जनसंख्या के आधार पर भारत दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश तो विगत तीन माह पूर्व ही बन चुका है । देश की बढ़ती आबादी को देखकर निराश होने की आवश्यकता नही
विश्व का हर छठा व्यक्ति भारतीय कुछ हर्ष या कुछ चिंता
जनसंख्या के आधार पर भारत दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश तो विगत तीन माह पूर्व ही बन चुका है । इसको लेकर चित कुछ असमंजस में हैं कि आज ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ के अवसर पर हम अपने मित्रों तथा देशवासियों को बधाई देवें या फिर चिंता व्यक्त करें ! आज विश्व जनसंख्या का १८% हम भारतीय हैं । अर्थात, विश्व का हर छठा व्यक्ति भारतीय है।मानवीय क्रिया-कलापों के कुछेक क्षेत्र में तो ‘नंबर एक’ बनाना गर्व की बात होती है, पर कुछेक क्षेत्र में विशेष चिंता की ही बात बन जाती है । जैसे – जनसंख्या के क्षेत्र में ‘नंबर एक’ बनाना ।
दुनिया भर में जनसंख्या के बढ़ते आकड़े से चिंतित होकर आबादी संबंधित विभिन्न मुद्दों, मानवीय विकास और पर्यावरण पर उनके पड़ते प्रभाव के प्रति दुनिया का ध्यान केंद्रित कर उस पर उपयुक्त चिंतन-मनन हेतु ही ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ द्वारा प्रतिवर्ष ११ जुलाई को ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ के रूप में निर्धारित किया है । विगत लगभग पाँच दशक पूर्व ११ जुलाई १९८७ को ही विश्व जनसंख्या का आकडा ५ अरब पहुँच गया था । उसी ‘पाँच अरब या बिलियन आबादी’ की चिंता स्वरूप ही इस विशेष “विश्व जनसंख्या दिवस” पालन करने की प्रेरणा ली गई है ।
विश्व की बेहताश बढ़ती आबादी से मानव वैज्ञानिक भी हैरान हैं । आज से दस हज़ार वर्ष पहले धरती पर मात्र कुछ लाख ही लोग रहते थे । अठारहवीं सदी के आख़िर तक विश्व आबादी का आंकड़ा सौ करोड़ और बीसवीं सदी के प्रारंभ में दो सौ करोड़ पहुँच गया । इसकी क्रमगत वृद्धि दर को देखते हुए अनुमान लगाया जाता है कि आगामी वर्ष २०५० तक विश्व आबादी का यह आंकड़ा क़रीब दस अरब और बाईसवीं सदी के आते-आते यह सोलह अरब को भी पार कर जाएगा ।
आज ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ जैसे विशेष दिन पर अपने भारत की जनसंख्या के बारे में कुछ बातें कर लेना भी उचित ही होगा । जनसंख्या के आधार पर भारत अब दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश बन गया है । आज विश्व का हर छठा व्यक्ति भारतीय है । संयुक्त राष्ट्र की ‘द स्टेट ऑप वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट’ के मुताबिक, भारत की जनसंख्या १७ अप्रैल २०२३ को बढ़ कर १४२. ८६ करोड़ हो गई है, जबकि पूर्व में सर्वाधिक आबादी वाला देश चीन की वर्तमान जनसंख्या १४२. २६ करोड़ है । इस प्रकार भारत की जनसंख्या चीन से लगभग ६० लाख अधिक हो गई है । इसके साथ ही विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या कहलाने का गौरव अब भारत ने चीन के हाथों से झपट लिया है । अब दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन नहीं है, बल्कि अपना देश भारत बन गया है । कारण स्पष्ट है कि भारत में बच्चे पैदा करने की दर में विगत वर्षों में ०.८१ प्रतिशत वृद्धि हुई है, जबकि चीन में बच्चे पैदा करने की दर में बहुत कमी आई है । कुछ प्रांतों में तो ऋणात्मक में पहुँच गई है ।
परंतु भारत में जनसंख्या में वृद्धि कोई आकस्मिक घटना नहीं है, बल्कि यह तो एक स्वाभाविक क्रमिक घटना है । १९५१ में भारत की जनसंख्या ८६.१० करोड़ थी, जबकि उस समय चीन की जनसंख्या ११४.४० करोड़ थी । बाद के ७० वर्षों में हमारी जनसंख्या ६५.७ % बढ़ी है, जबकि चीन की जनसंख्या मात्र २४.३५ % ही बढ़ी है । अर्थात, चीन की अपेक्षा हमारी जनसंख्या में ढाई गुना से भी अधिक की बढ़ोतरी हुई है । इसी आधार पर अनुमान किया जाता है कि भारत की आबादी २०५० तक बढ़कर १६६.८० करोड़ हो जाएगी, जबकि चीन की जनसंख्या घटकर १३१.७० करोड़ हो जाएगी । लेकिन इसके साथ ही विश्व की जनसंख्या पर दृष्टि रखने वाली अन्य कई विशिष्ट संस्थाओं का भी अनुमान है कि भारत की आबादी अगले करीब तीन दशकों तक बढ़गी, तत्पश्चात १६५ करोड़ पर पहुँचने के उपरांत इसकी जनसंख्या वृद्धि दर में घटने का अनुमान है ।
भारत की जनसंख्या के वर्तमान आकड़ों पर विश्लेषण करने पर कुछ इस प्रकार के विवरण प्राप्त होते हैं – भारत में ०-१४ वर्ष आयु वर्ग की आबादी २३ % है, १०-२४ वर्ष आयु वर्ग की आबादी २६ % हैं । इसी तरह से २५-६४ वर्ष आयु वर्ग की आबादी ४४ % और ६५ वर्ष के ऊपर के आयु वर्ग की आबादी ७ % हैं । अर्थात भारत में २५-६४ वर्ष आयु वर्ग की जनसंख्या अधिक है । जबकि चीन में ६५ वर्ष से अधिक आयु के लोग की संख्या १५.१८% है । भारत में केवल केरल और पंजाब में ही बुजुर्गों की संख्या अधिक है । कुछ दशक पहले चीनी सरकार ने एक बच्चे वाली नीति लागू कर दी थी, इसी का खामियाजा चीन को अपनी जनसंख्या में कमी के रूप में भुगतना पड़ रहा है ।
हम जानते हैं कि किसी देश की जनसंख्या का उस देश की अर्थव्यवस्था पर बड़ा भारी प्रभाव पड़ता है । बढ़ती जनसंख्या दोधारी तलवार की तरह सहायक और असहायक हो सकते हैं । डॉ शान वेइजियन नामक एक अर्थशास्त्री के अनुसार ५० और ६० के दशक में भारत एक पूंजीवादी राष्ट्र था, परंतु चीन नहीं । परंतु विगत पाँच-छः दशकों में चीन अपने नागरिकों की उद्यम नीति, वैश्वीय आर्थिक प्रतिस्पर्धा नीति, विशेषकर बाजार अर्थव्यवस्था नीति और निजी विशेष उद्यम नीति के आधार पर अमेरिका से भी ज्यादा पूंजीवादी हो गया है । उसका सरकारी व्यय का प्रमुख केंद्र घरेलू बुनियादी उत्पादन है । चीन के पास व्यापार को प्रोत्साहित करने वाली राजमार्ग, रेल प्रणाली, पुल, हवाई अड्डे और अन्य मानवीय सेवाएँ अब संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में भी बेहतर है ।
१९८० में, चीनी की अर्थव्यवस्था लगभग १९१ बिलियन अमेरिकी डॉलर की और भारतीय की अर्थव्यवस्था १८६ बिलियन अमेरिकी डॉलर की थी, जो लगभग समान ही कहा जा सकता है । परंतु चीन अपनी युवा आबादी का सही उपयोग कर वर्तमान अर्थव्यवस्था का आकार १५ ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुँचा दिया है, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था गिर करके २.६ ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया, जो चीन की अपेक्षा लगभग पाँच गुना कम है । जबकि विश्व की जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी लगभग १८ % रही है । तब तो वैश्विक जीएनपी का भारतीय हिस्सादारी भी १८% तक होनी चाहिए थी, परंतु काफी कम है । इसके लिए चीन ने बहुत पहले से ही अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा के लिए खोल दिया है । जिस कारण चीनी आर्थिक प्रतिस्पर्धा विश्व स्तर पर बढ़ी है । इसलिए चीन की अर्थव्यवस्था फली-फूली और निरंतर आगे बढ़ती रही है । इसके विपरीत भारतीय वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा से वंचित रहे है । अतः भारत की अर्थव्यवस्था पिछड़ गई है ।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ‘हेल्थ मैनेजमेंट इनफार्मेशन सिस्टम’ की २०२१-२०२२ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में आबादी की वृद्धि का प्रमुख कारण शिशु मृत्यु दर में काफी कमी को माना जा रहा है । २०१२ में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार पर ४२ थी, जो २०२० में घट कर २८ पर आ गई । यह तो अच्छी और संतोषजनक उपलब्धि है । इसके लिए आवश्यक चिकित्सा और चिकित्सा क्षेत्र में आवश्यक सुधार तथा उपयुक्त अन्वेषण प्रमुख कारक रहें हैं । संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि भारत में हर साल लगभग ढाई करोड़ बच्चे जन्म लेते हैं, इसकी अपेक्षा चीन में जनसंख्या नियंत्रण नीति के कारण प्रति वर्ष इससे आधे बच्चे ही जन्म लेते हैं । चीन में २०२२ में ९५ लाख बच्चों ने जन्म लिया है, वही पर भारत में २०२१-२०२२ में साल भर में २.०३ करोड़ बच्चो का जन्म हुआ है ।
जन्म दर तथा मृत्यु दर के अन्तर को ‘प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि दर’ कहा जाता है । चिकित्सा क्षेत्र में निरंतर प्रगति, सरकारी भागीदारी, गरीबी उन्मूलन, कार्य के अवसर में वृद्धि, सरकारी सहायता, जीवन-शैली में उत्तरोत्तरी विकास आदि भारतीय ‘प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि दर’ को बढ़ाए हुए हैं । इसमें कुछ प्रवासी नागरिकों की भी भूमिका रही है । बांग्लादेश के सीमा से लगे राज्यों में जनसंख्या वृद्धि का एक बड़ा कारण घुसपैठ नीति भी है । आज भी हमारे देश में अशिक्षा मौजूद है । अशिक्षित लोग परिवार-नियोजन संबंधित उपायों के प्रति जागरूक नहीं हैं और फिर अज्ञानतावश लोग आज भी बच्चों को ऊपर वाले की देन ही मानते रहे हैं ।
सरकार भले ही १८ वर्ष से कम उम्र में लडकियों तथा २१ वर्ष से कम उम्र के लड़कों की शादी कानूनन अपराध घोषणा किया है । पर हमारे देश के दूर-दराज क्षेत्रों में आज भी ‘बाल-विवाह’ जैसी कुप्रथाएँ प्रचलित है । जल्दी शादी होने के कारण किशोर जल्दी माँ-बाप बन रहे हैं, जो देश की जनसंख्या में वृद्धि कर रहे हैं । फिर कुछेक विशेष संप्रदाय में बहु-पत्नी-प्रथा और उसी के अनुकूल अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने की नीति भी भारतीय जनसंख्या को बढ़ाने में अहम भूमिका का निर्वाहन कर रही है ।
जनसंख्या के मामले में विश्व का ‘नंबर एक’ होने जैसी कीर्तिमान को स्थापित करने की खबर हम भारतीयों के लिए खुशी की बात के साथ ही चिंताजनक बात भी है । बड़ी जनसंख्या किसी भी देश के लिए उसके अर्थव्यवस्था के लिए एक ओर चुनौती है, तो दूसरी ओर देश को प्रगति के अपार अवसर प्रदान कर उसे विकासशील देश की श्रेणी में ला खड़ा कर सकती है । जैसे कि अबतक चीन की विशाल जनसंख्या ने चीन को एक विकसित पूंजीवादी देश के रूप में स्थापित कर दी है ।
जनसख्या वृद्धि देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं पर्यावरणीय संबंधित समस्याएँ भी पैदा कर सकती हैं । इसके साथ ही मानवीय आवश्यकताओं में भारी वृद्धि कर सकती है, जिससे देश के सीमित संसाधनों, विशेषकर भूमि, वायु तथा पानी पर अत्यधिक दबाव पड़ने की संभावना बढ़ जाती है । मानवीय भोगवादी क्रिया-कलापों के कारण भारत में ये पहले से ही बहुत अधिक प्रदूषित हो चुके हैं । बढ़ती जनसंख्या के कारण प्रदूषण, भू-क्षरण, बाढ़, सूखा, महंगाई तथा महामारियाँ आदि प्राकृतिक और कृत्रिम विपत्तियाँ पैदा होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं ।
जनसंख्या में निरंतर वृद्धि के कारण हमारे देश भारत में खाद्य-सामग्री संबंधित असंतुलन की स्थिति भी पहले से ही व्याप्त है । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ‘हरित क्रांति’ के उपरांत भी निरंतर जनसंख्या में वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति खाद्यान्न का अनुपात अन्य विकसित देशों की अपेक्षा काफी कम ही है । ऐसे में बढ़ती जनसंख्या हमारे सीमित खाद्यान पर बोझ बन सकते हैं । समय-समय पर दुर्भिक्ष भी देखने को मिल सकते हैं । इसे नकारा नहीं जा सकता है ।
जनसंख्या में बेहताश वृद्धि हमारे सामाजिक जीवन को भी प्रभावित कर सकते हैं । घर-द्वार, खेत-खलिहान के भाग-बंटवारे से लेकर नौकरी-चाकरी तक के क्षेत्र में अराजकता देखने को मिल सकती है, क्योंकि ये सभी साधन तो सीमित ही हैं । सभी के लिए बुनियादी सुविधा यथा- रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा, शिक्षा, परिवहन आदि जुटाना सरकार के लिए एक विराट चुनौती बन सकती है ।
ये सभी तो संभावित चुनौतियाँ हैं । लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं कि यदि समय रहते ही अपनी संतानों को सही संस्कार, सही शिक्षा और सही मार्ग दर्शन दिया जाए, तो उनके उज्ज्वल भविष्य के साथ ही देश की अर्थ व्यवस्था को भी सुखकर बनाया जा सकता है । चुकी हमारी ज्यादा आबादी युवा वर्ग की है, जो ४२ % है । युवा आबादी का मतलब ही है, अधिक बुद्धिवत श्रम शक्ति, जो बहुत ही तेज गति के साथ हमारे देश के लिए शक्ति-संसाधन बन कर देश को विकास के अग्रिम पंक्ति में ले जाकर स्थापित कर सकती हैं ।
युवा शक्ति के सही उपयोग से ही भारत विश्व का एक प्रमुख शक्ति केंद्र बन सकता है । जनसंख्या बढ़ने के साथ ही विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं की भी माँग बढ़ेगी । उनका उत्पादन पहले से अधिक बढ़ना होगा । नई-नई तकनीकी के आविष्कार पर जोर देना होगा । जो देश के विकास को अधिक और अधिक रफ्तार दे सकती है । फलतः लगभग हर तरह के व्यापर में विस्तार और वृद्धि के अनेक अवसर पैदा होंगे ।
इस प्रकार सरकारी, संस्थागत और व्यक्तिगत युक्ति से देश की बढ़ती जनसंख्या को बढ़ते रोजगार के अवसर के रूप में परिणत कर भारत को सारी दुनिया के लिए उत्पादन का एक बड़ा प्लेटफोरम बनाते हुए हमारा देश भारत एक बड़ा ‘प्रोडक्ट पावर हाउस’ बन सकता है । अतः देश की बढ़ती आबादी को देखकर निराश होने की आवश्यकता नहीं है । बस समयानुसार नई तकनीकी शिक्षा के द्वारा उनका सही मार्ग दर्शन करना अपेक्षित है ।
- श्रीराम पुकार शर्मा,
24, बन बिहारी बोस रोड,
हावड़ा – 711101 (पश्चिम बंगाल)
संपर्क सूत्र – 9062366788
ई-मेल सूत्र – rampukar17@gmail.com
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