गिरिजा कुमार का जीवन परिचय Girija Kumar Mathur ki rachnaen काव्यगत विशेषताएँ biography of Girija Kumar Mathur girija kumar mathur ka jeevan parichay
गिरिजा कुमार माथुर का साहित्यिक जीवन परिचय
गिरिजा कुमार का जीवन परिचय Girija Kumar Mathur ki rachnaen biography of Girija Kumar Mathur girija kumar mathur ka jeevan parichay - गिरिजा कुमार माथुर का साहित्यिक जीवन परिचय गिरिजाकुमार माथुर का जन्म मध्य प्रदेश के अशोक नगर नामक स्थान पर सन् 1919 ई. में हुआ। घर पर प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त कर लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. किया। एल. एल. बी. की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। शुरू में वकालत फिर दिल्ली में नौकरी पर रहे, दिल्ली दूरदर्शन के उपमहानिदेशक पद पर भी बने रहे। आपने कई देशों की यात्राऐं भी की। 1959, में आप सांस्कृतिक शिष्टमण्डल के सदस्य के रूप में रूस तथा चेकोस्लोवाकिया की यात्रा पर गये। काव्य के प्रति उन्हें बचपन से ही लगाव था । इनके पिता श्री देवीचरन जी भी ब्रजभाषा के अच्छे कवि थे। पिता के संस्कारों के परिणामस्वरूप ही इनकी काव्य में अत्यधिक रुचि उत्पन्न हुई। जब आप मैट्रिक में थे, तब ही से आप कवितायें लिखने लगे सन् 1941, में 'मंजीर' नामक पुस्तक प्रकाशित हुई।आपका निधन नयी दिल्ली में १९९४ में हुआ .
गिरिजाकुमार माथुर की प्रमुख रचनाएं
गिरिजाकुमार माथुर की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- मंजीर,
- नाश और निर्माण,
- धूप के धान,
- शिलापंख चमकीले,
- जो बन्ध नहीं सका,
- भीतरी नदी की यात्रा,
- साक्षी रहे वर्तमान,
- छाया मत छूना,
- मन तथा कल्पांतर (काव्य),
- जन्म कैद (नाटक संकलन) तथा
- नई कविता : सीमाएँ और सम्भावना (आलोचना) ।
आपके अप्रकाशित 'पृथ्वी कल्प' काव्य नाटक के एक अंश पर चैक गणराज्य द्वारा इन्हें पुरस्कार भी दिया गया। संगीत कला का आपको विशेष ज्ञान है।
गिरिजाकुमार माथुर की काव्यगत विशेषताएँ
गिरिजाकुमार माथुर की साहित्यिक विशेषताओं को निम्नलिखित रूप में समझ सकते हैं -
भाव पक्ष
छायावाद के तीसरे पहर में उदित होने के कारण माथुर जी को छायावादी संस्कार विरासत के रूप में प्राप्त हुए हैं। छायावादी कविता की रंगीनी तो उनके काव्य में पायी जाती है, लेकिन उसकी अति-वायवीयता के स्थान पर जीवन की मूर्त और माँसल अभिव्यक्ति भी है। आपकी काव्य-चेतना सतत् विकासोन्मुख रही है। यह बात उनकी काव्य प्रवृत्तियों से स्पष्ट हो जाती है। प्रणयानुभूति, वेदनानुभूति, सौन्दर्यानुभूति, देशानुराग और राष्ट्रीयता, विश्वबन्धुत्व और मानवता, सामाजिक सन्दर्भ और यथार्थबोध, लोक जीवन, अतिबौद्धिकता, प्रकृति अनुराग आदि भाव प्रवृत्तियाँ आपकी रचनाओं में समायी हुई हैं।
कला पक्ष
गिरिजाकुमार माथुर ने अन्य प्रयोगवादी कवियों के समान छन्द एवं अलंकारों के प्रयोग में अत्यधिक नवीनता को महत्व प्रदान नहीं किया है। इनकी कविताओं में लयात्मकता है, नवीन प्रयोग के नाम पर इन्होंने सवैया को तोड़कर कहीं-कहीं नये छन्द के रूप में ढाल दिया है। माथुर जी नये बिम्बों, प्रतीकों और उपमानों को व्यवहार में लाये हैं, परन्तु छायावादी संस्कारों के कारण इनके माध्यम से श्रृंगार भावना और सौन्दर्य को ही अधिक सजीवता और सूक्ष्मता से चित्रित किया गया है। इनकी भाषा शुद्ध-साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें संस्कृत, हिन्दी तद्भव तथा अंग्रेजी, उर्दू और दैनिक बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हुआ है। इनकी भाषा पूर्णरूपेण समृद्ध है।
गिरिजाकुमार माथुर का हिंदी साहित्य में स्थान
गिरिजाकुमार माथुर हिन्दी काव्य-जगत की नयी धारा के प्रतिनिधि कवि थे। इन्होंने हिन्दी काव्य को अनेक वैयक्तिक विशिष्टताओं से सुसज्जित किया तथा जीवन के विशिष्ट अनुभवों को सूक्ष्म एवं गहन अनुभूति प्रदान की। माथुर जी बिम्ब प्रधान कवि हैं। इन्होंने काव्य को एक नया मोड़ दिया। उन्होंने उपमाओं का खुलकर प्रयोग किया।
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