प्रेमचंद के उपन्यास साहित्य की विशेषताएं प्रेमचंद के उपन्यासों का उद्देश्य प्रेमचंद के उपन्यासों के नाम प्रेमचंद की साहित्य साधना उपन्यास सम्राट
प्रेमचंद के उपन्यास साहित्य की विशेषताएं
प्रेमचंद के उपन्यास साहित्य की विशेषताएं हिंदी उपन्यास परंपरा में प्रेमचंद का स्थान प्रेमचन्द की उपन्यास कला का मर्म है - सादगी तथा सच्चाई। प्रेमचन्द जनजीवन से जुड़े उपन्यासकार थे। उन्होंने देश की तत्कालीन परिस्थितियों को अपने उपन्यासों का विषय बनाया इसलिए उस समय की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक झलक उनके उपन्यास साहित्य में झलकती है। उन्होंने मध्यम वर्ग और उनकी समस्याओं को अपने उपन्यासों का विषय बनाया। उन्हें जिन वर्गों के बीच घुलने-मिलने का अवकाश मिला तथा जिनके जीवन के सुख-दुःख से द्रवित होने का अवसर मिला उनकी मौलिक समस्याओं के समाधान पाने की अनवरत साधना ही उनके उपन्यासों का इतिहास है। उन्होंने अपने उपन्यासों में समस्याएँ उठाकर उनका समाधान भी आत्मसुधारवादी गाँधी विचारधारा से लेकर मार्क्सवादी विचारधारा तक में खोजने का प्रयास किया। वे मानवता के उत्थान तथा कल्याण की बात सोचते थे।
प्रेमचंद के उपन्यासों का उद्देश्य
प्रेमचन्द जी आदर्शोन्मुख यथार्थवादी थे। वे किसी बात में आस्था रखते थे तो मनुष्य की रचनात्मक विकासशीलता में। इसीलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहते हैं। उन्होंने सामाजिक समस्याओं को अपने उपन्यासों में प्रमुखता दी। चाहे किसान हो, चाहे ऊँचा अफसर, चाहे मध्यम वर्ग का हो, शिक्षित अथवा अशिक्षित हो उन्होंने अपने उपन्यास के माध्यम से सबको नई रोशनी देने की कोशिश की है। प्रेमचन्द का उद्देश्य था कि शोषित, पीड़ित तथा रुढ़ि से जर्जर समाज को नया विकास और नई दिशा मिले।
प्रेमचंद के उपन्यासों के नाम
राष्ट्रीय आन्दोलन की भावना से प्रभावित होकर उन्होंने 'कर्मभूमि' की रचना की। यह किसान अछूत आन्दोलन में नया वेग भरनेवाला उपन्यास है। 'सेवा सदन' वेश्या समस्या और निम्नमध्यवर्ग की दुर्बलता को लेकर लिखा गया है। समाज वेश्याओं को कभी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता। लेकिन वेश्याएँ क्यों बनती हैं? उन्हें भी सामान्य जीवन जीने की इच्छा होती है। वे भी मानव हैं।
प्रेमचन्दजी ने इस समस्या का चित्रण मानवी दृष्टिकोण से किया है। 'रंगभूमि' में औद्योगिक शोषण, राजनीतिक गुलामी तथा अन्तर्जातीय विवाह की समस्याओं को उठाया गया है। 'गबन' निम्न मध्यवर्ग की घरेलू समस्याओं की विकरालता का जीता-जागता चित्र है नायिका की इच्छापूर्ति के लिए पति नगरपालिका के धन का गबन करता है तथा पकड़े जाने के भय से कलकत्ता भाग जाता है। साथ ही इसमें क्रान्तिकारी आन्दोलन के लिए गहरी सहानुभूति है।
प्रेमाश्रम और कायाकल्प में हिन्दू-मुस्लिम एकता, खेतिहर के शोषण तथा नष्ट आदर्श सुधार के आलोक में लिखा गया है।कायाकल्प मिथ्या दर्प से विद्रोह करके आत्मा के रहस्यों में खो जाने वाला उपन्यास है। 'गोदान' ग्रामीण जीवन की त्रासदी का जीता जागता चित्रण है। भारतीय किसानों के जीवन की महागाथा है जिसके साथ मध्य वर्ग की एक छिछली कहानी विषम प्रभाव देने के लिए चलती रहती है। 'प्रतिज्ञा' विधवा विवाह को लेकर लिखा गया था। 'वरदान' उपन्यास में राजनीतिक आन्दोलनों का प्रतिबिम्ब है। इसमें धर्म और वैराग्य की भावना के साथ-साथ पवित्र प्रेम की झलक, स्वदेश और जनकल्याण की प्रधानता भी है।
'निर्मला' उपन्यास में दहेज प्रथा और बेमेल विवाह की समस्या को उभारा गया है। इस उपन्यास में नारी जीवन की करुण गाथा है। दहेज के अभाव में एक अधेड़ पुरुष से विवाह होने के कारण एक तरुणी का जीवन लगातार कष्ट में व्यतीत होता है और अन्त दुखान्त है।
प्रेमचंद की साहित्य साधना
जिस वर्ग को प्रेमचन्द ने दूर से देखा था उसके बारे में भी उनकी धारणाएँ स्पष्ट और पूर्वाग्रह से रहित हैं परन्तु निम्न-मध्यम वर्ग के प्रति उनकी दृष्टि अधिक स्पष्ट और विस्तृत है। उनके सुध् रवादी स्वर विद्रोही होते गए। प्रेमचन्द का हृदय विशुद्ध भारतीय था। उन्होंने भारतीय समाज की गलत परम्पराओं पर आघात किया। इसलिए नहीं कि वे नया समाज खड़ा करें बल्कि इसलिए कि वे समाज में चेतना जगाकर परिवर्तन लाना चाहते थे। 'मंगलसूत्र' उनका अपूर्ण उपन्यास है। इसमें लेखक ने अपनी साहित्य साधना के कष्टों का मर्मस्पर्शी अंकन करते हुए विद्रोह का स्वर गुँजाया है।
प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में उस समाज का वर्णन किया है जिसे उन्होंने देखा और जिसमें वे रहे। उन्होंने अपने पात्रों का चयन भी उसी समाज से किया। उनके पात्रों में मानवसुलभ गुण-दोष सभी विद्यमान हैं इसलिए उनके पात्र सजीव प्रतीत होते हैं। इस प्रकार प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों के माध्यम से समाज की समस्याओं को मौलिक ढंग से प्रदर्शित किया है। इसलिए उन्हें उपन्यासों का सम्राट् कहा जाता है।
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