अदम्य साहस का दस्तावेज है फ़िल्म मिशन रानीगंजकोयला खदान तथा सुरक्षा उपायों की तकनीकी जानकारी का भी उपयोग अच्छी तरह किया गया है। इस फिल्म को देखना उस द
अदम्य साहस का दस्तावेज है फ़िल्म - मिशन रानीगंज
साल 1990 में कुवैत पर इराक के आक्रमण के दौरान वहां फंसे लगभग 1,70,000 भारतीयों को सुरक्षित हवाई मार्ग से निकाल लिया गया था। जिसे निकालने का श्रेय एक मलयाली भारतीय व्यवसायी मैथुनी मैथ्यूज को जाता है। उस सच्ची घटना पर आधारित एक फिल्म बनी थी- एयरलिफ्ट! उस सच्ची घटना पर शोध कर लगभग 5 सालों में राजा कृष्ण मेनन द्वारा लिखित और निर्देशित इस फिल्म में अभिनय किया था, इस तरह की किरदार के सिद्धस्त कलाकार अक्षय कुमार ने। उनके इसी तरह के कारनामों के चलते प्यार से उन्हें खिलाड़ी कुमार भी कहा जाता है।
इस घटना के ठीक एक साल पहले यानि 1989 में एक हैरत अंगेज घटना रानीगंज की महावीर कोयला खदान में घटी थी, जिसके अंदर हुई दुर्घटना में फंसे 65 कोयला श्रमिकों को एक कैप्सूल के जरिए जिंदा बाहर निकाल लिया गया था।उस बहादुरी भरे कारनामे को अंजाम दिया था कोल इंडिया के एक इंजीनियर जसवंत सिंह गिल ने और उस घटना पर आधारित एक फिल्म इसी 6 अक्टूबर को रिलीज हुई है, जिसका नाम है- मिशन रानीगंज!
यह फिल्म वासु भगनानी द्वारा निर्मित और टीनू सुरेश देसाई के निर्देशन तथा विपुल के रावल की सच्ची घटना पर बुनी गई कहानी पर आधारित है। इस फिल्म के प्रारंभिक दृश्य में जसवंत सिंह गिल के किरदार के रूप में अक्षय कुमार और उनकी पत्नी निर्दोष कौर के किरदार में परिणीति चोपड़ा के विवाह के दृश्य फिल्माए गए हैं, जिसमें गीत, संगीत, भांगड़ा वगैरह के साथ मनोरंजन के लिए भरपूर सामग्री परोसी गई है। उसके बाद मूल कथा की शुरुआत होती है जब पता चलता है कि महावीर कोयला खदान के अंदर असावधानी वश या फिर अत्यधिक उत्पादन करने के दबाव में जिस तरफ़ कोयले की दीवार को नहीं काटा जाना चाहिए था वह काटा जाता है और फिर पानी का सैलाब अंदर आ जाता है। खतरे की घंटी बजती है और अधिकतर श्रमिक बाहर निकल पाने में सक्षम होते हैं, लेकिन 71 श्रमिक अंदर फंस जाते हैं जिसमें से 6 श्रमिक तो पानी में ही समा जाते हैं। बाकी 65 श्रमिक किसी तरह ऊंची जगह पर चले जाते हैं, लेकिन उन्हें निकालने के सभी उपाय फेल होने पर घटना का नायक एक लोहे की कैप्सूल बनवाकर उसे जमीन के अंदर डालने की बात करता है और उसके माध्यम से निकालने की तरकीब सुझाता है। पहले तो सरदार जसवंत की बातों को कोई गंभीरता से नहीं लेता, लेकिन फिर काफी समझाने और कोई विकल्प न होने पर उसे जाने की इजाजत मिलती है।जब वो कैप्सूल के माध्यम से अंदर जाने को तत्पर होता है, एक वरिष्ठ अधिकारी उसे रोकता है कि आप जैसे अधिकारी की जान हम दांव पर नहीं लगा सकते, लेकिन वो पूरे आत्मविश्वास से लबरेज़ होकर कहता है- सर, सुबह की चाय वापस आकर आपके साथ ही पीउंगा। इतने बड़े हादसे के वक्त भी कुछ अधिकारियों द्वारा इस मिशन को निजी स्वार्थ के चलते फेल कर देने का कुछ कुचक्र भी दिखाई देता है, लेकिन सारी बाधाओं को पार कर जसवंत अपने मिशन में कामयाब होता है और सभी फंसे श्रमिकों को एक-एक कर कैप्सूल के माध्यम से बाहर निकाल लेता है। वैसे तब तक आखिर में अंदर जहरीली गैस भर चुकी होती है और वो अदम्य साहस और जीवन के प्रति सकारात्मक रूख के चलते जीवित बाहर निकल आता है। और फिर बाहर उसका स्वाभाविक रूप से काफी स्वागत होता है, देश दुनिया के मीडिया के कैमरे चमक उठते हैं। उसकी पत्नी निर्दोष कौर के रूप में परिणीती चोपड़ा भी गर्भावस्था होने के बावजूद पूरी तरह शांत और आत्मविश्वास से भरी दिखाई देती है।
फिल्म में कोलियरी के अंदर फंदे श्रमिकों की जिंदगी और मौत के भी झूलते दृश्य, बाहर परिवार वालों की बेचैनी और गिल के मानवीय दृष्टिकोण दर्शकों को कई बार भावुक कर देते हैं और आंखों से अश्रु अनायास छलक पड़ते हैं।
कोल इंडिया में इंजीनियर जसवंत सिंह गिल के रूप में अक्षय कुमार और उनकी पत्नी निर्दोष कौर के रूप में परिणीता चोपड़ा ने तो अपने किरदार को बखूबी अंजाम दिया ही है, वहीं सहयोगी कलाकारो में- उज्जवल के रूप में कमल मिश्रा, पाशु के किरदार में जमील खान, भोला के किरदार में रवि किशन और जुगाड़ू तकनीशियन के रूप में पवन मल्होत्रा ने अपने पात्रों के अनुसार अच्छा काम किया है। इसके अलावा कुछ छोटी भूमिकाओं में थे- दिव्येंदु भट्टाचार्य, राजेश शर्मा, शिशिर शर्मा, वचन पचेरा और सुधीर पांडे तथा अन्य।
ये फिल्म जहां सभी पैंसठ श्रमिकों को जिंदा बाहर निकालने के बाद नायक तथा उसकी पत्नी को मिलते हुए दिखाने का दृश्य है वहीं फिल्म का समापन हो जाना चाहिए था। उसके बाद फिर नायक नायिका को लेकर एक गीत का फिल्मांकन होने से कहानी की जिस गंभीरता में दर्शन डूबा हुआ होता है, उसे वहां से निकाल लाना कुछ अच्छा नहीं लगता।
इस फिल्म में कोयला खदान तथा सुरक्षा उपायों की तकनीकी जानकारी का भी उपयोग अच्छी तरह किया गया है। इस फिल्म को देखना उस दौर की सच्ची घटना से एक बार फिर से रूबरू होना है और जबान से बेसाख्ता ये निकल ही पड़ता है - अदम्य साहस का दस्तावेज है फ़िल्म - मिशन रानीगंज!
- रावेल पुष्प
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