सार्वजनिक उत्सव पर निबंध हिंदी में Essay on Public Festival in Hindi उत्सव का आरम्भ हिन्दू धर्म और समाज में बहुत ही महत्व नवदुर्गा पूजा सार्वजनिक
सार्वजनिक उत्सव पर निबंध हिंदी में
सार्वजनिक उत्सव पर निबंध हिंदी में Essay on Public Festival in Hindi - मानव जीवन संघर्षपूर्ण है। जन्म से मृत्यु तक वह अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अनवरत संघर्ष करता रहता है। वर्तमान युग में तो इस संघर्ष ने जीवन को तनाव से पूर्ण करके मानव को मशीन बना दिया है। ऐसी दशा में यह आवश्यक है कि उसके जीवन में कुछ क्षण तनाव मुक्त भी होने चाहिए। सभ्यता के आदिकाल से मानव उत्सवों का प्रेमी रहा है। वह समय-समय पर इन उत्सवों को मनाता रहा है। इनमें कुछ उत्सव हैं - बसंतोत्सव, फाग उत्सव तथा नव सम्वत्सर का उत्सव आदि। इन उत्सवों को मानव सार्वजनिक रूप में बड़ी धूमधाम से मनाता रहा है। आज के इस वैज्ञानिक तथा औद्योगिक प्रगति के युग में भी मानव अपनी दैनिक दिनचर्या से अलग हटकर कुछ ऐसे उत्सवों का आयोजन करता है जो दैनिक जीवन की थकान और तनाव को दूर करने में सहायक होते हैं। वह केवल इन उत्सवों का आयोजन ही नहीं करता अपितु, इनमें सम्मिलित हो आनन्द की अनुभूति भी प्राप्त करता है।
हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत
इस उत्सव का आरम्भ हिन्दू धर्म और समाज में बहुत ही महत्व रखता है।आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व महाराज विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त करने के अवसर पर विक्रम संवत् का आरम्भ किया था।तब से लेकर वर्तमान युग तक, यह उत्सव सार्वजनिक रूप में बड़े ही हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है।
यह उत्सव होली पर्व के बाद चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पड़वा) के दिन से आरम्भ होता है। इस दिन का इसलिये भी महत्व है क्योंकि इसी दिन हिन्दुओं में वार्षिक नवदुर्गा पूजा का आरम्भ होता है। हिन्दू समाज इसे बड़े उत्साह से मनाता है।
हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत का आयोजन
इस उत्सव का आरम्भ नगर स्तर पर प्रतिवर्ष सार्वजनिक रूप से होता है। इसके लिए कई दिन पूर्व से तैयारियाँ आरम्भ हो जाती हैं। मित्रों और परिचितों को बधाई पत्र और सन्देश भेजे जाते हैं। पिछले वर्षों के समान इस वर्ष भी मैने इस उत्सव के आयोजन में जोर-शोर से भाग लिया। इसका आयोजन हिन्दू समाज द्वारा स्थानीय रामलीला मैदान में बड़े पैमाने पर किया गया था। सैकड़ों लोगों के साथ मैंने भी इस उत्सव में बड़े उत्साह से भाग लिया। इस उत्सव का आरम्भ शाम के 6 बजे से हुआ। दर्शकों के बैठने के लिए विशाल पण्डाल में कुर्सियों का प्रबन्ध था। नगर के जिलाधिकारी ने इस उत्सव के लिए मुख्य अतिथी बनना स्वीकार कर लिया था। सामने भव्य मंच तैयार किया गया था। समय पर उत्सव का आरम्भ हुआ।
जिलाधिकारी का स्वागत करने के बाद हम उन्हें मंच पर ले गये, जहाँ उन्होंने दीप प्रज्जवलित कर उत्सव के आरम्भ की औपचारिक घोषणा की। इसके बाद युवतियों ने गणपति और सरस्वती जी की वन्दना की तत्पश्चात् विभिन्न युवक और युवतियों ने गीत और कविताओं के माध्यम से हिन्दू समाज में नव सम्वत्सर के उत्सव तथा महत्व पर विचार प्रकट किये। बाद में विभिन्न विद्यालयों के बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। इसमें सबसे अधिक प्रभावशाली प्रस्तुती "शिवाजी के घमण्ड" शीर्षक नाटक की रही। जिसमें शिवाजी के मन में आने वाले घमण्ड को उनके गुरु दादा कोणदेव जी द्वारा दूर किया गया। अन्त में जिलाधिकारी ने अन्य वक्ताओं के समान इस उत्सव के सम्बन्ध में अपने विचार प्रस्तुत किये और आयोजकों को सफल आयोजन के लिए धन्यवाद दिया। मैं स्वयं आरम्भ से अन्त तक इस आयोजन से जुड़ा रहा। इस प्रकार मैंने असीमित आनन्द और उत्साह का अनुभव किया।
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