शिक्षा समाज की रीढ़ होती है शिक्षित और सभ्य ,समाज में अलंकार हैं।ज्ञान सतत अभ्यास से आता है ,सतत अभ्यास स्वाध्याय से,और इस युक्ति से आप बुद्धिमान बन
स्वस्तिवाचन मंथन
प्रकांड विद्याभ्यासी, और जिज्ञासुओ, सादर अभिवादन ।आभारी हूं क्योंकि इस सम्मानित मंच से मुझे आपसे वार्तालाप करने का एक अवसर मिला है।
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति ।। भगवद्गीता 4(38)
यह श्रीमद् भगवत् गीता का 4, 38वां श्लोक है, आपको तो मालूम ही है कि यक्ष से युधिष्ठिर का संवाद हुआ था, यक्ष का उसमें एक प्रश्न यह भी था की जल से पतला क्या है,उसका उत्तर ,'ज्ञान', आया था वह भी आपको मालूम है ।महाराज ने ज्ञान बताया था, युधिष्ठिर ने जो बात बताई थी वह जो उत्तर दिया था उसमें यह भी था जंगल में मंगल करने वाली केवल एक विद्या है, उसमें एक उत्तर यह भी था कि शास्त्रों से पढ़ने से कोई बुद्धिमान, नहीं हो जाता, विद्वान नहीं होता पढ़ते तो बहुत हैं पर उसे सीधे सपाट शब्दों में कहूं तो कर्मकांडी और कर्मयोगी का जो अंतर है,वह समझना होगा, जितने भी उत्तर युधिष्ठिर ने दिए विवेक युक्त और तर्कपूर्ण थे। 16 वीं शताब्दी में महान निबंध , अध्ययन निबंध में 16वीं शती के फ्रांसिस बेकन ने यही उन्होंने कहा है कि अध्ययन ही हमें परिपक्व बनाता है,पढ़ाई के फायदे और उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए बेकन पढ़ाई के कुछ अवगुणों को भी सामने रखते हैं क्योंकि उनका मानना है कि लंबे समय तक पढ़ाई करने से आलस्य आ सकता है।
वह चारों ओर की प्रकृति से सीखे बिना केवल किताबों से अध्ययन करने की निंदा भी करते हैं। अध्ययन का निबंध इस कार्य को मानव मन के दोषों के लिए एक दवा और किसी की बुद्धि को बढ़ाने का स्रोत मानकर अध्ययन के लाभों पर जोर देता है।निबंधकार अपने पाठकों को अच्छी किताबें पढ़ने के लाभों के बारे में बताता है।
आप में देश प्रेम देश के प्रति स्वाभिमान, अपने परिवार के लिए स्वाभिमान, अपने पूर्वजों के लिए स्वाभिमान और सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस उत्पन्न नहीं हुआ, आप परिवार के या देश के कैसे काम आ सकते हैं? आशुतोष मुखर्जी लब्ध प्रतिष्ठित स्कॉलर थे और उनके बरसी पर उन्होंने मुंशी जी से कहा इस वर्ष किन किन लोगों को आमंत्रित कर चुके, जब उन्होंने सकारात्मक उत्तर दिया तो उन्होंने लिस्ट दिखाने की इच्छित प्रकट की, सूची में इस प्रकार लिखा हुआ था कि इस वर्ष का स्मृति पुरस्कार इन सज्जनों को दिया जाना है,इस पर आशुतोष मुखर्जी ने यह कहा कि आप इस तरह इसे बदलें कि इन सज्जनों ने इस वर्ष का पुरस्कार लेने के लिए अपनी सहमति दे दी है ।
मैं आपको सन 1978 की बात बता रहा हूं । श्री किशोरी दासबाजपेयी जी हिंदी के प्रखर व्याकरणाचार्य रहे हैं ,प्रयाग में उनको एक समारोह में सम्मानित किया जाना था पर मंच पर ऐसे व्यक्ति बैठे हुए देखकर प्रतिरोध स्वरुप वह मंच से नीचे उतर कर श्रोताओं में आकर बैठ गए ,उनको भी पुरस्कृत किया जाना था। नाम पुकारा गया लेकिन वह मंच पर नहीं आए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई स्थिति को भांप चुके थे और उन्होंने समारोह को हो जाने दिया ।समापन से ठीक पहले वह श्री किशोरी दास जी बाजपेयी के सम्मानार्थ उतरे और जहां पर बैठे थे वहां जाकर उनको सम्मान पत्र सौंप दिया। आप देखिए कि ऐसी स्थिति में दोनों की गरिमा कम नहीं हुई।
ऐसे भी महापुरुष हुए जो ख्याति और समृद्धि से दूर रहे ,एक नाम, वैसे तो बहुत सारे नाम होंगे , लेकिन अब समय पर याद नहीं आ रहे,लेकिन एक नाम जरूर आ रहा है कि जो मध्यप्रदेश की धरती पर समर्पित भाव से सेवा किए और वह नाम है पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी का।प्लेटो ने सही कहा था कि कोई देश, सीमेंट की इमारतों कंक्रीट की इमारतों से भव्य नहीं बनता बनता है भव्य बनता है उसके नागरिक कैसे हैं, है एकदम सटीक बात है।
बेकन के लिए, कुछ किताबें केवल चखने के लिए होती हैं; कुछ किताबें निगलने के लिए होती हैं जबकि कुछ किताबें ठीक से चबाने और पचाने के लिए होती हैं। इसलिए, पाठकों को दुनिया भर के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए किसी भी पुस्तक का अध्ययन करने से पहले बुद्धिमानी से चयन करना चाहिए।
शिक्षित और सभ्य ,समाज में अलंकार हैं।ज्ञान सतत अभ्यास से आता है ,सतत अभ्यास स्वाध्याय से,और इस युक्ति से आप बुद्धिमान बन सकते ।खाली रोजगार प्राप्त कर लेने भर से ज्ञान की अभीष्ट सिद्ध नहीं होती है ।ज्ञान अनंत है ,ज्ञान की धाराएं भी अनंत हैं ।और ज्ञान स्वाध्याय, संगत ,अपमान से भी कभी-कभी ज्ञान प्राप्त होता है ,जैसा कि कालिदास के साथ तिलोत्तमा ने किया छल का नतीजा था और तुलसीदास के साथ भी करीब-करीब वैसा ही हुआ,अगर अपमान से भी विद्यार्थी निपुण बनते हैं और बुद्धिमान बनते हैं तो मैं इस ज्ञानार्जन का भी स्वागत करूंगा।
कालिदास की इसी कड़ी में मैं आपको चेखव की कहानी शर्त की ओर भी ध्यान दिलाना चाहूंगा और साथ ही चाहूंगा चेतन भगत की कहानी द फ्रोग एंड द नाइटिंगेल इन को पढ़ें और सही मर्म को समझें।आप सभी नवयुवक हैं अपार संभावनाएं हैं लेकिन अगर आप इन को सही दिशा नहीं दे पाए, तो यह आपको शिथिलता, प्रमाद और अहंकारी बना सकती हैं ।
आलस्य, प्रमाद ,अहंकार इन चीजों से बचके आप सीखने की भावना रखें ,किसी से जलन न रखें और जान लें कि सहयोग का अर्थ कभी भी उपहास नहीं होता । ईश्वर ने आपको अल्प आयु में संपत्ति, बहुत सारा यशऔर समृद्धि दे रखी हो ,लेकिन यह आपके पास किसी का उपहास ,किसी गरीब का मजाकउड़ाने के लिए नहीं होता।
अभी आप में अपार संभावनाएं हैं आप चाहें तो क्या नहीं कर सकते आप बहुत समय तक किसी पर निर्भर ना रहें स्वावलंबी बने ऐसे स्रोत जुटाए जिससे आपके विद्यार्जन में बाधा ना आए ।मेरा आपसे उचित परामर्श यह है कि ब्रेक द बैरियर, जो बैरियर आप के सामने निरर्थक वह सारहीन हों, उनको इग्नोर करके रास्ता चुने या उनको तोड़े ।
मैं सोद्देश्य और सप्रसंग एक उदाहरण आपको देना चाहता हूं संस्कृति बहुत प्राचीन है , बहुत प्राचीन है हमारी सभ्यता । यह इतनी प्राचीन है कि इसमें जितनी प्राचीनता है उतनी ही नवीनता है अर्थात इसमें नई चीजों को पचाने की अपार क्षमता है इसीलिए इसको सनातन बोला गया है ।सनातन में हिंसा का कोई स्थान नहीं है स्पष्ट रूप से आज आपसे कहता हूं कि यदि आप अपने बचाव के लिए हिंसा करते हैं तब ही ऐसी हिंसा को वैदिकी हिंसा माना गया है। नहीं तो सनातन धर्म में तो चींटी को भी मार देना अपराध है। आप ध्यान दें, हमारे संतों और महात्माओं ने उद्घोष के साथ बात कही है कि दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान, इस बात को आप न भूलें शिक्षा के महत्व को स्वीकारते हुए प्लेटो कहता है- “राज्य वृक्षों या चट्टानों से निर्मित नहीं होता, बल्कि उन व्यक्तियों के चरित्र से निर्मित होता है, जो उसमें रहते हैं, व्यक्तियों को श्रेष्ठ व चरित्रवान बनाने के लिए शिक्षा की बहुत आवश्यकता है।
अभीष्ट और उद्देश्य भी है कि हम अच्छे नागरिक बने और अपने भरण पोषण हेतु स्वाबलंबी बने और उसी क्रम में हम नौकरी की तलाश करते हैं और हम जानते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षा पास करना नहीं होता ,प्रतियोगी परीक्षाएं ,एकेडमिक परीक्षाएं नहीं होती इसमें कोई आपको डिग्री नहीं मिलती,केवल आप नौकरी के लिए तलाशे जाते हैं ,आपको याद होगा एक पिक्चर आई थी ,छिछोरे , जिसमें बड़ी जोरदार वकालत की गई थी कि यदि प्लान ए सफल न हो तो आप बी प्लान तैयार रखें, वह प्लान यह है कि आप अपने पैरों पर खड़े हों । तो आप को कम निराश होना पड़ेगा । आप ज्ञानेश्वरी के साथ-साथ साने गुरुजी की श्यामची आई पुस्तक भी पढ़ सकते हैं,यह आत्मकथा ऐसी आत्मकथा है जिसमें बच्चे को आज्ञाकारी संस्कृति के मार्ग पर के मार्ग प्रशस्त करती है ।
महत्वपूर्ण बात यह है जैसा डॉक्टर जॉनसन ने एक बार कहा था कि लोग यह देखते हैं कि हम संपूर्ण जीवन कैसे जिये,अध्ययन करने के बाद भी हम सुव्यवस्थित अर्थात मेथोडिकल और स्पष्टता अर्थात प्रेसिजन नहीं आया तो ऐसी विद्या किस काम की।
एक बात आपके ध्यान में लाना चाहता हूं ,मैं स्थानीय विद्यालय में रविवार के दिन एक सांस्कृतिक संगोष्ठी में बुलाया गया था, मैं गया था और मैंने देखा कि मुख्य अतिथि किसी बाहर शहर के थे और कोई उच्च पद आसीन व्यक्ति रहे होंगे लेकिन जिन को सत्कार हेतु पुकारा गया था वह स्थानीय महाविद्यालय के संस्कृत के विभागाध्यक्ष रहे थे और जैसे ही वह फूल माला लेकर बढ़े, तो अतिथि ने इस एक श्लोक पढा और कहा कि कोई भी व्यक्ति अपने गुरुजनों अपने माता-पिता और अपने वरिष्ठ से अपना स्वागत स्वीकार नहीं कर सकता । इस चीज को आप भी ध्यान में रखें ,आप भी उसी समाज से आते हैं ,हम निकले हैं और उसी समाज में अंत में आपको हमको मिलनाहै।
मैं आपसे आज बहुत बातें करूंगा और जरूरी हो तो आप इन बातों को ध्यान में रखें अथवा कहीं नोट कर लें, क्योंकि यहां से सुनी हुई बातें मुझे डर है कि आप आढ़त के दुकानदार के बेटे की तरह यहीं पर झाड़ के न चले जाएं । और नहीं आप उस राजा की तरह शॉर्टकट अपनाएं जो जीवन भर आपको सालते रहें । एक राजा था उसका बहुत विशाल राज्य था मंत्री के साथ जंगल में मार्ग भटक गया। पानी की तलाश में उसने मंत्री से कहा कि कुछ तलाश करो फिर मैं एक सरोवर मिल ही गया सरोवर के किनारे ही एक शिला पट्टिका पर बहुत सारे नाम लिखे हुए थे अंतिम नाम पर शिला पट्टिका भी समाप्त हो गई थी। तो राजा ने मंत्री से पूछा पीएम शिला पट्टिका ऊपर किन के नाम अंकित है, मंत्री ने उत्तर दिया, उन राजाओं के नाम है जिन्होंने आप से पहले ,बहुत अच्छे अच्छे काम किए हैं। इस पर राजा बोला कि काम तो मैंने भी अच्छे किए हैं ,तो ऐसा करते हैं कि मेरा नाम आगे रहे और आगे आने वाली पीढ़ी के लोग याद रखें तो अंतिम नाम इस पर से मिटाकर मेरा नाम लिख दीजिए। मंत्री ने कहा कि यदि महाराज हम एसा काम करने लगे तो आप से आगे आने वाला राजा आपका नाम भी मिटा कर अपना नाम लिख लेगा । इसलिए यह प्रवृत्ति अच्छी नहीं होगी । हमें अच्छे काम करते रहना चाहिए । भी श्रेष्ठ पुरुषों के मार्ग का सदैव अनुसरण करना चाहिए ।
आपकी हाजिर जवाबी इतनी तीक्ष्ण हो , समय की नज़ाकत को संभाल ले इस विषय में मैं इस विषय में मैं आपको एक वकील के दृष्टांत को याद रखने पर जोर दूंगा जो पहले कथन को फिर बाद में काट देता है।
आप गुरु परंपरा का ध्यान रखें , हालात जो भी हों,भूल जाए किसी के अपमान और दिए दुख को । मेरा सही पर यहीं सुझाव रहेगा, बदले की भावना भूल जायें या एहसान , उपकार से दबा दें ,आप द्वेष विचार में रखकर कोई काम न करें बल्कि अपने काम पर फोकस करें सही समय का इंतजार करना सीखें।
आप उन हाथों को कभी न भूलें , जिनने आप का उपकार किया हो, कोई भला कार्य किया हो, जीविका दी हो, आपको सहयोग दिया , फिर वे छोटे हो ,आयु में बड़े हो ।
बहुत सही , बहुत सादगी से रहें ।याद रखें समय काल और परिस्थिति के अनुसार यह न भूलें बात कमान से निकला हुआ तीर ,और जबान से निकली बात कभी वापस नहीं आते।
अंत में मैं आपको इस कहानी के साथ विराम करूंगा कि एक चींटी नदी किनारे के पेड़ पर चढ़ गई और पत्ते पत्ते पर और पत्ते से होती हुई शाखों पर किलोल करते-करते ऐसे ही नदी में गिर गई और छटपटाने लगी, उसी पेड़ का एक टूटा हुआ पत्ता पास से गुजरा, चींटी उसके पीठ पर चढ़ गई ,उस पत्ते ने उसे एक किनारे लगा दिया और वह चीटिं धन्यवाद देती हुई निकली , पत्ते ने कहा कि धन्यवाद काहे का ,मैं तो निरुद्देश्य बह ही रहा था, यदि आपके कुछ काम आ सका तो इससे बढ़िया क्या होगा। मेरा भी आपसे यही नम्र निवेदन है कि गोविंद ने जो प्रारंभ में मैंने इस श्लोक में बात बताई, उशअपने जीवन में उसीमार्ग को आगे बढ़ाएं ।
सभी को सादर नमस्कार सभी जिज्ञासुओं को जीवन की सफलता की शुभकामना।
- क्षेत्रपाल शर्मा
म सं 19/17,शांतिपुरम, सासनी गेट, आगरा रोड अलीगढ़ 202001
मो - 7983654429
kpsharma05@gmail.com
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