महादेवी वर्मा की गद्य शैली की विशेषता महादेवी वर्मा की गद्य रचनाएँ महादेवी वर्मा की गद्य भाषा महादेवी वर्मा की गद्य शैली हिन्दी गद्य साहित्य में
महादेवी वर्मा की गद्य शैली की विशेषता
महादेवी वर्मा की गद्य शैली की विशेषता - महादेवी वर्मा छायावाद की कवयित्री के रूप में विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कुछ रेखाचित्र, कहानियाँ तथा संस्मरण भी लिखे हैं जो उनके दयालु, स्नेहमय और सहानुभूतिपूर्ण व्यक्तित्व का प्रदर्शन करते हैं। आपका जन्म 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हुआ। संस्कृत की एम. ए. परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात आप प्रयाग-महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या के पद पर प्रतिष्ठित हुईं। बाल्यकाल से ही कविता-लेखन की ओर आपकी रुचि रही। साथ ही तुच्छ कहे जाने वाले प्राणियों और मनुष्यों के चरित्रों का चित्रण आपने इस भाँति किया कि उनके प्रति सहानुभूति और प्रेम जागृत हो सके। आपने सन् 1942 के स्वतंत्रता आंदोलन में पीड़ित किए गए दीन-हीन बच्चों तथा महिलाओं की बहुत सेवा भी की। आपका देहांत सन् 1987 में हुआ ।
महादेवी वर्मा की गद्य रचनाएँ
महादेवी जी की रचनाओं में प्रमुख हैं- 'नीहार', 'नीरजा', 'रश्मि', 'सांध्यगीत' 'यामा', 'दीपशिखा' और 'सप्तपर्णा' । गद्य-काव्य संग्रह हैं- 'अतीत के चलचित्र', 'श्रृंखला की कड़ियाँ', 'स्मृति की रेखाएँ' तथा 'विवेचनात्मक-लेख' ।
महादेवी जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ कोमल कांत-पदावली से युक्त तथा प्रसाद गुण से पूर्ण है। आप किसी भी चित्र को शब्दों में प्रस्तुत करने में तदनुकूल भाषा का प्रयोग करती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि भावों के साथ ही भाषा तन्मय होकर हृदय से निकल रही है। उसमें कृत्रिमता का अभाव है। वाक्य कहीं-कहीं बहुत लम्बे तथा गम्भीर भाव लिए हुए
हैं ।
महादेवी वर्मा की गद्य भाषा
महादेवी जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ कोमल-कान्त पदावली से युक्त प्रसाद गुण से पूर्ण है। आप किसी चित्र को शब्दों में प्रयुक्त करने में तदनुकूल भाषा का प्रयोग करती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि भावों के साथ ही भाषा तन्मय होकर हृदय से निकल रही है। उसमें कृत्रिमता का अभाव है। वाक्य कहीं-कहीं बहुत लम्बे तथा गम्भीर भाव लिए हुए है।
मुहावरों और लोकोक्तियों के सटीक प्रयोग भी इनकी रचनाओं में मिल जाते हैं। इससे इनकी भाषा में लोक-जीवन की जीवन्तता का समावेश हो गया हैं।
लक्षणा और व्यंजना की प्रधानता इनकी भाषा की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। भाषा की लाक्षणिकता के कारण इनके गद्य में काव्य जैसा आनन्द अनुभूत होता है।
इस प्रकार महादेवी जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक भाषा है। इसमें चित्रों को अंकित करने तथा अर्थ को व्यक्त करने की अद्भुत सामर्थ्य है।
महादेवी वर्मा की गद्य शैली
महादेवी जी की गद्य-शैली इनकी काव्य-शैली से बिल्कुल भिन्न है। ये यथार्थवादी गद्य-लेखिका थीं। इनकी गद्य शैली में मार्मिकता, बौद्धिकता, भावुकता, काव्यात्मक सौष्ठव तथा व्यंग्यात्मकता विद्यमान है। इनकी रचनाओं में शैली के प्रायः निम्नलिखित रूप देखने को मिलते हैं-
- चित्रोपम वर्णनात्मक शैली- महादेवी जी चित्रोपम वर्णन करने में सिद्धहस्त हैं। वस्तु, व्यक्ति अथवा घटना का वर्णन करते समय इनकी लेखनी तूलिका बन जाती है, इससे सजीव शब्दचित्र बनते चले जाते हैं। इस शैली की भाषा सरल है, वाक्य अपेक्षाकृत छोटे हैं, वर्णन में प्रवाह है तथा भाषा में चित्रात्मकता है। इनके निबन्धों और रेखाचित्रों में इसी शैली का प्रयोग हुआ है। महादेवी जी की मुख्य शैली भी यही है
- विवेचनात्मक शैली - गम्भीर और विचार-प्रधान विषयों का विवेचन करते समय महादेवी जी ने इसी शैली का प्रयोग किया है। इनके विचारात्मक निबन्धों में यही शैली मिलती है। बौद्धिकता के साथ ही स्पष्ट विवेचन, तार्किकता और सूक्ष्म विश्लेषण इस शैली की मुख्य विशेषताएँ हैं। इस शैली की भाषा गम्भीर और संस्कृतनिष्ठ है। कवयित्री भी थीं। इनके इस व्यक्तित्व की छाप इनके गद्य में यत्र-तत्र - सर्वत्र दिखाई देती
- भावात्मक शैली - महादेवी भावुक हृदया नारी होने के साथ ही भावमयी है। हृदय का आवेग जब रुक नहीं पाता तब उनकी शैली भावात्मक हो जाती है। इस शैली में महादेवी जी की भाषा कोमलकान्त पदावली से युक्त और आलंकारिक हो उठती है। जैसे- 'पृथ्वी के उच्छवास के समान उठते हुए धुंधलेपन में वे कच्चे घर आकंठ मग्न हो गए थे- केवल फूस के मटमैले और खपरैल के कत्थई और काले छप्पर, वर्षा में बढ़ी गंगा के मिट्टी- जैसे जल में पुरानी नावों के समान जान पड़ते थे।'
- व्यंग्यात्मक शैली - सामाजिक वैषम्य और नारी जीवन की विडम्बनाओं को देखकर महादेवी इतनी दुखी और क्षुब्ध हो उठती थीं कि उनकी कोमल लेखनी से तीक्ष्ण व्यंग्य निकलने लगते थे। इनके रेखाचित्रों में तथा 'श्रृंखला की कड़ियाँ' नामक निबन्ध- संग्रह के निबन्धों में स्थान-स्थान पर इस व्यंग्यात्मक शैली के दर्शन होते हैं। महादेवी की व्यंग्यात्मक शैली बहुत ही मार्मिक प्रभाव छोड़ती है। यथा- 'जिनकी भूख झूठी पत्तल से बुझ सकती है, उनके लिए परोसा लगाने वाले पागल होते हैं।'
- शैली के इन रूपों के साथ ही महादेवी की रचनाओं में सूक्ति शैली, उद्धरण शैली, आत्मकथात्मक शैली आदि के भी प्रयोग मिल जाते हैं।
महादेवी वर्मा का हिन्दी गद्य साहित्य में स्थान
महादेवी वर्मा ने कवयित्री और लेखिका दोनों ही रूपों में अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया। इन्होंने काव्य के क्षेत्र में एक नवीन युग का सूत्रपात किया। ये भावप्रधान लेखिका थीं। हिन्दी साहित्य में महादेवी वर्मा का योगदान मुख्यतः एक कवयित्री के रूप में है, किन्तु उन्होंने गम्भीर प्रौढ़ गद्य-लेखन द्वारा हिन्दी भाषा को सजाने, सँवारने तथा उनसे अर्थ-गाम्भीर्य प्रदान करने का जो प्रयत्न किया है वह भी कम सराहनीय नहीं है।
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