वीरतापूर्ण कार्य पर निबंध हिंदी में Essay On Bravery In Hindi nibandh lekhan मानव जीवन में घटनाओं का अम्बार है यह सामान्य भी हो सकती हैं और विशेष भ
वीरतापूर्ण कार्य पर निबंध हिंदी में
वीरतापूर्ण कार्य पर निबंध हिंदी में Essay On Bravery In Hindi - मानव जीवन में घटनाओं का अम्बार है । यह सामान्य भी हो सकती हैं और विशेष भी। समय का मरहम सामान्य घटना के घावों को तो भर देता है, किन्तु कुछ घटनाओं के घाव इतने गहरे होते हैं कि समय का मरहम भी उन्हें भरने में असमर्थ रहता है। आज जिस घटना का वर्णन मैं करने जा रहा हूँ वह लगभग 20 वर्ष पूर्व की होने पर भी कल जैसी मालूम होती है।
घटना का वर्णन
वह घटना 14 नवम्बर की है। विद्यालय की ओर से कक्षा 11 तथा 12 के छात्र-छात्रायें बस द्वारा जयपुर के लिए चल दिये। सुबह के 5 बजे हम सब दो बसों में विद्यालय से चलकर 2 घण्टे में भरतपुर पहुँच गये। वहाँ आधा घण्टा रुककर चाय नाश्ता करने के बाद फिर आगे बढ़ गये। दोपहर को । बजे हम जयपुर के सवाई मानसिंह पैलेस होटल पहुँचे। बस से उतरकर अपने आरक्षित कमरों में गये। इसके बाद तरोताजा होकर 2 बजे भोजन के बाद कुछ समय विश्राम किया। शाम को 3 बजे हम सब आमेर के लिए रवाना हुए। वहाँ लगभग 2 घण्टे का समय व्यतीत करके हम जयपुर के लिए वापस चले। लगभग 6 बजे शाम को वापस होटल में आ गये। सभी निश्चिन्त हो गहरी नींद का आनन्द लेकर सुबह 3 बजे जागे और 4 बजे चल दिये।
वापसी की यात्रा में सभी में नया उत्साह था। सर्दी के दिन थे। भारी वाहनों की आवाज ही सुनाई दे रही थी। इस यात्रा के मध्य व्यवधान बनकर 8-10 नकाबपोश एक जीप में सवार होकर हमारी बस के आगे निकलकर सामने खड़े हो गए। अचानक व्यवधान से हतप्रभ चालक ने बस रोक दी। एक नकाबपोश ने फुर्ती से बस में सवार होकर चालक की कनपटी पर पिस्तौल लगा दी। दूसरा नकाबपोश बस के बीच में यात्रियों को आंतकित कर रहा था। उसकी चेतावनी के बाद भी जब चालक ने दुस्साहस दिखाया तो उनमें से एक ने उसे गोली मार दी। उसके शव को एक किनारे फेंककर उन्हीं का साथी बस लेकर नये रास्ते पर चलने लगा। सुबह के 5 बजने के बाद भी अन्धेरा था। हम किसी सुनसान मार्ग पर थे। सभी पत्थर की बेजान मूर्ति बनकर रह गये थे। सारा जोश खत्म हो गया था। सभी छात्र-छात्राएँ किसी देवी- चमत्कार की आशा के लिए प्रार्थना कर रहे थे। अचानक डीजल खत्म होने के कारण बस किसी छोटे से उपमार्ग पर खड़ी हो गयी। उनकी जीप आगे निकलकर ओझल हो गयी थी। नकाबपोश स्वयं को विवश - सा अनुभव कर रहे थे। उन्होंने अपनी क्रोधपूर्ण दृष्टि पूरी बस में घुमाकर कहा, “बस का अपहरण हो चुका है। किसी भी चालाकी या दुस्साहस का परिणाम मौत होगा ।" कुछ समय की शान्ति के पश्चात् नकाबपोश ने मुझे अपनी ओर आने का संकेत किया। साथियों के संकेत की चिन्ता न करके में रुक-रुककर कदम रखकर आगे बढ़ा और नकाबपोश तक जा पहुँचा।
मेरे विषय में वह प्रश्न करने लगा। मैंने शान्ति से उत्तर दिये। इसके बाद छात्र- छात्राओं के विषय में जानकारी पाने की कोशिश करने लगा। अन्दर की घबराहट धीरे-धीरे कम हो रही थी। धीरे-धीरे मुझे वह व्यक्ति लापरवाह-सा दिखाई दिया। मैंने चक्कर खाने का अभिनय करके उसकी पिस्तौल उठाकर फायर ठोंक दिया। दूसरे नकाबपोश ने मुझे लक्ष्य बनाने का प्रयत्न किया, किन्तु दुर्भाग्यवश पहला साथी सामने आ गया। गोली उसके सिर में लगी और वह वहीं ढेर हो गया। यह घटना इतनी अचानक हो गयी कि कोई कुछ न समझा। मैं चिल्लाया "बस छोड़कर लुकते-छिपते पीछे भागो । मुख्य मार्ग पर अलग- अलग टोलियों में पहुँचो । हर समूह में लड़कियों को बीच में रखो। जहाँ जिसे जो साधन मिले आगरा पहुँचो।" इस प्रकार मानों मैं उनका नेतृत्व और मार्गदर्शन कर रहा था। मेरे कहने पर जितना जल्दी हो सके सब बस से उतर कर मुख्य मार्ग की ओर टोलियाँ बना कर भागे। सबसे अन्त में मैं 10 छात्राओं के साथ भागा। हल्का बैग सबके साथ था। लगभग 1 घण्टा भागने के बाद हम मुख्य मार्ग पर लगभग प्रातः 8 बजे पहुँचे। वहाँ P.C.O. से घर और विद्यालय में सूचना दी। धीरे-धीरे उपलब्ध साधनों से वापस घर पहुँचे।
उपसंहार
घर पहुँचकर भी यह विश्वास नहीं हो रहा था कि हम सुरक्षित हैं। मैं यह सोच रहा था कि अगर उनकी जीप वापस आ जाती। अगर मेरा प्रयास असफल रहता ? हमने ईश्वर को धन्यवाद दिया ।
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