ग्राम लक्ष्मी की उपासना विनोबा भावे समृद्ध गांव सुख की छांव ग्राम लक्ष्मी के शहर भागने के चार रास्ते हैं पहला बाजार दूसरा ब्याह शादी तीसरा साहूकार
ग्राम लक्ष्मी की उपासना | विनोबा भावे
आचार्य विनोबा भावे ने ग्राम लक्ष्मी यानी गांव की लक्ष्मी जो शहरों की तरफ भाग रही है उसे गांव में ही रोकने पर जोर दिया है। गांव की लक्ष्मी जो उठकर शहरों की तरफ चली जाती है उससे गांव निर्धन और दुखी हो जाते हैं।लेखक के अनुसार ग्राम लक्ष्मी के शहर भागने के चार रास्ते हैं पहला बाजार ,दूसरा ब्याह शादी,तीसरा साहूकार और चौथा व्यसन।
लेखक के अनुसार ब्याह शादियों में जरूरत से ज्यादा खर्च किया जाता है।लड़की की शादी होने के कई सालों बाद तक मां बाप को कर्जे से मुक्ति नहीं मिलती।लेखक कहते हैं इसका उपाय यह है कि शादी और समारोह का खर्चा गांव समाज वालों को मिलकर उठाना चाहिए।मां बाप के सिर पर खर्चे का बोझ नहीं डालना चाहिए।इससे कर्ज नहीं होगा झगड़े कम होंगे और सहयोग और आत्मीयता बढ़ेगी।
बाजार पर रोक लगाने से ग्राम लक्ष्मी गांव में ही टिकेगी । विनोबाजी कहते हैं किसान कपास बोते हैं सारा का सारा बेच देते हैं।फिर बुवाई के वक्त शहर से मोल लाते हैं ये गई लक्ष्मी बाहर, कपास खुद पैदा करते हैं और शहर जाकर बेच देते हैं और कपड़ा खरीदते हैं, गन्ना खुद पैदा करते हैं शक्कर खरीदते हैं, मूंगफली,तिल्ली और अलसी उपजाते हैं और तेल शहर से खरीदते हैं। इस प्रकार गांव की लक्ष्मी गांव में न रहकर शहर की हो जाती है गांव रीते,खाली और सूखे रह जाते हैं। लेखक कहते हैं गांव की लक्ष्मी को गांव में ही रहने देकर उसकी पूजा उपासना करनी चाहिए।जिन चीजों को शहरों से लाते हैं उन्हें गांव में ही बनाने का प्रयास करना चाहिए।
विनोबा जी के अनुसार यथार्थ लक्ष्मी गांव में ही है पेड़ों में फल और खेतों में फसल ही सच्ची लक्ष्मी है।इस सच्ची लक्ष्मी को शहर में बेचकर लक्ष्मी की अवमानना होती है। गांव की लक्ष्मी गांव में ही घूमनी चाहिए ।घर घर और गांव गांव ।कोई चीज इस गांव में बेचो गांव में ही जो चीज हो उसे खरीदो । नकली आभूषणों से खुद को सजाने के बजाय प्राकृतिक चीज़ों से शृंगार करो।कृष्ण भगवान ने कभी भी ग्राम लक्ष्मी को बाहर नहीं जाने दिया।गोपियां दूध दही मक्खन मथुरा ले जाती थीं कान्हा उन्हें चुराकर अपने बालक मित्रों में बांट कर खिला पिला कर स्वस्थ सुंदर बना दिया।गोकुल का सुख असीम था ।इस गोकुल के चार अन्न के दानों के लिए देवता भी तरसते थे।
व्यसन से मुक्ति बीड़ी शराब से दूर रहकर भी ग्राम लक्ष्मी की उपासना की जा सकती है। क्योंकि इनसे प्राणों का कुटुंब का और धर्म का नाश होता है।
झगड़ों के निपटारे घर गांव में ही करने चाहिए। अदालतों में ग्राम लक्ष्मी का अपमान होता है।जिस प्रकार चीज़े गांव की हो उसी प्रकार न्याय भी गांव में ही होना चाहिए। गांव का धान्य,गांव का वस्त्र, गांव का ही न्याय हो तो ग्राम लक्ष्मी की सच्ची उपासना होगी।
ये सब अगर हो जाए तो साहूकार से स्वतः ही दूरियां बन जायेगी। कर्ज लेने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।इसलिए विनोबा जी कहते हैं कि गांव की ही चीज़े इस्तेमाल में लाई जाए । ब्रश दातुन के, मंजन राख का, सूत गांव का, कपड़ा बुनाई गांव की, अन्न धान गांव का तेल शक्कर गांव की. बंदनवार पेड़ो के ,घड़ा बर्तन मिट्टी के । विनोबा जी गांवों को हराभरा गोकुल बना कर लक्ष्मी को रोकने के पक्षधर हैं। उनके अनुसार वही गांव समृद्ध और सुखी होगा जहां ईख का कोल्हू चल रहा है, चरखा चल रहा है, धुनिया धुन रहा है, घानी में तेल निकाला जा रहा है कुएं खिलखिलाहट से गूंज रहे हो।
जब गांव स्वाश्रयी, स्वावलंबी, अरोग्यसंपन्न, उद्योगशील तथा मधुर होंगे तब ही ग्राम लक्ष्मी गांव में टिकेगी और वही ग्राम लक्ष्मी की सच्ची उपासना होगी।
- डॉ ममता मेहता
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