निर्मला मुंशी प्रेमचंद उपन्यास का उद्देश्य प्रेमचंद की निर्मला nirmala upanyas ka uddeshya प्रेमचंद की निर्मला उपन्यास निर्मला उपन्यास की मूल समस्या
निर्मला मुंशी प्रेमचंद उपन्यास का उद्देश्य
निर्मला उपन्यास का उद्देश्य क्या है निर्मला उपन्यास का उद्देश्य पर प्रकाश डालिए nirmala upanyas by munshi premchand प्रेमचंद की निर्मला nirmala upanyas ka uddeshya प्रेमचंद की निर्मला उपन्यास - निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद जी का प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यास है। इस उपन्यास में आपने समाज में व्याप्त अनेक प्रकार की कुरीतियों, आडम्बरों और कुप्रथाओं के प्रति सचेत किया है। समाज में व्याप्त अवांछित परम्पराओं को यदि त्यागा नहीं गया तो निर्मला जैसी अनेक कन्याओं का जीवन नष्ट होता रहेगा। अतः उपन्यासकार के द्वारा दिए सन्देश का आत्मसात करके सामाजिक बुराइयों को दूर करना चाहिए। प्रस्तुत उपन्यास निर्मला अनेक विषयों पर समाज को सतर्क करता है। निर्मला उपन्यास के उद्देश्य को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं -
गृहकलह से सर्वनाश
निर्मला उपन्यास का आरम्भ निर्मला के विवाह की तैयारियों से होता है। इसी मध्य निर्मला के पिता उदयभानुलाल और माता कल्याणी के मध्य बारात की आवभगत को लेकर कहासुनी हो जाती है। यही कहासुनी कलह का रूप धारण कर लेती है। उदयभानुलाल पत्नी को सबक सिखाने की ठानकर घर छोड़ देते हैं और एक गुण्डे के हाथों मारे जाते हैं। उदयभानुलाल की मृत्यु से निर्मला के विवाह का सारा समीकरण गड़बड़ा जाता है और अंत में निर्मला दुर्भाग्य की खाई में गिर जाती है। यदि उदयभानुलाल और कल्याणी में कलह न हुई होती तो घर-परिवार और निर्मला का भाग्य यूँ चीथड़ा-चीथड़ा न होते।
दहेज प्रथा का विरोध
निर्मला उपन्यास में परोक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप से दहेज प्रथा से समाज में उत्पन्न होने वाली विसंगतियों को दर्शाया गया है। उदयभानुलाल की मृत्यु के पश्चात् निर्मला का परिवार दहेज देने में असमर्थ हो जाता है जिस कारण बाबू भालचन्द्र अपने पुत्र भुवनमोहन के साथ निर्मला का विवाह करने से मना कर देते हैं। स्वयं भुवनमोहन भी दहेज की इच्छा रखता है। निर्मला की माँ कल्याणी विवश होकर निर्मला का विवाह अधेड़ आयु के एक व्यक्ति मुंशी तोताराम से कर देती है। यह बेमेल विवाह केवल निर्मला का स्वप्न संसार ही नहीं उजाड़ता बल्कि मुंशी तोताराम का घर परिवार भी उजाड़ देता है। इस प्रकार यदि दहेज की कुप्रथा न होती तो निर्मला का जीवन बर्बाद होने से बच सकता था। दहेज प्रथा एक अभिशाप है।
बेमेल विवाह का परिणाम
मुंशी तोताराम अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात् अपने घर-परिवार और स्वयं अपनी सुख- सुविधा के लिए निर्मला से विवाह करते हैं। परन्तु मुंशी तोताराम भूल जाते हैं कि आयु का अन्तर जीवन में सुख के स्थान पर दुःख भी ला सकता है। निर्मला के पिता की आयु के मुंशी तोताराम युवा बनकर निर्मला को रिझाने का प्रयत्न तो करते हैं परन्तु अपने अन्दर ही अन्दर हीनभावना से भी ग्रस्त होते जाते हैं। इसी हीनभावना के कारण कुंठाग्रस्त मुंशी जी अपने ही बेटे मंसाराम पर संदेह करने लगते हैं और उसकी मृत्यु का कारण बनते हैं। मुंशीजी दूसरे दोनों बेटों से भी मानसिक रूप से दूर हो जाते हैं और जियाराम तो मुंशी जी को ही मंसाराम का हत्यारा समझने लगता है। इस प्रकार घर का सुख और शान्ति नष्ट हो जाते हैं।
मुंशी तोताराम के लिए घर नरक कुंड बन जाता है। दूसरी ओर निर्मला भी इस बेमेल विवाह के कारण पग-पग पर आहत होती है। अकारण संदेह की पात्र बनी निर्मला के स्वप्न इसी बेमेल विवाह के कारण बिखर जाते हैं और वह दुर्भाग्य की कैदी बनकर रह जाती है। यही बेमेल विवाह निर्मला को माता से विमाता बना देता है। मृत्यु से पूर्व निर्मला अपनी ननद रुक्मिणी से अपनी यही इच्छा प्रकट करती है कि वह भले ही उसकी पुत्री को आजीवन अविवाहित रखे अथवा विष देकर मार दे पर बेमेल विवाह न करे । इस प्रकार यह उपन्यास दहेज प्रथा और दहेज प्रथा के कारण होने वाले विवाह के दुष्परिणामों को प्रकट करता है।
अंधविश्वास का विरोध
निर्मला उपन्यास में अन्धविश्वास से होने वाले सर्वनाश को भी चित्रित किया गया है। सुधा का त्र सोहन बुखार के कारण अस्वस्थ हो जाता है। सुधा स्वयं एक डॉक्टर की पत्नी है, लोगों परन्तु के कहने में आकर वह भी मान लेती है कि सोहन को नजर लगी है। जिस समय सोहन को चिकित्सक और चिकित्सा की आवश्यकता थी, सरकण्डों और माचिस की तीलियों से उसकी नजर उतारने के प्रयत्न किए जाते हैं। महँगू हाथ की सफाई से तीलियों का तमाशा करके यह सिद्ध कर देता है कि बच्चे को नजर ही लगी है और अब धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा। सभी उसकी बातों का विश्वास कर लेते हैं। इसका भयंकर परिणाम होता है तथा रात को नन्हा बालक सोहन मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। यह न तो संयोग था और न ही भाग्य । सोहन की मृत्यु का कारण अंधविश्वास था जिसके कारण उसे उचित उपचार प्राप्त नहीं हुआ।
इस प्रकार प्रस्तुत उपन्यास निर्मला समाज में व्याप्त अनेक प्रकार की कुरीतियों, आडम्बरों और कुप्रथाओं के प्रति सचेत करता है। समाज में व्याप्त अवांछित परम्पराओं को यदि त्यागा नहीं गया तो निर्मला जैसी अनेक कन्याओं का जीवन नष्ट होता रहेगा।
Andhviswas ki samasya
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