सपने में परी से बात करना विषय पर निबंध Sapne Me Angel Ko Dekhna सोनपरी की कहानी सपने में मिले तीन वरदान सपने में परी देखना परी से मुलाकात स्वप्न में
सपने में परी से बात करना विषय पर निबंध
सपने में परी से बात करना विषय पर निबंध Sapne Me Angel Ko Dekhna - उस दिन मेरा जन्म-दिन था। मैं बहुत खुश था। सुबह से लेकर रात तक बस मौज ही मौज, आनन्द ही आनन्द। इस दिन तो मैं जैसे सचमुच का बादशाह बना हुआ था। बधाइयों व उपहारों का ताँता लगा हुआ था। मम्मी-पापा, भाई-बहन, चाचा-चाची और दादा-दादी सभी मेरी इच्छाओं व जरूरतों का ध्यान रख रहे थे। मैंने जो भी माँगा मुझे वही मिला। मैं ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि यह समय यहीं रुक जाए क्योंकि मैं जिससे जो भी माँग रहा था, वही मुझे प्राप्त हो रहा था। कोई भी मुझे नाराज करना नहीं चाह रहा था आखिर जन्म-दिन जो था मेरा।
दादी की कहानी
इस प्रकार मौज-मस्ती करते और खाते-खिलाते कब रात हो गई, पता ही नहीं चला। मेरे साथ-साथ सभी थके हुए थे लेकिन मेरी आँखों में नींद कहाँ? मैंने जल्दी-जल्दी सभी उपहार देखे। मेरी माँ ने बड़े प्यार से मुझसे कहा- 'बेटा, सो जाओ, कल स्कूल भी जाना है।' मैं भाग कर अपनी दादी के कमरे में पहुँचा और लगा जिद करने कि मुझे कहानी सुनाओ। मेरी दादी भी दिन-भर की भाग-दौड़ करते-करते पूरी तरह से थक चुकी थीं लेकिन इनकार कैसे करें, मेरा जन्मदिन जो था।
सोनपरी की कहानी
तब उन्होंने मुझे कहानी सुनानी आरम्भ की- एक सोन परी की, जो उन्हें बहुत प्यार करती थी। बच्चे उससे जो भी माँगते, वह उन्हें वही दे देती थी। उन्होंने मुझे मुसीबत में फँसी एक बच्ची की कहानी सुनाई जिसे सोन परी ने बचाया था जबकि ऐसा करने पर सोन परी के पंख भी घायल हो गए थे। दादी माँ से कहानी सुनते-सुनते मैं कब सो गया, पता ही नहीं चला। कब मैं स्वप्न लोक में विचरण करने लगा, यह भी पता नहीं चला।
मैंने देखा कि मैं सोन परी के साथ उड़ रहा हूँ। वह मुझे प्यार से तरह-तरह की बातें सुना रही थी कि तभी पीछे से एक काली परी आई और सोन-परी को घायल करने की कोशिश करने लगी। मैंने आव देखा न ताव, कूद कर उसे घायल कर दिया। मेरा जूडो-कराटे सीखना परी लोक में काम आ ही गया। फिर क्या था, सोन परी भी सचेत हो गई। अब काली परी की करतूत बहुत देर तक टिक न सकी, वह डर कर भाग गई।
सपने में मिले तीन वरदान
सोन परी ने प्रसन्न हो कर मुझसे तीन वरदान माँगने को कहा। मेरी तो प्रसन्नता का ठिकाना ही नहीं रहा। मैंने सबसे पहले यह वरदान माँगा कि मैं दुनिया का सबसे अच्छा बालक कहलाऊँ । स्कूल में सब का चहेता बन सकूँ। खेल, पढ़ाई, नृत्य, गायन सभी में मैं निपुण बन जाऊँ। मुझे भूल से भी अपने सहपाठियों पर क्रोध न आये। कभी अपने अध्यापकों की आज्ञा का उल्लंघन न करूँ। कभी किसी के प्रति बुरे विचार मेरे मन में आ ही न पाएँ, जितना हो सके मैं सभी की सहायता करूँ। परी मेरे द्वारा माँगे गये इस वरदान को सुन कर बहुत खुश हुई और 'तथास्तु' कह मुझसे दूसरा वरदान माँगने के लिए कहा।
मैंने अपने दूसरे वरदान में अपने माता-पिता के अच्छे स्वास्थ्य, उनकी सम्पन्नता, उनके बच्चों द्वारा उनकी आज्ञा-पालन को सर्वोपरि रखने की कामना के साथ-साथ उनकी शारीरिक, मानसिक व आर्थिक खुशहाली की भी कामना की।
परी मेरे इस वरदान से भी बहुत खुश हुई और 'ऐसा ही होगा' कह कर तीसरा व अंतिम वरदान माँगने के लिए कहा।
अब मैंने अपने तीसरे वरदान में अपनी जन्म भूमि भारत के विषय में माँगने की सोची। मेरा देश सदा हरा-भरा रहे, देशवासी सुशिक्षित, सुखी व सम्पन्न रहें। मेरे देश पर शत्रु आक्रमण करने का साहस न कर सके। सभी प्रकार की विपत्तियों से मुक्त रहते हुए मेरा भारत विश्व में सर्वोपरि स्थान बना सके।
भारत का विश्व में सर्वोपरि स्थान
परी मेरे इस वरदान को सुनकर बहुत ही प्रसन्न हो उठी और कहने लगी कि तुम्हारी यह तीनों इच्छाएँ शीघ्र ही पूरी हो जाएँगी। अगर तुम्हारे जैसा बच्चा देश का हर नागरिक हो जाये तो वह देश, वहाँ के वासी माता-पिता, बालक-बालिकाएँ, वृद्ध-वृद्धाएँ सभी-सुखी व सम्पन्न रहेंगे। 'मेरे बेटे, तुम एक होनहार बालक हो, तुम सदा सुखी रहो'-कहते-कहते परी जाने लगी तो मैं जोर से चिल्लाया, ‘सोन-परी कल फिर आना।' मेरी चिल्लाहट सुनते ही मेरी माँ दौड़ कर आ गई। उन्होंने मुझे जगाया कि उठो बेटा, नहीं तो स्कूल को देर हो जायेगी।
इस प्रकार परी द्वारा दिये गये वरदानों के पूरे होने की इच्छा लिए मैं दैनिक दिनचर्या के लिए जाग उठा और सतर्क हो दुगने उत्साह के साथ स्कूल जाने की तैयारी करने लगा। मैंने ये वरदान इसलिए माँगे जिससे हम सभी, सभी प्रकार के कष्टों मुक्त रहकर, सद्गुणों को अपनाकर उन्नति को प्राप्त कर सकें।
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