रहा है। उनकी कक्षा में अनुशासनहीनता रहती है लेकिन फिर भी विनायक उन्हें कुछ न कहता। एक बार गर्मी के मौसम में उन्होंने देखा कि मास्टर साहब उनके कमरे के निकट एक पेड़ के नीचे कुर्सी पर सो रहे हैं और उनके सामने बैठे विद्यार्थी शोर मचा रहे हैं। जब यह शोर विनायक से सहन नहीं हो पाता तो वह तुरंत मास्टर साहब के पास जाकर जोर से 'मास्टर साहब' कहता है जिससे बच्चे शांत हो जाते हैं और मास्टर साहब को भी बहुत लज्जा आती है। मास्टर साहब का लज्जित चेहरा देख विनायक शांत हो जाता है और वहां से चला जाता है। लेकिन विनायक को चैन नहीं आता और वह अपने व्यवहार के बारे में सोच परेशान हो जाता है।
विनायक दोपहर के ग्यारह बजे तेज लू के बीच गरम जमीन पर नंगे पांव चलते हुए शहर के बिलकुल बाहर खेत के किनारे स्थित मास्टर साहब के घर पहुंचता है। वे अपने मास्टर साहब को पेड़ के नीचे सोया हुआ पाता है तो वह उनके निकट जाकर चुपचाप उनका पैर दबाने लगता है। मास्टर साहब सहसा जाग उठते हैं और चौंक कर विनायक को देखते हुए उठ खड़े होते हैं तथा आँसू बहाते हुए विनायक को गले लगा लेते हैं। यह देख ऐसा प्रतीत होता है मानो दोनों अपने गिले शिकवे दूर का रहे थे। तत्पश्चात् कुछ दिन बाद विनायक की सिफारिश से मास्टर साहब को एक प्रारंभिक स्कूल का मुख्याध्यापक बना दिया जाता
मेरे मास्टर साहब कहानी के प्रमुख पात्रों का चरित्र चित्रण
मेरे मास्टर साहब कहानी के प्रमुख पात्रों का चरित्र चित्रण निम्नलिखित है -
मास्टर साहब का चरित्र चित्रण
मास्टर साहब इलाहाबाद के हाई स्कूल के भूगोल के अध्यापक हैं जिन्हें कहानी के अंत तक उनके शिष्य एवं र्वतमान में उनके स्कूल के प्रिसिंपल विनायक द्वारा प्रारंभिक स्कूल का मुख्याध्यापक बना दिया जाता है। वे गरीब परिवार से थे तथा 25 रूपये मासिक वेतन से ही परिवार का पालन पोषण करते थे। गरीबी होने के बाद भी उनका हृदय बहुत विशाल एवं उदार था तथा वे शिक्षण कार्य बड़ी कुशलता से संपन्न करते थे। भूगोल के अंतर्गत जब वे बिजनौर जिले का विश्लेषण करते थे तो उनसे सारी जमात प्रभावित होती थी। मास्टर साहब शिष्यों के प्रति समर्पित रहते थे खासकर उन्हें विनायक से विशेष लगाव था। इसी कारण इन्होंने उसका बहुत साथ दिया तथा शैक्षिक ज्ञान देने के साथ-साथ जब जब वह उदास होता तब-तब उसकी उदासी दूर कर उसे नव उत्साह प्रदान किया। मास्टर साहब में एक सबसे बड़ी कमी आलस्य की थी। वे देर से प्रायः कक्षा में आते थे तथा देर तक कक्षा लेते रहते थे जिसके कारण उन्हें प्रायः लज्जित होना पड़ता । यहाँ तक कि एक बार इसी प्रवृति के चलते स्कूल के प्रिसिंपल और उनके विद्यार्थी विनायक द्वारा भी उन्हें ऊँची आवाज सुननी पड़ी। इसी कारण वे प्रायः मानसिक व्यथा से पूर्ण रहते थे। वस्तुतः लेखक ने मास्टर साहब के रूप में एक आदर्श गुरु की संकल्पना रखी जिसमें गुण-अवगुण दोनों ही विद्यमान थे। विनायक उनकी श्रेष्ठ गुरु की विशिष्टता के कारण उनके सम्मुख सदैव नतमस्तक रहता था ।
विनायक का चरित्र चित्रण
विनायक इलाहाबाद के हाई स्कूल का प्रधानाचार्य है। वह तीक्ष्ण बुद्धि वाला, अनुशासनप्रिय एवं विद्वान है। उसकी इन विशिष्टताओं की छाप उनके विद्यार्थियों एवं अध्यापकों पर इस कदर छायी हुई है कि सभी गर्व भाव से युक्त रहते हैं। उसका बचपन विविधताओं से युक्त था जहाँ एक ओर उसकी तीक्ष्ण बुद्धि के कारण उसके भूगोल के मास्टर साहब उसके प्रशंसक थे वहीं दूसरी ओर उसके छोटे कद, तेज चाल और चमकीली आँखों के कारण उसका नाम 'चूहा' पड़ गया तथा कक्षा के मोनीटर द्वारा वह सताया जाने लगा। भूगोल की कक्षा में अपनी कक्षा का मोनीटर वह स्वयं था अतः कक्षा के मूल मोनीटर से वह प्रायः एक 'प्वांइटर' द्वारा अपने अपमान का बदला लेता। इसी कारण कुछ दिनों में उसके 'प्वांइटर' को सब 'चूहे की मूँछ' कहकर चिढ़ाने लगे। इस बात से नाराज हो वह प्रायः उदास रहता लेकिन उसकी उदासी उसके अध्यापक दूर करते थे। विनायक में गुरु भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी तथा वह अपने भूगोल के मास्टर साहब के समक्ष सदैव नतमस्तक रहता है। उसकी गुरु भक्ति एक ऐसी विशिष्टता है जिससे उनका चरित्र आदर्श रूप में देखा जा सकता है। विनायक अपने मास्टर के प्रति आदर भाव ही नहीं रखता बल्कि एक उपयुक्त पद प्राप्त करने के बाद गुरु दक्षिणा रूप में गुरु का न केवल वेतन वृद्धि करवाता है बल्कि उन्हें एक आरंभिक स्कूल का मुख्याध्यापक भी बनवाता है। विनायक कुशाग्र बुद्धि वाला सहृदयी एवं सज्जन व्यक्ति है जिसे मास्टर साहब की शिक्षा सदैव स्मरण रहती है और वह उन्हीं के मार्ग पर आजीवन चलता रहता है।
मेरे मास्टर साहब कहानी के प्रश्न उत्तर
प्र. कौन प्रिसिंपल है? उसका संक्षिप्त परिचय दें?
उत्तर - सरकारी हाई स्कूल का प्रिसिंपल विनायक है जो 10-12 वर्ष पूर्व अपनी स्कूली शिक्षा इसी स्कूल से पूर्ण कर चुका है। पहले यह स्कूल डिस्ट्रिक्ट बोर्ड का साधारण मिडिल स्कूल था। विनायक कुशाग्र बुद्धि वाला अनुशासनप्रिय एवं विद्वान है जिसमें प्रथम श्रेणी में एम.ए. की शिक्षा उतीर्ण की है। इसमें गुरु भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है और वह सज्जनता एवं उदारता की साक्षात मूर्ति है।
प्र. गंजी खोपड़ी की धाक किस कारण है?
उत्तर - विनायक के बाल चाहे समय से पूर्व ही उड़ गए लेकिन फिर भी उसकी गंजी खोपड़ी में समाहित बुद्धि बड़ी विलक्षण है। वह अपनी पृथक पहचान बनाने वाला, अनुशासनप्रिय और विद्वान है। इसी कारण उसकी इनं प्रतिभाओं को देख उसके समस्त विद्यार्थी एवं अध्यापक उसका सम्मान करते हैं, उसके प्रति गर्व का भाव रखते हैं तथा सभी के हृदय में उसकी अमिट छाप और धाक अकिंत है।
प्र.'चूहा' नाम किसने दिया और उसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर - विनायक के बचपन में कद छोटा था, चाल तेज थी तथा आँखों चमकीली थी इसी कारण उसके गणित के अध्यापक ने उसे 'चूहा' कहकर बुलाया था। इस नामकरण के प्रभावस्वरूप कक्षा के अधिकांश विद्यार्थी उसे 'चूहा' कहने लगे और उसे चिढ़ाने लगे जिससे उसका मन उदास रहने लगा।
प्र. 'चूहा' उपनाम में और क्या परिवर्तन हुआ और कैसे?
उत्तर - विनायक भूगोल विषय में अच्छे अंक प्राप्त करता था। इसी कारण भूगोल के मास्टर साहब उसे अपनी कक्षा का मॉनीटर बना देते हैं। इससे कक्षा का मूल मॉनीटर विनायक से ईर्ष्या करने लगता है और उसे समय समय पर परेशान करता है। विनायक भी एक प्वाइंटर की सहायता से भूगोल की कक्षा में अपना बदला लेता है। कुछ दिनों बाद छात्र इस प्वाइंटर को चूहे की मूँछ कहने लगते हैं जिससे 'चूहे' उपनाम में परिवर्तन आ
जाता है।
प्र.मास्टर साहब की विशेषताएँ बताइए?
उत्तर - मास्टर साहब बहुत गरीब लेकिन उदार मन वाले थे जो 25 रुपये मासिक वेतन से परिवार का पालन पोषण करते थे. भूगोल विषय के विशेष थे तथा सभी विद्यार्थी उनकी शिक्षण शैली से बहुत प्रभवित थे। नाम के अपने शिष्य से बहुत लगाव था जिसका वे हर सुख दुख में बहुत साथ देते थे तथा यथासम्भव वे अपने विद्यार्थियों के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे ।
प्र .भूगोल की कक्षा में मॉनीटर का क्या प्रकरण था?
उत्तर - भूगोल विषय में विनायक सबसे उत्तम अंक प्राप्त करता था इसी कारण भूगोल के मास्टर साहब ने विनायक को अपनी कक्षा का मॉनीटर बनाया था। जबकि मूल मॉनीटर विनायक से चिढ़ता था और उसे तंग करता था। ऐसे में विनायक भूगोल की कक्षा आने पर इस विषय से संबंध गहन प्रश्न सबसे पूछता और 'प्वाइंटर' द्वारा मूल मॉनीटर से अपने अपमान का बदला लेता था।
प्र .लेखक असली मॉनीटर को कैसे तंग करता था और क्यों?
उत्तर - लेखक असली मॉनीटर से भूगोल की कक्षा में बड़े कठिन प्रश्न पूछता और 'प्वाइंटर' द्वारा मार कर तंग करता था और वह ऐसा इसलिए करता था क्योंकि असली मॉनीटर उसे कक्षा में चिढ़ाता था ।
प्र .विनायक की नियुक्ति पर मास्टर साहब की क्या प्रतिक्रिया हुई और क्यों ?
उत्तर - विनायक की नियुक्ति उसी के स्कूल में मुख्याध्यापक के रूप में हुई। यह देख मास्टर साहब को सबसे पहले प्रसन्नता हुई क्योंकि आज उनका शिक्षण रंग लाया था और उनके शिष्य को उनसे भी बड़ी पदवी मिल गई थी। लेकिन साथ ही वे खिन्न भी हो उठे क्योंकि बुढ़ापा निकट आने के कारण उनका आलस्य और भी अधिक बढ़ गया था। वे पुराने मुख्याध्यापकों से तो फटकार सुन लेते थे लेकिन अपने शिष्य के सामने उन्हें इस स्वभाव पर नियंत्रण पाने का प्रयत्न करना पड़ा जिसमें वे प्रायः असफल ही रहते हैं।
प्र .लेखक मास्टर साहब के घर क्यों गया?
उत्तर लेखक हाई-स्कूल का मुख्याध्यापक है जिसके कार्यालय के सामने एक दिन मास्टर साहब ऊंघते हुए और कक्षा के विद्यार्थी अनुशासन भंग करते पाये जाते हैं। यह देख विनायक इस अनुशासनहीनता को सह नहीं पाता और वह वहाँ पहुँचकर मास्टर साहब को जोर से आवाज़ लगाता है। यह आवाज़ सुन मास्टर साहब लज्जित होते हैं और मास्टर साहब को लज्जित देख
प्र .प्रस्तुत कहानी से क्या संदेश मिलता है?
उत्तर 'मेरे मास्टर साहब' चंद्रगुप्त विद्यालंकार की एक बहुचर्चित कहानी है। इसमें इन्होंने शिक्षक शिक्षार्थी के संबंधों की उदारता को रेखांकित किया है। यह कहानी हमें सीख देती है कि गुरु शिष्य का संबंध बढ़ा पावन एवं नाजूक होता है। गुरु हर परिस्थिति में शिष्य का सुखद भविष्य निर्मित करते हैं जबकि श्रेष्ठ शिष्य भी बड़ी से बड़ी पदवी मिलने के बाद भी गुरु के प्रति सम्मान एवं आदर भाव को बनाए रखता है। हमारी पहचान हमारे गुरु एवं शिक्षा से है। अतः गुरु के प्रति आदर भाव को हमें कभी नहीं भुलाना चाहिए।
प्र .मास्टर साहब की आँखों से आँसू क्यों बह रहे थे?
उत्तर मास्टर साहब अपनी आलसी प्रवृति के कारण लज्जित थे जबकि उनका शिष्य विनायक जोर से उनके आगे बोलने के कारण शर्म महसूस करता है। शिष्य में अपने प्रति इतना सम्मान देख मास्टर साहब को रोना आ
जाता है।
मेरे मास्टर साहब कहानी के शब्दार्थ
संध्या - शाम
हितचिंतक - भला सोचने वाला
अवगुण - दोष या कर्म
गुप्त - छिपी हुई
यथासंभव - जहां तक हो सके
जमात - कक्षा
व्यथित - व्याकुल या परेशान
उपेक्षा - नजरंदाज
मानसिक - मन से संबन्धित
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