द्वंद्व का अंत हिंदी कहानी आदर्श और शृंखला दोनों एक दूसरे के साथ दांपत्य जीवन में खुशी-खुशी सुख से रहने लगे। द्वंद्व का समापन हो गया था
द्वंद्व का अंत(भाग दो – द्वंद्व जारी है)
जैसे-जैसे समय बदलता गया, आदर्श का मन शीतल-भावनाओं से विरक्त होकर पारिवारिक कर्तव्यों की तरफ बढ़ने लगा। उसे अब धीरे-धीरे समझ में आने लगा कि शीतल जैसी लड़की के लिए अपनी जिंदगी और समय बर्बाद करने का कोई औचित्य नहीं है। इसी बीच उसकी नौकरी एक सरकारी कंपनी में लग गई। वह बीती हुई सभी बातों को छोड़कर जीवन के मजे लेने लगा। इसी बीच उसने गाँव में सबसे बड़ा घर बनाकर और एक कीमती कार खरीदकर अपने बचपन के सपने को पूरा किया । इससे गाँव में उसकी और उसके परिवार की साख और भी बढ़ गई।
गृह-प्रवेश होते ही घर वालों ने उसकी शादी की बात शुरु कर दिया। अब आदर्श का मन इन्हीं खयालों में रहने लगा कि जल्दी एक सुशील , शिक्षित, संस्कारी और खानदानी लड़की से, उसकी शादी हो जाए जिससे वह शीतल को हमेशा के लिए मन से निकाल सके।
अभी घरवालों ने लड़की देखना या कहें दुल्हन तलाशना शुरु किया ही था कि आदर्श की कंपनी ने उसका तबादला जामनगर कर दिया। बार-बार लड़की देखने के लिए वहाँ से घर आना आदर्श को भारी पड़ रहा था, जिससे संबंध तय करने में बाधा आने लगी । हर बार के बुलावे पर वह घर आ नहीं पाता था और लड़की वाले आदर्श की सुविधानुसार लड़की दिखाने में असमर्थ हो रहे थे । उधर घरवाले भी परेशान हो रहे कि घर के पास रहते ही शादी कर दिया होता, तो सही रहता। नए जगह में उसको खाने पीने की जो दिक्कत आ रही थी, वह तो कम से कम बच जाती।
घर वालों को जैसे ही किसी लड़की वालों का समाचार आता , वे उसे तुरंत आदर्श को भेज देते और आदर्श लड़की के बारे में जानकर निश्चित करता कि आगे बढ़ना है या नहीं । कुछ सही लगे तो फोटो मँगवाने की बात होती । फोटो के आने पर आदर्श तय करता कि लड़की देखनी है या नहीं। देखनी हो तो समय निश्चित कर अपनी छुट्टी का जुगाड़ कर आदर्श घर पर बताता । उसी प्रकार से लड़की वालों को खबर दी जाती । यदि सहमति बनी तो तयशुदा दिन आदर्श घर पहुँचता , लड़की देखता और सोच कर बताने की कहकर वापस आ जाता । जो थोड़ा बहुत समय घर पर मिलता था उसमें वह अपने घर के सदस्यों से इस बारे में चर्चा कर लेता, पर निर्णय जामनगर आकर ही देने की बात करता।
इसी शृंखला में घर वालों ने एक लड़की का बायो-डाटा भेजा । संयोगवश उस लड़की का नाम भी शृंखला ही था । बायो-डाटा देखकर ही शृंखला आदर्श को भा गई। उसने घरवालों से फोटो मंगवाने की फरमाइश कर डाला। कुछ दिनों में फोटो भी आ गई । लड़की फोटो में भी आदर्श को अच्छी लगी किंतु पूर्ण संतुष्टि नहीं हुई। समय पाने के लिए आदर्श ने घर वालों से छुट्टी नहीं मिलने की बहाना बनाया और पंद्रह दिनों का समय माँगा। उसकी सोच थी कि इन पंद्रह दिनों में कोई और बायो-डाटा नहीं आया तो वह शृंखला को देख आएगा।
अभी हफ्ता भर ही हुआ था कि सरकार ने कोरोना के कारण लॉक-डाउन की घोषणा कर दी। आदर्श का सारा बना-बनाया प्लान चौपट हो गया । आदर्श फिर उदास होता गया। कई महीनों तक तो वह घर भी नहीं जा पाया । लड़की देखने की बात तो धरी की धरी रह गई। इस बीच उसके मन में तरह -तरह के एहसास होने लगे। अपने सपनों की रानी को लिए वह अब तड़प की स्थिति की ओर बढ़ने लगा था। दिल के किसी कोने में यह डर भी सता रहा था कि इस बीच कहीं शृंखला का रिश्ता कहीं तय हो गया तो वह उससे वंचित रह जाएगा। हालाँकि वह शृंखला से पूरी तरह तसल्ली नहीं कर सका था, पर उसे पता नहीं क्यों कहीं न कहीं दिल के कोने में एक आस थी कि मुलाकात में उसकी रही सही समस्या का भी निदान हो जाएगा। उसका शृंखला की तरफ झुकाव उसे भी महसूस होने लगा था।
समय अपनी रफ्तार पर था । वह दिन भी आया जब सरकार ने लॉक-डाउन पर छूट देना शुरु किया । आदर्श को घर जाने का मौका मिला। आदर्श इस माहौल में लड़की देखने को तैयार नहीं था , पर घर वाले चाहते थे कि मौका न गँवाया जाए और आदर्श कम से कम शृंखला को देख आए । घर वालों के दबाव में और अपने अंदर की आतुरता के कारण अंततः आदर्श एक दिन तय करके शृंखला को देखने उसके घर पहुँचा । शृंखला पर नजर पड़ते ही उसकी आधी समस्याएँ दूर हो गई और बात करने पर पूरी तरह से आश्वस्त हो गया।
घर वालों से बात करके आदर्श ने शृंखला से शादी के लिए अपनी सहमति जता दिया। घर वालों से बात शृंखला के घर तक पहुँची । आदर्श को वापस जामनगर भी जाना था । इसलिए कुछ ही दिनों में ही शृंखला के घरवाले भी आदर्श के घर आए। पूरे परिवार से मिले। घर-द्वार देखा और दोनों परिवारों ने आपसी और लड़का - लड़की की पसंद से रिश्तेदारी के बंधन में बँध जाने का निर्णय लिया। सामाजिक व धार्मिक परिपाटियों के तहत देव उठनी एकादशी का इंतजार करना पड़ा।
देव उठनी एकादशी के आते ही दोनों परिवारों ने मिलकर आदर्श के जनम दिन को ही नारियल फोड़ने के लिए निश्चित किया।
नारियल फोड़ने की इस तिथि को तय करने के पीछे आदर्श का भी बड़ा हाथ था। पिछले कुछ सालों से अपने जन्मदिन को भी आदर्श कुछ अनमना सा रहने लगा था । उसकी जन्मदिन की खुशी में शीतल से उसी दिन बिछड़ने का भी गम शामिल हो जाता था । इसीलिए वह इस दिन की यादों में अपनी नई खुशी को शामिल करके, पुराने गम को हमेशा के लिए भुला देना चाहता था । 27 तारीख आदर्श का जन्मदिन था और शायद इसीलिए 27 को आदर्श शुभ भी मानता था । इसी के साथ उसकी कड़वी यादों के दिन को खुशनुमा बनाना चाहता था। उस समय तक यह राज केवल आदर्श को ही पता था। उसने अपने जनम दिन के एहसासों को खुशी में तबदील करने का ठोस तरीका ढूंढ लिया था।
तयशुदा दिन शृंखला के घर पर नारियल फूटा और दोनों परिवार एक होने का निश्चय कर गए। दोनों परिवारों में खुशी की लहर चल पड़ी । उनकी खुशी का ठिकाना ही न था। शृंखला ने जन्मदिन के अवसर पर आदर्श को बहुत सारे तोहफे भेजे जिसमें एक घड़ी प्रमुख थी।
दोनों परिवारों ने मिलकर प्रमुखों के सान्निध्य में मई में शादी की तारीख तय कर दिया । शुभ मुहूर्त देखकर बड़ों ने जनवरी में उनकी सगाई भी कर दिया। अब क्या था, वे एक दूजे के होने ही वाले थे। अब देर रात तक और समय - बे - समय उनकी बातचीत होती रहती थी। आश्चर्य की बात यह हुई कि एरेंज्ड-मेरेज उनके दैनंदिन वार्तालाप से लव मेरेज में बदलती जा रही थी। अक्सर प्यार के बाद जोड़े प्रणय-बंधन में बँधने की सोचते हैं किंतु यहां शादी तय होकर सगाई के बाद उनका प्यार पनपने लगा था । इससे दोनों में आपसी लगाव दिन दूना - रात चौगुना बढ़ने लगा और दोनों में शादी की आतुरता होने लगी। एक-एक दिन दोनों पर भारी पड़ रहा था। वे अलगाव के दिनों को कम करना चाह रहे थे जबकि मिलन तो होना अभी बाकी था।
अब जाकर आदर्श को पूरी तरह विश्वास हो गया कि जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। अब तक जिस शीतल के छोड़ने पर वह भगवान को कोसता था , अब उसी घटना के लिए वह भगवान को धन्यवाद देने लगा। शीतल के छोड़ने पर ही उसे शृंखला मिली थी वरना वह तो इससे वंचित ही रह जाता।
अब दोनों परिवारों में शादी की तैयारियाँ जोरों पर थी। आदर्श घर का बड़ा बच्चा था इसलिए भी परिवार के लिए यह एक खास आयोजन था। उधर श्रृंखला के घरवाले भी धूमधाम से शादी करने की तैयारी में थे । किंतु किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। कोरोना ने फिर अपना सर उठाया। लॉक-डाउन वापस आ धमका। कोरोना के डर से लॉक-डाउन के दौरान किसी भी आयोजन में 15-20 से ज्यादा लोगों के शामिल रहने की अनुमति नहीं थी। आयोजन को सादा ही रखना था किसी तरह की पार्टी या नाच गाना (डिस्को जॉकी) किसी की भी अनुमति नहीं थी। दोनों परिवारों में मायूसी छा गई कि अब आयोजन कैसे करें ? खासकर आदर्श के घरवाले ज्यादा दुखी थे क्योंकि यह उनके घर की पहली शादी थी।
शादी धूमधाम से करने की तमन्ना धूमिल हो रही थी । कोरोना था कि घटने का नाम ही नहीं ले रहा था जिससे कि सरकारी बंदिशें हटें। हालातों से सामंजस्य बनाते हुए आदर्श ने लग्न की तिथि को आगे बढ़ाने- बदलने का प्रस्ताव रखा लेकिन बुजुर्गों ने यह कहकर मना कर दिया कि लग्न को बदलना अशुभ होता है।
उधर हर दिन आदर्श और शृंखला इसी बात की चर्चा करते कि किस परिवार में क्या सोचा जा रहा है ? तैयारियाँ किस तरह चल रही हैं । किन-किन रिश्तेदारों को सीमित अतिथियों में शामिल किया जा रहा है.. वगैरह-वगैरह। दोनों का दिल दुखित होता पर मन मारकर एक दूसरे को अपना दुखड़ा सुनाते हुए, आँसू बहाते । उनको लगता था कि यह सब उनके साथ ही क्यों हो रहा है ? उसके इस दुखी मन में फिर से भगवान के होने न होने का विचार आने लगा।
होनी ने उन्हें इतने पर भी नहीं बख्शा। दोनों परिवारों का एक-एक सदस्य कोरोना की चपेट में आ गया। अब हालातों से मजबूर दोनों परिवारों ने सम्मिलित निर्णय लिया कि अब तो लग्न को आगे बढ़ाना ही होगा। अभी के लिए मुहूर्त टल गया। इसी के साथ आदर्श और शृंखला का इंतजार और बढ़ गया। उनमें नई तारीख की जिज्ञासा होने लगी और शादी की आतुरता चरम पर पहुँचने लगी।
आदर्श अपने विवाह में बार-बार हो रहे रुकावटों से खिन्न था । उधर शृंखला का भी करीब वही हाल था किंतु वह आदर्श को समझाती कि नियति उनकी परीक्षा ले रही है। उन्हें हिम्मत से काम लेना है। दांपत्य जीवन के सही शुरुआत से पहले ही वे परस्पर दुख-सुख के भागी होने लगे थे।
जब समय अनुकूल हुआ तो बुजुर्गों ने दूसरा लग्न देखा तय किया , अब 27 जून। आदर्श और शृंखला दोनों के मन में खुशी की लहर उठी , लड्डू फूटे । एक संशय भी घर कर गया था कि न जाने सरकार कितने अतिथियों की अनुमति देगी। अब हर कोई चाह रहा था कि जो भी हों, जितने भी बंधन हों, इस लग्न पर शादी हो ही जानी चाहिए। इसी निर्णय के साथ पुनः तैयारियाँ की गई। सरकारी आदेशानुसार सीमित अतिथियों की उपस्थिति में धूम-धाम से आदर्श और शृंखला की शादी संपन्न हुई।
अब आदर्श की दुविधा का भी पूर्ण समाधान हो चुका था । जन्मदिन के बीच कड़वाहट का वह बीज भी निकल चुका था और उसकी जगह खुशी ने ले ली थी। अब आदर्श के मन में द्वंद्व जैसी कोई स्थिति नहीं थी। वर्षों से चली आ रही आदर्श के द्वंद्व का अंत हो गया।
आदर्श और शृंखला दोनों एक दूसरे के साथ दांपत्य जीवन में खुशी-खुशी सुख से रहने लगे। द्वंद्व का समापन हो गया था।
कहानी के पहले भाग को यहाँ से पढ़ें
एम.आर.अयंगर.8462021340,7780116592,वेंकटापुरम,सिकंदराबाद,तेलंगाना-500015 laxmirangam@gmail.com
पहला भाग भी मैंने पढ़ा है। दूसरे भाग में भी पाठक की उत्सुकता को अंत तक बरकरार रखने में आप सफल हुए हैं। सीधी सरल भाषा और तारतम्यता के कारण कहानी कहीं से भी बोर नहीं होने देती।
जवाब देंहटाएंसादर आभार मीना जी - अपना प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने को लिए।
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