समाज सेवा पर निबंध हिंदी में samaj seva par nibandh in hindi essay on social service an essay on social service essay on social services essay on soci
समाज सेवा पर निबंध हिंदी में
समाज सेवा पर निबंध समाज सेवा पर निबंध हिंदी में samaj seva par nibandh in hindi essay on social service an essay on social service essay on social services essay on social service in Hindi समाज सेवा पर हिंदी में निबंध समाज सेवा पर निबंध निबंध समाज सेवा पर Importance of social service Essay Writing for Competitive Exams - भारतीय समाज को ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य और शूद्र आदि वर्गों में बाँट दिया गया है। जन्म लेते ही बालक की गिनती समाज में होने लगती है। प्रत्येक समाज के अपने अलग- अलग आचार-विचार होते हैं और प्रत्येक मनुष्य की विचारधारा भी पृथक होती है। समाज के विभिन्न वर्गों में जन्म, विवाह, मृत्यु आदि संस्कार भी अलग-अलग होते हैं। समाज के सारे नियमों का विधि-विधान पूर्वक संचालन हो इसके लिए एक-दूसरे के सहयोग की आवश्यकता होती है।
समाजिक नियमों का पालन
मनुष्य अपनी प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति समाज में रहकर करता है तथा स्वयं भी समाज का सहयोग करता है। इसी समाज में रहकर ही व्यक्ति विद्या प्राप्त करता है, धन प्राप्त करता है और अपने परिवार का पालन करता है तथा समाज में रहते हुए ही प्रतिष्ठा एवं उच्च पद प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है। समाज की उन्नति में ही व्यक्ति की उन्नति सम्मिलित है। समाज में रहने वाले लोग ही समाज में रहने के नियम बनाते है और समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इन नियमों का पालन करना पड़ता है।
प्राचीनकाल में सामाजिक नियम अत्यन्त कठोर थे। उस समय राजाज्ञा का उल्लंघन हो सकता था किन्तु समाज के नियमों का उल्लंघन करना अक्षम्य अपराध था। अपराधी व्यक्ति के लिए भी समाज ही नियम निर्धारित करता था। इन नियमों में कुछ प्रथाएँ ऐसी थीं जो समाज एवं राष्ट्र के लिए कलंक थीं। इन प्रथाओं को या नियमों को दूर करने के लिए अनेकानेक व्यक्तियों ने महत्त्वपूर्ण कार्य किये और सफलता पाई।
भक्ति-युग में कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास आदि ऐसे अनेक कवि हुए जिन्होंने धर्म के नाम पर बिखर रहे समाज को एकता के सूत्र में बाँधा। इन्होंने मनुष्य को इस बात का ज्ञान कराया कि राम-अल्लाह दोनों एक हैं केवल उनके नाम अलग हैं। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति को अपना भाई समझना चाहिए। प्रत्येक धर्म का एक ही उद्देश्य है।
मनुष्य को ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दिखाना। ईश्वर तो एक ही है उसके मानने वाले उसे विभिन्न नामों से पुकारते हैं। हमें धर्म के नाम पर एक दूसरे से झगड़ना नहीं चाहिये अपितु एक साथ मिलकर समाज की उन्नति में योगदान देना चाहिये।
इन कवियों ने ज्ञान और भक्ति की नई राह दिखाकर भटकते हुए मानव को एक नया मार्ग दिखाया तथा समाज में प्रचलित छुआछूत, ऊँच-नीच जैसी कुरीतियों को दूर करने का सफल प्रयास किया। इसीलिये कबीर को समाज-सुधारक और तुलसी को 'लोकनायक तुलसीदास' कहा गया। राजा राममोहन राय के कठिन परिश्रम के बल पर सती प्रथा का अन्त हुआ। साथ ही बाल-विवाह आदि कुप्रथाओं को रोका जा सका।
सामाजिक सुधार के लिए आन्दोलन
आधुनिक समाज में भी महात्मा गाँधी, लाल बहादुर शास्त्री आदि ऐसे अनेकानेक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने ऊँच-नीच, छुआछूत आदि की दीवारों को गिरा दिया। महात्मा गाँधी ने तो अछूतों की बस्ती में रहकर तथा खाना खाकर उन्हें सम्मान दिया तथा अछूतों को 'हरिजन' अर्थात् भगवान के लोग कहकर समाज में उचित स्थान दिलाया।
पहले स्त्री-शिक्षा का बहुत विरोध किया जाता था किन्तु समाज सेवकों के भरसक प्रयासों ने स्त्री-शिक्षा को अनिवार्य करके केवल स्त्रियों को ही नहीं अपितु समाज, देश एवं राष्ट्र को बहुमुखी विकासोन्मुख बना दिया। आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्त्री पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य कर रही हैं। राजनीति हो, विज्ञान हो या दफ्तर हो या घर सभी जगह स्त्री पुरुषों के समान आगे बढ़ रही है।
जागरूक या समाज-सेवी व्यक्तियों के प्रयास से ही आज बाल-विवाह को बिल्कुल बन्द कर दिया गया है एवं विधवा-विवाह को प्रोत्साहन दिया गया है। इससे सैकड़ों उजड़े हुए घर फिर से फलीभूत होते हुए देखे जा सकते हैं।
प्राचीनकाल से ही समाजसेवी मनुष्यों की कमी नहीं है। समाज के प्रति मनुष्य का यह कर्त्तव्य है कि समाज की जो नीति दुःखदाई या अनीतिपूर्ण हो उसे समाप्त कर नई नीति बनाएँ। प्राचीनकाल से आज तक राम-लक्ष्मण, कृष्ण, युधिष्ठिर, हरिश्चन्द्र, कर्ण, तुलसी, कबीर, राजा राममोहन राय, महात्मा गाँधी, इन्दिरा गाँधी, रामधारी सिंह दिनकर आदि ऐसे समाज सुधारक एवं कवि हुए हैं जिन्होंने अपने कार्यों एवं रचनाओं से समाज को लाभान्वित किया। यह सिद्ध किया कि समाज-सेवा मानव का कर्त्तव्य है। जिस समाज से उसे सब कुछ मिलता है उसको स्वच्छ रखना अर्थात् उसकी कुरीतियों को दूर करना उसका कर्त्तव्य है क्योंकि मनुष्य से समाज और समाज से देश का निर्माण होता है।
समाज सेवा ही मानव सेवा
समाज सेवा देश प्रेम की उदात्त भावना को व्यक्त करती है, क्योंकि समाज देश सेवा की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। राष्ट्र का निर्माण उसमें रहने वाले व्यक्तियों से होता है। इसकी सेवा तन से भी की जा सकती है धन से भी एवं मन से भी। यदि मनुष्य सोच ले कि मुझे कुछ करना है तो वह कर लेता है अन्यथा स्वार्थ में लिप्त होकर पशुओं की तरह जीवन बिता देता है। सच्चा समाज सेवी सूर्य के समान सबको प्रकाश देता है, मानवता को सच्ची राह दिखाता है और अपनी अपरिमित शक्ति से समाज के बिगड़े ढाँचे को नवीन परिष्कृत रूप प्रदान कर एक आदर्श उपस्थित कर देता है जिस पर चलकर आगामी पीढ़ियाँ लाभान्वित होती हैं।
समाज-सेवा ही सच्ची मानव सेवा और, देश सेवा है। प्रत्येक मनुष्य को समाज के प्रचलित नियमों का दृढ़ता से पालन करना चाहिए एवं कुरीतियों को दूर करने का दृढ़ संकल्प लेकर सामाजिक परिवेश को स्वच्छ एवं अनुकरणीय बनाने का सतत् प्रयास करना चाहिए।
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