निर्मला उपन्यास की नायिका निर्मला का चरित्र चित्रण निर्मला उपन्यास की निर्मला का चरित्र चित्रण करें nirmala ka charitra chitran in hindi Nirmala Munsh
निर्मला उपन्यास में निर्मला का चरित्र चित्रण
निर्मला उपन्यास की नायिका निर्मला का चरित्र चित्रण निर्मला उपन्यास की निर्मला का चरित्र चित्रण करें nirmala ka charitra chitran in hindi Nirmala Munshi Premchand - मुंशी प्रेमचंद निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यास है। इस उपन्यास में आपने दहेज़ प्रथा की बुराइयों व अनमेल विवाह को आधार बनाकर लेखन कार्य किया है।निर्मला उपन्यास के मुख्य पात्रों में निर्मला का स्थान प्रमुख है और वही उपन्यास की नायिका भी है। निर्मला की चारित्रिक विशेषताओं का विश्लेषण निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से कर सकते हैं -
विचारशील नवयुवती
निर्मला उपन्यास में निर्मला अपने बालपन से ही एक विचारशील तरुणी के रूप में चित्रित हुई है। गुड़िया से खेलने वाली निर्मला जब अपने विवाह के बारे में सुनती है तब उसकी सारी चंचलता लुप्त हो जाती है और वह अपने भविष्य के प्रति सोचने लगती है। इसी सोच-विचार में निर्मला को लगता है कि विवाह के पश्चात् एक दिन भाई-बहन, माता-पिता सब उसे भूल जाएँगे और वह उन्हें देखने को भी तरस जाएगी। विवाह के पश्चात् भी निर्मला अपने घर परिवार की समस्याओं और अपने अनिश्चित भविष्य के प्रति सदा ही संवेदनशील रही है। अपनी ससुराल में निर्मला अच्छे-बुरे के प्रति सतर्क रहती है और प्रत्येक कार्य को विचार करने के पश्चात् ही करती है।
भविष्यद्रष्टा
निर्मला में संकेत रूप से अपने भविष्य को देखने की सामर्थ्य भी दिखलाई देती है। स्वप्न के माध्यम से निर्मला अपने अनिश्चित भविष्य को पढ़ लेती है। स्वप्न के संकेत निर्मला को पहला विवाह टूटने और दूसरा विवाह होने के स्पष्ट दृश्य दिखला देते हैं। सुन्दर नाव उससे छूट जाती है परन्तु एक टूटी हुई डोंगी उसे बिठा लेती है। इस डोंगी में न पाल है, न पतवार, न मस्तूल। पेंदा फटा हुआ है, तख्ते टूटे हुए हैं और नाव में पानी भरा हुआ है। वह स्वयं भी मल्लाह के साथ पानी उलीचने की कोशिश करती है पर नाव नीचे से खिसक जाती है और उसके पाँव उखड़ जाते हैं। यह स्पष्ट रूप से निर्मला के भविष्य, उसकी जर्जराती गृहस्थी और दुःखमय जीवन के संकेत थे जो स्वप्न के माध् यम से निर्मला को पहले ही ज्ञात हो जाते हैं।
सहनशीलता
प्रस्तुत उपन्यास की निर्मला अत्यंत सहनशील स्त्री के रूप में चित्रित हुई है। विवाह के पश्चात् ससुराल जाने और तोताराम के संसर्ग में रहने से निर्मला के भीतर की सुन्दर स्त्री अत्यन्त आहत होती है। परन्तु निर्मला अपने मन को मारकर तोताराम द्वारा किए जा रहे यौवन के करतब अत्यन्त सहनशीलता के साथ मौन रहकर देखती रहती है। इसी प्रकार मंसाराम के साथ बातचीत करने पर तोताराम द्वारा किए जा रहे संदेह और विधवा ननद रुक्मिणी के कडुवे बोल भी निर्मला बर्दाश्त करती रहती है। इतना ही नहीं, जियाराम तथा सियाराम भी निर्मला के साथ कटु व्यवहार आरम्भ कर देते हैं परन्तु निर्मला अपनी सामर्थ्य रहने तक वह सब सहन करके मौन बनी रहती है। अपने जेवर चोरी हो जाने तथा सियाराम की मृत्यु की घटना से वह अत्यन्त आहत होती है तथा उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है। अन्त में तो पति तोताराम भी साथ छोड़कर चले जाते हैं। वह यथासम्भव गृहस्थी को सम्भालने का प्रयत्न करती है। डॉ. भुवनमोहन द्वारा किए गए अप्रत्याशित व्यवहार की शिकायत भी वह सुधा से न करके बात को टालने का प्रयत्न करती है। इस प्रकार निर्मला में सहनशीलता का अद्भुत गुण दृष्टिगत होता है।
करुणामयी माँ
विवाह के पश्चात् निर्मला अपने पति तोताराम की पूर्व पत्नी के तीनों पुत्रों-मंसाराम, जियाराम और सियाराम पर मातृवत् स्नेह रखते हुए उन्हें प्यार करती है। सियाराम को पिता द्वारा डाँटे एवं कान उमेठे जाने पर रोता हुआ देखकर निर्मला स्वयं को रोक नहीं पाती और उसे उठाकर अपनी छाती से लगाकर पुचकारने लगती है। इसी प्रकार मंसाराम द्वारा खाना न खाने और घर की ओर से उदासीन होने पर भी वह चिन्तामग्न हो जाती है। बीमार मंसाराम के बारे में वह बार-बार जियाराम से मालूम करती रहती है और चाहती है कि उसे घर लाया जाए जिससे उसकी उचित देखरेख हो सके। जब... निर्मला को पता चलता है कि मंसाराम को किसी युवा के रक्त की आवश्यकता है तो वह मुंशी तोताराम के सारे निर्देशों की अवहेलना करके रक्त देने के लिए अस्पताल में पहुँच जाती है। जियाराम द्वारा गहने चुराए जाने पर भी वह चेष्टा करती है कि जियाराम पर आरोप न लगे। यद्यपि बाद में परिस्थितियों से विवश होकर वह समर्पण कर देती है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि उपन्यास के अंत में निर्मला सियाराम से विमाता की भाँति व्यवहार करती है परन्तु इसका मूल कारण मुंशी तोताराम ही हैं जो अपनी संदेह करने की प्रवृत्ति और असफलताओं से निर्मला को इस स्थिति तक पहुँचा देते हैं अन्यथा निर्मला एक करुणामयी माँ की भाँति बालकों पर स्नेह रखते हुए उनकी दैनिक आवश्यकताओं का पूरा-पूरा ध्यान रखती थी।
कुशल गृहिणी
निर्मला अपनी कम आयु के बावजूद भी ससुराल के समस्त कार्यों को दक्षतापूर्वक सम्भाल लेती है। उस पर जो दायित्व सौंपा गया उसने उसका कुशलतापूर्वक निर्वाह किया। निर्मला परिवार के प्रत्येक सदस्य की आवश्यकताओं, विशेषकर बालकों की रुचि अरुचि का पूरा-पूरा ध्यान रखती है। बालकों को खिलाना-पिलाना, कपड़े पहनाना और कहानी सुनाने जैसे कार्य भी निर्मला दक्षतापूर्वक सम्पन्न करती है। बच्चों के लालन-पालन में वह इस प्रकार व्यस्त हो जाती है मानों वही उनकी सगी माँ हो। इसके अतिरिक्त वह कुशल गृहिणी की भाँति तोताराम के मनोभावों को भी जाँचती-परखती रहती है और अवसर के अनुसार कार्य करती है। तोताराम द्वारा किए जा रहे संदेह को भी निर्मला भलीभाँति जाँचती परखती है और घर की शांति और अपने पति की प्रसन्नता के लिए उसके अनुकूल ही कार्य करती है। इस प्रकार निर्मला एक कुशल गृहिणी के रूप में चित्रित हुई है।
पतिव्रता
निर्मला का विवाह एक बेमेल विवाह था। तोताराम उसके पिता की आयु के व्यक्ति थे। निर्मला स्वयं भी तोताराम को पति के रूप में स्वीकारने में झिझकती है। परन्तु वह अपने पति की प्रसन्नता के लिए अपनी सभी इच्छाओं का बलिदान कर देती है। निर्मला वही सब करने का प्रयत्न करती है जो मुंशी तोताराम चाहते हैं। वह कभी कोई ऐसी बात नहीं कहती जिससे तोताराम में हीनभावना की उत्पत्ति हो । घर-गृहस्थी चलाने के साथ ही वह मुंशी तोताराम के भले-बुरे समय की संगिनी भी है। तोताराम की निरंतर असफलताओं के पश्चात् भी वह उनका सम्मान करती है। निर्मला एक उच्च चरित्र की महिला के रूप में चित्रित हुई है। मुंशी तोताराम द्वारा संदेह किए जाने पर वह मंसाराम से मातृवत् स्नेह रखते हुए भी स्वयं को उससे अलग कर लेती है। तोताराम की प्रत्येक परेशानी में निर्मला उसका साथ देती है और कभी भी उसकी असफलताओं पर उलाहना नहीं देती। इस प्रकार निर्मला एक सच्चरित्र एवं पतिव्रता स्त्री के रूप में चित्रित हुई है।
अभागिनी नारी
निर्मला जो कि इस उपन्यास का केन्द्रीय चरित्र है, गुणवती होते हुए भी समय की आँधी में उड़ा हुआ एक तिनका बनकर रह जाती है। दुर्भाग्य निर्मला को इतना बेबस कर देता है कि वह समय की गति को स्वीकारने के अतिरिक्त और कुछ भी करने में असमर्थ हो जाती है। सामाजिक बंधन, परम्पराएँ और रूढ़ियाँ निर्मला के लिए पिंजरा बन जाती हैं जिनमें कैद होकर वह फड़फड़ाने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं कर पाती। परन्तु वह अपनी स्थिति और उसके कारणों को भली प्रकार समझती है। इसीलिए अन्त में मृत्यु से पूर्व वह अपनी पुत्री को रुक्मिणी को सौंपती हुई कहती है कि भले ही इसे अविवाहित रखना अथवा जहर दे देना पर इसका बेमेल विवाह मत करना। इस प्रकार निर्मला सामाजिक विषमताओं और विसंगतियों का प्रतीक बनकर रह गई है। दुर्भाग्य उसके सपनों को बिखेर देता है और निर्मला जैसा मासूम पुष्प परिस्थितियों के काँटों से घिरा हुआ असमय ही इस दुनिया से विदा हो जाता है।
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