जीवन भर अभाव में रहने वाले लोग यदि कुछ थोड़ा भी प्राप्त कर लेते हैं तो स्वयं को किसी राजा से कम नहीं समझते। ऐसे में यदि वो छोटे बड़े की मर्यादा भूल गए त
पंजाब से आये हैं
एक रिश्तेदार की शादी में अलग अलग राज्यों से अतिथि सम्मिलित हुए। कोई महाराष्ट्र से आये, कोई उत्तर प्रदेश से आये, कोई गुजरात से आये तो कोई मध्य प्रदेश से आये किन्तु विषय है "पंजाब से आये हैं।" भारत देश का संविधान सबको एक नज़रिये से देखने का दावा करता है वो बात अलग है हम धर्म में बंटें हैं, जाति-उपजाति में बंटें, लिंग से बँटे हैं पर, भाषाओं से बँटे हैं, और कुछ तो रंग और नस्लों में बंटें हुए हैं किन्तु मैं स्तब्ध था कि इस सब से परे एक नजरिया राज्यों में बाँटने वाला भी लोगों में पनपने लगा है। सभी राज्य सरकारें अपने अपने अनुसार राज्यों के उत्थान हेतु लगी हुई हैं ऐसे में क्या पंजाब भारत का वो राज्य बन गया जहाँ दूसरे राज्यों से भ्रमण करने के लिए अनुमति पत्र (वीसा) लेना पड़ता हो? क्या पंजाब भारत देश के अन्य राज्यों की भाँति भारत का हिस्सा नहीं है?
पूरे लग्न शुभ मांगलिक कार्यक्रम में एक समूह बिलकुल अलग अलग चल रहा था। सभी स्तब्ध थे और समझने के प्रयास में लगे हुए थे कि आखिर परेशानी कहाँ है? अंत में पता चला परेशानी तो दिमाग में थी। अपने को स्वयं में अत्यंत महत्वपूर्ण समझने वाले, यदि किसी बाहरी व्यक्ति को श्रीमद् भागवत गीता पर हाथ रख कर शपथ दिला कर, अपने महत्व का वास्तविक चित्रण करने का अनुरोध कर दें तो उत्तर सुनकर पैरों तले जमीन ही खिसक जाए। भला अपने अहंकार में सबको शून्य समझ लेना आपके बुद्धि-लब्धि के शून्य होने का ही परिचायक हो सकता है किन्तु आप महत्वपूर्ण हैं ये निर्णय आप नहीं दूसरे लेंगे।
पूरी शादी में इस समूह को लगता था कि सब इनकी जी-हुज़ूरी करेंगे किन्तु परिणाम बिलकुल विपरीत आ गए। खिसियानी बिल्ली खम्बा नोंचे। परिणामस्वरूप कुंठित दिमागों से जनित विष हर किसी पर उगला जाने लगा। ये वही प्राणी थे जिनके वर्तमान पति द्वारा उनके ही पिता के लिए सार्वजनिक स्थल पर अपशब्द बोला गया साथ ही अपनी वर्तमान पत्नी की मुखाकृति का उपहास सार्वजनिक स्थान पर उड़ाया गया था। बाद में अपनी कुंठा उन्होंने ये कह कर पूरी की थी कि दो वर्ष पहले मेरी रिश्ते की बड़ी बहन को भी "वर्तमान पति" ने देखा था लेकिन उन्हें अस्वीकार करके मुझे स्वीकार कर लिया गया। जैसे उनके वर्तमान पति कोई श्री हरि विष्णु जी हो रहे हैं और वो स्वयं साक्षात् माँ लक्ष्मी।
मैं अकेला शान्त अलग बैठा इस तमाशे का अवलोकन कर रहा था जैसे मदारी के बन्दर का नाच देखने वाले किसी भीड़ का हिस्सा हूँ। छोटी छोटी बातों पर प्रतिक्रिया करने वाला वो समूह स्वयं को कोई पूर्ण बहुमत से नियुक्त सरकार के सांसदों के समूह की भाँति समझ रहा था। मुझे दुःख इस बात पर था कि कोई अपने बच्चों की शादी के लिए अपने जीवन भर की जमापूँजी एक झटके में लगा देता है और एक विशेष कुरिश्तेदार प्रजाति को उनके नाटकों से उत्पन्न हो सकने वाले दूरगामी परिणाम दृष्टिगोचर नहीं होते। कमियाँ या खामियाँ किस समारोह में नहीं रहती किन्तु परिपक्वता ये नहीं सिखाती कि एक गलती के चलते दस अच्छाईयां भूल बैठी जाए।
अंततः विवाह संपन्न हुआ और इस समूह के राडार पर मैं और मेरे पिताश्री आ गए। मुझे भलींभाँति इस बात का बोध था कि कुछ रिश्तेदार जो हमारे अपने होने का अनुभव हमें करवा रहे हैं वो किसी और के शतरंज का प्यादा हैं, किन्तु मेरे अबोध पिताश्री हमेशा ऐसे व्यक्तियों द्वारा छले गए हैं। स्वभाव से लक्ष्मण जी स्वरुप मेरे पिताजी को इस समूह की सरदारनी ने ललकारने का प्रयास किया और फिर क्या था मेरे गदाधारी भीम पिताजी ने इनके अहम् को ठंडा करने का एक निष्फल प्रयास किया; जिसके परिणाम से सभी अवगत थे। फलतः उस महामाया आदिमानव जैसी पिछड़ी सोच की अहंकारी महिला ने अपने पिताजी से भी बड़े उम्र के मेरे पिताश्री से अभद्र व्यवहार कर दिया। बात केवल विवाहोपरांत विदाई सामग्री को संबंधितों को पहुँचाने की थी जिस पर सहमति जताकर उस सामग्री को हमारे सामान में मिला दिया गया था और ये व्यवहार केवल इसका कारण पूछने भर से शुरू हो गया था। हाथ से लाचार एक वरिष्ठ नागरिक पर जिस तरह उस समूह ने हावी होने की कोशिश की वो कुरिश्तेदारों की श्रेणी को परिभाषित करने में स्वतः स्पष्ट है।
जैसे तैसे रवानगी के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन पहुंचे और आश्चर्यजनक बात ये रही कि “पंजाब से आए” समूह और “लेखक और उसका परिवार” दोनों समान स्तर पर थे। दोनों की ट्रेन एक ही और ट्रेन में श्रेणी भी एक ही। जबकि आशा ये थी कि अहंकारी व्यक्ति या तो वायुमार्ग से अपने गंतव्य पहुंचेंगे या फिर किसी विलासितापूर्ण ट्रेन के उच्चतम श्रेणी में यात्रा करेंगे और ऐसा किसी पूर्व अनुभव के आधार पर न होकर उनके दशानन से भी एक ऊपर के स्तर के अहंकार के कारण लग रहा था। पूर्व-अनुभव तो उनसे अनारक्षित श्रेणी में यात्रा का था क्योंकि पूरी ज़िन्दगी उन्होंने अनारक्षित श्रेणी में ही सफर किया था।
रेलवे स्टेशन पर अपना एक बैग जब लेने गया तो टेम्पो से उतरती वो महामाया आदिमानव महिला मेरी उपस्तिथि जानकार भी पुनः उकसाने हेतु व्यर्थ बातें करने लगी। विकल्प मेरे पास केवल दो थे या तो लक्ष्मण जी की भाँति अहंकारी के नाक कान काटकर उसके अहंकार का दमन कर देता या दूसरा उसके पिताजी को पूर्ण प्रकरण से अवगत करवा कर मामले को शांत करवाने की एक चेष्टा करता। अतः दूसरे विकल्प को स्वीकारते हुए विरोधी पक्ष की सरदारनी के पिताजी को कॉल लगाया। मेरे अंत से अभिवादन के साथ शुरू हुई उस सहसम्मान वार्तालाप में सामने वाला एक बात पर अटका हुआ था कि "वो पंजाब से आई है। वो अपने घर की अधिकारी है।"
और उत्तर के तौर पर मैं सिर्फ इतना ही बोला, "पंजाब को क्या अमेरिका से आई होती तो क्या उसे अपने से बड़ों से या किसी से भी बदतमीज़ी करने का लाइसेंस मिल गया? रही बात अधिकारी की तो वो गवर्नर बन जाए अपने घर की, लेकिन उससे इस मामले का क्या लेना देना? और मैं आपकी कोई बात नहीं सुनूँगा आप मेरी सुनिए उसने पापा से बदतमीज़ी की है।"
पर कहते हैं न शिक्षा घर से ही मिलती है। परिवार ही इंसान की प्रथम पाठशाला है। अंततः ढाक के तीन पात; किसी एक में भी परिपक्वता न दिखाई दी।
घर पहुँचने के बाद तरह तरह की बातें बनाई जाने लगी कि शादी के घर में नाटक हो गया। अड़ोस पड़ोस में मान प्रतिष्ठा कम हो गई। चीख़ चिल्लाहट हो गई कि उस महामाया आदिमानव जैसी कुंठित सोच वाली अहंकारी महिला ने अपना दाँव लगाया और एक बहुचर्चित सोशल मीडिया एप पर विवाहित रिश्तेदार और उसके परिवारियों को कोसने के लिए स्टोरी लगाई जिसे संभवतः उसके सभी कॉन्टेक्ट्स ने देखा हो। मैं तुच्छ प्राणी इतने महान लोगों को हमेशा अपने कॉन्टेक्ट्स से दूर रखता हूँ अतः इस सब बातों से अनभिज्ञ मैं, कुछ स्क्रीनशॉट्स विवाहित रिश्तेदार की बहन के अंत से प्राप्त करता हूँ जो उस अहंकारी महिला ने स्टोरी पर लगाया था, और उस पर लिखा था:
पहली स्टोरी थी:
"इस शादी की वजह से मैंने रोहतांग पास और वैष्णों देवी का टूर कैंसिल किया मेरी लाइफ का सबसे गलत डिसिशन था इस शादी को अटेंड करना। गॉड विल पनिश देम डेफिनिटली वन डे"
दूसरी स्टोरी थी:
"आज कल हिन्दू धर्म में भी रिश्तों को ईद की तरह मनाया जाता है पहले बटर लगाकर बकरा बनाया जाता है फिर पास बुलाकर हलाल कर दिया जाता है"
तीसरी स्टोरी थी:
"टूर वेस्ट, टाइम वेस्ट मनी वेस्ट मूड स्पोइल टू वर्स्ट हॉलीडेज"
इस सब को पढ़ने के बाद मैं स्तब्ध था कि आखिर ऐसा क्या हो गया जो अभद्रता करने वाला ही स्वयं को पीड़ित दिखा रहा है। चीख चिल्लाहट से अड़ोस पड़ोस में मान प्रतिष्ठा कम हुई इसका कोई प्रमाण नहीं लेकिन ऐसी स्टोरी से कहाँ कहाँ मान प्रतिष्ठा कम हुई होगी ये स्वतः स्पष्ट था। विवाह की मेज़बानी करने वालों ने बताया कि विदाई में एक मिठाई का डब्बा न मिलने की ये सब कुंठा थी, जिसकी पूर्ति आखिरी दिन रेलवे स्टेशन के रास्ते के बीच में नवविवाहित ने स्वयं से दो मिठाई के डब्बे पहुंचाकर की थी। लेकिन अहंकारी का अहं चोटिल होने का परिणाम ठीक वैसा ही अपेक्षित था जैसे अधमरा (जीवित) साँप।
एक पुरानी कहावत है कि जीवन भर अभाव में रहने वाले लोग यदि कुछ थोड़ा भी प्राप्त कर लेते हैं तो स्वयं को किसी राजा से कम नहीं समझते। ऐसे में यदि वो छोटे बड़े की मर्यादा भूल गए तो कोई हतप्रभ कर देने वाली घटना नहीं हो गई; यदि वह नवविवाहित को सुखी दांपत्य जीवन के आशीर्वाद की जगह शाप दे बैठे तो कोई हतप्रभ कर देने वाली घटना नहीं हो गई; आखिर पंजाब में हर कोई शरणार्थी दिलदार हो ऐसा ज़रूरी तो नहीं। आखिर पुण्यात्माओं के साथ पापियों ने ही तो इस पृथ्वी पर पाप-पुण्य में संतुलन बनाया हुआ है।
- मयंक सक्सैना 'हनी'
आगरा, उत्तर प्रदेश
(दिनांक 29/जून/2023 को लिखा गया सत्य घटना पर आधारित एक लेख)
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