दूध का दूध पानी का पानी पर हिंदी कहानी लेखन doodh ka doodh pani ka pani hindi kahani दूध का दूध और पानी का पानी एक हिंदी मुहावरा है निष्पक्ष और न्यायस
दूध का दूध पानी का पानी पर हिंदी कहानी लेखन
दूध का दूध पानी का पानी पर हिंदी कहानी लेखन दूध का दूध और पानी का पानी एक हिंदी मुहावरा है जिसका अर्थ है "सही और गलत का स्पष्ट अंतर करना" या "उचित निर्णय लेना"। यह मुहावरा दूध और पानी की स्पष्ट भौतिक विशेषताओं पर आधारित है। दूध और पानी के बीच का अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। दूध सफेद और गाढ़ा होता है, जबकि पानी पारदर्शी और पतला होता है।
इस मुहावरे का प्रयोग अक्सर न्यायालय, पुलिस, या अन्य ऐसे संस्थानों के संदर्भ में किया जाता है जहां निर्णय लेना आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए, यदि एक न्यायाधीश किसी अपराधी को दोषी ठहराता है, तो वह कह सकता है कि उसने "दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है"। इसका अर्थ है कि उसने एक निष्पक्ष और न्यायसंगत निर्णय लिया है।
निष्पक्ष और न्यायसंगत निर्णय
इस मुहावरे का प्रयोग अन्य संदर्भों में भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति किसी मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त करता है, तो कोई अन्य व्यक्ति उससे यह पूछ सकता है कि क्या उसने "दूध का दूध और पानी का पानी किया है"। इसका अर्थ है कि उस व्यक्ति ने अपने तर्कों को स्पष्ट रूप से और निष्पक्ष रूप से प्रस्तुत किया है।दूध का दूध पानी का पानी पर हिंदी कहानी लेखन निम्नलिखित रूप से है -
दूध का दूध पानी का पानी पर हिंदी कहानी
एक गाँव में एक हलवाई रहता था। उसका परिवार बहुत बड़ा था। गाँव की छोटी-सी दुकान से परिवार का गुजारा बहुत कठिनाई से होता था। अब उसने गाँव में अपना कारोबार बंद करके शहर में जाकर काम करने का निश्चय किया। उसने शहर में दुकान किराए पर लेकर अपना हलवाई का काम आरंभ कर लिया।
धीरे-धीरे उसकी बिक्री बढ़ने लगी। अब वह दो क्विंटल दूध प्रतिदिन बेचने लगा किंतु कमाई फिर भी ज्यादा नहीं हुई। उसे इतना लाभ नहीं होता था कि वह सारे परिवार का निर्वाह करके लड़कियों के लिए कुछ पैसे जोड़ सकता। यही चिंता उसे खाए जा रही थी ।
एक दिन उसने एक दूसरे हलवाई को अपनी परेशानी बताई। उसने अपनी चतुराई का बखान करते हुए कहा, "लाला जी शहर में ईमानदारी से काम नहीं बनता। तुम दो क्विंटल दूध रोज़ बेचते हो। मैं केवल एक क्विंटल दूध बेचता हूँ। दो साल में घर का खर्च चलाने के अलावा मैंने एक हवेली खड़ी कर ली है। थोड़े दिनों में दुकान खरीदकर किराए की दुकान से बच जाऊँगा। दो क्विंटल दूध में आधा क्विंटल पानी मिलाया जा सकता है। शहर में अधिकतर लोग चाय पीते हैं। इसलिए उन्हें पतले-गाढ़े दूध का पता नहीं चलता तनिक चतुराई से काम लो।"
हलवाई के मन में बेईमानी
गाँव वाले हलवाई का मन डोल गया और उसने दूध में पानी मिलाना शुरू कर दिया। फिर क्या था? जो उसने दो साल में नहीं बचाया था वह उसने दो महीने में बचा लिया। इधर उसे शहर में अपनी लड़की के लिए एक लड़का पसंद आ गया और उसने अपनी लड़की के विवाह की तैयारी शुरू कर दी। शादी से चार दिन पहले वह पाँच सौ रुपये की थैली लेकर गाँव को चला। रास्ते में एक पेड़ के नीचे थैली को सिरहाने रखकर सो गया। जब वह सोकर उठा तो थैली न देखकर हक्का-बक्का रह गया। इतने में उसकी दृष्टि वृक्ष पर बैठे बंदर पर पड़ी।
बंदर ने थैली में खाने का सामान समझकर उसे उठा लिया पर मन की आशा पूरी न होने पर वह रुपयों को अचरज से देखने लगा तथा उसके साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दिया। वह एक रुपया नदी में फेंकता और एक ज़मीन पर । हलवाई के डराने-धमकाने पर भी उसने अपनी हरकत बंद नहीं की। हारकर हलवाई ने ज़मीन पर गिरे पैसों को उठाकर एकत्रित किया तो वे पाँच सौ से ढाई सौ रुपये ही रह गए।
हलवाई वृक्ष के नीचे बैठकर रोने लगा। इतने में एक राहगीर उधर से गुजरा। सारी बात सुनने के बाद उसने कहा कि बंदर ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। हलवाई के दूध के पैसे पृथ्वी पर और पानी के पैसे पानी में चले गए।
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